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कौमी एकता का प्रतीक है बाबा मलंग शाह की मजार

अररिया के फारबिसगंज में केसरी टोला स्थित बाबा मलंग शाह का मजार मुस्लिम हिन्दू समुदाय की एकता का प्रतीक है। इस मजार पर सभी धर्म के लोग माथा टेकने आते हैं।

ved prakash Reported By Ved Prakash |
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Devotees at Baba Malang Shah Mazar

अररिया के फारबिसगंज में केसरी टोला स्थित बाबा मलंग शाह का मजार मुस्लिम हिन्दू समुदाय की एकता का प्रतीक है। इस मजार पर सभी धर्म के लोग माथा टेकने आते हैं।


धारणा यह है कि यहां मांगी गई मुराद बाबा मलंग शाह पूरी करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह मजार एक मारवाड़ी परिवार के घर के अंदर है। इस परिवार को मजार की जानकारी 18 वर्ष पहले परिवार के सदस्यों को मिली थी। तब से इस मजार पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है और फारबिसगंज शहर में विशाल झांकी निकाली जाती है, जिनमें दोनों समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। इस सालाना उर्स में पड़ोसी देश नेपाल के अलावा देश के महानगरों अजमेर, लखनऊ, दिल्ली, देवाशरीफ, कोलकाता आदि स्थानों से श्रद्धालु शिरकत करते हैं।

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मजार होने का आया था सपना

केसरी टोला स्थित धनावत परिवार के लोगों ने बताया, “हमारे घर के अंदर मजार होने का सपना आया था। तब हम लोगों ने मजार की खोज शुरू कर दी। गोदाम के पास बने कमरे के अंदर देखा गया, तो जमीन से एक मजार बाहर निकली नजर आ रही थी। तब हम लोगों ने इसकी जानकारी आसपास से ली, तो पता चला कि यहां इस जमीन के अंदर बाबा मलंग शाह की मजार हुआ करती थी।”


उन्होंने बताया कि यह घटना 18 वर्ष पहले की है। “इसके बाद हम लोगों ने इस मजार की साफ सफाई कराई और इसकी देखभाल उसी तरह से शुरू की, जिस तरह से मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। जिस दिन यह मजार मिली थी, उस दिन को हम लोगों ने यहां उर्स के रूप में मनाना शुरू किया,” उन्होंने कहा।

Hindu Muslim devotees at Baba Malang Shah Mazar

यहां परिवार के लोग सुबह शाम अगरबत्ती और दीया जलाते लगे। आहिस्ता आहिस्ता यह बात फारबिसगंज के साथ आसपास के जिलों में भी पहुंचने लगी।

खासकर नेपाल के लोगों को भी इस मजार का पता चला, तो वहां से भी लोग यहां मन्नत मांगने पहुंचने लगे।

आहिस्ता आहिस्ता यह और भव्य रूप लेने लगा और यहां देश के विभिन्न राज्यों से हिंदू मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु का भी आना शुरू हो गया। इसी को लेकर हर वर्ष 16 और 17 फरवरी को उर्स मेले का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर एक खूबसूरत झांकी शहर में निकाली जाती है, जिसमें दोनों समुदाय के लोग मौजूद होते हैं।

दो दिनों तक रहता है मेले सा माहौल

सालाना उर्स निशान स्थापना के साथ शुरू होता है। मन्नत मांगने के साथ कव्वालियों का दौर शुरू हो जाता है। स्थानीय आज़ाद शत्रु अग्रवाल और रूपेश कुमार ने बताया कि बाबा मलंग शाह की मजार कौमी एकता का प्रतीक है। यहां बिना मांगे भी मन की मुराद पूरी होती है।

उन्होंने बताया कि यहां हर साल बाबा मलंग शाह का सालाना उर्स धूमधाम से मनाया जाता है। उर्स के मौके पर यहां दो दिनों तक मेले सा माहौल रहता है। पूरा केसरी टोला रोड मार्ग को रंग बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है। सड़क की दोनों ओर कई दुकानें भी सज जाती हैं, जिनमें चादर, श्रृंगार सामग्री की दुकानें अधिक होती हैं। इसके अलावा खाने-पीने के स्टाल व ठेले-खोमचे भी लगे रहते हैं।

