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ट्रांसफर नहीं मिलने से हजारों शिक्षिकाएं वर्षों से मायके में रहने को मजबूर

Ariba Khan Reported By Ariba Khan |
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school teacher sketch

सरकारी स्कूल शिक्षिका शिल्पा कुमारी की नियुक्ति साल 2013 में हुई थी और 2015 में उनकी शादी हुई। अब उनका स्कूल ससुराल से लगभग 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है। शिल्पा को ट्रांसफर और छुट्टी नहीं मिलने के कारण, उनके एक नवजात शिशु की मृत्यु तक हो गई।


अररिया के भरगामा प्रखंड की रहने वाली शिल्पा की शादी अररिया प्रखंड के एक गांव में हुई है। उनके पति भी एक टीचर हैं और कुर्साकांटा प्रखंड में पोस्टेड हैं।

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प्रसव के दौरान शिल्पा को इलाज की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन वह अपने पति के साथ नहीं रह पाईं। ठीक से इलाज नहीं करा पाने के कारण उनका बच्चा इस दुनिया में आने के बाद जीवित नहीं रह पाया।


इस दौरान शिल्पा को मैटरनिटी लीव (मातृ अवकाश) भी नहीं दी गई। हद तो यह हुई कि जिस दिन उनके बच्चे ने जन्म लिया, उस दिन भी उन्हें स्कूल जाना पड़ा। अभी उनकी 5 साल की एक बेटी है, लेकिन उसको वह अपने साथ नहीं रख पा रही हैं और बच्ची को उसके दादा-दादी के पास ही छोड़ने को मजबूर हैं।

क्या है नियम

बिहार के सरकारी स्कूलों में “शिक्षक नियोजन नियमावली” के तहत नियोजित सरकारी शिक्षक-शिक्षिकाएं, वर्षों से मनचाही जगह पर काम करने के इंतजार में हैं। उनकी इस मांग पर बिहार शिक्षा विभाग ने 2020 में नई नियोजन नियमावली बनाई थी। इसमें संशोधन करते हुए सरकार ने महिला और विकलांग शिक्षकों को राज्य के अंदर ही एक बार अपनी मर्जी के स्कूल में तबादला लेने का अवसर दिया था।

हिंदुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार इस नई नियोजन नियमावली से करीब सवा से डेढ़ लाख महिला व दिव्यांग शिक्षकों को लाभ मिलना था। इसके अलावा पुरुष शिक्षकों को भी पारस्परिक तबादला दिया जाना था।

लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी अभी तक इस नियमावली को राज्य में लागू नहीं किया गया है। नतीजतन शिक्षकों और खासकर महिला शिक्षकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

ट्रांसफर के नाम पर मिला आश्वासन

सीमांचल क्षेत्र की ही एक और शिक्षिका सरिता कुमारी बताती हैं, “साल 2020 में जो नियमावली आई थी, उसके बाद मुखिया के चुनाव थे। सरकार ने कहा था कि चुनाव के बाद हम लोगों का ट्रांसफर कर दिया जाएगा। लेकिन अब तक कुछ हुआ नहीं। अब तो लगता है कि हमारे ट्रांसफर पर कोई चर्चा भी नहीं होती है।”

सरिता कुमारी की नौकरी अररिया जिले के भैयाराम बिशनपुर खतवाटोला प्राथमिक विद्यालय में, साल 2007 में लगी थी। साल 2008 में उनकी शादी सुपौल जिले के बीरपुर बसंतपुर प्रखंड में हुई। शादी को 14 साल हो गए हैं, लेकिन वह अपनी नौकरी के कारण अभी भी अपने मायके में रहने को मजबूर हैं।

सरिता के दो बच्चे हैं। जब वे छोटे थे तो उनके साथ ननिहाल में रहे, लेकिन बड़े होने पर वह बच्चों को साथ नहीं रख पाईं, इसलिए पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया।

bihar school teacher sarita kumari

सरिता बताती हैं, “जब कोई लंबी छुट्टी होती है, तब ही हम अपनी ससुराल जा पाते हैं। परिवार का भी प्रेशर रहता है, क्योंकि मायके में रहते हैं और ससुराल का कुछ देख ही नहीं पाते हैं।”

नया नियोजन लिया, तो घट गई तनख्वाह

समस्तीपुर की तरन्नुम परवीन बताती हैं कि शादी के बाद ट्रांसफर न होने के कारण वह काफी समय तक अपने पति से दूर रहीं, इसलिए उन दोनों की अंडरस्टैंडिंग नहीं हो पाती थी।

“ससुराल में भी सब पूछते थे कि छुट्टी क्यों नहीं मिल रही, ऐसा करो तुम वापस ही आ जाओ। ससुराल में मेरे सास ससुर अकेले थे और उनको हमारी जरूरत थी,” तरन्नुम कहती हैं।

वह आगे बताती हैं कि आखिरकार उन्होंने मजबूरी में नौकरी को 6 साल पीछे लेकर अपनी ससुराल फारबिसगंज में नया नियोजन लिया जिसके बाद उनकी सैलरी ₹15000 से कम हो गई।

तरन्नुम ने साल 2013 में टीईटी क्रैक किया था और 2016 में नौकरी में आईं। जॉब के 6 महीने बाद उनकी शादी फारबिसगंज में हो गई थी। शादी के बाद वह सालों तक समस्तीपुर रहकर ही स्कूल में पढ़ाती रहीं।

महिला सशक्तिकरण का दावा छलावा?

