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अररिया के बच्चे जा रहे थे मदरसा, महाराष्ट्र पुलिस ने बताया तस्करी

अररिया जिले के पलासी प्रखंड अंतर्गत बेलबाड़ी के रहने वाले मोहम्मद वारिस के दो बच्चे शौक़ीन (17 वर्ष) और निसार (15 वर्ष) भी इस समय नासिक स्थित बाल विकास विभाग में हैं। वारिस ने ‘मैं मीडिया’ से बताया, कि अपने बच्चों को उन्होंने अपनी मर्ज़ी से मदरसा भेजा था और जिसके साथ भेजा था, वह उनका ममेरा भाई है लेकिन पुलिस ने उसे तस्कर कह कर गिरफ्तार कर लिया है।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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महाराष्ट्र पुलिस ने मनमाड़ रेलवे स्टेशन पर 4 लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस का कहना है कि ये लोग नाबालिग बच्चों की तस्करी कर रहे थे। ये चार लोग 30 बच्चों के साथ ट्रेन पर सवार थे। इसके अलावा पुलिस ने भुसावल स्टेशन पर भी 1 व्यक्ति को 29 बच्चों के साथ गिरफ्तार किया।

पुलिस ने बच्चों को बाल विकास विभाग के हवाले कर दिया और पाँचों व्यस्क व्यक्तियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाल विकास विभाग में भेजे गए सभी बच्चे अररिया जिले के हैं।

‘हम लोग बच्चे को अपनी मर्ज़ी से मदरसा भेजे थे’: अभिभावक

‘मैं मीडिया’ ने इन बच्चों के परिवार वालों से बात की। बच्चों के अभिवाकों का कहना है कि बच्चों को उन्होंने बच्चों को मदरसा भेजा था। जिन 4 चार लोगों को पुलिस तस्कर बता रही है, वे लोग उनके जानने वालों में से हैं और उनमें से 2 लोग मोहम्मद शाहनवाज़ और मोहम्मद अंज़र आलम उनके ही गांव के हैं।


अररिया जिले के पलासी प्रखंड अंतर्गत बेलबाड़ी के रहने वाले मोहम्मद वारिस के दो बच्चे शौक़ीन (17 वर्ष) और निसार (15 वर्ष) भी इस समय नासिक स्थित बाल विकास विभाग में हैं। वारिस ने ‘मैं मीडिया’ से बताया, कि अपने बच्चों को उन्होंने अपनी मर्ज़ी से मदरसा भेजा था और जिसके साथ भेजा था, वह उनका ममेरा भाई है लेकिन पुलिस ने उसे तस्कर कह कर गिरफ्तार कर लिया है।

वारिस ने कहा, “हम लोग अपने बच्चों को खुद से, ख़ुशी से गाड़ी पर बिठाए थे। मौलाना शाहनवाज़ और मौलाना अंज़र दोनों मेरे गांव के हैं, उन्हीं को बच्चा दिए थे। सांगली जिले में एक मदरसा है, वहीँ पढ़ाने भेजे थे। उन से ट्रेन पर बच्चे से बात हो रही थी लेकिन 24 घंटे बाद फ़ोन नहीं लग रहा था । फिर दैनिक भास्कर में खबर देखे कि मनमाड़ में सबको पकड़ लिया है। उसमें बताया गया कि बच्चे के माँ बाप के जाने से उन्हें छोड़ देंगे और मौलाना पर केस हो गया है। ऐसा कह रहा था कि बच्चे की तस्करी हुआ है, लेकिन यह सब झूठ है, हमलोग ख़ुशी से बच्चे को भेजे थे।”

वारिस ने आगे बताया कि वह 18 अभिभावकों के साथ महाराष्ट्र के नासिक आए हैं और पुलिस को सबूत के तौर पर बच्चों और मौलाना के दस्तावेज़ दिखा चके हैं लेकिन अब तक उन्हें और बाकी अभिभावकों को उनके बच्चे नहीं दिए गए हैं। “पुलिस तो बोल रहा है कि बच्चे लोग को ट्रेन से बिहार वापस भेजा जाएगा। हम लोग काग़ज़ दे रहे हैं तो वो भी नहीं ले रहा है। शाहनवाज़ मेरे चाचा का लड़का है, मंज़र मेरे सगा मामा का लड़का है। अपना आदमी को ही बच्चा दिए हैं। वार्ड 13 बेलबाड़ी, थाना पलासी, जिला अररिया, मेरा आधार कार्ड और मौलाना का आधार कार्ड देख लीजिये, ज़रा सा कोई भी शक नहीं है,” वारिस ने कहा।

