अररिया का प्राचीन मां खड़गेश्वरी काली मंदिर जिले में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है। इसकी वजह यह है कि इस काली मंदिर को सबसे ऊंचा होने का गौरव प्राप्त है। इस मंदिर की ऊंचाई 152 फीट है। भारत में कहीं भी इतनी ऊंचाई वाला काली मंदिर नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार यहां के काली मंदिर में पिछले 200 वर्षों से पूजा-पाठ होता चला आ रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर कभी झोपड़ी में चलता था। लेकिन, अब इस मंदिर का रूप भव्य हो चुका है। शहर के बीचोबीच बने इस मंदिर को आप पांच 10 किलोमीटर दूर से ही देख सकते हैं।
अररिया शहर में स्थित इस काली मंदिर की स्थापना सन् 1884 में हुई थी। पहले यह मंदिर फूस की झोपड़ी में था। यहां लगभग 200 वर्षों से पूजा-पाठ होता आ रहा है। इस काली मंदिर का नवनिर्माण सन 1987 में हुआ था। मंदिर का निर्माण कार्य 2011 में पूर्ण हुआ। तभी से यह मंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां पर पूजा पाठ करने के लिए लोग बहुत दूर दूर से आते हैं।
इस मंदिर के गुम्बद की ऊंचाई 152 फीट है। मिली जानकारी के अनुसार, भारत के सबसे ऊँचे काली मंदिरों में एक है। इस मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जिसे राजस्थान के मकराना से मंगाया गया था। निर्माण कार्य काफी समय तक चला था, क्योंकि इस मंदिर की ऊंचाई अधिक होने के कारण इसमें कई तरह की परेशानियां भी सामने आ रही थीं। लेकिन मंदिर के साधक सरोजानंद दीक्षित उर्फ नानू बाबा ने इस मंदिर के निर्माण में अपने तन मन धन लगा दिया। आज यह मंदिर सीमांचल सहित बिहार एक खास पहचान बनाए हुए है।
शुभ काम से पहले लोग करते हैं मंदिर के दर्शन
जब यहां पर आरती होती है तब यहां का दृश्य देखने लायक होता है, हजारों श्रद्धालु यहां पर एक साथ पूजा-पाठ करते हैं। सभी की मनोकामना होती है कि एक बार इस मंदिर में जरूर आएं। माना जाता है इस मां खड़गेश्वरी महाकाली मंदिर में भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। दीपावली और काली पूजा के मौके पर यहां की पूजा अर्चना और सजावट के बारे में तो सब ने सुना ही होगा। इसके साथ साथ हर शनिवार व मंगलवार को भव्य आरती का भी आयोजन यहां किया जाता है।
मंदिर में आरती के बाद भोग का भी आयोजन किया जाता है। इस महाभोग में दूध से बने खीर और खिचड़ी भी प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं के बीच वितरण किया जाता है। आरती में जिले भर से लोग आते हैं। कई लोगों का कहना है कि सौभाग्य से ही लोगों को यहां की आरती में शामिल होने का अवसर मिलता है। क्योंकि इस आरती के समय नानू बाबा मां काली के भव्य रूप का श्रृंगार करते हैं और तरह-तरह के आभूषणों से मां काली की प्रतिमा को सजाया जाता है। सजावट की छटा देखने के लिए लोग लालायित रहते हैं।
श्रद्धालुओं का लगता है तांता
इस मंदिर की कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि यहां मांगी हुई मुराद पूरी होती है। निसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति भी हुई है, इसलिए इस मंदिर में लोगों का हमेशा तांता लगा रहता है। हर शुभ काम के पहले शहरवासी इस मंदिर का दर्शन कर माथा टेकते हैं।
नानू बाबा 70 के दशक से अबतक बिना किसी स्वार्थ के मंदिर के विकास में लगातार जुड़े हुए हैं और प्रतिदिन माँ काली की अराधना करते हैं। नानू बाबा का असली नाम सरोजानंद दीक्षित है और वह अपने ज़माने के मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी भी रह चुके हैं। अपनी सम्पति का अधिकांश हिस्सा वे मन्दिर को दान कर चुके हैं।
यह एक ऐसा काली मंदिर है जहां कुत्ते और इंसान एक साथ काली मां की पूजा करते हैं। काली मंदिर के साधक सरोजानंद उर्फ नानू बाबा ने बताया कि इस मंदिर में वर्षों से कुत्ते एक साथ रहते हैं। यहां सिर्फ कुत्ते ही नहीं बल्कि अन्य पक्षियों के लिए भी मंदिर की ओर से दाना डाला जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि ऐसा किसी भी मंदिर में नजर नहीं आता, जहां कुत्ते साथ रहते हों।
मंदिर पर बन चुके हैं कई गाने
नानू बाबा ने बताया कि इस मंदिर में सभी धर्म के लोग अपनी आस्था रखते हैं और मन्नतें मांगते हैं।
शांति का संदेश लेकर पिछले 40 वर्षों से सावन के महीने में अररिया काली मंदिर के साधक प्रणाम करते आ रहे हैं। कंक्रीट की सड़क हो या फिर तपती धुप, नानुबाबा का दंड प्रणाम नहीं रुकता है। यह दंड प्रणाम की परिक्रमा अररिया शहर के दर्जनों मंदिर से होकर गुजरती है। नानू बाबा का कहना है के यह दंड प्रणाम लोगों में प्रेम की भावना जगाने और शांति का संदेश पहुँचाने के उद्देश्य से किया जाता है।
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कई स्थानीय कलाकारों ने इस मंदिर में एल्बम भी बनाए हैं, जिनमें भोजपुरी और हिंदी गीत शामिल हैं। कई ने तो काली मंदिर की विशेषता और इसकी भव्यता पर भी एल्बम बनाया है जिले के गायक अमर आनंद ने बताया कि मां खड़गेश्वरी काली मंदिर के प्रताप से ही आज मैं बॉलीवुड और भोजपुरी मैथिली गीतों को बखूबी गा रहा हूं। उन्होंने बताया कि उनका शुभ कार्य भी इसी काली मंदिर से शुरू होता है और यही वजह है कि आज बिहार में लोग उन्हें पहचानने लगे हैं।
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