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अररिया के लाल सुब्रत रॉय ने बनाया अद्भुत साम्राज्य, फिर हुई अरबों रुपये की गड़बड़ी

सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में हुआ। मशहूर लेखक मणि शंकर मुख़र्जी ने एक लेख में लिखा था कि सुब्रत रॉय के माता पिता बिक्रमपुर (अब बांग्लादेश में) के भाग्यकुल ज़मींदार घराने से थे और बंटवारे से पहले बिहार आ गए थे।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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sahara india founder subrata roy

बिहार के सीमांचल के अररिया जिले में जन्मे सहारा समूह के संस्थापक सुब्रत रॉय का मंगलवार को मुंबई में निधन हो गया। मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल में उन्होंने आखिरी साँस ली। सहारा समूह की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि 75 वर्षीय सुब्रत रॉय की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई। वह लंबे समय से मेटास्टैटिक कैंसर से जूझ रहे थे। साथ ही रक्तचाप और मधुमेह से भी ग्रस्त थे।


बीते 12 नवंबर को तबीयत बिगड़ने पर सुब्रत रॉय को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई।

‘सहारा श्री’ कहे जाने वाले सुब्रत रॉय, सहारा इंडिया परिवार के अध्यक्ष थे। उन्होंने साल 1978 में सहारा कंपनी की शुरुआत की थी। सहारा इंडिया के बैनर तले उन्होंने चिट फंड, रियल एस्टेट, एयरलाइंस, होटल, स्वास्थ्य क्षेत्र, मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री सहित कई अलग अलग क्षेत्रों में सफलता हासिल की। सन 2004 में सहारा समूह को टाइम मैगजीन ने भारतीय रेलवे के बाद देश की दूसरी सबसे अधिक रोज़गार देने वाली कंपनी बताया था।


सुब्रत के जन्मस्थल अररिया में शोक का माहौल

सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में हुआ। मशहूर लेखक मणि शंकर मुखर्जी ने सुब्रत राॅय पर लिखी अपनी किताब ‘बंगालीज प्रैक्टिस आफ फाइनेंस: द सहारा स्टोरी’ में बताया है कि सुब्रत रॉय के माता पिता बिक्रमपुर (अब बांग्लादेश में) के भाग्यकुल ज़मींदार घराने से थे और बंटवारे से पहले बिहार आ गए थे। सुब्रत रॉय ने कोलकाता के होली चाइल्ड इंस्टीट्यूट से स्कूली पढ़ाई पूरी की और बाद में गोरखपुर के जीआईटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली।

सहारा श्री के निधन पर अररिया में उनके रिश्तेदारों और दोस्तों में शोक की लहर है। सुब्रत रॉय के निधन के बाद उनके रिश्तेदार अजय सेन गुप्ता, सुभाष सेन गुप्ता, अतनुदास गुप्ता उर्फ ऐनी दा से हमने बात की। रिश्तेदारों ने बताया कि सुब्रत रॉय को अररिया के लोग उनके घरेलू नाम चंदन से संबोधित करते थे। रिश्ते में मामा अजय सेन गुप्ता ने कहा, “हमलोगों का बचपन सुब्रत रॉय के साथ बीता है। हमलोग दुर्गा पूजा के समय एक साथ ढाक बजाया करते थे। सुब्रत, फुटबॉल के काफी शौकीन थे। आज उन बातों को याद कर काफी पीड़ा होती है।”

एक और रिश्तेदार अजय सेनगुप्ता ने बताया कि सुब्रत रॉय का जन्म अररिया में उनके नाना अमितो लाल दासगुप्ता तथा नानी नमानी माला दासगुप्ता के घर हुआ था। उनके पिता का नाम सुधीर चंद्र रॉय और माता का नाम छवि रॉय था।

सुब्रत रॉय की प्रारंभिक शिक्षा अररिया हाईस्कूल से हुई, लेकिन उनके पिता शुगर मिल में इंजीनियर थे तो जहां जहां उनकी पोस्टिंग हुई वहीं सुब्रत को शिक्षा ग्रहण करना पड़ा । सुधीर चंद्र रॉय और छवि रॉय की चार संतानों में सुब्रत राय सबसे बड़े थे। उनके बाद छोटे भाई जयब्रोतो रॉय, दो छोटी बहनें माला रॉय व कुकुम रॉय चौधरी हैं। सुब्रत राॅय का विवाह सपना रॉय से हुआ था और उन दोनों के दो पुत्र – सुशांत रॉय और सीमांत रॉय है।

अररिया में है सुब्रत रॉय का एक घर और दफ्तर

अररिया के आश्रम रोड में सुब्रत रॉय का एक घर भी है जहां उनका जन्म हुआ था। हालांकि अब इस घर में कोई नहीं रहता है। घर के पास ही सहारा इंडिया का पुराना दफ्तर भी है। स्थानीय लोग बताते हैं कि उनके घर तक पहुंचने के लिए पहले सड़क नहीं थी। बाद में सुब्रत रॉय ने अपने खर्च पर यह सड़क बनवाई। लोग बताते हैं कि उनके नाना का भी घर आश्रम रोड में ही है।

गोरखपुर में स्कूटर पर नमकीन बेचने से की शुरुआत

सुब्रत रॉय के पिता सुधीर चंद्र रॉय इंजीनियर थे इसीलिए वह उनके साथ गोरखपुर में ही रहे। भले ही सुब्रत रॉय बिहार के अररिया में पैदा हुए, लेकिन उत्तर प्रदेश, उनकी कर्मभूमि रही और गोरखपुर में ही अपना पहला व्यवसाय शुरू किया। नमकीन और दालमोठ के व्यवस्याय से शुरुआत करने वाले सुब्रत रॉय का सहारा इंडिया परिवार देश के इतिहास में सबसे बड़े व्यवसाय समूहों में से एक बना। अभी भी देशभर में उनके द्वारा बनाई गई कई बड़ी कंपनियां चल रही हैं।

