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बिहार में क्यों हो रही खाद की किल्लत?

खाद की किल्लत को समझने के लिए दिसंबर के मध्य से लेकर जनवरी के पहले सप्ताह तक मैं मीडिया ने किशनगंज, अररिया और पूर्णिया ज़िलों के 15 किसानों से मुलाकात की।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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A farmer spraying fertiliser in the field

बीते दिसंबर को बिहार विधानसभा से लेकर संसद तक के शीतकालीन सत्र में खाद की किल्लत का मामला गूंजता रहा। सदन के अंदर, बाहर, मीडिया और सोशल मीडिया पर एक तरफ जहाँ केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेता लगातर देश में कहीं भी खाद की कमी से साफ़ इनकार कर रहे हैं, वहीं विपक्ष लगातार इस मसले पर सरकार को कटघड़े में खड़ा कर रहा है। खाद की किल्लत को समझने के लिए दिसंबर के मध्य से लेकर जनवरी के पहले सप्ताह तक हमने किशनगंज, अररिया और पूर्णिया ज़िलों के 15 किसानों से मुलाकात की। सीमांचल के किसान इन दिनों मक्का और गेहूं की फसल तैयार कर रहे हैं। लेकिन, पिछले साल की तरह इस बार भी खाद की किल्लत से परेशान हैं।


दोगुना, तीनगुनी रेट पर मिल रहा यूरिया

पांच बीघा में मक्का की खेती करने वाले पूर्णिया ज़िले के किसान मो. शब्बीर ने डगरूआ प्रखंड के अपने गाँव बेलगच्छी के आसपास के सभी मार्केट में देख लिया है, खाद कहीं नहीं मिल रहा है। किसी निजी दुकान में मिलता भी है तो कीमत सरकारी रेट से दोगुना ली जा रही है। उनका 10 लोगों का परिवार पूरी तरह खेती पर निर्भर है। खाद की किल्लत से वह बेहद परेशान हैं।

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अररिया ज़िले के नरपतगंज के किसान मनोज पासवान ने अपने दो एकड़ खेत में मक्का लगा कर सिंचाई कर दी है, अब दो बोरा यूरिया के लिए दर-दर भटक रहे हैं। बड़ी मुश्किल से एक बोरा यूरिया मिली, लेकिन उन्हें इसके लिए सरकारी दर के मुकाबले तीन गुना से भी ज़्यादा कीमत देनी पड़ी। 45 किलोग्राम के यूरिया की एक बोरी की सरकारी कीमत 266.50 रुपए है।


नरपतगंज के ही किसान दिलीप राम के दो एकड़ खेत में मक्का और गेंहू की फसल तैयार है, बड़ी मुश्किल से उन्हें एक बोरा यूरिया मिला है।

छह बीघे में मक्का की खेती करने वाले पूर्णिया ज़िले के किसान दिनेश कुमार सिंह को एक सप्ताह बायसी अनुमंडल क्षेत्र के आधा दर्जन बाज़ारों में भागदौड़ करने के बाद उनकी ज़रूरत के हिसाब से आठ बोरा यूरिया मिला है। यूरिया सही रेट पर लेने के लिए उन्होंने जागरूकता दिखाई और मजबूरन खाद दुकानदार को उन्हें सही रेट पर खाद देना पड़ा।

पिछले साल भी था यही हाल

पिछले साल भी सीमांचल क्षेत्र में रबी फसल के सीजन में खाद की ऐसी ही किल्लत थी। इस वजह से मो. शब्बीर और दिलीप राम के खेत की उपज आधे से भी कम हो गई।

एक साल पहले खाद की किल्लत की वजह से अररिया के नरपतगंज में भगदड़ मच गई थी, जिसमें वृद्ध किसान चानन्द पासवान बुरी तरह घायल हो गए थे। तब हमने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट की थी। एक साल बाद भी चानन्द उस सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं। उनका ज़ख्म पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, न ही उन्हें कोई सरकारी मदद मिली है। वह बताते हैं कि उन्हें अब खाद की कतारों में खड़े होने से डर लगता है।

