सिलीगुड़ी: एक ब्रिज है। उस ब्रिज को लेकर दावे हजार हैं। मगर, हकीकत कुछ और ही है। किसी ने कहा, “डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) की समस्या थी, वह दूर हो गई है। अब काम जल्द से जल्द शुरू हो जाएगा।” फिर, किसी ने कहा, ” डीपीआर चल रहा है। आने वाले छह महीने में टेंडर होगा। उसके बाद काम शुरू हो जाएगा।”
वहीं, किसी ने ब्रिज की लंबाई और चौड़ाई तक भी बता डाली तो किसी ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए लागत का भी ऐलान कर दिया कि 1100 करोड़ रुपये खर्च कर ब्रिज बनेगा। इतना ही नहीं, किसी ने तो ब्रिज के नाम की भी घोषणा कर दी। मगर, जमीनी हकीकत यही है कि, छह महीने तो क्या, साल भर से ज्यादा समय गुजर गए और ब्रिज का अब तक कुछ अता-पता नहीं है।
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यह कहानी पूर्वोत्तर भारत के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी शहर को पूरे पूर्वोत्तर भारत से जोड़ने वाले एक ऐतिहासिक ब्रिज से जुड़ी है। इस ब्रिज को ‘कोरोनेशन ब्रिज’, ‘सेवक कोरोनेशन ब्रिज’, ‘बाघ पुल’ व ‘सेवक ब्रिज’ नामों से जाना जाता है।
यह ब्रिज आज के सिलीगुड़ी शहर से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर सेवक इलाके में विशाल पर्वतों के बीच बहती गहरी तीस्ता नदी के ऊपर एनएच-31ए (अब एनएच-10) पर स्थित है।
आज से 86 साल पहले ब्रिटिश भारत में अंग्रेजों ने इसका निर्माण करवाया था। तब से अब तक यह ब्रिज पूर्वोत्तर भारत के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी शहर को उत्तर बंगाल के डूआर्स क्षेत्र और पूरे पूर्वोत्तर भारत से सड़क मार्ग से जोड़े रखने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
ऐतिहासिक सेवक ब्रिज को बचाया जाए : डूआर्स फोरम फॉर सोशल रिफॉर्म्स
मगर, मसला यह है कि यह ऐतिहासिक ब्रिज अब जर्जर हो चुका है। इसमें अब ज्यादा भार उठाने की क्षमता नहीं रह गई है। इसे आराम और इसके बदले किसी और को काम पर लगाने की जरूरत है।
यही वजह है कि इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित रखने और इसके विकल्प के रूप में द्वितीय सेवक ब्रिज बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसे लेकर “डूआर्स फोरम फॉर सोशल रिफॉर्म्स” नामक संगठन ने वर्ष 2019 से अब तक लगातार आंदोलन छेड़ रखा है। उसकी मांग बस यही है कि इस ऐतिहासिक सेवक ब्रिज को बचाया जाए और इसके बदले नया सेवक ब्रिज-2 बनाया जाए।
चुनाव में खूब हुए थे वादे
इस मांग पर जिम्मेदारों द्वारा अमल की बात करें तो, वर्ष 2021 की शुरुआत में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय तो ऐसा लगा कि मानो, यह मांग अब पूरी हुई, तब पूरी हुई। दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के भाजपाई सांसद राजू बिष्ट ने तो इस मुद्दे को संसद तक में उठा डाला। फिर, उन्होंने मीडिया को बताया, “डीपीआर की समस्या थी, वह दूर हो गई है। अब काम जल्द शुरू हो जाएगा।”
उसी दौरान केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी व उत्तर बंगाल के मीडिया से ऑनलाइन रू-ब-रू हुए तो कहा कि डीपीआर बन रही है। आने वाले छह महीने में टेंडर होगा। उसके बाद काम शुरू हो जाएगा। 1100 करोड़ की लागत से 6.5 किलोमीटर लंबा फोर-लेन वाला नया ब्रिज बनेगा।”
वहीं, भाजपा के दिग्गज नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब चुनावी जनसभा करने आए तो ब्रिज के नाम की भी घोषणा कर दी। कहा, “100 साल पुराने कोरोनेशन ब्रिज के दूसरे वैकल्पिक ब्रिज की मांग है। यह सिलीगुड़ी से जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार व कूचबिहार और असम व पूर्वोत्तर को जोड़ता है। दीदी (ममता बनर्जी) नहीं बनाती हैं। इस कोरोनेशन ब्रिज का नाम हमारे महान सेनापति चीला राय के नाम से रखा जाएगा जिन्होंने मुगलों को यहां आने से रोका था।”
