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पूर्णिया: 1864 में बने एम.एम हुसैन स्कूल की पुरानी इमारत ढाहने का आदेश, स्थानीय लोग निराश

बिहार बंगाल विभाजन के बाद स्कूल की जमीन बिहार शिक्षा विभाग के अधीन हो गई जिसके बाद 1970 के दशक में स्कूल का नाम बदल कर आदर्श मध्य विद्यालय रखा गया। जर्जर हो चुकी स्कूल की पुरानी इमारत के पीछे राज्य सरकार ने 8 वर्ष पहले नई बिल्डिंग का निर्माण किया।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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बिहार के पूर्णिया में शिक्षा विभाग के आदेश पर 160 वर्ष पुराने स्कूल की इमारत को तोड़ा जा रहा है जिससे स्थानीय लोग निराश हैं। पूर्णिया सिटी में स्थित एम. एम. हुसैन मिडिल स्कूल को सन् 1864 में शिक्षाविद जमींदार मिर्ज़ा मुहम्मद हुसैन ने बनवाया था। अंग्रेज़ काल में शुरू हुए इस स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाती थी।

बिहार बंगाल विभाजन के बाद स्कूल की जमीन बिहार शिक्षा विभाग के अधीन हो गई जिसके बाद 1970 के दशक में स्कूल का नाम बदल कर आदर्श मध्य विद्यालय रखा गया। जर्जर हो चुकी स्कूल की पुरानी इमारत के पीछे राज्य सरकार ने 8 वर्ष पहले नई बिल्डिंग का निर्माण किया।

पिछले दिनों स्कूल की पुरानी इमारत को तोड़ने के लिए आदर्श मध्य विद्यालय ने टेंडर निकाल कर इमारत की नीलामी कराई। विभागीय आदेश के अनुसार स्कूल प्रबंधन को 31 मार्च तक जर्जर इमारत को तोड़ना है।


स्कूल की इमारत टूटने पर स्कूल के पुराने छात्र दुखी

स्कूल के पुराने छात्र इस बात से निराश दिखे कि स्कूल के संस्थापक मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन की आखिरी निशानी खत्म हो रही है। उन्होंने बताया कि 10-12 साल पहले तक आदर्श मध्य विद्यालय इसी पुरानी इमारत में चल रहा था। रखरखाव न होने के कारण इमारत जर्जर होती गई और 2016 में स्कूल को नई बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया।

पूर्णिया सिटी निवासी शाहबाज़ आलम ने सन् 1992 से 1996 तक इस स्कूल में पढ़ाई की। तब तक स्कूल का नाम एम. एम. हुसैन मिडिल स्कूल से बदल कर आदर्श मध्य विद्यालय हो चुका था। शाहबाज़ आलम ने कहा कि स्कूल से उसके संस्थापक एम.एम. हुसैन का नाम हटाना सही नहीं था। विद्यालय में उनका नाम होता तो कम से काम आज उनका नाम बाक़ी रहता।

“आज कोई पंखा भी दान करता है तो उसमें अपना नाम गुदवा देता है। इतनी बड़ी संस्था को उन्होंने शुरू किया तो उनका नाम कहीं न कहीं ज़िंदा रहना चाहिए, यह एक छात्र होने के नाते मेरी इच्छा थी। जब इसका आदर्श मध्य विद्यालय नाम रखा जा रहा था तब अगर हम से 2-3 पीढ़ी पहले के लोग बोलते कि जिन्होंने इसको दान किया है उनके नाम को ज़िंदा रखा जाए तो उनका नाम बच जाता,” शाहबाज़ आलम ने कहा।

स्कूल के एक और पुराने छात्र सैयद वारिस हुसैन ने बताया कि करीब 28-30 वर्ष पहले जब वह इस स्कूल में पढ़ते थे तब यहां बहुत बच्चे हुआ करते थे। स्कूल के शिक्षक भी काफी उच्च स्तर के थे।

