पूर्णिया गज़ेटियर और स्वतंत्रता आंदोलन से जुडी कई ऐतिहासिक किताबों में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सीमांचल दौरों का अभिलेख मिलता है। गाँधी जी ने इस दौरान मुख्य रूप से पूर्णिया जिले में कई जनसभाएं कीं और लोगों से मिलकर उन्हें अंग्रेज़ों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। सन् 1990 में जिला बनने वाला अररिया उन दिनों पूर्णिया जिले का हिस्सा हुआ करता था। गाँधी जी ने 1925, 1934 और 1942 में अररिया का दौरा किया था।
अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड स्थित नवाबगंज पंचायत के एक छोटे से गांव भोड़हर के रहने वाले रामलाल मंडल अररिया के चंद सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। सन् 1883 में जन्मे रामलाल मंडल करीब 104 वर्षों तक जीवित रहे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का नरपतगंज प्रखंड में नेतृत्व किया और सीमांचल से डॉ राजेंद्र प्रसाद के करीबी साथियों में से रहे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने गांधीजी से कराई मुलाकात
माना जाता है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ही रामलाल मंडल को महात्मा गाँधी से मिलवाया था। भारत के पहले राष्ट्रपति और बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिनिधि डॉ राजेंद्र प्रसाद रामलाल मंडल से एक जनसभा के दौरान मिले थे। उस सभा में रामलाल मंडल को भी बोलना था। वहां डॉ राजेंद्र प्रसाद रामलाल मंडल के वक्तत्व कौशल से बहुत प्रभावित हुए। वह रामलाल मंडल को गाँधी जी से मिलाने साबरमती आश्रम ले गए। इतिहासकारों ने कई किताबों में डॉ राजेंद्र प्रसाद के 1921 के पूर्णिया दौरे का ज़िक्र किया है, जिसके बाद देशभर में होने वाले क्रन्तिकारी आंदोलनों में पूर्णिया जिले की भागेदारी और बढ़ गई थी।
रामलाल मंडल के परपोते संतोष कुमार यादव ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में बताया कि महात्मा गाँधी के साथ साबरमती आश्रम में रहते हुए रामलाल मंडल ने एक अनोखी आदत बना ली थी। वह अक्सर शाम को साबरमती आश्रम के बाहर बैठकर हाथों से करताली बजाकर रामायण की चौपाइयां गाया करते थे। उन दिनों आज़ादी की मुहिम पूरे ज़ोर शोर से चल रही थी। महात्मा गाँधी अक्सर बड़ी दूर दूर की यात्रा कर जनसभाएं करते थे। उसी दौरान गाँधी जी बीमार पड़ गए। वह जब साबरमती आश्रम लाये गए, तो डॉक्टरों ने उन्हें आराम की सलाह दी।
जब रामलाल की सुरीली आवाज़ के कायल हुए बापू
एक दिन आश्रम में आराम कर रहे गाँधी जी को एक सुरीली आवाज़ में रामायण के कुछ पाठ सुनाई दिए। राष्ट्रपिता इससे बहुत प्रभावित हुए और आश्रम के लोगों से पूछा कि यह किसकी आवाज़ है। लोगों ने रामलाल मंडल के बारे में बताया तो बापू ने फ़ौरन उन्हें बुलाने को कहा। रामलाल यादव को जब पता चला कि अस्वस्थ होने के कारण आराम कर रहे गाँधी जी ने उनकी आवाज़ सुनकर उनसे मिलने की इक्छा ज़ाहिर की है, तो वह बेहद डर गए। उन्हें लगा कि उनके गाने से बापू के आराम में खलल हुई होगी इसीलिए बापू ने उन्हें बुलाया है।
जब रामलाल मंडल गाँधी जी के पास पहुंचे तो बापू ने कहा कि इतनी सुरीली आवाज़ से तुम ही रामायण गा रहे थे? रामलाल ने कहा ‘जी बापू’। उसके बाद गाँधी जी ने रामलाल मंडल से रामायण सुनाने की इच्छा ज़ाहिर की। कहा जाता है कि जब तक रामलाल मंडल साबरमती आश्रम रहे, वह रोज़ गाँधी जी को अपनी सुरीली आवाज़ में रामायण सुनाते थे। रामलाल मंडल के परपोते संतोष आगे बताते हैं कि 1946 में बंगाल के नोआखली में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद गाँधी जी घटनास्थल पर पहुंचे थे। दंगों के दुष्परिणाम देख कर गाँधी जी बेहद असहज महसूस करने लगे।