इस पर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी चुप नहीं रहीं। उन्होंने कहा, “सेवक ब्रिज राज्य सरकार के हाथों में नहीं है। केंद्र सरकार के हाथों में है। इसे लेकर हम ने केंद्र को लिखा है कि वह काम करे। हमारे हाथ में जो है, हम कर दे रहे हैं।”
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उस समय ममता बनर्जी सरकार के उत्तर बंगाल के सबसे प्रभावशाली मंत्री गौतम देब ने भी कहा था, “केंद्र सरकार सेवक ब्रिज के समानांतर एक नया ब्रिज बनाएगी। उसके डिजाइन आदि का काम राज्य सरकार के एनएच-डिविजन द्वारा ठीक किया जाएगा। मगर, दुर्भाग्य का विषय है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को कोई संकेत ही नहीं दिया।” चुनाव के समय हुए इन तमाम दावों का वही हुआ जो होना था। यानी ठंडे बस्ते में चला गया।
ऐसी हालत देखकर, “डूआर्स फोरम फॉर सोशल रिफॉर्म्स” ने फिर आंदोलन तेज कर दिया। उसी वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में दो अक्टूबर को, फोरम ने इस मुद्दे पर जागरूकता के लिए साइकिल रैली और सेवक कोरोनेशन ब्रिज पर मानव बंधन का आयोजन किया। इधर, सिलीगुड़ी के कचहरी रोड स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने से एक साइकिल रैली निकली और उधर दूसरी ओर डूआर्स के मालबाजार से एक साइकिल रैली निकली। इन दोनों साइकिल रैलियों में शामिल सैकड़ों युवा, तराई-डूआर्स के संगम के रूप में प्रसिद्ध ऐतिहासिक सेवक ब्रिज पर आकर मिले और मानव बंधन बना कर अपनी मांगों को फिर दोहराया। उसके बाद भी चरणबद्ध रूप में अपने आंदोलन को जारी रखा है।
अप्रैल में हुआ डीपीआर के लिए टेंडर
नए सेवक ब्रिज के डीपीआर बनाने का टेंडर बीते अप्रैल महीने में जारी कर दिया गया है। मतलब, इस टेंडर के तहत विभिन्न विशेषज्ञ प्रतिष्ठान पूरा एक डीपीआर पेश करेंगे कि ब्रिज कैसे बनेगा, उसमें क्या-क्या लगेगा, कितने समय की जरूरत होगी और कितना खर्च आएगा, आदि-आदि। तब, जिसका डीपीआर सरकार को पसंद आएगा उसके अनुसार काम शुरू होगा। फिर, एक अनुमानित खर्च का आकलन किया जाएगा। फिर, उसका टेंडर होगा और तब जाकर निर्माण कार्य शुरू होगा।
इन सबको लेकर आम लोगों की चिंता बस यही है कि जब केवल डीपीआर का टेंडर जारी होने में इतना समय लगा तो आगे की और लंबी प्रक्रिया में न जाने कितना लंबा समय लगेगा।
इधर, सेवक कोरोनेशन ब्रिज की अवस्था भी बहुत चिंतनीय है। यूं तो बीच-बीच में उसकी छोटी-मोटी मरम्मत का सिलसिला लगा रहता है लेकिन उससे काम नहीं चलने वाला। इसलिए समय रहते इसे बचाना और इसके वैकल्पिक ब्रिज को तैयार करना बेहद जरूरी है।
1937 में हुआ था कोरोनेशन ब्रिज का शिलान्यास
इस कोरोनेशन ब्रिज (सेवक ब्रिज/बाघ पुल) का शिलान्यास 5 नवंबर 1937 को हुआ था। ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रोविंस के तत्कालीन गवर्नर जाॅन एंडर्सन ने इसका शिलान्यास किया था। ब्रिटेन के महाराजा जाॅर्ज षष्ठम व महारानी एलिज़ाबेथ के कोरोनेशन यानी राजतिलक के उपलक्ष्य में इसका शिलान्यास किया गया था। इसीलिए इसका नाम कोरोनेशन ब्रिज पड़ा। वहीं, इस ब्रिज के एक ओर दोनों सिरे पर बाघ की मूर्ति है इसलिए इसे बाघ पुल भी कहते हैं। इसके साथ ही, चूंकि यह सेवक इलाके में स्थित है सो यह सेवक ब्रिज भी कहलाता है।