चानन्द के गाँव के ही किसान श्यामदेव यादव बताते हैं कि भीड़ इस बार भी पिछले साल जैसी ही है। किसान को ज़रूरत के मुताबिक खाद नहीं मिल पा रहा है।

पिछले दिनों संसद में रसायन व उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया से जब खाद की दुकानों में लगने वाली भीड़ के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे शिष्टाचार करार दिया।

खाद की कालाबाज़ारी

नरपतगंज के किसान बताते हैं कि इलाके में खुलेआम खाद की कालाबाज़ारी हो रही है। दुकानदार अपने घरों से दोगुनी, तीनगुनी कीमत पर खाद बेच रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के दुकानदार नेपाल में खाद बेच रहे हैं, जहाँ 266 रुपए का खाद 1200 रुपए तक में बिक जाता है। किसान, खाद की किल्लत की बड़ी वजह इस कालाबाज़ारी को ही मान रहे हैं।

कैमरे पर इस विषय पर बात करने से खाद दुकानदार डरते हैं। कुछ दुकानदारों ने पहचान छुपाने के शर्त पर हमें बताया कि National Fertilizers Limited (NFL) कंपनी के अलावा कोई और कंपनी रैक से खाद दुकान तक पहुंचाने का किराया नहीं देती। इस वजह से तय रेट यानी 266 रुपए/बोरी पर यूरिया बेच पाना मुश्किल हो जाता है। इस अतिरिक्त खर्च की भरपाई के लिए अक्सर दुकानदार 340 रुपए या उससे ज़्यादा कीमत पर खाद बेचने की कोशिश करते हैं।

उधर पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे किशनगंज के ग्रामीण अलग समस्या से जूझ रहे हैं। इन इलाकों के किसान पश्चिम बंगाल के बाज़ारों पर ही निर्भर हैं, मगर उधर के बाज़ारों से खाद बिहार लाने पर उन्हें कई बार जुर्माना चुकाना होता है। इस मामले को पिछले दिनों स्थानीय सांसद डॉ. जावेद आज़ाद ने लोकसभा में भी उठाया था।

आरोप-प्रत्यारोप

आखिरी दिसंबर में सीमांचल दौरे पर आए केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में बिहार सरकार पर ही यूरिया की कालाबाजारी का आरोप लगा दिया था।

दैनिक भास्कर अखबार में 31 दिसंबर को छपे एक इंटरव्यू में बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि केंद्र सरकार बिहार में आवश्यकता से कम खाद आपूर्ति कर रही है। इसको लेकर उन्होंने केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री से मिलने का समय मांगा, लेकिन तीन महीने के आग्रह के बाद भी समय नहीं मिला। आगे उन्होंने कहा, केंद्र सरकार खाद का आवंटन कर देती है, लेकिन षड्यंत्र के तहत पीक समय पर उर्वरक की आपूर्ति नहीं की जाती है। पीक समय समाप्त हो जाने पर आवंटन के अनुसार उर्वरक उपलब्ध करा दिया जाता है।

नैनो यूरिया

उधर, खाद की किल्लत के बीच केंद्र सरकार किसानों को IFFCO द्वारा बनाई गई तरल यूरिया यानी ‘नैनो यूरिया’ इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। पिछले दिनों रसायन व उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने संसद में भी नैनो यूरिया के खूब फायदे गिनाए, लेकिन जो किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, वे संतुष्ट नहीं हैं।

नैनो यूरिया को लेकर हमें एक खाद दुकानदार ने बताया, नैनो यूरिया अकेले इस्तेमाल करने पर कारगर नहीं है। इसके लिए IFFCO ने अब सागरिका बनाया है, जिसे नैनो यूरिया के साथ इस्तेमाल करना होता है।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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