अगर आपको बताया जाए कि एक व्यक्ति ने देश के तीन सबसे भयानक त्रासदी को न सिर्फ देखा बल्कि उसमें ज़िंदा भी बच गए तो शायद आपको यकीन न आए। लेकिन पश्चिम बंगाल के युवक श्रीकांत मल के साथ ऐसा ही हुआ है। श्रीकांत बंगाल के पश्चिमी मिदनापूर ज़िले के दासपूर थाना अंतर्गत परबतिपूर गांव के रहने वाले हैं।
कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टेलीग्राफ’ ने लिखा है कि श्रीकांत देश की तीन सबसे भयानक त्रासदी में बाल-बाल बचे हैं। 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप के अलावा श्रीकांत 2008 के मुंबई आतंकी हमले और बालासोर ट्रेन हादसे में ज़िंदा बच निकले।
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जब भुज में भूकंप आया था तो श्रीकांत वहीं मौजूद थे और मुंबई आतंकी हमले के वक्त भी मुंबई में ही थे। और हाल ही में ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में भी दुर्घटना के वक्त श्रीकांत कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार थे।
श्रीकांत कोरोमंडल एक्सप्रेस के थर्ड एसी में बी-5 डिब्बे में सफर कर रहे थे। पहले दो हादसे में श्रीकांत प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं हुए थे, लेकिन बालासोर ट्रेन हादसे में वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए।
श्रीकांत ‘द टेलीग्राफ’ से कहते हैं कि भुज में भूकंप आने के दो महीने बाद ही वह वहां दोबारा पहुंच गए थे और मुंबई आतंकी हमला के बाद भी काम करने के लिए दोबारा मुंबई गए। लेकिन इस ट्रेन हादसे ने श्रीकांत के हौंसले तोड़ दिए हैं। अब वह दोबारा बैंग्लोर नहीं जाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा,”अब मैं दोबारा अपना देश [अपना घर] नहीं छोड़ूगा। मैं काम के लिए अपना देश [अपना घर] कई बार छोड़ चुका हूं। इस बार के हादसे ने जो मुझे झटका दिया है अब मैं अपना देश [अपना घर] छोड़ नहीं पाऊंगा”।
श्रीकांत का इलाज कोलकाता मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में चल रहा है। वह कहते हैं कि अस्पताल में रहने के दौरान उनके कान में लगातार ट्रेन की सीटी की आवाज़ गूंजती रहती है। इस सीटी की आवाज़ से श्रीकांत की आंखों के सामने लोगों के भगदड़, ट्रेनों के टक्कर के बाद हुई तबाही के मंज़र आंखों के सामने छा जाते हैं और कानों में लोगों के चिल्लाने और मदद के लिए पुकारने की आवाज़ भी गूंजती रहती है।
जब कोरोमंडल एक्सप्रेस का बी-5 डिब्बा (जिसमें श्रीकांत सवार थे) बेपटरी हुआ तो ट्रेन में रखा सभी सामान यात्रियों के ऊपर गिरने लगा। श्रीकांत ने पूरी ताक़त से दो लोहे की रॉड को पकड़ रखा था। हादसे को याद करते हुए वह कहते हैं कि उन्हें पता था कि अगर ये रॉड उनके हाथ से छूट गया तो वह डिब्बे के किसी कोने में फेंके चले जाएंगे और इससे उनकी जान भी जा सकती थी।
अचानक डिब्बे का दरवाज़ा श्रीकांत के शरीर पर गिरा और वह बेहोश हो गए। कुछ देर बाद लोगों ने उनके ऊपर गिरे दरवाज़े को हटा कर उनको बाहर निकाला।
श्रीकांत पेशे से सुनार (जो सोने-चांदी के ज़ेवर बनाते हैं) हैं और बैंंगलोर में ही रहकर काम कर रहे थे। वह छुट्टियों में अपने घर परबतिपूर आए हुए थे। छुट्टियां मनाने के बाद 2 जून को कोरोमंडल एक्सप्रेस से चेन्नई जा रहे थे। चेन्नई सेन्ट्रल स्टेशन से ट्रेन के ज़रिये ही उनको बैंग्लोर जाना था।
श्रीकांत के परिवार में पत्नी के अलावा 65 वर्षीय मां और एक 12 साल का लड़का है। इसके अलावा एक बड़ी बेटी है जिनकी शादी हो चुकी है। उनकी पत्नी गृहणी हैं और मां को हर महीने पेंशन मिलता है। लड़का पढ़ाई करता है, लेकिन अभी अपने चाचा के पास रहता है। चूंकि श्रीकांत के देखभाल के लिए उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहती है। श्रीकांत अपने बेटे की पढ़ाई को लेकर परेशान हैं।
उन्होंने कहा कि अब वह कोई ऐसा काम जिसमें अधिक परिश्रम लगता है जल्दी शुरू नहीं कर पाएंगे। उनका घर का ख़र्च अब कैसे चलेगा इसको लेकर वह चिंतित हैं। वह कहते हैं कि मां को पेंशन आता है, लेकिन उनको भी जल्दी काम पर लग कर पैसा कमाना होगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान किया था कि गंभीर रूप से घायलों को एक लाख तथा आंशिक रूप से घायल व्यक्तियों को 25000 रुपये मुआवज़े के तौर पर दिया जाएगा। केन्द्र सरकार ने भी घायलों को पचास हज़ार रुपये मुआवज़े के तौर पर देने की घोषणा की थी।
सरकार की तरफ से अगर यह मुआवज़ा मिल जाता तो शायद उनके परिवार की कुछ मुश्किलें आसान हो जाती। लेकिन न तो उसको और न ही उसके परिवार को रेलवे या सरकार की तरफ से किसी ने संपर्क करने की कोशिश की है।
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