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पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में राजनीतिक हिंसा की वजह क्या है?

पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही राजनीतिक हिंसा की खबरें सुर्खियां बनने लगी हैं। पंचायत चुनाव के नामांकन को लेकर अब तक पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में कमसे कम चार राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
West bengal map and a burning vehicle

पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही राजनीतिक हिंसा की खबरें सुर्खियां बनने लगी हैं। पंचायत चुनाव के नामांकन को लेकर अब तक पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में कमसे कम चार राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।


पहली हत्या मुर्शिदाबाद में हुई। कांग्रेस और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच नामांकन को लेकर हिंसक झड़प हुई, जिसमें कांग्रेस कार्यकर्ता फुलचंद शेख की हत्या कर दी गई। मुर्शिदाबाद को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है।

इसके बाद उत्तर दिनाजपुर के चोपरा में माकपा के एक कार्यकर्ता की राजनीतिक झड़प में मौत हो गई। वहीं, दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर में झड़पों में इंडियन सेकुलर फ्रंट और तृणमूल कांग्रेस के एक एक कार्यकर्ता की मौत हुई है।


भांगर विधानसभा क्षेत्र से इंडियन सेकुलर फ्रंट के विधायक नौशाद सिद्दिकी का कहना है कि पुलिस के सामने तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने उनके उम्मीदवारों के नामांकन पत्र छीन लिये, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। तृणमूल कांग्रेस पर यही आरोप माकपा ने भी लगाया। भांगर क्षेत्र के माकपा नेता गियासुद्दीन मोल्ला ने कहा कि तृणमूल समर्थकों ने उनके हाथ से दस्तावेज छीन लिये और उनकी पिटाई की।

मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सत्तापोषित हमलों के आरोपों के जवाब में कहा कि हमले एकतरफा नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने पुलिस को निर्देश दिया है कि दोषियों पर कार्रवाई की जाये। बनर्जी ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी ने ऐसे लोगों को टिकट नहीं दिया है, जो हिंसा में शामिल थे।

74000 पदों के लिए चुनाव

पश्चिम बंगाल में जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत के 74000 पदों के लिए चुनाव हो रहे हैं। इनमें ग्राम पंचायत की 63239, पंचायत समिति की 9730 और जिला परिषद की 928 सीटें शामिल हैं।

चुनाव के लिए 9 जून से नामांकन शुरू हुआ और नामांकन का आखिरी दिन 15 जून थी। इन पदों के लिए राज्य के कुल 5,67,21,234 वोटर 8 जुलाई को वोटिंग करेंगे।

राज्य की अलग अलग जगहों पर लगातार हिंसा व हत्याओं के मद्देनजर भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रुख किया था और इस चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की थी।

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कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल के सभी 22 जिलों में वोटिंग के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती करने का आदेश दिया है। इसके लिए संवेदनशील इलाकों की शिनाख्त करने का भी आदेश कोर्ट ने दिया है। संवेदनशील इलाकों की शिनाख्त होनी अभी बाकी है।

हालांकि, केंद्रीय बलों की तैनाती से हिंसा पर लगाम लगेगी, इसमें संदेह है क्योंकि पूर्व में भी पंचायत चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती हो चुकी है, लेकिन हिंसक झड़पें तब भी हुई थीं और लोगों की जानें तब भी गई थीं।

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास

पंचायत चुनावों को लेकर बंगाल में हो रही हिंसा कोई नई बात नहीं है। साल 2018 के पंचायत चुनावों के दौरान भी पश्चिम बंगाल में भयावह हिंसा हुई थी, जिसमें 19 लोगों की जान चली गई थी।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक कारणों से सात लोगों की हत्या की गई थी। वहीं, उससे पहले यानी साल साल 2020 में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की 36 घटनाएं हुई थीं, जिनका 68 लोग शिकार हुए थे। उस साल राजनीतिक कारणों से पश्चिम बंगाल में तीन लोगों की हत्या हुई थी।

आंकड़ों से पता चलता है कि सत्ता परिवर्तन और उसके कुछ वक्त बाद तक राजनीतिक हिंसा में काफी बढ़ोतरी हो जाती है। साल 2011 में पश्चिम बंगाल में तीन दशक तक सत्ता में रहे वाममोर्चा की हार हुई थी और तृणमूल कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़े बताते हैं कि उसके अगल साल यानी 2012 में राज्य में राजनीतिक हिंसा के चलते 22 लोगों की हत्या हुई थी, जो साल 2013 में बढ़कर 26 हो गई।

पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का एक लम्बा इतिहास है, जो 70 के दशक से शुरू होता है। साल 1997 में वाममोर्चा सरकार में तत्कालीन गृहमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने विधानसभा में कहा था कि साल 1977 से साल 1996 क पश्चिम बंगाल में 28000 लोगों की मौत राजनीतिक हिंसा में हुई।

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा पर शोधपरक किताब लिखने वाले सुजात भद्र का कहना है कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा में केवल विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता नहीं मरते बल्कि सत्ताधारी पार्टियों के वर्कर भी जान गंवाते हैं।

जानकार बताते हैं कि ज्यादातर राजनीतिक हिंसाएं ‘इलाका दखल’ के लिए होती हैं। ‘इलाका दखल’ मतलब किसी क्षेत्र पर किसी पार्टी का एकाधिकार। किसी इलाके पर अगर किसी राजनीतिक पार्टी का प्रभुत्व हो गया, तो वहां के वोट भी उसी पार्टी के उम्मीदवारों को जाएंगे और वहां मिलने वाले ठेके भी उसी राजनीतिक पार्टी के नेताओं को मिलेंगे, कमाई का एक बड़ा जरिया होता है।

जानकार पंचायत चुनावों में अधिक हिंसा की वजह भी बताते हैं। पश्चिम बंगाल के स्वतंत्र पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, “पंचायत चुनाव ग्रामीण स्तर का चुनाव होता है। इस चुनाव में जो पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है, विधानसभा चुनाव में भी वह बेहतर प्रदर्शन करेगी। यही वजह है कि पंचायत चुनावों में अधिक हिंसा होती है।”

जानकारों का यह भी कहना है कि इस इलाका दखल के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने गुंडे पाल रखे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, “पश्चिम बंगाल में राजनीतिक कल्चर हिंसक रहा है। दरअसल जो पार्टी सत्ता में आती है, उसका लक्ष्य होता है कि वह विपक्षी पार्टियों को इस हद तक कमजोर कर दे कि उसका अस्तित्व ही न बचे और इसके लिए हिंसा का सहारा लिया जाता है।”

विश्वनाथ चक्रवर्ती ने जो बातें कहीं, वे आंकड़ों में भी स्पष्ट नजर आता है। साल 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बाद 2016 में जब दोबारा विधानसभा का चुनाव हुआ, तो वाममोर्चा (इसमें सभी वामपंथी पार्टियां शामिल) और कांग्रेस मिलकर सिर्फ 72 सीटें ही जीत सके। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने 211 सीटों पर कब्जा जमाया।

उससे पहले साल 2006 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा ने 220 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, 2001 में कांग्रेस, जो मुख्य विपक्षी पार्टी थी, को केवल 26 सीटें मिली थीं।

पश्चिम बंगाल में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था और उस चुनाव में कांग्रेस ने 150 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को महज 28 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक एके जाना बताते हैं कि राजनीतिक हिंसा केवल गुंडों के सहारे नहीं की जाती है, बल्कि इसमें स्टेट मशिनरी मसलन पुलिस तक का इस्तेमाल होता है।

नहीं होती एकतरफा हिंसा

हालांकि, ऐसा नहीं है कि ये हिंसा एकतरफा होती है। जो पार्टी जहां मजबूत होती है, वहां वह विरोधी पार्टियों के खिलाफ हिंसा करती है।

प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, “उत्तर बंगाल में भाजपा मजबूत है, तो वहां उनके कार्यकर्ता हिंसा फैलाते हैं, कांग्रेस जहां मजबूत है, वह वहां हिंसा फैलाती है। इसी तरह जहां तृणमूल मजबूत है, वहां तृणमूल के कार्यकर्ता हिंसा को हथियार बनाते हैं। भले ही राजनीतिक बयानबाजी में कोई पार्टी किसी दूसरी पार्टी पर आरोप लगा दे, मगर सच यही है कि सभी पार्टियां इसमें शामिल होती हैं।”

लेकिन, सवाल है कि क्या पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर थमेगा? इस सवाल पर तिवारी कहते हैं, “मुझे नहीं लगता है कि भविष्य में इस पर किसी तरह का अंकुश लगेगा।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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