संतोष कुमार इस घटना को इस तरह बयान करते हैं, “जब नोआखाली में हिन्दू-मुस्लिम के बीच दंगे हुए तो गाँधी जी शान्ति समझौता कराने आए थे। वहां का माहौल देख कर गाँधी जी खुद ही बीमार हो गए थे। गाँधी जी की सबसे अच्छी बात यह थी कि वह दवाई से अधिक रामायण सुनने से सेहतमंद हो जाते थे। वहां (नोआखाली) जाने के बाद गाँधी जी रामलाल मंडल का नाम भूल जाते हैं कि साबरमती में कौन उन्हें रामायण सुनाया करता था। बिहार के सभी जिलों के डीएम और थाना प्रभारी को रामलाल मंडल नाम के व्यक्ति को ढूंढ़ने की सूचना दी जाती है। उसके बाद यहाँ पर रामलाल मंडल को संदेश पहुँचता है, जिसके बाद रामलाल मंडल और कोस्कापुर के जगदीश यादव दोनों यहाँ से जाते हैं नोआखाली।”
“नोआखाली पहुँचते हैं तो देखते हैं कि गाँधी जी बीमार अवस्था में मंच पर बैठे हुए हैं। वहां मिलिट्री वालों ने इन्हें रोका तो उन्होंने कहा कि बापू से कहो कि रामलाल मंडल आया है साबरमती आश्रम वाला। गाँधी जी ने कहा कि हम जिसके लिए बैठे हैं तुम उन्हीं को रोक रहे हो? जल्दी लेकर आओ उनको। रामलाल मंडल ने गांधी जी के साथ लगभग दो-तीन घंटे समय बिताए और उनको रामायण सुनाया। फिर गांधी जी की तबीयत में सुधार हुआ। गांधी जी ने फिर उन्हें दिल्ली आने का न्योता दिया,” संतोष कहते हैं।
जब गाँधी जी ने अररिया में दिया ज़ोरदार भाषण
संतोष ने आगे यह भी बताया कि आज़ादी से कई सालों पहले रामलाल मंडल की गुज़ारिश पर एक बार गाँधी जी बैलगाड़ी पर सवार होकर अररिया के बतनाहा से फुल्का बाज़ार तक आए थे। उनके अनुसार फुलकाहा बाज़ार में गाँधी जी ने बांस के मचान पर खड़े होकर एक यादगार भाषण भी दिया था। पूर्णिया डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर में सन 1925 में गाँधी जी द्वारा अररिया में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधन करने की बात लिखी गई है। गाँधी जी इसी दौरे में अररिया के रामकृष्ण सेवा आश्रम पहुंचे थे जहां उन्हें आश्रम की सदस्यता से नवाज़ा गया था।
‘मैं मीडिया’ से बातचीत में संतोष कुमार यादव ने रामलाल मंडल और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागेदारी से जुडी कई घटनाओं का ज़िक्र किया। उनमें से एक घटना यूं थी कि 1942 में रामलाल मंडल, अररिया स्थित अपने गांव भोड़हर के निकट फुलकाहा बाज़ार में अंग्रेज़ों के विरुद्ध भाषण दे रहे थे। इसकी खबर मिलने पर अंग्रेजी पुलिस बल अररिया के फुलकाहा बाज़ार में पहुंची।
चूँकि पुलिस पहले सोनपुर गांव गई थी, इसलिए फुलकाहा में रामलाल मंडल को पुलिस के आने की खबर पहुंच गई थी, जिसके बाद उन्होंने तुरंत सभा को समाप्त कर दिया और खुद नरपतगंज के लिए निकल पड़े। अगस्त 1942 में पूर्णिया जिले के अलग अलग स्थानों पर क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेज़ों की पुलिस चौकी पर हमला कर स्वतंत्रता सैनानियों को रिहा करवाने का ज़िक्र इतिहास में मिलता है। इन घटनाओं में पूर्णिया जिले के कई क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई थी।
संतोष ने बताया कि रामलाल मंडल के पुत्र दुर्गा प्रसाद यादव ने, जो खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, सुनील कुमार नामक एक शिक्षक से रामलाल मंडल की जीवनी लिखवाई थी। इस जीवनी में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अररिया जिले की मांग करने तक रामलाल मंडल की भूमिकाओं के बारे में बहुत सी बातें लिखी गई हैं।
स्वतंत्रता अभियान में कई बार जेल गए रामलाल