पिछले कुछ सालों में महिला सशक्तिकरण के लिए बिहार सरकार के फैसलों ने राज्य को नई पहचान दी। साल 2016 में राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% और शिक्षा विभाग की नौकरियों में 50% तक आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसी को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने सरकारी दफ्तरों की पोस्टिंग में भी महिलाओं को 35% आरक्षण दिया।

लेकिन इस सबके बावजूद सीमांचल क्षेत्र समेत पूरे बिहार में हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो सरकारी नौकरी पाने के बाद अपने परिवार और नौकरी के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर कर दी गई हैं।

“मेरा परिवार ज्यादातर मेरी जॉब पर ही निर्भर है। मेरी शादी ही मेरी जॉब की वजह से हुई थी। सरकार के ट्रांसफर पर ही निर्भर थे। हमें आशा थी कि सरकार 4-5 साल में हमारा ट्रांसफर कर देगी और हम अपने परिवार के साथ रहेंगे। लेकिन सरकार हम लोगों की कुछ समस्या सुन ही नहीं रही है। हम किराए का मकान लेकर अकेले रहते हैं। हमें इतनी दिक्कत होती है कि हम क्या बताएं आपको।”

यह कहना है सारण जिले के नयागांव में प्राथमिक कन्या विद्यालय में पढ़ाने वाली शिक्षिका अनीता कुमारी का। वह यहां साल 2006 से पढ़ा रही हैं। 2008 में उनकी शादी वैशाली जिले के पातेपुर गांव में हुई। तब से ही वह अपने बच्चों व पूरे परिवार से दूर, किराए के मकान में अकेली रहती हैं।

अनीता बताती हैं कि उनका पूरा परिवार और बच्चे पातेपुर में रहता है जो उनके यहां से 4 घंटे की दूरी पर है। वह लंबी छुट्टियों में ही अपने बच्चों से मिल पाती हैं। उनकी सास बीमार रहती हैं और किसी तरह घर को चला रही हैं।

अनीता का कहना है, “हम 14 साल से ट्रांसफर के इंतजार में हैं, लेकिन अब भी अगर ट्रांसफर नहीं मिला, तो अंततः मजबूरी में हमें जॉब छोड़नी ही पड़ेगी।”

आगे अनीता कहती हैं, “सरकार तो महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है, लेकिन जब हम जॉब छोड़ कर घर बैठ जाएंगे, तो कैसा सशक्तिकरण होगा। एक तरफ तो सरकार ने नौकरी दे दी है, लेकिन दूसरी तरफ 10 तरह की समस्याएं भी लाद दी हैं। महिलाएं आखिर कब तक झेलेंगी इतना दिक्कत?”

“11 साल से मायके में सड़ रही”

सिवान जिले के सिसवन प्रखंड में नियोजित शिक्षिका मंजू देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि वह नौकरी की वजह से 11 साल से मायके में सड़ रही हैं। मंजू की साल 2005 में सिसवन प्रखंड में नौकरी लगी थी और पांच साल बाद 2010 में उनकी शादी भगवानपुर हाट में हुई, जो उनके गांव से 45 किलोमीटर की दूरी पर है।

मंजू बताती हैं कि उनकी एक बेटी है जो उनके साथ मायके में रहती है। लेकिन, इस सब के कारण उसकी पढ़ाई लिखाई नहीं हो पा रही है।

“ससुराल में सास हैं, जो बीमार रहती हैं, उनको भी देखने वाला कोई नहीं है,” मंजू ने कहा।

आगे मंजू कहती हैं, “कितनी बार सोचा है कि अगर बढ़िया आर्थिक स्थिति होती, तो नौकरी छोड़ देते। लेकिन गुंजाइश नहीं है तो कैसे छोड़ेंगे। इसी नौकरी की बदौलत हम लोगों का जीवन चल रहा है।”

आखिर में मंजू ने बताया कि उनके जानने में और भी कई ऐसी शिक्षिकाएं हैं, जो ट्रांसफर ना होने के कारण 70-80 किलोमीटर दूर से ट्रेन पकड़ कर पढ़ाने आती हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी

अररिया के जिला शिक्षा पदाधिकारी राज कुमार ने बताया, “जो शिक्षक शिक्षिकाएं शादी के बाद अपना स्थानांतरण कराना चाहते हैं, उनको मौका मिलेगा ट्रांसफर का। सरकार ने उनके लिए घोषणा की है और इसके लिए ऐप बन रहा है। इसमें सभी जगह की रिक्तियां, नियुक्तियां एक साथ दिखेंगी ताकि उसमें ऐसा कुछ ना हो जाए जिससे बच्चों का हित प्रभावित हो।”

ऐप कितना बन चुका है और इस पर क्या अपडेट है, इस बारे में पूछने पर डीईओ ने कहा, “ऐप स्टेट लेवल पर तैयार किया जा रहा है। हम लोगों को इसका अपडेट नहीं है और जिस श्रेणी की शिक्षिकाओं की आप बात कर रही हैं, हम उनके ट्रांसफर को नहीं देखते हैं। उनके ट्रांसफर के लिए उनकी सेवा शर्तें उनकी नियोजन इकाई को दी गई हैं।”


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अरीबा खान जामिया मिलिया इस्लामिया में एम ए डेवलपमेंट कम्युनिकेशन की छात्रा हैं। 2021 में NFI fellow रही हैं। ‘मैं मीडिया’ से बतौर एंकर और वॉइस ओवर आर्टिस्ट जुड़ी हैं। महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर खबरें लिखती हैं।

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