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हर साल कटाव का कहर झेल रहा धप्परटोला गांव, अब तक समाधान नहीं

धप्परटोला गांव वार्ड संख्या 1 के निवासी 75 वर्षीय अमीज़ुद्दीन बताते हैं कि पिछली बार आई बाढ़ में 8 -10 घर कटाव की भेंट चढ़ गए।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam and Shah Faisal | Kishanganj |
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किशनगंज के टेढ़ागाछ प्रखंड की झुनकी मुसहरा पंचायत स्थित धप्परटोला गाँव हर बरसात में रतुआ नदी का कहर झेलता है। गाँव की हालत इतनी खराब है कि लोग पलायन कर गांव से जाने पर मजबूर हैं। जो लोग रह गए हैं, वो अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

धप्परटोला गांव वार्ड संख्या 1 के निवासी 75 वर्षीय अमीज़ुद्दीन बताते हैं कि पिछली बार आई बाढ़ में 8 -10 घर कटाव की भेंट चढ़ गए। अमीज़ुद्दीन के बेटे पंजाब में मज़दूरी करते हैं, तो उनका घर चलता है। वह कहते हैं कि इस बार कटाव रोधी कार्य न हुआ, तो उनका परिवार भी बेघर हो जाएगा।

महसेरी के परिवार का घर एक साल पहले नदी में विलीन हो गया। इसी सदमे में उनकी सांस का निधन, ससुर की हालत दयनीय है, आँगन में जो भी आता है उसे अपने ज़मीन के बारे में बताने लगते हैं। घर काट जाने के बाद परिवार ने गाँव के स्कूल में शरण ली थी। अब घर के मर्द बाहर कमाने गए, तो अपनी खुची ज़मीन पर परिवार ने थे तो कच्चा मकान बनाया है, जिसकी लिपाई-पुताई अभी बाकी है। इस नए ठिकाने और नदी के बीच भी बस एक सड़क है।


ग्राम पंचायत सदस्य हाबेरा खातुन के बेटे नशीद आलम ने बताया कि इस बार भी 5-6 घर नदी कटाव की ज़द में आ गए। हर बार बांस का कटाव विरोध बनाया जाता है लेकिन हर बार वह कटाव रोकने में फेल हो जाता है।

स्थानीय शौकत आलम की 10 बीघा ज़मीन नदी में समा चुकी है। उन्होंने बताया कि धप्परटोला गांव के ज़्यादातर लोग ज़मींदार थे, लेकिन नदी ने धीरे धीरे बहुत से लोगों की ज़मीन निगल ली है।

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इस पूरे मामले पर बहादुरगंज के विधायक मोहम्मद अंज़ार नईमी का कहना है कि रतुआ नदी के कटाव से प्रभावित कई परिवारों को 5-5 डिसमिल ज़मीन दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दिनों पटना से एक टीम प्रभावित इलाकों का सर्वे कर गयी है और उनका प्रयास है कि जल्द कटाव रोधी कार्य की शुरुआत हो सके।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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