उन्होंने आगे कहा, “हम यहाँ आई डी प्रूफ लेकर आए हैं। हम पुलिस को दिखा भी दिए हैं। हमारी आखिरी मांग यही है कि हमे हमारे बच्चे दे दिया जाए, हम उनको लेकर घर जाएंगे और अब महाराष्ट्र में नहीं पढ़ाएंगे। हम अपने बच्चों को लेने आए हैं,यहां छोड़ के कैसे चले जाएं।”

क्या ट्रेन में बच्चों को भूखा रखा गया?

बता दें कि कुछ दिनों पहले दैनिक भास्कर अख़बार ने एक खबर छापी थी जिसमें लिखा गया था कि ट्रेन पर बच्चों को भूखा रखा गया था और फिर किसी कार्यकर्ता ने पुलिस की मदद से उन बच्चों को तस्करी के चुंगल से बचाया। इस पर मोहम्मद वारिस ने कहा कि सभी बच्चों के बैग खोलकर देखने पर अभी भी उनमें खाने के सामान मिल जाएंगे। घर वालों ने सबको चूड़ा और दूसरी खाने की चीज़ें दी थीं और हाथ में पैसे भी दिए गए थे।

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एक और अभिभावक मोहम्मद मोईन ने कहा, “हम अपनी मर्ज़ी से बच्चे को पढ़ाने के लिए मदरसा भेजे थे। उसको पैसा लेकर भेजे थे। जो हाफिज जी लेकर गए थे वह अपने गांव के ही हैं। हमें सूचना दी थी कि माँ बाप आने से बच्चा दे दिया जाएगा। हम लोग यहाँ 10 दिन से आए हुए हैं लेकिन बच्चा नहीं दे रहा है। कोई तस्करी नहीं कर रहा था। हम अपनी मर्ज़ी से हाफ़िज़ (मौलाना) को बच्चा दिए थे। तस्करी कैसे हो सकता है अपने गाँव का आदमी लेकर जाता है, हर साल 4-5 बच्चा हाफ़िज़ बन कर गांव आता है। हम लोगों को आए हुए 10 दिन हो गये हैं, लेकिन ये लोग कहता है कि अभी जांच होगा। बच्चा नहीं दे रहा है। बच्चा सब भी घबरा गया है।”

मोईन ने आगे बताया कि उनके गांव बेलवाड़ी से 18 बच्चे हैं। बच्चों को छुड़ाने उनके अभिभावक फिलहाल महाराष्ट्र के नासिक में हैं। मोईन पेशे से मज़दूर हैं। मोईन और वारिस की तरह महजूब भी अपने बच्चे को लेने नासिक गए हैं। महजूब का 17 वर्षीय बेटा शादाब बाकी बच्चों के साथ नासिक के बाल विकास विभाग केंद्र में है। उन्होंने कहा कि महराष्ट्र की पुलिस का कहना है कि बिहार से बाल विकास विभाग जांच कर के उन्हें सूचना देगा, तब बच्चों को छोड़ा जाएगा।

नासिक में पुल के नीचे रहने पर मजबूर बच्चों के घर वाले

मोहम्मद महजूब ने बताया कि 28 मई को बच्चे अररिया से पटना के लिए निकले थे और फिर 29 मई को पटना से महाराष्ट्र के लिए ट्रेन पर सवार हुए थे। 30 तारीख को महाराष्ट्र में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।

“हम लोग यहाँ पुल के नीचे रहते हैं। रहने का ठिकाना है न कुछ। यहाँ पुलिस का यह कहना है कि बिहार से बाल विभाग जांच कर के रिपोर्ट भेजेगा, तो बच्चा को छोड़ा जाएगा। हम यहाँ 2 तारीख को नासिक आए हैं लेकिन अब तक बच्चा नहीं मिला है। हमलोग ग़रीब आदमी हैं, हम मज़दूर हैं, ईंटा पत्थर उठाते हैं और दिन का 300-400 रुपये कमाते हैं। हम लोग यहाँ नहीं थे, तो पुलिस वाला इन लोगों को गलत केस में पकड़ लिया है। जो तस्कर बोल रहा है वे सब अपने गांव के लोग हैं,” महजूब ने कहा।

