नित्यानंद यादव चार दशक से अधिक समय से खेती कर रहे हैं, लेकिन पहली बार उन्होंने ऐसी खाद की किल्लत देखी है।
खाद की ऐसी दिक्कत हमने पहले कभी नहीं देखी। पहली बार देख रहा हूं कि कई-कई दिन कतार में लगने के बाद भी खाद नहीं मिल रही,” अररिया जिले नरपतगंज की मधुरा उत्तर पंचायत के रहने वाले किसान नित्यानंद यादव कहते हैं। पिछले 15 दिन से रोज खाद खरीदने के लिए दुकान में जाता हूं, लेकिन इतनी भीड़ रहती है कि खाली हाथ लौट जाता हूं।
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नित्यानंद यादव के पास 25 बीघा खेत है और उन्होंने इस बार उसमें मक्के और गेहूं की बुआई की है, लेकिन खाद नहीं मिल रही है। उन्होंने अब फसल को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।
वे कहते हैं, “खाद की किल्लत और दुकानों पर बेइंतहा भीड़ देखकर मैंने तय कर लिया है कि अब खाद खरीदने नहीं जाएंगे। फसल उपजनी होगी, तो उपजेगी, नहीं उपजनी होगी, तो नहीं उपजेगी।”

नित्यानंद का 50 लोगों का संयुक्त परिवार है और उन सबका पेट 25 बीघा खेत से उपजने वाले अन्न से नहीं भर पाता, नतीजतन परिवार के लोगों को दूसरे राज्यों में काम करना पड़ता है।
खाद की किल्लत झेलने वाले नित्यानंद यादव इकलौता किसान नहीं हैं। स्थानीय किसान उमेश पासवान के लिए भी खाद की किल्लत नई घटना है। उमेश पासवान के पास पांच बीघा खेत है, लेकिन कई दिनों की भागदौड़ के बाद उन्हें महज एक बोरा यूरिया मुश्किल से मिल पाया है। वे कहते हैं, “सुबह छह बजे गये थे। पांच घंटे के बाद खाद मिल पाई।”

मधुरा उत्तर के किसान पुन्यानंद पासवान खाना-पीना छोड़कर लगातार 10 घंटे तक लाइन में लग रहे तब जाकर उन्हें दो बोरी डीएपी और एक बोरी यूरिया मिल पाया, जो उनके रकबे के मुकाबले अपर्याप्त है। “मेरे पास सात एकड़ जमीन है, लेकिन जितनी खाद मिली है, वो एक एकड़ में ही खत्म हो जाएगी। मुझे आठ बोरी और खाद चाहिए,” उन्होंने कहा।
उनको एक बेटा और तीन बेटियां हैं। वे कहते हैं, “बुआई करने के बाद हम मजदूरी करने पंजाब चले जाते हैं। खेत की देखभाल बच्चे करते हैं।”
भारत में खाद की स्थिति
गौरतलब हो कि भारत की लगभग 33 निजी व सार्वजनिक कंपनियां तथा को-ऑपरेटिव मिलकर हर साल 24 से 25 मिलियन टन यूरिया का उत्पादन करते हैं और 9 से 10 मिलियन टन यूरिया का निर्यात किया जाता है। इस साल भारत में रबी सीजन में कुल 179.001 लाख मैट्रिक टन यूरिया की जरूरत थी।
वहीं, इस सीजन के लिए 60.862 लाख मेट्रिक टन नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम और सल्फर (जिसे NPKS भी कहा जाता है) की जरूरत थी। केंद्र सरकार लगातार कह रही है कि देश में खाद की कोई कमी नहीं है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट इन दावों को खारिज करती है।
फैक्टचेकर डॉट इन वेबसाइट ने खाद व उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि देश में खाद की किल्लत है। रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2021 में 18.08 लाख मेट्रिक टन डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) की जरूरत थी, लेकिन सरकार के पास 9.7 लाख मेट्रिक टन ही उपलब्ध था, जिनमें से 9.1 लाख मेट्रिक टन खाद की ही बिक्री की गई। इसी तरह नवम्बर में जितनी DAP की जरूरत थी, उसका लगभग 50 प्रतिशत ही उपलब्ध था। पोटाश भी सरकार के पास जरूरत से कम उपलब्ध था। वहीं, सबसे अहम खाद यूरिया (Urea) की बात करें, तो अक्टूबर में रबी सीजन के लिए 36.15 लाख मेट्रिक टन यूरिया (Urea) की जरूरत थी, लेकिन सरकार के पास 26.27 लाख मेट्रिक टन यूरिया (Urea) ही मौजूद था, जिसमें से 24.16 लाख मेट्रिक टन यूरिया (Urea) की बिक्री की गई।

