अररिया: कहने को तो अररिया को शहर का दर्जा मिल गया है। लेकिन आज भी यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
अगर हम बात करें तो शहर के बस स्टैंड की तो वहां कोई सुविधा नहीं है। आज भी अररिया बस स्टैंड एनएच 57 के किनारे पर ही लगता है जबकि इस स्टैंड से लोकल वाहन ही नहीं बल्कि दूसरे प्रांतों की भी बड़ी गाड़ियां यहां से रोजाना आती जाती हैं।
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इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां से जाने वाले यात्रियों की संख्या कितनी हो सकती है। लेकिन शहर के एकमात्र बस स्टैंड की सड़क पर लगने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

इस बस स्टैंड से बिहार के दूसरे जिलों के साथ बिहार की राजधानी पटना, उत्तर प्रदेश, गोरखपुर, मेरठ के साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की बसें रोजाना खुलती है। लेकिन उन यात्रियों के लिए यहां बैठने तक की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
1990 में बना था अररिया जिला
बता दें कि अररिया को जिले का दर्जा 1990 में मिला था। तब से ही यह जिला कई बुनियादी असुविधाओं से जूझ रहा है। अररिया शहर के नजदीक जीरो माइल पर एक बस स्टैंड पहले से मौजूद है। जिस पर नगर परिषद का कोई नियंत्रण नहीं है।

ग्रामीण क्षेत्र में होने के कारण इस पर जिला परिषद का मालिकाना हक है। लेकिन शहर का बस स्टैंड जो रानीगंज और फारबिसगंज की ओर जाने के लिए है, उनमें इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी वहां सुविधाएं नहीं हैं और न ही नगर परिषद नया बस स्टैंड बना रहा है। इस कारण इस स्टैंड पर यात्री वाहन तो ठहरते हैं। लेकिन, यात्रियों को न तो बैठने की और न ही अन्य सुविधाएं मिलती हैं।
वाहनों से पैसा वसूलता है नगर परिषद
बस स्टैंड के किरानी और कर्मियों ने बताया कि शहर का सबसे गंदा और असुविधाओं से भरी जगह यह अररिया बस स्टैंड है। यहां बारिश के दिनों में सड़क पर एक से डेढ़ फीट पानी जमा हो जाता है, जिससे खड़ी बसों में यात्रियों को चढ़ने उतरने में काफी दिक्कतें आती हैं।
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जल निकासी का कोई भी बंदोबस्त नगर परिषद के द्वारा नहीं किया गया है। स्टैंड पर बस की बुकिंग करने वाले मनोज कुमार, कामरान आदि ने बताया कि इस बस स्टैंड में आने वाली बसों से नगर परिषद सौ-सौ रुपये और ऑटो से 10 रुपये हर ट्रिप पर लेता है, नगर परिषद को अच्छी खासी आमदनी हो रही है। लेकिन नगर परिषद ने बस स्टैंड पर न तो शौचालय की व्यवस्था की है, न ही पीने के पानी की। यहां यात्रियों के बैठने की जगह नहीं होने के कारण वे सड़क पर यूं ही खड़े रहते हैं, जब तक उन्हें सवारी न मिल जाये।

उन्होंने बताया कि इसकी शिकायत कई बार नगर परिषद से की गई कि कम से कम यहां एक शौचालय और बैठने की व्यवस्था यात्रियों के लिए कर दी जाए, लेकिन आज तक इस दिशा में काम नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि शहर में सफाई तो होती है, लेकिन इस स्टैंड पर साफ सफाई की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
दिल्ली, पंजाब तक के लिए जाती हैं बसें
बता दें कि अररिया बस स्टैंड से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजधानी पटना के साथ बिहार के अन्य जिलों के लिए तकरीबन 30 से 35 लग्जरी बस रोजाना खुलती है। साथ ही, दूसरी ओर यहीं पर एनएच 327ई से होकर सुपौल, सहरसा, त्रिवेणीगंज जैसी जगहों के लिए दर्जनों गाड़ियां चलती हैं।
साथ ही जिले के भीतर फारबिसगंज, जोगबनी, नरपतगंज, बथनाहा, बीरपुर, सिकटी, कुर्साकांटा के लिए भी बड़ी बसें यहां से दिन में कई फेरे लगाती हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां सफर करने वाले यात्रियों की संख्या कितनी अधिक है, मगर सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं मिल रहा।

