Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

मलबों में गुम होता किशनगंज के धबेली एस्टेट का इतिहास

किशनगंज व पूर्णिया के सांसद रहे अंबेडकर के ‘मित्र’ मोहम्मद ताहिर की कहानी

पूर्णिया के मोहम्मदिया एस्टेट का इतिहास, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई

Virasat की अन्य ख़बरें

पूर्णिया: 1864 में बने एम.एम हुसैन स्कूल की पुरानी इमारत ढाहने का आदेश, स्थानीय लोग निराश

बिहार बंगाल विभाजन के बाद स्कूल की जमीन बिहार शिक्षा विभाग के अधीन हो गई जिसके बाद 1970 के दशक में स्कूल का नाम बदल कर आदर्श मध्य विद्यालय रखा गया। जर्जर हो चुकी स्कूल की पुरानी इमारत के पीछे राज्य सरकार ने 8 वर्ष पहले नई बिल्डिंग का निर्माण किया।

कटिहार के कुर्सेला एस्टेट का इतिहास, जहां के जमींदार हवाई जहाज़ों पर सफर करते थे

पूर्णिया गज़ेटियर में कुर्सेला एस्टेट के हवाई जहाज़ों और रनवे का ज़िक्र मिलता है। 1968 में छपे गज़ेटियर के संस्करण में लिखा गया, "कुर्सेला गांव में लैंडिंग फील्ड है जहां से कुछ छोटे विमान उड़ाए जाते हैं। यह विमान कुर्सेला एस्टेट की निजी संपत्ति है जो लगातार उपयोग में है।"

कर्पूरी ठाकुर: सीएम बने, अंग्रेजी हटाया, आरक्षण लाया, फिर अप्रासंगिक हो गये

1970 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने जो नीतियां अपनाई, वे आने वाले दशकों में बिहार की राजनीति की धुरी बनी रहीं और इन्हीं नीतियों ने राज्य की राजनीति में पिछड़े वर्गों के वर्चस्व को दशकों तक बनाये रखा, जो आज भी जारी है।

हलीमुद्दीन अहमद की कहानी: किशनगंज का गुमनाम सांसद व अररिया का ‘गांधी’

हालीमुद्दीन अहमद ने अररिया हाई सेकेंडरी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की और फिर पटना कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। पटना कॉलेज में उनके उस्तादों में मशहूर शायर और कथाकार सोहेल अज़ीमाबादी और उर्दू साहित्यकार अख्तर ओरेनवी जैसे बड़े नाम शामिल रहे।

बनैली राज: पूर्णिया के आलिशान राजमहल का इतिहास जहाँ आज भी रहता है शाही परिवार

चंपानगर ड्योढ़ी में बनैली एस्टेट के रजवाड़ों के महल का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है। उस समय चंपानगर बनैली एस्टेट की राजधानी हुआ करता था। यहां के राजमहल की शान-ओ- शौकत आज भी बरकरार है और बनैली एस्टेट के संस्थापक राजा दुलार सिंह की पांचवीं पुश्त के वंशज आज भी राजमहल में रहते हैं। राजमहल में दाखिल होने वाला मुख्य द्वार 'सिंह दरवाज़ा' कहलाता है।

अररिया के लाल सुब्रत रॉय ने बनाया अद्भुत साम्राज्य, फिर हुई अरबों रुपये की गड़बड़ी

सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में हुआ। मशहूर लेखक मणि शंकर मुख़र्जी ने एक लेख में लिखा था कि सुब्रत रॉय के माता पिता बिक्रमपुर (अब बांग्लादेश में) के भाग्यकुल ज़मींदार घराने से थे और बंटवारे से पहले बिहार आ गए थे।

उत्तर प्रदेश और बंगाल के ज़मींदारों ने कैसे बसाया कटिहार का रसूलपुर एस्टेट?

रसूलपुर एस्टेट की पुरानी जामा मस्जिद के लोहे के दरवाज़े पर स्थापना की तिथि 1650 लिखी हुई है। सैय्यद इम्तियाज़ हुसैन ने बताया कि एस्टेट के पुराने कागज़ात में यह तारीख लिखी मिली थी, साथ ही मस्जिद के मुख्य दरवाज़े पर यह तारीख लिखी थी लेकिन धीरे धीरे तारीख धुँधली होती गई।

भोला पासवान शास्त्री: बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तीन बार बैठने वाला पूर्णिया का लाल

भोला पासवान शास्त्री तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन वह कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 1968 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन केवल 100 दिनों के लिए। फिर 1969 में 13 दिनों के लिए उन्होंने सीएम की कुर्सी संभाली और उसके दो साल बाद यानी 1971 में उन्हें फिर से मुख्यमंत्री चुना गया, लेकिन इस बार भी वह लंबे समय के लिए मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहे। 222 दिन यानी करीब 7 महीनों के बाद उनका तीसरा और आखिरी मुख्यमंत्री कार्यकाल खत्म हो गया।

134 वर्ष पुराने अररिया उच्च विद्यालय का क्या है इतिहास

गुलाम देश में अंग्रेजों ने 1889 ईसवी में एचई स्कूल की स्थापना की थी। एचई का अर्थ है हायर इंग्लिश स्कूल। इस नाम को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि क्यों ऐसा नाम अंग्रेजों ने रखा था। लेकिन, 134 वर्ष के बाद भी लोग इसे एचई स्कूल ही कहते हैं। जबकि अभी बोर्ड पर लिखा है अररिया उच्च विद्यालय।

रामलाल मंडल: कैसे बापू का चहेता बना अररिया का यह स्वतंत्रता सेनानी

अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड स्थित नवाबगंज पंचायत के एक छोटे से गांव भोड़हर के रहने वाले रामलाल मंडल अररिया के चंद सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। सन् 1883 में जन्मे रामलाल मंडल करीब 104 वर्षों तक जीवित रहे।

पनासी एस्टेट: समय के चक्र में खो गया इन भव्य इमारतों का इतिहास

किशनगंज जिले के पोठिया प्रखंड स्थित पनासी एस्टेट का इतिहास करीब 2 सदी पुराना है। पनासी के ज़मींदार सैकड़ों एकड़ में फैले एस्टेट की जागीरदारी संभालते थे।

सुपौल: आध्यात्मिक व पर्यटन स्थल के रूप में पहचान के लिए संघर्ष कर रहा परसरमा गांव

18वीं शताब्दी में तत्कालीन भागलपुर जिला और वर्तमान सुपौल जिला के परसरमा गांव में बाबा जी का जन्म पंडित बच्चा झा के पुत्र के रूप में हुआ था।

Latest Posts

Ground Report

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?