जुलाई महीना अंत होते-होते देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाएगा। द्रौपदी मुर्मू भाजपा के NDA गठबंधन से राष्ट्रपति उम्मीदार हैं और उनका चुनाव जीतना लगभग तय माना जा रहा है। लेकिन, देश के दूर दराज़ के इलाकों में आज भी आदिवासी गाँव की अनदेखी हो रही है।
यह सीमांचल के किशनगंज जिला मुख्यालय से महज़ 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टेओसा पंचायत का नव प्राथमिक विद्यालय आदिवासी टोला है। साल 2022 में शायद ऐसे सरकारी स्कूल की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है, लेकिन यह हक़ीक़त है। फिलहाल, इस स्कूल में 120 बच्चों का नामांकन है, जिसमें लगभग 60 फीसद आदिवासी समाज से आते हैं। इन बच्चों के लिए दो शिक्षक भी पदस्थापित हैं और रोज़ाना यहाँ मध्याह्न भोजन यानी मिड डे मील भी बनता है। बस विद्यालय के पास अपना भवन नहीं है।
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2011 में विद्यालय की स्थापना आदिवासी बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के मकसद से की गई, लेकिन एक दशक बाद भी विद्यालय भवन बनाने के लिए गाँव में ज़मीन नहीं मिल पायी है, इसलिए स्कूल इन बांस की झाड़ियों के बीच एक झोपड़ी में चल रहा है। और झोपड़ी भी क्या कुछ पिलर, टीन और प्लास्टिक के सहारे एक छोटा सा घर बनाया गया है, जिसमें एक टेबल और कुछ कुर्सियां हैं। दो शिक्षक के पीछे कुछ बच्चे यहाँ ज़मीन पर बोरा डाल कर बैठ जाते हैं, बाकी बच्चे खुले आसमान के नीचे बोरा बिछा कर ज़मीन पर बैठते हैं।
2018 में इसी स्कूल से पढ़ कर निकले आंवल कुमार सिंह बताते हैं, पिछले 10 सालों में कुछ नहीं बदला है। वह और उनके साथियों ने भी ऐसी ही हालात में यहाँ पांच साल पढ़ाई की है।
अभिभावक अब्दुल मतीन बताते हैं, यहाँ अगर भवन के साथ स्कूल होता, तो गाँव के और भी बच्चे भी यहाँ पढ़ते। भवन नहीं होने के चलते गाँव के कई लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं
स्कूल फिलहाल गाँव के ही दारा सिंह की बैठक में चल रही है। दारा बताते हैं, उनके पिता बिकुलाल सिंह स्कूल के लिए ज़मीन दान करना चाहते थे। इसलिए उनके ख्वाब को पूरा करने के लिए वह 2.5 कट्ठा ज़मीन स्कूल को दान करना चाहते हैं।
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विद्यालय की जमीन से जुड़े मामले को लेकर किशनगंज अंचल अधिकारी कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार भू-दाता को चिन्हित कर जमीन की रिपोर्ट मई 2022 को ही सम्बंधित विभाग को भेजी गयी थी, लेकिन चूंकि भू-दाता के पूर्वज के नाम से जमीन है, इसलिए सभी वंशजों की रजामंदी भी इसके लिए अत्यंत आवश्यक है, इसीलिए वंशावली की मांग की गई है।
दूसरी तरफ ग्रामीण और अभिभावक को डर है कि भू-दान और भवन बनने की देरी की वजह से प्रशासन स्कूल को पास के किसी और विद्यालय में शिफ्ट या मर्ज न कर दे। जानकारी के अनुसार, ऐसी सूरत में अक्सर प्रशासन किसी भी प्राथमिक विद्यालय को एक किलो मीटर, मध्य विद्यालय को 3 किलोमीटर और उच्च विद्यालय को 5 किलोमीटर के अंदर किसी और विद्यालय से मर्ज या टैग यानी शिफ्ट कर देता है। ग्रामीण बताते हैं, इस स्कूल के लिए भी पूर्व में ऐसा आदेश निकल चुका है, लेकिन उन्होंने इसका विरोध किया, क्योंकि ऐसा करने से उनके समाज के कई बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे। घर के पास स्कूल होने से बच्चे हँसते खेलते पढ़ने चले जाते हैं, लेकिन इतने छोटे बच्चों को दूर के स्कूल में भेजना मुश्किल होगा।
मामले को लेकर हमने किशनगंज जिला शिक्षा पदाधिकारी सुभाष कुमार गुप्ता से संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया कि जिले के वे स्कूल जहां मूलभूत सुविधाओं की कमी है, उन्हें निकट के विद्यालयों के साथ टैग किया गया है या फिर उस स्कूल को खत्म कर निकट के विद्यालय में मर्ज कर दिया गया है। इस विद्यालय के विषय में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि इसे भी पास के विद्यालय के साथ पूर्व में ही टैग किया जा चुका है, लेकिन अगर ग्रामीणों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हुआ है, तो ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया जाएगा।
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