बस से एक परिवार को लेकर जा रहे यात्री ने बताया, “हमारे साथ महिला और बच्चे शामिल हैं। उनके लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण हमें भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।”
उन्होंने बताया कि नगर परिषद को एक शौचालय की तो व्यवस्था कर देनी चाहिए। उनके साथ ही कई और यात्रियों ने बताया कि शौचालय नहीं होने के कारण यहां वहां लोगों को पेशाब करना पड़ रहा है, जिससे गंदगी भी बढ़ती है और यहां खड़े रहने में यात्रियों को परेशानी होती है।
कई फुटकर दुकानदारों ने बताया कि स्टैंड पर छोटे छोटे दुकानदार रोजी रोटी के लिए अपना कारोबार करते हैं। लेकिन गंदगी और जहां तहां पेशाब करने से बदबू फैलती है। एक तरफ सरकार कोरोना संक्रमण से बचने के लिए लोगों को तरह-तरह के उपाय बता रही है। लेकिन यहां कोई साफ सफाई नहीं है।

सिंचाई विभाग नहीं दे रहा जमीन
नगर परिषद के चेयरमैन रितेश राय ने बताया, “साल 2017 में मुझे यह पद मिला है। तभी से बस स्टैंड बनाने को लेकर हम लोगों ने कई बार प्लान तैयार किया।”
“तत्कालीन डीएम हिमांशु शर्मा ने भी पहल की और सिंचाई विभाग से अनुरोध किया कि गोढ़ी चौक से लेकर अररिया बस स्टैंड तक नहर के किनारे अपनी जमीन पर बस स्टैंड बनाने दिया जाए। इस प्लान को विभाग तक भेज भी दिया गया। जिस पर सिंचाई विभाग में भी उस वक्त सहमति दी और सरकार को प्रतिवेदन भेजा गया,” वह बताते हैं।
उन्होंने बताया कि कई बार नगर विकास की ओर से पटना में बैठक बुलाई गई जिसमें सभी जिलों के चेयरमैन और मेयरों के साथ नगर विकास के सचिव व उपमुख्यमंत्री भी शामिल थे। वहां उन्होंने बस स्टैंड के मुद्दे को सदन में रखा था जिस पर सरकार के सचिव ने भी संज्ञान लिया। लेकिन कुछ दिनों बाद इस प्रपोजल को सिंचाई विभाग ने वापस कर दिया और बस स्टैंड बनाने पर असहमति जाहिर की।
शौचालय के लिए सिंचाई विभाग से नहीं मिल रही जमीन
बताया जाता है कि इसको लेकर मुख्यमंत्री ने भी सिंचाई विभाग के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की थी। लेकिन विभागीय अड़चन में यह बस स्टैंड नहीं बन पाया।
चेयरमैन ने बताया, “जहां अभी एनएच 57 के किनारे बस स्टैंड है, उसके पीछे भी सिंचाई विभाग की जमीन है। जिस पर हम लोगों ने सिर्फ एक हजार स्क्वायर फीट जगह मांगी थी ताकि वहां एक मॉडर्न डीलक्स शौचालय बनाया जा सके। लेकिन इस निर्माण पर भी सिंचाई विभाग ने असहमति जाहिर की।”
उन्होंने बताया कि नगर परिषद के पास अपनी जमीन नहीं होने के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो रही है। “शौचालय बनाने के लिए हम लोगों ने सिंचाई विभाग से यह भी कहा था कि जिस जगह पर यह मॉडल डीलक्स शौचालय बनेगा उसपर मालिकाना हक आप ही के हाथ में होगा। हम लोग सिर्फ उसकी देखरेख करेंगे। लेकिन फिर भी वह राजी नहीं हुए। जिस कारण आज भी मामला यूं ही अधर में लटका हुआ है,” उन्होंने बताया कि नगर परिषद के पास पूरे शहर में कहीं भी अपनी भूमि नहीं है। इस कारण कोई भी निर्माण नहीं करा पा रहे हैं। लेकिन इसमें कोई दूसरा विभाग भी सहयोग नहीं कर रहा है। जिस कारण शहर में सार्वजनिक शौचालय या बस स्टैंड में कोई सुविधा नगर परिषद नहीं दे पा रहा है।
“फिर भी हम लोग प्रयासरत हैं इसके लिए सरकार से बार-बार पत्राचार किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।
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