अररिया: सरकारी फंड का किस तरह दुरुपयोग होता है, इसका जीता जागता उदाहरण अररिया में दिखता है। यहां नगर परिषद ने लगभग एक करोड़ की लागत से 72 दुकानों का निर्माण कराया था, जो आज खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।
दरअसल, सदर अस्पताल के सामने नगर परिषद द्वारा दुकानों का निर्माण कराया गया था। ये दुकानें दो मंजिला मार्केट के रूप में विकसित की गई थी। लेकिन आजतक इन दुकानों का आवंटन नहीं हो पाया है और ये बेकार पड़े हुए हैं।
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इन 72 दुकानों के निर्माण में उस समय लगभग 75 लाख रुपए का खर्च हुए थे। हैरानी की बात यह है कि जिस जमीन पर यह निर्माण कराया गया था, उसके लिए न तो एनओसी (नॉन-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी गैर-आपत्ति प्रमाण पत्र) लिया गया और ना ही अन्य दस्तावेज दुरुस्त कराये गये।
तत्कालीन डीएम के मौखिक आदेश पर ही इतना बड़ा भवन इतने बड़े खर्च से बना दिया गया। जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल के सामने जिस जमीन पर इन दुकानों का निर्माण हुआ था वो जमीन पीडब्ल्यूडी (पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट) की थी।
निर्माण के खिलाफ 2010 से कोर्ट में मामला
साल 2007-2008 में सदर अस्पताल के सामने व्यावसायिक उद्देश्य से 72 दुकानों का निर्माण कराया गया था। इसका निर्माण अररिया नगर परिषद ने कराया था। जानकारी के अनुसार जब इस दुकान के आवंटन में गड़बड़ी हुई, तो इसके खिलाफ तत्कालीन वार्ड पार्षद प्रतिनिधि परवेज आलम साल 2010 में हाईकोर्ट चले गए। वहां याचिका दायर कर उन्होंने आरोप लगाया कि इस मार्केट का निर्माण अवैध जमीन पर कराया गया है।
परवेज आलम ने याचिका में यह सवाल उठाया था कि बिना एनओसी लिए ही पीडब्ल्यूडी की जमीन पर इस तरह का निर्माण कैसे कर दिया गया। उन्होंने इस निर्माण को अवैध करार दिया था। तब तक पीडब्ल्यूडी भी नींद से जाग चुका था। यह विभाग हाईकोर्ट में गये इस मामले फस्ट पार्टी बनी। महीनों चले केस में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस निर्माण को अवैध मानते हुए अररिया जिला पदाधिकारी को इसे तोड़कर हटाने का निर्देश दिया।
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इसके बाद फिर नगर परिषद ने डबल बेंच पर मामले को देखने की बात कही। लेकिन कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया और दोबारा इस भवन को तोड़ने का आदेश डीएम को दिया। लेकिन भवन टूटने से पहले नगर परिषद सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल भवन तोड़े जाने पर रोक लगा दी है। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
एनओसी लेना था जरूरी
नगर परिषद के चेयरमैन रितेश राय ने बताया कि तत्कालीन डीएम के मौखिक आदेश पर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी जो उस समय डीएम के ओएसडी भी थे, ने बिना पीडब्ल्यूडी से एनओसी लिए, इस मार्केट का निर्माण साल 2007 में करवाना शुरू कर दिया था। साल 2008 में इस मार्केट का निर्माण पूरा हुआ।
निर्माण को लेकर नगर परिषद के ऊपर सवाल उठने लगा था। चेयरमैन ने बताया कि इतने बड़े निर्माण कराने से पहले निश्चित रूप से पीडब्ल्यूडी से एनओसी लेना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया जिस कारण आज इतनी बड़ी संपत्ति खंडहर में तब्दील होती जा रही है।
उन्होंने बताया कि जानकारी के अनुसार उस वक्त 70 से 75 लाख रुपए खर्च हुए थे मार्केट निर्माण में। लेकिन आज इसे बचाने के लिए नगर परिषद सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने बताया कि हालांकि हाईकोर्ट ने 2013 में ही मार्केट को तोड़ने का आदेश दिया था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट चले जाने की वजह से यह मामला अभी लंबित है। उन्होंने कहा कि इस मार्केट का अगर स्वीकृति लेकर निर्माण किया जाता तो निश्चित रूप से हजारों लोगों को इस मार्केट में रोजगार मिलता। लेकिन जरा सी लापरवाही के कारण आज करोड़ों की संपत्ति खंडहर में तब्दील होती जा रही है।
सरकारी राशि का हुआ है दुरुपयोग
इस मामले में जिला परिषद के अध्यक्ष अफताब अज़ीम उर्फ़ पप्पू ने बताया कि व्यवसायिक दृष्टिकोण से ये मार्केट काफी उपयोगी साबित होता। लेकिन 15 वर्षों से यूंही बेकार पड़ा है। किस परिस्थिति में इसे छोड़ दिया गया है, इसकी मुझे जानकारी नहीं है। लेकिन, इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस निर्माण में सरकारी राशि का दुरुपयोग हुआ है, जो सरासर गलत है।
लोगों को मिलता रोजगार
शहर के इतने बड़े मार्केट निर्माण को लेकर कई शिक्षित बेरोजगार युवकों ने बताया कि आज जिस तरह से रोजगार की कमी है अगर लोगों को एक छोटी जगह भी मुहैया हो जाए, तो कर्ज लेकर भी इस जगह रोजगार किया जा सकता है।
आज शहर में ऐसी जगह की बहुत कमी है। नगर परिषद ने जो 72 दुकान का निर्माण कराया, उसका उपयोग होता तो निश्चित रूप से शिक्षित बेरोजगार युवाओं को इससे जुड़ने का लाभ मिलता है। सदर अस्पताल के सामने होने के साथ ही आसपास दवा का व्यवसायिक केंद्र होने के कारण यहां दवा की दुकान के साथ दूसरी जरूरियात की भी दुकानें खुल सकती थीं। लेकिन आज नगर परिषद के इस गलत रवैये के कारण करोड़ों की संपत्ति खंडहर में तब्दील हो रही है।
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इसका फायदा किसी भी आम नागरिक को नहीं मिल पा रहा है। अगर इसका उपयोग होता,इस जगह की भी एक अलग पहचान बनती।
असामाजिक तत्वों का अड्डा
सदर अस्पताल के सामने वार्ड नंबर 25 में दो मंजिले मार्केट का निर्माण कराया गया था। उस वार्ड की पार्षद रौशन आरा ने बताया कि यह अगर मार्केट चालू हालत में होता, तो 29 वार्ड में से यह वार्ड एक अलग पहचान बनाता। क्योंकि नगर परिषद का इतना बड़ा मार्केट और कहीं भी नहीं है।
शहर को खूबसूरती के साथ-साथ बेरोजगारों को भी इस जगह से रोजगार मिल पाता। लेकिन किस परिस्थिति में इतना बड़ा अवैध निर्माण नगर परिषद के द्वारा कर दिया गया मुझे नहीं पता। यह मार्केट चालू नहीं होने के कारण यह जगह आज असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया और सदर अस्पताल से लेकर सामने के मार्केट के लोग इसे शौचालय के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि किस परिस्थिति में इतने बड़े भवन का निर्माण बिना वैध कागजातों के किया गया यह तो अधिकारी ही जानते हैं। लेकिन इसका सारा खामियाजा आज आम लोग उठा रहे हैं। क्योंकि जिस राशि से इसका निर्माण कराया गया, कहीं न कहीं वो आम लोगों से ही आती है।
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