किशनगंज नगर क्षेत्र के चूड़ीपट्टी स्थित बज़्म ए अदब उर्दू लाइब्रेरी, जिले के सबसे पुरानी सार्वजनिक पुस्तकालयों में से एक है। इस पुस्तकालय की नींव स्वतंत्रता से भी पहले रखी गई थी।
अररिया के फारबिसगंज में केसरी टोला स्थित बाबा मलंग शाह का मजार मुस्लिम हिन्दू समुदाय की एकता का प्रतीक है। इस मजार पर सभी धर्म के लोग माथा टेकने आते हैं।
मुज़फ्फर कमाल सबा के अनुसार, 1790 में अलता एस्टेट की प्राचीन मस्जिद की बुनियाद रखी गई थी, जो 1800 के दशक में मस्जिद की शक्ल में तैयार हुई।
फारबिसगंज अनुमंडल की हलहलिया पंचायत के इस गांव का नाम भी लोगों ने सरदार टोला रख दिया है। दरअसल, इस गांव में अभी 300 के करीब सिख धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं।
ब्रिटिश हुकूमत से भारत की आजादी के लिए नेता जी की जर्मनी से मदद की चाहत व गतिविधियों को अंग्रेज सरकार भी भांप गई थी, इसलिए उन्हें आए दिन गिरफ्तार किया जाता था।
आजादी से पहले पिपरा में खाजा बनाने की शुरुआत की गई थी। स्वर्गीय गौनी शाह ने यहां खाजा के कारोबार की शुरुआत की थी।
फारबिसगंज अनुमंडल अंतर्गत मानिकपुर स्थित ऐतिहासिक बुर्ज आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। देखरेख और रख-रखाव के अभाव में अब ये बुर्ज जर्जर होने लगा है।
वफ़ा मालिकपुरी का जन्म 1922 में दरभंगा जिला के मालिकपुरी नामक गांव में हुआ। कहा जाता है कि उन्होंने महज़ 13 साल की उम्र से शायरी शुरू कर दी थी।
अररिया का प्राचीन मां खड़गेश्वरी काली मंदिर जिले में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है। इसकी वजह यह है कि इस काली मंदिर को सबसे ऊंचा होने का गौरव प्राप्त है।
खगड़ा मेले की शुरुआत सन 1883 में की गई थी। उस समय के खगड़ा एस्टेट के नवाब सैय्यद अता हुसैन खान ने इस मेले को शुरू किया था।
बिहार के सहरसा में रक्त काली मंदिर स्थित बाबा कारू खिरहर संग्रहालय का बुरा हाल है। इस संग्रहालय में जितनी भी मूर्तियां रखी हुई थीं, सभी जमींदोज होती जा रही हैं।
सरस्वती पुस्तकालय देश की आजादी से भी पहले बना था और किसी जमाने में यह पुस्तकालय आसपास के जिलों का शिक्षा व कला के साथ सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का भी केंद्र हुआ करता था।