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आगे उन्होंने कहा, “उस समय स्कूल का वातावरण बहुत अच्छा था। एक एक क्लास में 60 -70 बच्चे हुआ करते थे। यहां के छात्र कहाँ कहाँ चले गए पढ़ लिख कर। सरकार ध्यान देती तो आज स्कूल इस स्थिति में नहीं आता। देख कर अफ़सोस लगता है कि हमलोग इसी जगह से पढ़ लिख कर निकले, कुछ दिन में इस इमारत का नाम-ओ-निशान भी खत्म हो जाएगा।”

स्थानीय निवासी सैयद मुज़फ्फर हुसैन उस समय स्कूल में पढ़ते थे जब इस स्कूल का नाम एम.एम. हुसैन मिडिल स्कूल हुआ करता था। उन्होंने बताया कि हेमचन्द्र झा जब स्कूल के प्रधानाध्यापक थे तब स्कूल का नाम आदर्श मध्य विद्यालय हो गया। उन दिनों यह स्कूल पूर्णिया के सबसे बड़े विद्यालयों में से एक था। जिले के अलग अलग हिस्से से छात्र इस स्कूल में आकर पढ़ते थे।

एम.एम. हुसैन मिडिल स्कूल के संस्थापक मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन ने जो संपत्ति वक्फ की थी उसमें स्कूल के अलावा एक मस्जिद, सराय खाना और एक इमामबाड़ा हुआ करता था। आज इस वक्फ एस्टेट में केवल मस्जिद बाकी है जबकि स्कूल दशकों पहले राज्य सरकार की संपत्ति में शामिल हो चुका है।

1911 के गज़ेटियर में मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन और स्कूल का ज़िक्र

इतिहासकार एल.एस. ओ’ माली ने 1911 में छपे बंगाल गज़ेटियर में पूर्णिया में मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन वक्फ की संपत्ति के बारे में लिखा जिसमें उन्होंने मज्सिद और सरायखाने के साथ साथ मिडिल स्कूल का भी ज़िक्र किया।

मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन वक्फ एस्टेट के सचिव सैयद सग़ीर जाफ़री ने कहा कि स्कूल में पढ़ रही नई पीढ़ी को स्कूल के संस्थापक के बारे में मालूम होना चाहिए। उन्होंने शिक्षा विभाग से आदर्श मध्य विद्यालय का नाम बदल कर मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन विद्यालय रखने की मांग की।

“मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन साहब ने इस नज़रिए से स्कूल बनाया था कि आने वाले समय में यह अच्छी शिक्षा दे। कम से कम उनका नाम बाक़ी रहना चाहिए था इस स्कूल में। हम शिक्षा विभाग से यही गुजारिश करेंगे कि उनका नाम बचा रहे ताकि आने वाली पीढ़ी जान सके कि मिर्ज़ा मोहम्मद कौन थे। इस स्कूल का नाम आदर्श मध्य विद्यालय की जगह एम.एम. हुसैन मध्य विद्यालय हो,” सैयद सग़ीर जाफ़री ने कहा।

स्कूल संस्थापक एम.एम. हुसैन के वंशज क्या बोले

स्कूल के संस्थापक मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन के वंशज सैयद कासिम रज़ा की मानें तो एम.एम. हुसैन मिडिल स्कूल जब शुरू हुआ तो उस समय यह पूर्णिया का एकमात्र इंग्लिश मीडियम स्कूल था।

उन्होंने बताया कि मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन ने स्कूल का सचिव अपने दामाद सैयद अबुल हाशिम को बनाया था जबकि तत्कालीन समाहर्ता स्कूल का ट्रस्टी होता था। संस्थापन के 113 वर्ष के बाद 1977 में राज्य सरकार ने यह स्कूल ले लिया और इसका नाम बदल दिया गया।

