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“बिहार में कुत्ता और नेता एक बराबर है”- सहरसा जंक्शन पर बिहार के प्रवासी मज़दूरों ने सरकार से नाराज़गी की वजह बताई

मधेपुरा जिले के रहने वाले बेचन ऋषिदेव अपने बेटे और छोटे भाई के साथ मज़दूरी करने मध्य प्रदेश के जबलपुर जा रहे हैं, जहां वे बोरियां उठाने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वह वहां साल में 4 से 5 महीने मज़दूरी करते हैं। इस काम से महीने के 10,000 से 12,000 रुपये तक कमाई होती है।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
Published On :
migrant laborers of bihar at saharsa junction are displeased with the government

हर वर्ष रोजगार की तलाश में बिहार के लाखों मजदूर बड़े शहरों की तरफ रुख करते हैं। ये तस्वीरें है बिहार के सहरसा रेलवे स्टेशन की जहां कोसी और सीमांचल क्षेत्र के मज़दूर सर्द रात में अपनी अपनी ट्रेनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। बढ़ती ठंड के बावजूद सहरसा, मधेपुरा, दरभंगा, अररिया जैसे जिलों के सैकड़ों मज़दूर घर छोड़कर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में निकल पड़े हैं।


अररिया जिले के फूलचंद यादव बताते हैं उनकी उम्र 65 वर्ष हो चुकी है, लेकिन राज्य में रोजगार की कमी के कारण वह 15 सालों से बाहर जाकर मज़दूरी कर रहे हैं। 7 लोगों के परिवार में वह अकेले कमाने वाले हैं।

उन्होंने कहा कि उनके पास खाने पीने का भी पैसा नहीं बचा है, इसलिए ट्रेन पर बिना टिकट के ही चढ़ना होगा।


मधेपुरा जिले के रहने वाले बेचन ऋषिदेव अपने बेटे और छोटे भाई के साथ मज़दूरी करने मध्य प्रदेश के जबलपुर जा रहे हैं, जहां वे बोरियां उठाने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वह वहां साल में 4 से 5 महीने मज़दूरी करते हैं। इस काम से महीने के 10,000 से 12,000 रुपये तक कमाई होती है।

उन्होंने आगे कहा कि बिहार में कोई रोजगार नहीं है। अबतक उनका मनरेगा कार्ड भी नहीं बन सका है। जिनके पास कार्ड हैं उन्हें भी रोजगार नहीं दिया जाता, जिस कारण मज़दूर मजबूरन दूसरे राज्यों का रुख करते हैं।

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दरभंगा जिला निवासी आनंद मोहन कुमार दसवीं कक्षा का छात्र है। मज़दूरी करने वह मध्य प्रदेश जा रहा है। आनंद ने कहा कि वह आर्मी में जाना चाहता है। घर के हालात ठीक न होने के कारण उसे अपने बड़े भाई के साथ बाहर जाकर मज़दूरी करनी पड़ती है।

आनंद बाकी मज़दूरों की तरह बोरियां उठाता है जिससे महीने का दस-बारह हज़ार रुपये कमा लेता है। आनंद ने बताया कि वह आगामी बोर्ड परीक्षा की तैयार भी कर रहा है। वह रोज़ काम से लौटकर रात को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करता है।

रोजगार की तलाश में मध्य प्रदेश जा रहे एक और मज़दूर राजेंद्र कुमार बिहार में रोजगार न होने से निराश दिखे। राजेंद्र ने कहा कि गरीबों की परेशानियों को सरकार नज़रअंदाज़ करती है और उनके लिए कोई काम नहीं करती।

वहीं, देहरादून जा रहे छोटू कुमार ने कहा कि गृह जिले में रोजगार की बहुत कमी है, एक दिन काम मिलता है तो फिर कई दिनों तक घर पर खाली बैठना पड़ता है।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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