मीडिया रपट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद के दाम में इजाफा, कोविड-19 के चलते खाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चा माल का उत्पादन कम होने और आयात में पेंचीदगी के चलते देश में खाद की किल्लत हो रही है।
हालांकि खाद की किल्लत केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। समाचार वेबसाइटों की मानें, तो बहुत सारे देश खाद की कमी से जूझ रहे हैं। चीन, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया, पाकिस्तान समेत तमाम देशों में यूरिया (Urea) की किल्लत देखी जा रही है। रूस और चीन यूरिया (Urea) का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश हैं, लेकिन दोनों देशों ने अपने किसानों को यूरिया सप्लाई करने के लिए निर्यात पर रोक लगा दी है। भारत अतिरिक्त यूरिया (Urea) का आयात चीन से करता है, तो जाहिर है कि चीन द्वारा निर्यात रोकने से भारत प्रभावित होगा।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर अचानक खाद की किल्लत कैसे हो गई?
जानकार बताते हैं कि यूरिया (Urea) की किल्लत के पीछे कोयला और प्राकृतिक गैस की कीमत में बेतहाशा इजाफा जिम्मेवार है। यूरिया (Urea) का निर्माण कोयला या प्राकृतिक गैस से किया जाता है। बताया जाता है कि प्राकृतिक गैस या कोयले से तैयार होने वाले गैस को पहले अमोनिया में तब्दील किया जाता है और इसका इस्तेमाल संश्लेषित यूरिया (Urea) में किया जाता है। चूंकि कोयला और प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ गये तो वैश्विक कंपनियों ने फर्टिलाइजर का उत्पादन कम कर दिया जिसके चलते वैश्विक स्तर पर खाद का संकट पैदा हुआ।

बिहार में खाद की जरूरत और आपूर्ति
बिहार के कृषि विभाग ने रबी सीजन के लिए 45.10 लाख हेक्टेयर में बुआई का लक्ष्य रखा है। इनमें से 23 लाख हेक्टेयर में गेहूं, 5 लाख हेक्टेयर में मक्का और 12 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसके लिए भारी मात्रा में यूरिया (Urea) और एनपीकेएस (NPKS) की जरूरत है। लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, बिहार को रबी सीजन 2021-2022 के लिए 12 लाख मेट्रिक टन यूरिया (Urea) की जरूरत है, लेकिन एक अक्टूबर से 29 नवम्बर तक 4.46 लाख मेट्रिक टन यूरिया (Urea) दी गई। वहीं, एनपीकेएस (NPKS) की बात करें, तो राज्य में 2 लाख मेट्रिक टन एनपीकेएस की दरकार है, मगर एक अक्टूबर से छह दिसंबर तक केंद्र सरकार की तरफ से 1.85 लाख मेट्रिक टन की सप्लाई की गई। यही वजह है कि राज्य में खाद की किल्लत ने भयावह रूप ले लिया है। किसान खाद के लिए इतने परेशान हैं कि अररिया में 30 दिसंबर को खाद बेचने के लिए बने काउंटर के बाहर भगदड़ मच गई थी जिसमें कुछ लोग जख्मी तक हो गये थे।

विनोद पासवान घटना के वक्त मौके पर मौजूद थे। वो बताते हैं,
नरपतगंज प्रखंड मुख्यालय स्थित स्कूल ग्राउंड में काउंटर खोले गए थे, जहां नौ पंचायत के लोग भोर से जुटने लगे थे। स्कूल का मेन गेट बंद था और गेट के पास बहुत किसान जुटे थे। सुबह करीब 9 बजे गेट खुला, तभी लोग एक-दूसरे पर टूट पड़े जिससे भगदड़ मच गई और कई लोग गिरकर जख्मी हो गये,।
नरपतगंज के एक खाद विक्रेता गुंजन कुमार बताते हैं,
कुछ दिन से खाद की किल्लत है, इसलिए जो भी खाद आती है, वो हाथों-हाथ खत्म हो जाती है। हमारे यहां 200 बोरी खाद एक दिन में खत्म हो जाती है।” उन्होंने बताया कि खाद का एक रेक आने वाला है, तो उम्मीद है कि खाद की किल्लत खत्म हो जाएगी।
हालांकि सीमांचल के किसानों को ऐसी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। नित्यानंद जैसे हजारों किसानों ने सरकार से खाद की उम्मीद छोड़ दी है, फसल से भी।
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