“1864 का यह स्कूल पूर्णिया जिले का अकेला अंग्रेजी मीडियम स्कूल था। वक्फ नामा में भी यही नाम है, मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन मिडिल स्कूल। मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन साहब पुराने ज़मींदार थे। उन्होंने अपने दामाद अबुल हाशिम साहब को इसका सचिव बनाया और ट्रस्टी कलेक्टर रहा। यही शर्त थी वक्फनामे के मुताबिक कि हर आने वाला डीएम इसका ट्रस्टी होगा। 1977 में अचानक यह स्कूल सरकार को चला गया,” सैयद कासिम रज़ा ने कहा।

“इसका नाम एम.एम. हुसैन स्कूल कभी नहीं था”

पूर्णिया नगर निगम के पूर्व मेयर सैयद शाहिद रज़ा के पिता और दादा मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन वक्फ एस्टेट के सचिव रहे थे। शाहिद रज़ा ने बताया कि कागज़ात पर इस विद्यालय का नाम हमेशा मिडिल इंग्लिश स्कूल ही रहा। जब बिहार सरकार स्कूल को लेने लगी तो वक्फ कमेटी ने स्कूल की दीवार पर एम. एम. हुसैन का नाम लिखवाया। चूँकि इस स्कूल को कभी अल्पसंख्यक विद्यालय का दर्जा नहीं मिला इसीलिए इसे बचाया नहीं जा सका।

“एम.एम. हुसैन मध्य विद्यालय नाम कभी नहीं था। जब सरकार इस स्कूल को लेने लगी तब हमारे पिता वग़ैरह ने इस स्कूल की दीवार पर एमएम हुसैन मिडिल स्कूल लिखवाया यादगार के तौर पर। इसका नाम मिडिल इंग्लिश स्कूल था, कागज़ात पर यही नाम था। चूँकि अल्पसंख्यक दर्जा नहीं था तो सरकार ले रही थी तो दे दिया गया। हर जगह निजी स्कूलों को सरकार ने ले लिया था। कुछ स्कूल जो अल्पसंख्यक दर्जा वाले थे उन्हें बचाया गया,” पूर्व मेयर शाहिद रज़ा ने बताया।

31 मार्च तक इमारत तोड़ने का आदेश

आदर्श मध्य विद्यालय पूर्णिया सिटी के प्रधानाध्यापक मोहममद कलिमदुद्दीन ने बताया कि बिहार शिक्षा विभाग ने 31 मार्च तक स्कूल की पुरानी इमारत को ढाहने का आदेश दिया है। राज्य सरकार की योजना है कि स्कूल परिसर के पुराने ढांचों को तोड़कर विद्यालय को विकसित किया जाए।

कलीमुद्दीन ने बताया, “यह विभाग का दिशानिर्देश था कि विद्यालय परिसर में जो जर्जर भवन हो उसको तोड़ कर विकसित करना है। माननीय अपर मुख्य सचिव का आदेश था फिर उसके अनुपालन में जिले से भी चिट्ठी जारी हुई। बार बार कहा जा रहा था कि जल्द तुड़वाइये। तोड़ने के बाद उस राशि को वीएसएस से आदेश लेकर विद्यालय विकास कार्य में प्रयोग किया जाए।”

आगे उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए विद्यालय की पुरानी इमारत के नवीकरण का प्रयास किया गया लेकिन पर्याप्त राशि आवंटित न होने के कारण ऐसा नहीं हो सका।

“वो धरोहर था, सही बात है लेकिन वो इमारत मरम्मत के लायक नहीं बची थी, कब ढह जाती, क्या होता। पहले विभाग से प्रयास किया गया था कि इसकी मरम्मत कराई जाए लेकिन उतनी राशि आवंटित नहीं हो सकी। विभाग का काफी दबाव था। यह मेरी मज़बूरी थी, विभाग के आदेश का अनुपालन कराना,” स्कूल के प्रधानाध्यापक ने कहा।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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