पूर्णिया मंडल कारा ने 2 जून 1972 को एक प्रतिलिपि छापी थी जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के दौरान रामलाल मंडल के कई बार जेल जाने का विवरण लिखा गया था। इस प्रतिलिपि में 1930 और 1932 में दो बार पूर्णिया जेल और 2 बार पटना के कैंप जेल में भेजने की जानकारी दी गई थी।
प्रतिलिपि से मिली जानकारी के अनुसार, इस दौरान रामलाल मंडल ने कुल 21 महीने जेल में गुज़ारे थे। इस पर संतोष कुमार यादव का कहना है कि रामलाल मंडल पर लिखी गई जीवनी के अनुसार वह अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में आंदोलन और अपनी गतिविधियों के कारण 7 बार जेल गए थे। उनकी मानें तो एक बार रामलाल मंडल के विरुद्ध अंग्रेजी हुकूमत ने मोर्चा खोल दिया और हर जगह उनकी तलाश करने लगी। रामलाल मंडल कई दिनों तक नेपाल जाकर जंगल में छुपे रहे और वहीँ उन्हें नेपाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन किसी तरह रात के समय वो नेपाल पुलिस की चौकी से भागने में सफल रहे।
एक पुराने दस्तावेज़ में अररिया में हुए किसी जन्म शताब्दी समोरह में जिला और आसपास के कई स्वतंत्रता सेनानियों की फेरिस्त में रामलाल मंडल का भी नाम लिखा मिला। रामलाल मंडल को इतिहास के पन्नों में ढूंढ़ने के दौरान हमने संतोष कुमार से दोबारा संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि रामलाल मंडल 1947 से 1950 तक पूर्णिया जिले के उपाध्यक्ष रहे थे।
हमारी पड़ताल में एक और पुराने दस्तावेज़ पर अनुमंडलीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन में तीसरे नंबर पर रामलाल मंडल का नाम मिलता है। इसके अलावा हमें अररिया को जिला बनाने की मुहिम में रामलाल मंडल को लिखे गए कुछ पत्र भी मिले। 1960 और 1970 के दशक में रामलाल मंडल ‘अररिया जिला बनाओ संघर्ष समिति’ में अहम रणनीतिकार और सक्रिय सदस्य के तौर पर जुड़े रहे।
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इंदिरा गाँधी ने किया सम्मानित
15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता की पचीसवीं वर्षगांठ पर उस समय देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गाँधी ने ”स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान” के लिए रामलाल मंडल को आनरेरी बैज यानि सम्मान बिल्ला से सम्मानित किया था।
रामलाल मंडल की स्मृति में 1 मई 2003 को उस समय नवाबगंज पंचायत के मुखिया रहे संजय सिंह ने भोड़हर गांव में ‘मंडल चौक’ का शिलान्यास किया। करीब 20 वर्षों बाद मंडल चौक का यह गोलंबर अब भी मौजूद है।
संतोष कुमार यादव का कहना है कि चौक के गोलंबर पर रामलाल मंडल की मूर्ति लगाने की बात थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है। उन्होंने आखिर में कहा कि गांव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर, जहाँ उनके पर दादा रामलाल मंडल का अंतिम संस्कार हुआ था, वहां उनके परिवार द्वारा एक स्मारक बनाने की योजना है।
अररिया जैसे छोटे से जिले में रह कर रामलाल मंडल ने भारत के स्वतंत्रता अभियान में अहम किरदार निभाया, लेकिन इतिहास के पन्नों में वह सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के बीच कहीं खो गए। उनकी जन्म तिथि या पुण्य तिथि की संपूर्ण जानकारी भी नहीं मिलती। ऐसी मानयता है कि 1883 में जन्मे रामलाल मंडल ने 1987 में अपने पैतृक गांव भोड़हर में अपनी आखरी सांस ली। रामलाल मंडल ने करीब 104 वर्ष के जीवन में देश की आज़ादी और अररिया को जिला बनाने की मुहिम में अपना अहम योगदान दिया।
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