सुब्रत रॉय ने कॉलेज खत्म होने के बाद अपना एक छोटा सा व्यवसाय खोला। वह अपनी स्कूटर पर नमकीन, दालमोठ जैसे सामान बेचा करते थे। वह ‘जया प्रोडक्ट्स’ नाम से इस व्यवसाय को चला रहे थे। हालांकि उन्हें इसमें अधिक सफलता नहीं मिली। इसके बाद 1978 में 30 वर्षीय सुब्रत रॉय ने सहारा इंडिया परिवार की शुरुआत की और एक चिटफंड कंपनी के तौर पर काम करने लगे।

छोटे कामगार बने सहारा कंपनी के जमाकर्ता

इस व्यवसाय में वह लोगों के पैसे जमा करते थे और कुछ समय बाद उसमें ब्याज़ जोड़कर उन्हें लौटाते थे। धीरे धीरे यह कंपनी बढ़ती गई और 90 के दशक में देश की सबसे बड़ी फाइनेंस कंपनियों में से एक बन गई। 90 के दशक में ही सहारा समूह ने एयरलाइंस, होटल और अस्पतालों में पैसा लगाना शुरू किया। 2000 तक सहारा कंपनी में पैसे लगाने वाले लोगों की संख्या डेढ़ करोड़ तक पहुँच गई।

इसी समय सहारा ने मीडिया और फिल्म उद्योग में भी अपना कदम रखा। सहारा इंडिया कई सालों तक भारतीय क्रिकेट टीम और भारतीय हॉकी टीम का प्रायोजक रहा।

शुरुआत में सहारा ने मज़दूर वर्ग के लोगों को जमाकर्ता बनाया और ये लोग एक रुपये से 10-20 रुपये रोज़ाना जमा किया करते थे। बाद में जमा की जानेवाली राशि बढ़ती गई।

बता दें कि सहारा, रेसिडुअल नॉन बैंकिंग कंपनी (RNBC) के तौर पर काम करती थी। इन्हें NBFC यानी नॉन बैंकिंग कंपनी के मुकाबले अधिक छूट मिली हुई थी, इसलिए जमाकर्ता जितना पैसा चाहे, डिपॉज़िट कर सकते थे।

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सहारा पर क्यों लगा पैसों की गड़बड़ी का आरोप

2000 के मध्य दशक आते-आते सहारा ग्रुप पर पैसों की गड़बड़ी के आरोप लगने शुरू हो गए। 2007 में सहारा इंडिया परिवार की दो कंपनियां शेयर बाज़ार में लाई गईं और फिर उनके आंकड़े पहली बार सावर्जनिक हुए। जानना अहम है कि शेयर बाज़ार में पैसे उगाहने के लिए सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की अनुमति लेनी पड़ती है। सहारा ने बिना अनुमति लिए करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये उगाह लिए।

जनवरी 2010 में SEBI ने सुब्रत रॉय से पूछताछ की। इसके बाद SEBI इसको लेकर उच्च न्यायालय पहुंची। SEBI ने सहारा पर निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपये वापस न करने का आरोप लगाया।

सुब्रत रॉय को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई सज़ा

फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को निवेशकों का पैसा वापस करने का आदेश दिया और सुब्रत रॉय को अवमानना के मामले में जेल भेज दिया गया। इसके बाद सहारा ने 15 हज़ार करोड़ रुपये SEBI के फंड में जमा कराये।

इससे पहले 2008 में आरबीआई ने सहारा समूह पर नए डिपॉज़िट लेने पर रोक लगा दी थी। आरबीआई ने तब कहा था कि सहारा में लगाए गए पैसों का 20% हिस्सा कंपनी ने अपने धंधे में खर्च कर दिया।

26 फरवरी 2014 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो दिन बाद लखनऊ के दफ्तर से उन्हें गिरफ्तार किया गया और तिहाड़ जेल में रखा गया। मई 2016 में उन्हें पैरोल पर छोड़ा गया था।

करोड़ों निवेशकों के पैसे डूबे, 20 हज़ार ही मिले आवेदन

पिछले साल संसद में केंद्र सरकार ने जानकारी दी कि सहारा में 10 करोड़ ग्राहकों के 1 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। इनमें सहकारी समितियों में 47 हज़ार करोड़ रुपये लगे हुए हैं। सहारा रियल एस्टेट में भी 19 हज़ार करोड़ रुपये अटके हुए हैं। अब तक सहारा ने 15 हज़ार करोड़ रुपये जमा किए हैं जबकि 85 हज़ार करोड़ रुपये अभी भी बकाया हैं। केंद्र सरकार ने सहारा-सेबी रिफंड से निवेशकों को 5000 करोड़ रुपये लौटाने का एलान किया था।

इन पैसों में किसने कितने पैसे लगाए हैं इसको लेकर सालों से सवाल उठते रहे हैं। SEBI ने बताया कि 31 मार्च 2023 तक केवल 19,560 निवेशकों ने ही आवेदन जमा किये हैं। अब तक 17,500 निवेशकों को पैसे लौटाए गए हैं। निवेशकों की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है, मगर केवल 20,000 आवेदनों का आना आश्चर्यजनक है। सवाल यह है कि बाकी जमाकर्ता कहां हैं?

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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