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AC कूलर के ज़माने में हाथ पंखा बनाने वाले कैसे जी रहे हैं?

राजपाल मलिक का, जो अपने कटे-फटे और कंपकंपाते हाथों के साथ पंखे बना रहे हैं। ‌और यह काम वह पिछले 10-15 सालों से करते आ रहे हैं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam and Shah Faisal |
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यह वीडियो है किशनगंज के ठाकुरगंज प्रखंड अंतर्गत पौआखाली नगर पंचायत के रहने वाले राजपाल मलिक का, जो अपने कटे-फटे और कंपकंपाते हाथों के साथ पंखे बना रहे हैं। ‌और यह काम वह पिछले 10-15 सालों से करते आ रहे हैं। पंखा बनाने के लिए वे पहले बांस खरीदते हैं उसके बाद बांस को अलग-अलग तरीके से छीला जाता है, उसकी रंगाई की जाती है और फिर बड़ी बारीकी से हाथ से बांस की छिली हुई पत्तियों को आपस में पिरो कर एक पंखा बनाया जाता है। इतनी मेहनत करने के बाद एक पंखा कभी तो ₹30 में बिकता है, तो कभी 20 और कभी ₹15 में ही बेचना पड़ता है। लाइट और इनवर्टर की सुविधा होने के बाद से हाथ से झलने वाले पंखों की बिक्री भी कम हो गई है, इसीलिए इतनी मेहनत के बावजूद राजपाल मलिक और उनके परिवार को बहुत ही कम कमाई हो पाती है।

राजपाल मलिक बताते हैं कि उनके पास इसके अलावा रोजगार का और कोई साधन नहीं हैं। वह गर्मियों में हाथ से झलने वाले पंखे बनाते हैं। इसके अलावा वह झाड़ू और शादियों में इस्तेमाल होने वाली बांस की डलिया वगैरह भी बनाते हैं।

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राजपाल मलिक चाहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ी से उनके बेटे या पोते इस काम को ना करें, बल्कि कोई और रोजगार करे ताकि जिंदगी थोड़ी बेहतर हो।


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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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