कटिहार जिले के मनिहारी प्रखंड अंतर्गत जंगलाटार पंचायत में मौजूद गोगाबिल झील प्रवासी पक्षियों के लिए मशहूर है। इस झील पर कैस्पियन सागर और साइबेरियाई क्षेत्र से लगभग 300 प्रवासी पक्षी मानसून और सर्दियों के दौरान आते हैं। प्रवासी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों में सारस, काली गर्दन वाले सारस और सफेद इबिस शामिल हैं। गोगाबिल झील को गोगा झील के नाम से भी जाना जाता है।
यह झील बिहार के बड़े नम भूमि क्षेत्रों में आता है। यहां पर बड़ी संख्या में भोजन की उपलब्धता को देखते हुए लगभग 90 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। सालों से प्रवासी पक्षियों के आगमन को लेकर कुछ स्थानीय बुद्धिजीवियों की मांग के बाद गोगाबिल झील को पर्यावरण विभाग द्वारा पक्षी संरक्षण रिजर्व घोषित किया गया है।
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स्थानीय निवासी सरवन कुमार ने बताया कि पहले यहां कई लोग मछली पकड़ने आते थे लेकिन अब मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। सर्दी के दिनों में बहुत सारे पक्षी आते हैं और तब पूरा झील पक्षियों से भर जाता है।
गोगाबिल का निर्माण उत्तर में महानंदा और कनखर नदियों और दक्षिण और पूर्व में गंगा के प्रवाह से हुआ है। यह बिहार का पंद्रहवाँ संरक्षित क्षेत्र है।
पास के एक गांव से झील देखने पहुंचे बाबू लाल ने कहा कि इस इलाके में प्रवासी पक्षी आते हैं, खास कर ठंड के मौसम में यहाँ काफी अधिक संख्या में पक्षी होते हैं, तब यहाँ का नज़ारा बेहद मनमोहक होता है। इसे देखने लोग भी आते हैं। यदि सुविधाएं बढ़ा दी जाए तो और ज्यादा संख्या में लोग आएंगे और बहुत लोगों को रोजगार मिलेगा।
2004 में गोगाबिल झील को आईबीसीएन यानि भारतीय पक्षी संरक्ष्ण नेटवर्क ने भारत के महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र का दर्जा दिया था।
सरकार द्वारा निर्मित गोगा झील संरक्षण समिति के सदस्य ज़ाकिर अंसारी बताते हैं कि गोगा झील पहले मत्स्य विभाग के अधीन था, बाद में यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के अधीन आ गया। उन्होंने आगे कहा कि स्थानीय किसानों ने 144 एकड़ ज़मीन झील निर्माण के लिए दान की है। बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से गोगा झील के निर्माण के लिए राशि की मांग की है, परियोजना पास होने पर यहां पर्यटन को विकसित किया जाएगा।
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