बिहार के सुपौल जिले के गणपतगंज नामक क्षेत्र में स्थित विष्णु मंदिर की तुलना चेन्नई के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर से की जाती है। आज के वक्त में कोसी इलाका और सुपौल जिले की पहचान भी इसी मंदिर से है।
इसी क्षेत्र की 28 वर्षीय प्रज्ञा भारती बनाना (केला) वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स तैयार कर कमाई कर रही हैं। प्रज्ञा भारती केले के फेंके जाने वाले तने का इस्तेमाल कर एक तीर से दो निशाने साध रही हैं- इससे फसल के कचरे को तो काम में लिया ही जा रहा है, साथ ही ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
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दक्षिण के विचार और बिहार के कच्चे माल से मिली सीख
लगभग 4 साल पहले प्रज्ञा भारती फैमिली ट्रिप पर दक्षिण भारत गई थीं। वहां से आने के बाद अपने पति सन्नी कर्ण के सहयोग से फरवरी 2021 में अपने गृह क्षेत्र गणपतगंज में एक नए व्यवसाय की शुरुआत की। इस व्यवसाय में बनाना वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स तैयार कर ऑनलाइन और ऑफलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए देशभर में उसकी मार्केटिंग कर रही हैं।
प्रज्ञा बताती हैं, “जब 2014 में दक्षिण भारत गई थी तब वहां के मौसम के अलावा केले के व्यवसाय का आइडिया बहुत पसंद आया था। उसी वक्त इसे बिहार में सेटअप करने का मन बना लिया था।”
हालांकि, पारिवारिक उलझनों के कारण वह इसे उस वक्त तुरंत शुरू नहीं कर पाईं। कोविड के दौरान जब अपने पति, जो पेशे से इंजीनियर हैं, से आइडिया शेयर किया, तो वह भी हमारे साथ आ गए। फिर लॉकडाउन के वक्त ही पति व भाई चिन्मय आनंद की मदद से अपना व्यवसाय शुरू कर दिया।”
शुरुआत में प्रोसेसिंग मशीन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तो पीएमईजीपी स्कीम के तहत उन्हें बैंक से 10 लाख रुपए का लोन मिल गया। “शुरुआत में 6-7 महिलाओं को काम पर रखा था, अब 12-15 महिलाएं काम कर रही हैं। अभी गांधी मैदान का खादी मॉल और बिहार म्यूजियम के अंदर भी हमारा प्रोडक्ट जा रहा है,” आगे प्रज्ञा बताती हैं।
केले के रेशे से तैयार हो रहे हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स व जैविक खाद
सुपौल में प्रज्ञा ने अपने कारोबार की ऐसी दुनिया बनाई है जिसमें प्रत्यक्ष तौर पर उनके पति और कई महिलाएं जुड़ी हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर कई किसान जुड़े हुए हैं।
प्रज्ञा के पति बताते हैं, “हम लोगों के द्वारा रोजमर्रा की इस्तेमाल होने वाली चीजें केले से निकाले गए रेशे से तैयार की जाती हैं। वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट, रेशा, राखी, ग्रो बैग सहित दर्जनभर प्रोडक्ट्स तैयार कर रहे हैं। हमारा व्यवसाय केले की खेती करने वालों से जुड़ा हुआ है।
पहले हमलोग केले के पेड़ खरीद लेते हैं। पेड़ से गूदा और लिक्विड निकलता है, जो खाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। तने के आखिरी हिस्से का इस्तेमाल रेशा निकालने के लिए किया जाता है। इस रेशे से कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं।”
अमेजन व फ्लिपकार्ट से कर रही प्रोडक्ट की मार्केटिंग
“हमलोग पुष्पा एग्रो इंजीनियरिंग संस्था बना कर ऑनलाइन अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं।
शुरुआत में लॉकडाउन की वजह से धंधा थोड़ा मंदा रहा, लेकिन समय के साथ लोग सही चीज की पहचान कर ही लेते हैं। हालांकि, सुपौल जैसे छोटे शहर में अभी भी जागरूकता की कमी है। जो हमारे बिजनेस के लिए सबसे चैलेंजिंग काम है। इसलिए हम लोग, लोगों को अपने प्रोडक्ट और जैविक खाद के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं,” सन्नी कर्ण बताते हैं।
ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक आजादी
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सुपौल टॉप 10 गरीब जिलों में शामिल है। जीविका बिहार की ग्रामीण महिलाओं को जरूर सशक्तिकरण की ओर ले जा रही है। हालांकि, आज भी बिहार खासकर सुपौल जैसे छोटे शहर की महिलाएं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बेहतर नहीं है।
प्रज्ञा के इस प्रयास के माध्यम से गणपतगंज जैसे छोटे गांव की महिलाएं आधुनिक मशीन के माध्यम से केला के बड़े-बड़े पौधे को काट कर रेशा निकाल रही हैं। यह काम उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत भी कर रहा और उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ा रहाहै।
कंपनी में काम कर रही लक्ष्मी दीदी बताती हैं कि, “यहां काम कर रही सभी महिलाएं जीविका से भी जुड़ी हुई है। व्यवसाय के समय में मैं, केले के बेकार तनों को रेशों में बदलकर महीने की ₹6 से ₹7 हजार कमा रही हूं।” लक्ष्मी दीदी जैसी कई ग्रामीण महिलाओं के पास काम है, वे आत्मनिर्भर हैं, और इस दौर में भी उनके पास जीवन यापन का जरिया है।
कृषि अधिकारी संजीव झा बताते हैं कि, “सुपौल जैसे छोटे क्षेत्र में इस तरह का पहला बेहद प्रभावी प्रयास है। सुपौल जिला में केला की खेती बहुत बड़े पैमाने पर होती है। किसानों के लिए केला के पौधे को हटाना एक बड़ी चुनौती रहा है। इस कुड़ो को प्रज्ञा ने अपना कच्चा माल बना लिया। केले के धागे के प्रचार-प्रसार से इस तरह का व्यवसाय और भी आगे बढ़ेगा।”
केले के तने से कैसे बनाएं जैविक खाद?
केले के तने से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया पर प्रज्ञा के यहां काम कर रही लक्ष्मी दीदी बताती हैं कि, “केले के तने से जैविक खाद बनाने के लिए सबसे पहले एक गड्ढा खोदा जाता है। जिसमें केले के तने के साथ-साथ गोबर और खरपतवार पर भी डाल दी जाती है। इसके बाद डीकंपोजर का छिड़काव किया जाता है। कुछ दिनों में ये पौधा खाद के तौर पर तैयार हो जाता है।”
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