महजूब के अलावा वारिस ने भी कहा था कि वे लोग दिन भर बाल विकास विभाग और थाने के चक्कर लगाते हैं और शाम में नासिक शहर के एक पुल के नीचे रात बिताते हैं।

इतनी दूर मदरसा क्यों भेजते हैं अभिभावक

हमने अभिभावक मोहम्मद मोईन से पूछा कि बच्चों को इतनी दूर मदरसा क्यों भेजते हैं जबकि बिहार और पास के बंगाल राज्य में मदरसों की कोई कमी नहीं है। मोईन ने कहा कि दूर दराज़ के मदरसे में भेजने का यह फायदा होता है कि बच्चे मदरसा से घर आने की कोशिश नहीं करते और इसके अलावा उस मदरसे में रहने खाने से लेकर कपड़े तक मदरसे से मिल जाते हैं।

उन्होंने बच्चों को इतनी दूर के मदरसे में भेजने की एक और वजह यह बताई कि उनके गांव से ही कई लोग सांगली के तैयबा एजुकेशन एंड वेलफेयर फॉउंडेशन के मदरसे में पढ़कर मौलवी और हाफ़िज़ बन चुके हैं। चूँकि इलाके के कई लोग मदरसे से जुड़े हुए हैं, इसलिए बच्चों को भेजने में आसानी होती है।

“अब भरोसा बन गया है कि उस मदरसे में बच्चा जाएगा तो कुछ पढ़ लिख लेगा। हमारे आस पड़ोस का बहुत सा हाफिज उसी मदरसे से पढ़ा है। दूर इसलिए भेजते हैं ताकि बच्चा घर भाग कर नहीं आए। यहाँ पास में रखने से बच्चा सब बार बार मदरसा छोड़ कर घर आ जाता है। मदरस में रहेगा तो पढ़ लिख कर कुछ बन जाएगा। मेरा बच्चा लोग आज तक कोई शिकायत नहीं किया (उस) मदरसा का। फ़ोन पर बराबर बात भी करवाता था। कभी कोई ऐसा दिक्कत नहीं हुआ,” मोईन ने कहा।

एफआईआर में क्या लिखा गया

मनमाड़ थाने में 30 मई को 4 लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई। प्राथमिकी संख्या 0408/2023 में आरपीएफ निरक्षक संदीप कुमार ने अपना बयान दर्ज कराया है। उन्होंने लिखा कि सूचना मिलने पर वह मनमाड़ रेलवे स्टेशन पर पहुंचे, जहां उन्होंने 4 लोगों को 30 बच्चों (उनमे से एक 18 वर्ष से अधिक है) के साथ दानापुर-पुणे स्पेशल’् ट्रेन में पाया।

प्राथमिकी में लिखी जानकारी के अनुसार, बच्चों को ले जाने वाले लोगों के पास मदरसे की तरफ से कोई ”प्रमाणित कागज़ात” नहीं थे, जिसके बाद रेलवे सुरक्षा बल ने सद्दाम हुसैन, नोमान आलम, एजाज़ जियाबुल और मोहम्मद शाहनवाज़ को गिरफ्तार किया। प्राथमिकी में इन चारों को मानव तस्करी के शक में गिरफ्तार करने की जानकारी दी गई है।

प्राथमिकी में लिखा गया है, “30 मार्च को मुख्यालय भुसावल द्वारा सूचना मिली कि गाड़ी संख्या 01040 दानापुर-पुणे स्पेशल में 20-30 बच्चे कुछ संदिग्ध व्यक्तियों द्वारा ह्यूमन ट्रैफिकिंग कर दानापुर से पुणे लेकर जा रहे थे।”

चारों आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 370 (यौन शोषण के उद्देश्य से किसी लड़की या महिला की भर्ती, परिवहन, बंदरगाह, स्थानांतरण), 34 लगायी गयी है। इस धारा के तहत दोषी पाये जाने पर तीन से पांच साल की सजा हो सकती है।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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