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खुले आसमान के नीचे शरण लिए हुए हैं 150 परिवार

किशनगंज अंतर्गत कोचाधामन के बगलबारी पंचायत के लगभग 150 परिवार महानंदा ब्रिज के नीचे खुले आसमान के नीचे शरण लिए हुए हैं।

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
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किशनगंज अंतर्गत कोचाधामन के बगलबारी पंचायत के लगभग 150 परिवार महानंदा ब्रिज के नीचे खुले आसमान के नीचे शरण लिए हुए हैं। जिला मुख्यालय से सटे होने के बावाजूद इन लोगों के पास अभी तक कोई मदद नहीं पहुंचा है।

महानंदा से पानी छोड़े जाने के बाद किशनगंज जिले की नदियों का जल स्तर बढ़ गया था, जिसके बाद यहां बाढ़ जैसी स्थिति हो गई। ऐसे में कोचाधामन के बगलबारी पंचायत के लगभग 150 परिवार महानंदा ब्रिज के नीचे शरण लेना पड़‌ा।

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गांवों वालों का कहना है कि दो-तीन दिन से ये लोग यहां रह रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई अधिकारी इनकी खोज-खबर लेने आया है, ना ही इनके पास पीने का पानी है और ना ही किसी ने इन्हें खाने की चीजें दी है। सबसे बड़ी बात है कि जिस हाईवे के पास यह लोग रह रहे है वो स्टेट ‌हाईवे है जो कई प्रखंडों को ज़िला मुख्यालय से जोड़ती है। इस कारण यहां गाड़ियों का जाना लगा रहता है और बच्चों को खतरा रहता है।


बुधनी मरांडी नामक महिला ने बताया कि लगभग 300 लोग यहां रह रहे हैं। अभी तक प्रशासन के तरफ़ से कोई मदद नहीं मिली है। रात में बारिश हुई थी, जिस कारण हमें रात जागकर काटनी पड़ी, कपड़े भींग चुके हैं, खाने को कुछ नहीं है और जलावन भी गिला हो गया है, बस बच्चों को कुछ दुकान से लाकर खिला देते हैं।

वही मुन्नी देवी नामक महिला ने बताया कि सड़क पर गाड़ियां आती-जाती रहती हैं। जिस वजह से बच्चों के लिए डर लगता है। खाने के लिए बच्चे रोते रहते हैं पर हमारे पास कुछ नहीं है खिलाने के लिए और शौच भी सड़क पर ही करना पड़ रहा है।

सुपौल ने बताया कि उनके घर में पानी घुस गया है और आने-जाने का कोई साधन नहीं है। खाने का सब समान बारिश में गिला हो गया है। प्रशासन ने चूड़ा बांटने का ऐलान किया था, लेकिन अभी तक कोई मदद यहां नहीं पहुंची है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला मुख्यालय के सटे होने पर भी इन लोगों की ऐसी हालत है फिर बिहार के दूसरे गांवों के लोगों की क्या दशा होती यह चिंता का विषय है।

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स्वभाव से घुमंतू और कला का समाज के प्रति प्रतिबद्धता पर यकीन। कुछ दिनों तक मैं मीडिया में काम। अभी वर्तमान में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से किताबों को गांव-गांव में सक्रिय भूमिका।

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