अररिया: अररिया शहर के बीचोंबीच अंग्रेजी शासन काल में बना एक स्कूल जिसे लोग एचई हाईस्कूल के नाम से जानते हैं। यहां पढ़ने वाले छात्रों के साथ स्थानीय लोगों तक को पता नहीं है कि इस स्कूल को एचई क्यों कहा जाता है। ये स्कूल उस समय बना था जब भारत अंग्रेजों के अधीन था। इसे साफ कहा जा सकता है कि गुलाम देश के बच्चे इस स्कूल में पढ़ा करते थे। इस स्कूल से पढ़ाई कर अररिया के सैकड़ों बच्चे देश के उच्च प्रशासनिक सेवा में हैं या फिर सेवा निवृत्त हो गए।
यह स्कूल अपने 133 वर्ष पूरे कर 134 वें वर्ष में दाखिल हो गया है।
हम बात कर रहे हैं अररिया प्लस टू हाई स्कूल की, जो इतने वर्षों बाद भी गौरव के साथ बच्चों को शिक्षित करने में जुटा हुआ है।
गुलाम देश में अंग्रेजों ने 1889 ईसवी में एचई स्कूल की स्थापना की थी। एचई का अर्थ है हायर इंग्लिश स्कूल। इस नाम को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि क्यों ऐसा नाम अंग्रेजों ने रखा था। लेकिन, 134 वर्ष के बाद भी लोग इसे एचई स्कूल ही कहते हैं। जबकि अभी बोर्ड पर लिखा है अररिया उच्च विद्यालय।
जिले का सबसे पुराना स्कूल
1889 में इस स्कूल की स्थापना की गई थी। उस वक्त यह स्कूल पटना यूनिवर्सिटी के अधीन था, जो आहिस्ता आहिस्ता अब बिहार बोर्ड के अधीन हो गया है। इस स्कूल के संस्कृत शिक्षक बंधु नाथ झा ने विस्तृत जानकारी दी और बताया कि जिले का यह सबसे पुराना स्कूल है।
शहर के बीचोंबीच होने के कारण यहां जिले के सभी 9 प्रखंडों से पढ़ाई करने आज भी बच्चे आते हैं। सभी इस स्कूल को प्राथमिकता में रखते हैं, क्योंकि इस स्कूल का महत्व बड़े शहरों के कॉलेजों की तरह है। यही कारण है कि बच्चे इस स्कूल में एडमिशन लेना चाहते हैं। इस स्कूल में वर्तमान समय में 1172 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।
80 के दशक तक को-एड था स्कूल
स्कूल में 80 के दशक तक लड़कियां भी लड़कों के साथ शिक्षा ग्रहण करती थीं। लेकिन आहिस्ता आहिस्ता वह बंद हो गया। इसका कारण न तो यहां के शिक्षक बता पाते हैं और न ही अभिभावक।
अनुमान यह लगाया जाता है कि गर्ल्स स्कूल खुल जाने के बाद इस स्कूल में छात्राओं ने नामांकन कराना लगभग बंद कर दिया था। लेकिन, अब फिर इसमें बदलाव होना शुरू हो गया है। अररिया हाईस्कूल के प्रधान शिक्षक सऊद आलम ने बताया, “हम लोगों को भी यह पता नहीं है कि यहां लड़कियों ने एडमिशन लेना क्यों छोड़ दिया था। लेकिन, स्कूल के बेहतर परफॉर्मेंस और शिक्षकों की लगन की वजह से अब लड़कियों ने भी यहां दोबारा नामांकन कराना शुरू कर दिया है। इस समय हमारे 1172 छात्रों में 50 छात्राएं भी हैं। वे भी अब इस स्कूल में अपने को सहज महसूस कर पढ़ाई कर रही हैं।”
प्रधानाध्यापक सऊद आलम कहते हैं, “हमारे एचई हाईस्कूल में आजादी के आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी आगमन हुआ था। अपने देश में नाम करने वाले सहारा श्री सुब्रत राय ने भी इसी स्कूल से पढ़ाई की थी। यह स्कूल जिले के लिए एक महत्वपूर्ण स्कूल है। इसकी वजह यह है कि यहां हिन्दी, इंग्लिश के साथ-साथ उर्दू, संस्कृत, फारसी की भी पढ़ाई होती है। शिक्षक की कमी के कारण बांग्ला भाषा की पढ़ाई अभी नहीं हो पा रही है।”
