क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग चाय पत्ती बनाते हैं उनको कितनी थकान हो जाती होगी। चाय बागान में हाथों से एक एक पत्ती तोड़ तोड़कर इकट्ठा करने में कितनी मेहनत लगती होगी, और फैक्ट्री में चाय पत्ती की प्रोसेसिंग करने वाले मजदूरों को कितना पसीना बहाना पड़ता होगा?
सबसे पहले चाय बागानों से चाय की ताजा हरी पत्तियों को एक-एक कर तोड़ा जाता है। बागानों में पत्तियां तोड़ने का यह कठिन काम ज्यादातर महिला मज़दूर करती हैं।
इसके बाद ये पत्तियां प्लास्टिक के कट्टे और टोकरी में भरकर फैक्ट्री में पहुंचा दी जाती हैं। फिर फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर इन बोरियों को गाड़ी से एक-एक कर उतारते हैं जिसके बाद सभी बोरियों का वजन किया जाता है। इन बोरियों का वजन करने के लिए फैक्ट्री में बड़ी-बड़ी वेट मशीनें लगी होती हैं।
मशीन द्वारा बोरियों का वजन करने के बाद बोरियों को ऊपर बनाए गए एक लोहे के गतिशील फ्रेम में टांग दिया जाता है। फ्रेम में थोड़ी थोड़ी दूरी पर बोरियों को टांगने के लिए कुंडे लगे होते हैं, साथ ही इसमें एक चेन होती है जो लगातार चलती रहती है। लोहे की इस फ्रेमनुमा चेन में बोरियों को लटका कर पत्ती सुखाने वाली मशीन तक पहुंचाया जाता है।
इसके बाद अगले स्टेप में बोरियों को खोलकर इस पत्ती सुखाने वाली मशीन के ऊपर हाथों से फैला दिया जाता है। यह एक ऐसी मशीन है जिसके तल पर लोहे की जाली लगी होती है, और जाली के नीचे बिजली से चलने वाले पंखे और आग जलाने वाला बर्नर होता है। यह पंखा इस बर्नर द्वारा गर्म हवा खींच कर जाली के नीचे छोड़ता है और इस गर्म हवा द्वारा चाय की हरी पत्तियों को सुखाया जाता है।
सभी पत्तियां ठीक तरह से सूखे इसके लिए जरूरी होता है थोड़े-थोड़े समय के अंतराल के बाद इन पत्तियों को हाथों से ऊपर नीचे कर पलटा जाए। इन पत्तियों को पूरी तरह सुखाने के लिए लगभग 24 घंटे इसी मशीन में रखा जाता है। और हर 3 घंटे के बाद पत्तियों को ऊपर नीचे कर उनकी पोजीशन बदली जाती है।
आपको बता दें कि इस मशीन के पास खड़े रहकर इंसान को काफी हीट महसूस होती है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि फैक्ट्री में काम करने वाले जो मजदूर 24 घंटे इस हीट को बर्दाश्त कर मशीन पर पत्तियों को सुखाते हैं, वे कितनी कड़ी मेहनत करते हैं।
24 घंटी मशीन में रहने के बाद जब ये पत्तियां सूख जाती हैं, तो इनको मशीन से इकट्ठा कर बाहर निकाला जाता है और प्लास्टिक के कंटेनर या बोरियों में भरकर आगे की प्रक्रिया के लिए दूसरी मशीन में डाला जाता है। इस रोलिंग मशीन का काम है पत्तियों को घुमा घुमा कर कंडीशनिंग करना यानी उनको दबाकर बारीक करना।
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इसके बाद ही कंडीशनिंग की हुई पत्तियों को कटिंग मशीन में डाला जाता है। इस कटिंग मशीन में जगह-जगह पर ब्लेड लगे होते हैं जिससे एक ही लॉट की पत्तियां कई बार कटती हैं, और पूरी तरह पिसकर बाहर निकलती हैं। पिसी हुई ये पत्तियां लगभग गीले आटे की तरह लगती हैं जिनको बाद में एक और मशीन द्वारा ग्राइंड कर दानेदार बनाया जाता है। इस मशीन में पिसी हुई पत्तियां लगातार घूमती रहती हैं और दानेदार चाय पत्ती बंद कर बाहर निकलती रहती है। और इसी मशीन द्वारा चाय पत्ती को अगली प्रक्रिया के लिए दूसरे मशीन में ट्रांसफर किया जाता है।
अगली प्रक्रिया के अंदर इस दानेदार चाय पत्ती को फिर से मशीनों द्वारा सुखाया जाता है और सूखते सूखते इस पत्ती का कलर काला होता जाता है।
आपको बता दें कि एक ही तरह की पत्तियों से अलग अलग प्रोसेस द्वारा अलग अलग तरह की चाय पत्ती बनाई जाती है। ग्रीन टी बनाने के लिए पत्तियों को स्टीम यानी भाप दी जाती है जबकि काली चाय बनाने के लिए पत्तियों को गर्म हवा द्वारा फिर से सुखाया जाता है। पत्तियों को सुखाने के लिए एक बड़े से ब्लॉक में डाल दिया जाता है जिसमें एक बड़ा सा पंखा लगा होता है और आधे से 1 घंटे तक यहां चाय की पत्ती को रोस्ट किया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया के बाद अगला स्टेप आता है जिसमें चाय की पत्ती को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया जाता है। इसको एक तरह से चाय की पत्ती की सफाई भी कह सकते हैं। एक बड़ी सी मशीन द्वारा पत्ती के फाइबर को अलग कर दिया जाता है और बाकी कोई भी तरह की गंदगी को पत्ती से अलग हटा दिया जाता है। इस मशीन में अलग-अलग तरह की जालियां लगी होती है जिससे मोटी चाय की पत्ती अलग निकल जाती है और बारीक चाय की पत्ती व डस्ट अलग जगह निकल जाती है। और यही वह प्रोसेस है जिसके द्वारा एक ही बार में एक ही तरह के पत्तियों से अलग-अलग क्वालिटी की चाय पत्ती बना दी जाती है।
इसके बाद बड़े-बड़े बोरे रखे जाते हैं जिनमें अलग-अलग तरह की चाय पत्ती को इकट्ठा किया जाता है और मशीन से निकाल निकाल कर चाय की पत्ती इन बोरों में भरी जाती है। और अंत में चाय की पत्ती को पैकेजिंग के लिए भेज दिया जाता है। इस तरह चायपत्ती हमारे और आपके किचन तक पहुंचती है।
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