Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

मछलियों को विलुप्ति से बचाने के लिए फिशरीज कॉलेज की मुहिम

किशनगंज जिले में स्थित फिशरीज कॉलेज इन दिनों महानंदा नदी में पाई जाने वाली मछलियों की विभिन्न प्रजातियों पर काम कर रहा है और अब तक के शोध में नदी में मछलियों की 40 से अधिक प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :

किशनगंज जिले में स्थित फिशरीज कॉलेज इन दिनों महानंदा नदी में पाई जाने वाली मछलियों की विभिन्न प्रजातियों पर काम कर रहा है और अब तक के शोध में नदी में मछलियों की 40 से अधिक प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है।

बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के अंतर्गत चल रहे इस कॉलेज के डीन डॉ वेद प्रकाश सैनी ने कहा, “हमलोगों ने अब तक के शोध में 47 प्रजातियों का पता लगाया है और इसको लेकर विस्तृत जानकारी जुटाई है।”

Also Read Story

कटिहार में गेहूं की फसल में लगी भीषण आग, कई गांवों के खेत जलकर राख

किशनगंज: तेज़ आंधी व बारिश से दर्जनों मक्का किसानों की फसल बर्बाद

नीतीश कुमार ने 1,028 अभ्यर्थियों को सौंपे नियुक्ति पत्र, कई योजनाओं की दी सौगात

किशनगंज के दिघलबैंक में हाथियों ने मचाया उत्पात, कच्चा मकान व फसलें क्षतिग्रस्त

“किसान बर्बाद हो रहा है, सरकार पर विश्वास कैसे करे”- सरकारी बीज लगाकर नुकसान उठाने वाले मक्का किसान निराश

धूप नहीं खिलने से एनिडर्स मशीन खराब, हाथियों का उत्पात शुरू

“यही हमारी जीविका है” – बिहार के इन गांवों में 90% किसान उगाते हैं तंबाकू

सीमांचल के जिलों में दिसंबर में बारिश, फसलों के नुकसान से किसान परेशान

चक्रवात मिचौंग : बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे की घोषणा की

dean of college of fisheries kishanganj

इन प्रजातियों की डीएनए सिक्वेंसिंग की जा रही है और साथ ही जीन बैंक भी तैयार किया जा रहा है ताकि किसी प्रजाति के विलुप्त हो जाने पर उसे दोबारा जीवित किया जा सके।


सैनी ने कहा कि आने वाले समय में और भी नदियों को लेकर शोध कि या जाएगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस नदी में मछलियों की कौन-कौन सी प्रजातियां मौजूद है। इसकी मदद से हम नदियों की जैवविविधता का भी पता लगा सकेंगे। महानंदा नदी में पाई जाने वाली मछलियों की अब तक जिन प्रजातियों की शिनाख्त हुई है, उनमें चेलवा, कौआ मछली, सिधरी, रोहू, पतुकारी, नामाची, तिनकाटी, करौछी, पतासी, गैंची, बुल्ला, कवई, टेंगरा, तारबेकि, बाम, डिंडा, कंचनपुटी, गिरई, गूंच, लाल खोलीशा आदि शामिल हैं।

types of fish display at fisheries college kishanagnj

अन्य नदियों की मछलियों पर भी शोध

अगली कड़ी में कॉलेज की तरफ से कोसी नदी में पाई जाने वाली मछलियों पर भी शोध किया जाएगा। शोध कार्य तेज गति से हो, इसके लिए चलंत प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल किया जाएगा। कॉलेज सूत्रों ने बताया कि इसके लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित हो चुके हैं।

उल्लेखनीय हो कि बिहार की नदियों और तालाबों में वे मछलियां ही पाई जाती हैं, जो मीठे पानी में जीवित रहती हैं क्योंकि बिहार किसी भी महासागर से सटा हुआ नहीं है। हाल के वर्षों में जलाशयों के पाटे जाने और गंगा नदी व उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण के चलते मछलियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई हैं।

तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी से सेवानिवृत्त प्रोफेसर सुनील कुमार चौधरी ने इस पत्रकार को शोधपत्रों के हवाले से बताया था कि गंगा नदी के किनारे के खेतों में रासायनिक कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल और नदी में शहरी गंदा पानी फेंके जाने के चलते गंगा नदी में मिलने वाली मछलियों की कई प्रजातियां खत्म हो गई हैं। एक रिपोर्ट के सिलसिले में इस पत्रकार ने साल 2019 में भागलपुर के मछुआरों से बात की थी, तो उन्होंने भी कहा था कि अब गंगा नदी में पहले जैसा बेतहाशा मछलियां नहीं मिलती हैं, इसलिए उन्हें पश्चिम बंगाल के मालदह से मछली लाना पड़ता है।

नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर स्मॉल स्केल फिश वर्कर्स के नेशनल कनवेनर प्रदीप चटर्जी कहते हैं, “बिहार में नदियों से बहुत सारी मछलियों की प्रजातियां खत्म हो गई हैं, जिस वजह से छोटे मछुआरों के रोजगार पर संकट बढ़ गया है।”

“मछलियों के खत्म होने की कई वजहें हैं। इनमें कुछ प्रमुख वजहें नदियों से सिंचाई और कल कारखानों के लिए पानी का बेतहाशा दोहन और गंदे पानी का नदियों में बहाना आदि शामिल हैं,” उन्होंने कहा।

जल श्रमिक संघ के स्टेट कनवेनर योगेंद्र साहनी ने कहा कि बिहार की नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की 90% प्रजातियां खत्म हो गई हैं।

“गंगा नदी में ही अब हिल्सा, सुगबा, बाटा, कलमा, मोर, कनफुसकी, सांकुच जैसी बहुत सारी मछलियां नहीं मिलती हैं। इससे मछुआरों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है। इस वजह से बहुत सारे मछुआरे मछली पकड़ने का पुश्तैनी काम छोड़कर पलायन कर गये हैं‌,” उन्होंने कहा।

प्रभात खबर में साल 2015 में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि सीमांचल के जिला पूर्णिया से सिंघी, मांगुर, सौरा, कबई, बुआरी, रेबा, पपता, कपटी, पोठी जैसी देसी मछलियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।

cast net operation in river mahananda

बिहार में खपत से कम मछली उत्पादन

बिहार में 3200 हेक्टेयर में नदियां, 50000 हेक्टेयर में जलाशय, 25000 हेक्टेयर में रिजर्वायर, 9000 हेक्टेयर में ऑक्स-बो झील और 80000 हेक्टेयर में तालाब फैले हुए हैं, जो मत्स्य पालन के बड़े स्रोत हो सकते हैं। लेकिन, बिहार में मछली उत्पादन मांग से कम ही हो रहा है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2016-2017 में बिहार में कुल 5.09 लाख टन मछली उत्पादन हुआ था, जबकि बिहार में मछली की खपत उस साल 6.42 लाख टन थी। साल 2017-2018 में बिहार में मछली की खपत 6.50 लाख टन थी, लेकिन उत्पादन 5.87 लाख टन ही हो पाया था।

मछलियां न केवल लोगों की कमाई का जरिया हैं, बल्कि ये नदियों, जलाशयों की परिस्थितिकी को भी बनाए रखने में मदद करती हैं। ऐसे में न केवल मछली उत्पादन बल्कि मछलियों की विभिन्न प्रजातियों को बचाया जाना जरूरी है।

मछलियों की प्रजातियों को बचाने के साथ साथ फिशरीज कॉलेज मांगुर मछली को लेकर एक अलग तरह का शोध करने की तैयारी में है। डॉ वेद प्रकाश सैनी ने कहा, “अगले चरण में हमलोग मांगुर मछली पर शोध कर यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि इस मछली पर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का कितना असर पड़ रहा है। इसके जरिए हम पता लगाएंगे कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मछली में जीन (अनुवांशिक) लेवल पर भी परिवर्तन होता है कि नहीं।”

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

Related News

बारिश में कमी देखते हुए धान की जगह मूंगफली उगा रहे पूर्णिया के किसान

ऑनलाइन अप्लाई कर ऐसे बन सकते हैं पैक्स सदस्य

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

पश्चिम बंगाल: ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सफलता की कहानी लिखते चौघरिया गांव के पवित्र राय

सहरसा: युवक ने आपदा को बनाया अवसर, बत्तख पाल कर रहे लाखों की कमाई

बारिश नहीं होने से सूख रहा धान, कर्ज ले सिंचाई कर रहे किसान

कम बारिश से किसान परेशान, नहीं मिल रहा डीजल अनुदान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?