“लेकिन, जैसे ही हमें बंगला के शिक्षक प्राप्त होते हैं, यहां बंगला भी पढ़ाना शुरू कर दिया जाएगा,” उन्होंने कहा।
स्कूल में शिक्षकों की भारी कमी
स्कूल में शिक्षकों की भारी कमी है। अभी यहां दो महिला समेत मात्र 20 शिक्षक और 4 फोर्थ ग्रेड के कर्मचारी हैं, जबकि स्कूल को कम से कम 20 और शिक्षकों की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि 2021 में इस स्कूल को मॉडल स्कूल बनाया गया है। “इस स्कूल में वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है, जिसमें रिटेल मार्केटिंग और ऑटोमोबाइल की पढ़ाई सफलतापूर्वक हो रही है। इसका उद्देश्य है युवाओं को व्यवसाय से जोड़ना और व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना, ताकि युवा आत्मनिर्भर बन सकें,” उन्होंने कहा।
इसी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर इसी स्कूल में शिक्षक बने मोहम्मद इकबाल ने बताया, “मैंने इस स्कूल से शिक्षा ग्रहण किया था और 2007 से यहां शिक्षक के पद पर कार्यरत था। मैं 31 मई 2023 को रिटायर हुआ हूं।”
उन्होंने बताया कि यह स्कूल अररिया का एक गौरवशाली इतिहास है और वर्तमान भी है। क्योंकि इस स्कूल से शिक्षा ग्रहण कर कई प्रशासनिक सेवा, न्यायिक सेवा में आज भी कार्यरत हैं।
उन्होंने बताया कि 1889 में जब अंग्रेजों ने स्कूल की स्थापना की थी तो पहले प्रधान शिक्षक के रूप में एसएन भट्टाचार्य कार्यरत थे, जिन्होंने इस स्कूल में अपनी सेवा निवृत्ति तक कार्य किया था। वह सन 1924 में इस स्कूल से सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने 35 वर्षों तक इस स्कूल में सेवा दी।
अररिया के इतिहास के जानकार और समाजसेवी परवेज आलम ने बताया कि बीच के दिनों में इस स्कूल की पढ़ाई में थोड़ा फर्क आया था, लेकिन आहिस्ता आहिस्ता अब यह स्कूल फिर अपनी मजबूती पर आ गया है।
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उन्होंने बताया कि एचई स्कूल का प्रांगण काफी बड़ा है और शहर के बीचोंबीच होने के कारण यहां अक्सर कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दरमियान यहां के छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है।
“हम लोगों ने इस मुद्दे को लेकर कई अधिकारियों से बात भी की है कि इस स्कूल में किसी भी तरह का सार्वजनिक कार्यक्रम पढ़ाई के दौरान ना किया जाए, क्योंकि इससे बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि इस पिछड़े क्षेत्र में अंग्रेजों ने स्कूल इस उद्देश्य से खोला होगा कि यहां के लोग बेहतर शिक्षा से वंचित न रहें। इस उद्देश्य को स्कूल पूरा कर रहा है।
“134 वर्ष पुराने इस स्कूल को जरूरत है फिर से संवारने और निखारने की। हायर इंग्लिश स्कूल के नाम से यह विद्यालय वर्षों से चल रहा है, लेकिन यहां की मुख्य भाषा हिंदी है। ऐसे में अब अंग्रेजी भाषा को भी ज्यादा मजबूत करने की आवश्यकता है, क्योंकि हायर एजुकेशन के साथ-साथ तकनीकी पढ़ाई में भी अंग्रेजी की जरूरत ज्यादा पड़ती है,” उन्होंने कहा।
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