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पूर्णिया की मध्यरात्रि झंडोत्तोलन को राजकीय समारोह का दर्जा नहीं मिला, फिर भी हौसला नहीं हुआ कम

पूर्णिया की ऐतिहासिक काझा कोठी में दिल्ली हाट की तर्ज़ पर बनेगा ‘काझा हाट’

स्वतंत्रता सेनानी जमील जट को भूल गया अररिया, कभी उन्होंने लिया था अंग्रेज़ों से लोहा

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पदमपुर एस्टेट: नदी में बह चुकी धरोहर और खंडहरों की कहानी

पदमपुर एस्टेट के संस्थापक हाजी फ़ज़्लुर्रहमान के पिता हसन अली का परिवार कनकई नदी के उस पार हांडीपोखर में रहता था। पदमपुर एस्टेट के शुरुआती दिनों में एस्टेट के लोग वहीं रहे लेकिन नदी कटाव के कारण उन्हें गांव छोड़कर पदमपुर आकर बसना पड़ा।

पुरानी इमारत व परम्पराओं में झलकता किशनगंज की देसियाटोली एस्टेट का इतिहास

खान मोहम्मद फ़ज़्लुर्रहमान ने देसियाटोली एस्टेट की जमींदारी को फैलाया और स्वतंत्रता से पहले बड़े सरकारी पद पर भी रहे। अमानुल्लाह ने बताया कि उनके दादा खान फ़ज़्लुर्रहमान 1947 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने लोकल बोर्ड की अध्यक्षता की और एसडीओ कोर्ट में मानद मजिस्ट्रेट रहे।

मलबों में गुम होता किशनगंज के धबेली एस्टेट का इतिहास

एस्टेट की जमीन पर कुछ बेहद पुराने वृक्ष आज भी मौजूद हैं। यह पेड़ 300 वर्ष से अधिक पुराने बताए जाते हैं। महमूद बख़्श की मानें तो एस्टेट के पास कई बगीचे थे लेकिन धीरे धीरे सब बिक गए और अब केवल तीन चार पुराने पेड़ ही बचे हैं। महमूद कहते हैं, "यहां 10 बीघा का बगीचा था, बहुत सारे पेड़ पौधे थे। हमलोग को जरूरत पड़ी तो वो सब बेच दिए।"

किशनगंज व पूर्णिया के सांसद रहे अंबेडकर के ‘मित्र’ मोहम्मद ताहिर की कहानी

देश की स्वतंत्रता के बाद संविधान की संरचना के लिए एक संविधान सभा बनाई गई थी। इस संविधान सभा में बिहार से 36 सदस्यों को शामिल किया गया था, इनमें से एक मोहम्मद ताहिर थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई करने वाले मोहमद ताहिर ने संविधान सभा में अपना अहम योगदान दिया।

पूर्णिया के मोहम्मदिया एस्टेट का इतिहास, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई

मोहम्मदिया गांव में आज एस्टेट की यादगार के तौर पर करीब डेढ़ सौ साल पुरानी मस्जिद है। पास में एक मदरसा है जहां छात्र दीनी तालीम हासिल करते हैं। एस्टेट की कई पुरानी इमारतें भी हैं जिनमें से कुछ जर्जर हो चुकी हैं। एस्टेट के संस्थापक शेख़ अमीर बख़्श के दो छोटे भाई इलाही बख़्श और मोहम्मद आग़ा थे।

पूर्णिया: 1864 में बने एम.एम हुसैन स्कूल की पुरानी इमारत ढाहने का आदेश, स्थानीय लोग निराश

बिहार बंगाल विभाजन के बाद स्कूल की जमीन बिहार शिक्षा विभाग के अधीन हो गई जिसके बाद 1970 के दशक में स्कूल का नाम बदल कर आदर्श मध्य विद्यालय रखा गया। जर्जर हो चुकी स्कूल की पुरानी इमारत के पीछे राज्य सरकार ने 8 वर्ष पहले नई बिल्डिंग का निर्माण किया।

कटिहार के कुर्सेला एस्टेट का इतिहास, जहां के जमींदार हवाई जहाज़ों पर सफर करते थे

पूर्णिया गज़ेटियर में कुर्सेला एस्टेट के हवाई जहाज़ों और रनवे का ज़िक्र मिलता है। 1968 में छपे गज़ेटियर के संस्करण में लिखा गया, "कुर्सेला गांव में लैंडिंग फील्ड है जहां से कुछ छोटे विमान उड़ाए जाते हैं। यह विमान कुर्सेला एस्टेट की निजी संपत्ति है जो लगातार उपयोग में है।"

कर्पूरी ठाकुर: सीएम बने, अंग्रेजी हटाया, आरक्षण लाया, फिर अप्रासंगिक हो गये

1970 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने जो नीतियां अपनाई, वे आने वाले दशकों में बिहार की राजनीति की धुरी बनी रहीं और इन्हीं नीतियों ने राज्य की राजनीति में पिछड़े वर्गों के वर्चस्व को दशकों तक बनाये रखा, जो आज भी जारी है।

हलीमुद्दीन अहमद की कहानी: किशनगंज का गुमनाम सांसद व अररिया का ‘गांधी’

हालीमुद्दीन अहमद ने अररिया हाई सेकेंडरी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की और फिर पटना कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। पटना कॉलेज में उनके उस्तादों में मशहूर शायर और कथाकार सोहेल अज़ीमाबादी और उर्दू साहित्यकार अख्तर ओरेनवी जैसे बड़े नाम शामिल रहे।

बनैली राज: पूर्णिया के आलिशान राजमहल का इतिहास जहाँ आज भी रहता है शाही परिवार

चंपानगर ड्योढ़ी में बनैली एस्टेट के रजवाड़ों के महल का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है। उस समय चंपानगर बनैली एस्टेट की राजधानी हुआ करता था। यहां के राजमहल की शान-ओ- शौकत आज भी बरकरार है और बनैली एस्टेट के संस्थापक राजा दुलार सिंह की पांचवीं पुश्त के वंशज आज भी राजमहल में रहते हैं। राजमहल में दाखिल होने वाला मुख्य द्वार 'सिंह दरवाज़ा' कहलाता है।

अररिया के लाल सुब्रत रॉय ने बनाया अद्भुत साम्राज्य, फिर हुई अरबों रुपये की गड़बड़ी

सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया जिले में हुआ। मशहूर लेखक मणि शंकर मुख़र्जी ने एक लेख में लिखा था कि सुब्रत रॉय के माता पिता बिक्रमपुर (अब बांग्लादेश में) के भाग्यकुल ज़मींदार घराने से थे और बंटवारे से पहले बिहार आ गए थे।

उत्तर प्रदेश और बंगाल के ज़मींदारों ने कैसे बसाया कटिहार का रसूलपुर एस्टेट?

रसूलपुर एस्टेट की पुरानी जामा मस्जिद के लोहे के दरवाज़े पर स्थापना की तिथि 1650 लिखी हुई है। सैय्यद इम्तियाज़ हुसैन ने बताया कि एस्टेट के पुराने कागज़ात में यह तारीख लिखी मिली थी, साथ ही मस्जिद के मुख्य दरवाज़े पर यह तारीख लिखी थी लेकिन धीरे धीरे तारीख धुँधली होती गई।

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