ब्रिटिश सरकार के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के दार्जिलिंग क्षेत्र के तत्कालीन कार्यकारी अभियंता जाॅन चैम्बर्स ने इसके निर्माण की रूपरेखा तैयार की थी। इसके निर्माण में तीन भारतीय इंजीनियर एसके घोष, एसी राॅय व केपी दत्ता भी शामिल रहे।
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बाॅम्बे के मेसर्स जे. सी. गैम्मोन को इसके निर्माण का ठेका मिला था। इसके निर्माण में चार लाख रुपये की लागत आई थी। 1941 में यह तैयार हुआ। यह ब्रिज यूं तो दो-तीन दशक पहले ही रिटायर हो चुका है। मगर फिर भी दिन-रात लगातार काम पर ही लगा हुआ है।
2011 के भूकंप में हुआ था ब्रिज को नुकसान
वर्ष 2011 में आए जबरदस्त भूकंप के दौरान इस ब्रिज को काफी क्षति भी पहुंची। तब, इस पर एक टन से अधिक वजनी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई, लेकिन उस नियम की भी धड़ल्ले से धज्जियां उड़ती हैं। अपनी आश्चर्यजनक स्थापत्य कला के चलते यह ब्रिज एक बड़ा ऐतिहासिक धरोहर है। यह केवल यातायात की ही महत्वपूर्ण कड़ी नहीं है बल्कि देश-विदेश के लाखों-करोड़ों सैलानियों के आकर्षण का भी एक अहम केंद्र है। इसीलिए इसे बचाए, सहेजे रखने को इसके वैकल्पिक ब्रिज को तैयार किए जाने का काम बिना किसी देरी के जल्द से जल्द शुरू किया जाना बेहद जरूरी है।
नए वैकल्पिक सेवक ब्रिज का निर्माण सेवक बाजार से एलेन बाड़ी तक किया जाना है। इसकी लंबाई लगभग 6.5 किलोमीटर होगी। यह बन जाने से एक ओर जहां वर्तमान ऐतिहासिक सेवक कोरोनेशन ब्रिज को राहत मिलेगी और वह संरक्षित श्रेणी में आ जाएगा वहीं सिलीगुड़ी से डूआर्स क्षेत्र के बीच की 50-60 किलोमीटर की दूरी भी लगभग 15 किलोमीटर कम हो जाएगी। इसके साथ ही पूर्वोत्तर भारत से शेष भारत वाया सिलीगुड़ी यातायात भी बहुत सुगम हो जाएगा। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने जिस सामरिक महत्व के तहत इस ब्रिज का निर्माण किया था वह सामरिक महत्व आज भी इसके साथ बरकरार है। इस ब्रिज के माध्यम से पड़ोसी देश चीन व भूटान से लगे सीमांत क्षेत्रों तक आवाजाही काफी सुगम हो जाएगी।
इन तमाम पहलुओं को लेकर “डूआर्स फोरम फॉर सोशल रिफॉर्म्स” के सचिव चंदन राॅय का कहना है, “अंततः डीपीआर के टेंडर के रूप में मामला एक कदम आगे बढ़ा है लेकिन उत्सव का समय अभी तक नहीं आया है। क्योंकि, दूसरे सेवक पुल के निर्माण से पहले की एक लंबी प्रक्रिया अभी भी लंबित है।”
उनका यह भी कहना है कि ऐतिहासिक सेवक कोरोनेशन ब्रिज बहुत कमजोर हो गया है। उसके दोनों विशाल खंभे के तल ढहने लगे हैं। ऐसे में उक्त ब्रिज पर भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक नहीं लगाई गई तो कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। उससे सैकड़ों लोगों की जानें जा सकती हैं। सो, अविलंब वैकल्पिक द्वितीय सेवक ब्रिज बनाया जाए और ऐतिहासिक सेवक ब्रिज का संरक्षण किया जाए। इस मांग को लेकर हमारा आंदोलन लगातार जारी रहेगा।”
फोरम की अब यह भी मांग है कि सेवक कोरोनेशन ब्रिज पर हल्के चार चक्का वाहनों से ऊपर के सारे वाहनों की आवाजाही पर सख्ती से रोक लगा दी जाए। इसे लेकर फोरम की ओर से अभी फिलहाल विशाल जनसमूह को एकजुट करने की मुहिम जारी है। इसके तहत कम से कम 5000 लोगों को लेकर आगामी दिसंबर महीने से सेवक में लगातार महा-धरना शुरू किया जाएगा।
फोरम के लोगों का कहना है कि वे ऐतिहासिक सेवक कोरोनेशन ब्रिज को बचाने और उसके लिए नए वैकल्पिक सेवक ब्रिज के बनाए जाने के सपने के साकार होने तक दम नहीं लेंगे और लगातार आंदोलन करते रहेंगे।
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