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दल्लेगांव: यहां लाशों को भी मुक्ति के लिए नदी पार करना पड़ता है

सबसे ज्यादा परेशानी तो तब होती है, जब कोई बहुत बीमार पड़ जाये या किसी गर्भवती महिला को इमरजेंसी में अस्पताल ले जाना पड़ा जाए। अगर देर रात कोई बीमार पड़ जाए, तो उनके परिजनों का कलेजा मुंह को आ जाता है क्योंकि रात में तो नाव का परिचालन भी बंद हो जाता है।

shah faisal main media correspondent Reported By Shah Faisal |
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In this Bihar villages corpses also have to cross the river for salvation.

देश की आजादी के 70 साल से ज्यादा वक्त गुजर चुका है। इन 70 सालों में कितनी ही सरकारें आईं और चली गईं। इन दशकों में लोगों की प्राथमिकताएं भी बदलीं। स्मार्ट फोन, फास्ट कनेक्टिविटी लोगों की आवश्यक जरूरतें बन गईं। लेकिन, किशनगंज जिले में नेपाल से सटा एक ऐसा भी गांव है, जिसे देखकर लगता है कि ये 70 साल से थमा हुआ है। वक्त का पहिया यहां घूम नहीं रहा है।


स्मार्ट गांव और ग्लोबल विलेज के जुमलों के बीच इस गांव के लोग अब भी सरकार से एक अदद पुल मांग रहे हैं।

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किशनगंज जिले के ठाकुरगंज प्रखंड में मेची नदी के उस पार नेपाल की सीमा से सटा हुआ गांव है- दल्लेगांव। लगभग 12 हजार की आबादी वाले इस गांव में घर खेतों के बीच में बने हुए हैं और लोग खेतों की मेड़ से होकर आते जाते हैं।


इस गांव के लोग किशनगंज शहर या अन्य इलाकों में जाएंगे या नहीं, ये मेची नदी तय करती है। कोई बहुत बीमार पड़ गया हो और इमरजेंसी में बड़े अस्पताल ले जाना हो, लाशें दफनानी हों, बारात आनी हो, लोगों को शहर जाना हो या शहर के लोगों को दल्ले गांव आना हो, उन्हें अनिवार्य रूप से नदी पार करना पड़ता है, जो जोखिम भरा और खर्चीला होता है। मेची नदी इस गांव की जिंदगी के साथ नत्थी हो गई है।

A road of Dallegaon village
फोटो: दल्लेगांव का एक रास्ता / शाह फैसल

उम्र के सत्तर साल पार कर चुके जुबेर आलम की पूरी जिंदगी नदी को पार करते हुए गुजरी है। वे बेबस होकर कहते हैं,

“पुल नहीं होने से बहुत तकलीफ होती है। शादी व्याह से लेकर जनाजा ले जाने तक में हमलोग तकलीफें झेलते हैं। नदी पार करना होता है। हमारी तो काफी उम्र हो गई, लेकिन हमारे बच्चों की जिंदगी कैसे कटेगी नहीं मालूम।”

पिछले दिनों दल्ले गांव निवासी राकेश कुमार गणेश की 9 अक्टूबर को गुजरात में मौत हो गई थी। वह वहां कपास का काम करते थे।

12 अक्टूबर को उनका शव एम्बुलेंस से पाठामारी घाट लाया गया। वहां से नाव के सहारे शव को नदी पार कराया गया और इसके बाद ट्रैक्टर से शव मृतक के परिजनों के पास पहुंचा। वहां से फिर शव को अंतिम संस्कार के लिए अन्यत्र ले जाया गया।

स्थानीय लोग बताते हैं कि ये स्थिति कोई अपवाद नहीं है बल्कि सामान्य तौर पर इसी तरीके से शवों को रिहाई मिलती है और गांव के लोग भी इसी तरह संघर्ष कर बाकी दुनिया से संपर्क साधते हैं।

दो महीने पहले एक बुजुर्ग महिला जुलेखा की मौत हुई थी, तो उनका शव भी नाव की मदद से ही कब्रिस्तान तक ले जाया गया था। लोगों का कहना है कि नाव में सवारी जोखिम भरा होता है क्योंकि इसके पलट जाने का खतरा बना रहता है, लेकिन ये खतरा स्थानीय लोग रोजाना झेलते हैं।

गांव के एक युवक जहूर आलम बताते हैं,

“एक तो जनाजे को मशक्कत के बाद कब्रिस्तान तक पहुंचाना तकलीफदेह होता है और दूसरी बात कि नाव पर जनाजे के साथ जो लोग जाते हैं, वे जान हथेली पर लेकर जाते हैं।”

सबसे ज्यादा परेशानी तो तब होती है, जब कोई बहुत बीमार पड़ जाये या किसी गर्भवती महिला को इमरजेंसी में अस्पताल ले जाना पड़ा जाए। अगर देर रात कोई बीमार पड़ जाए, तो उनके परिजनों का कलेजा मुंह को आ जाता है क्योंकि रात में तो नाव का परिचालन भी बंद हो जाता है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि कई बार ऐसी नौबत आई है कि देर रात नाविक को बुलाना पड़ा है, नदी पार करने के लिए। हालांकि कई बार बहुत जरूरी हो जाता है, तो लोग मरीजों को नेपाल के अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है क्योंकि वहां से नेपाल जाना लोगों के लिए आसान है।

 

road to Dallegaon
फोटो: दल्लेगांव जाने का रास्ता / शाह फैसल

ऐसा नहीं है कि पुल के लिए गांव के लोगों ने अपने स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया। लोकतंत्र में सबसे मजबूत हथियार होता है वोट। यहां के लोगों ने इसका इस्तेमाल भी कर लिया, लेकिन प्रशासन को नहीं सुनना था, सो नहीं सुना।

“साल 2019 के लोकसभा चुनाव में गांव के लोगों ने वोटिंग का बहिष्कार कर दिया था। उनकी मांग की थी कि मेची नदी पर पुल बनाने के लिए ठोस कार्रवाई होगी, तभी वे वोट करेंगे। लेकिन, वोटिंग का बहिष्कार करने के बावजूद उनकी मांगों पर कोई विचार नहीं किया गया,”

जहूर आलम कहते हैं।

A woman of Dallegaon village
फोटो: दल्लेगांव की एक महिला / शाह फैसल

उन्होंने कहा कि इसके अलावा ग्रामीमों ने कई दफे बिहार सरकार से मांग की है कि पुल बनाया जाए, लेकिन हमारी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई है।

तमाम दिक्कतों के बावजूद दल्ले गांव में जिंदगी चल रही है। लोग वोट डालते हैं, विधायक चुनते हैं, सरकारें बनती हैं। मगर, उनकी एक अदद पुल की मांग नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है।

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Shah Faisal is using alternative media to bring attention to problems faced by people in rural Bihar. He is also a part of Change Chitra program run by Video Volunteers and US Embassy. ‘Open Defecation Failure’, a documentary made by Faisal’s team brought forth the harsh truth of Prime Minister Narendra Modi’s dream project – Swacch Bharat Mission.

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