अररिया के गोढ़ी चौक के निकट एनएच 57 के किनारे बंजारों का एक छोटा सा समूह रह रहा है। ये लोग बांस और प्लास्टिक की बनी झोपड़ियों में रहते हैं और ठंड में भी ज़मीन पर सोने को मजबूर हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल, देवास और अन्य ज़िलों से आए ये बंजारे ड्राम बेचने का काम करते हैं। ये लोग ड्रामों को मोटरसाइकिल या तीन पहिया वाहन में लादकर अररिया के दूर दराज़ के इलाकों में बेचते हैं।
देवास जिले के मनोहर भटोला ने बताया कि वह 10 सालों से घूम घूम कर ड्राम बेच रहे हैं। वे लोग हर वर्ष 8 महीने बिहार या देश के किसी और कोने में जाकर ये कारोबार करते हैं। उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों में मैदानों में पानी जमा होता है, इसलिए वह बरसात के मौसम में अपने गाँव लौट जाते हैं। करीब 2 दर्जन परिवार अररिया के एनएच 57 के निकट मैदान में रह रहे हैं लेकिन एक भी बच्चा स्कूल नहीं जाता। मनोहर ने कहा कि एक जगह से दूसरी जगह जाते रहने से उनके बच्चे पढ़ नहीं पाते।
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यूनेस्को इंस्टिट्यूट ऑफ़ लाइफ लॉन्ग लर्निंग के आधिकारिक वेबसाइट में दिए आंकड़ों के अनुसार भारत में बंजारों की संख्या 6 करोड़ के आस पास है, यानी देश की कुल आबादी का 8% है।
14 वर्षीय दीपक और 19 वर्षीय बबलू भी ड्राम बेचने का काम करते हैं। दोनों निरक्षर हैं। उन्होंने कहा कि पढ़ने का मन तो है पर स्कूल जाएंगे, तो ड्राम कौन बेचेगा।
समाज से कटकर हाशिये पर रहने वाले इस समुदाय की महिलाएं भी जीवन यापन में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करती हैं। रुबाई एक गृहिणी हैं जो भोपाल से 100 किलोमीटर दूर खातेगांव से बिहार आई हैं। वह अक्सर घर का खाना बनाकर सुबह सवेरे ड्राम बेचने पैदल कई कई किलोमीटर चलती हैं।
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