Devotees going to Baba Malang Shah Mazar

बाबा मलंग शाह की मजार हिंदू-मुस्लिम सहित सभी धर्म के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां सभी वर्ग के लोग पूरी आस्था के साथ अपनी बिगड़ी तकदीर संवारने की कामना लेकर आते हैं।

श्रद्धालु बताते हैं कि यहां पर जिसने भी मत्था टेका, उसे बाबा का आशीर्वाद मिला है। लोगों के अनुसार, बाबा के मजार पर मत्था टेकने और पलकों पर मजार की चादर लगाने से दिल को सुकून मिलता है। ऐसा लगता है कि बाबा ने शरीर का सारा दुख हर लिया है। लोगों के मुख से सुनकर और प्रचलित कथाओं पर अक़ीदे के तहत मन्नतें और ख्वाहिशें लेकर बाबा के मजार पर लोग पहुंचते हैं। बिना मांगे वह मन की मुराद को पूरी कर देते हैं। इस मजार पर हर कौम के लोग आते हैं। यहां पर आने वाला कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है।

कोरोना में उर्स पर पड़ा था असर

कोरोना काल के बाद फारबिसगंज अपने असली स्वरूप में नजर आया। पिछले साल भी इस समय कोरोना का कहर था। उससे पहले भी दो साल कोरोना की चपेट में सभी तरह के कार्यक्रम बन्द थे। लिहाजा इस बार के मलंग बाबा वार्षिकोत्सव में उत्साह से लोग सराबोर हो रहे हैं।

बता दें कि फारबिसगंज हमेशा से कौमी एकता का प्रतीक रहा है। यहां सांप्रदायिक एकता की प्रतीक सुल्तानी माई की मजार है। इस मजार पर भी मुस्लिम हिंदू समुदाय के लोग माथा टेकते हैं और अगरबत्ती जलाकर अपनी मन्नतें पूरी करते हैं।

Baba Malang Shah Mazar

फारबिसगंज में ही हर साल महावीरी झंडा उत्सव मनाया जाता है। महावीरी झंडा की शोभायात्रा शहर के दरभंगिया टोला स्थित मस्जिद के इमाम की शिरकत होती है। यहां दोनों समुदाय की ओर से धार्मिक ग्रंथों का आदान प्रदान होता है। फारबिसगंज में मनाए जाने वाले हर त्यौहार किसी समुदाय विशेष नहीं बल्कि पूरे समाज की धरोहर होता है।

बाबा मलंग शाह दाता वारिश दरबार से 18वां उर्स मुबारक पर गुरुवार को उनकी मजार से भव्य व आकर्षक शोभायात्रा निकाली गई। इसमें बड़ी संख्या में हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालुओं व साधू-संतों की भीड़ उमड़ पड़ी। धनावत परिवार के नेतृत्व में निकली उक्त शोभा यात्रा में अजमेर, लखनऊ, दिल्ली, देवाशरीफ, कलकत्ता, नागपुर सहित नेपाल के श्रद्धालु शामिल हुए। वहीं, शोभा यात्रा में ढोल नगाड़े की टोली भी शामिल थी। साथ ही बच्चों के द्वारा आकर्षक झांकियां भी निकाली गईं। मलंग बाबा की गागर से सजे रथ को श्रद्धालुओं द्वारा रस्सी के सहारे खींच कर पूरे शहर का भ्रमण कराया गया, जो आकर्षण का केंद्र बना रहा।

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अररिया में जन्मे वेद प्रकाश ने सर्वप्रथम दैनिक हिंदुस्तान कार्यालय में 2008 में फोटो भेजने का काम किया हालांकि उस वक्त पत्रकारिता से नहीं जुड़े थे। 2016 में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा। सीमांचल में आने वाली बाढ़ की समस्या को लेकर मुखर रहे हैं।

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