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नीतीश सरकार ने क्यों कराई आनंद मोहन की रिहाई

साल 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह गुरुवार तड़के रिहा हो गये।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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साल 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह गुरुवार तड़के रिहा हो गये।

खबर थी कि उनकी रिहाई के बाद बड़ा रोड शो होगा, जिसमें वह खुद शामिल रहेंगे। सहरसा में उनके पैतृक गांव में भी बड़ा आयोजन प्रस्तावित था, लेकिन उनकी रिहाई न केवल बेहद लो प्रोफाइल रखा गया, बल्कि उन्हें भोर तीन बजे ही रिहा कर दिया गया।

इस रिहाई के बाद आनंद मोहन मीडिया की नजरों से गायब हो गये।


माना जा रहा है कि रिहाई को लेकर आ रही तीखी प्रतिक्रिया और उससे आम लोगों में सरकार के खिलाफ उभरने वाले संभावित गुस्से से बचने के लिए आनंद मोहन सिंह को हिदायत दी गई थी कि रिहाई को लो प्रोफाइल ही रखा जाए।

बिहार प्रिजन मैनुअल में क्षमा का इतिहास

उनकी रिहाई का रास्ता बिहार प्रिजन मैनुअल की एक खास पंक्ति को हटाकर बनाया गया है।

बिहार प्रिजन मैनुअल में साल 2002 में पहली बार जघन्य अपराध के दोषियों को सजा के कुछ वर्ष जेल में बिताने के बाद क्षमा कर देने का संशोधन लाया गया था।

इस संशोधन के तहत जघन्य अपराध के दोषी क्षमा के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस आवेदन पर विचार करने के लिए स्टेट सेंटेंस रेमिशन बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड में गृह सचिव, जिला जज, आईजी समेत अन्य अधिकारी सदस्य होते हैं। 6 सदस्यों वाला यह बोर्ड ही तय करता है कि किसी आवेदन को स्वीकार करना है या खारिज।

इस संशोधन के जरिए प्रिजन मैनुअल में रूल 529 (iii) (ए) जोड़ा गया, जो कहता है, “आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा हर सजायाफ्ता कैदी चाहे पुरुष हो या महिला, समय-पूर्व रिहाई के लिए 14 साल जेल में बिताने के बाद आवेदन करने के हकदार होगा।”

साल 2012 में इसमें कुछ संशोधन हुए और कुछ अपराधों का जिक्र करते हुए बताया गया कि बलात्कार के बाद हत्या, डकैती व हत्या, सिविल राइट एक्ट के अपराध के तहत हत्या, दहेज हत्या, 14 साल से कम उम्र के बच्चे की हत्या, कई हत्याएं, सजा पाने के बाद जेल में हत्या, पैरोल पर रहने के दौरान हत्या, आतंकी घटना के वक्त हत्या, स्मगलिंग के वक्त हत्या और सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान हत्या के दोषी भी समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन कर सकेंगे।

प्रिजन मैनुअल 2012 में रूल 481 में इसका जिक्र किया गया है।

साल 2016 में मई महीने में सीएम नीतीश कुमार ने इसमें एक अहम मगर कठोर संशोधन किया। इस संशोधन के अंतर्गत जघन्य अपराध करने वालों को 20 साल जेल में बिताने के बाद भी समय-पूर्व क्षमा के लिए आवेदन करने के अयोग्य करार दे दिया गया। इसमें कहा गया कि बलात्कार के बाद हत्या, डकैती व हत्या, सिविल राइट एक्ट के अपराध के तहत हत्या, दहेज हत्या, 14 साल से कम उम्र के बच्चे की हत्या, कई हत्याएं, सजा पाने के बाद जेल में हत्या, पैरोल पर रहने के दौरान हत्या, आतंकी घटना के वक्त हत्या, स्मगलिंग के वक्त हत्या या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या के दोषी समय-पूर्व रिहाई के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।

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ताजा संशोधन, जिसको लेकर 10 अप्रैल को गृह विभाग (कारा) ने अधिसूचना जारी की, उसमें बाकी जघन्य अपराधों के बंदियों को कोई राहत नहीं दी गई, लेकिन ड्यूटी के दौरान सरकारी सेवन के हत्यारे को क्षमा के लिए आवेदन देने का रास्ता खोल दिया गया।

इस अधिसूचना में लिखा गया है, “बिहार कारा हस्तक (बिहार प्रिजन मैनुअल, 2012 के नियम – 481 (i) (क) में वर्णित वाक्यांश “या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या” को विलोपित किया जाएगा।

इस विलोपन के साथ ही आनंद मोहन व उनके जैसे अन्य कैदी, जो ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या के जुर्म में सजा काट रहे हैं और समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन करने के अयोग्य थे, एक झटके में योग्य हो गये।

जब सिर्फ आनंद मोहन की रिहाई के लिए प्रिजन मैनुअल में बदलाव को लेकर सरकार की चौतरफा किरकिरी होने लगी, तो अपने बचाव में सरकार ने तर्क दिया कि क्षमा हमेशा से एक स्वस्थ उदाहरण रहा है।

बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि पिछले छह सालों में 698 लोगों को कानून की प्रक्रिया को अपनाते हुए रिहा किया गया।

डीएम जी कृष्णैया की हत्या

4 दिसम्बर 1994 की रात बिहार पीपुल्स पार्टी, जिसकी स्थापना आनंद मोहन सिंह ने की थी, के नेता कौशलेंद्र कुमार शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी।

अगले दिन यानी 5 दिसम्बर को मुजफ्फरपुर शहर में स्थित एसकेएमसीएच अस्पताल में शव का पोस्टमार्टम हुआ। अस्पताल में छोटन शुक्ला के समर्थक भारी संख्या में जुटे हुए थे। पोस्टमार्टम के बाद शव को उनके समर्थकों के हवाले कर दिया गया। समर्थकों ने शव को लेकर जुलूस निकाला, जो छोटन शुक्ला के वैशाली स्थित घर पर जा रहा था।

रास्ते में आनंद मोहन सिंह, जो उस वक्त सांसद थे, उनकी पत्नी लवली आनंद समेत कई अन्य नेता जुलूस में शामिल हुए। जुलूस भगवानपुर चौक पहुंचा, तो वहां आनंद मोहन समेत अन्य नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए। उन्होंने इस हत्या का बदला लेने की बात कही और यह भी धमकी दी कि अगर इस रास्ते में सरकार आएगी तो उसे भी सबक सिखाया जाएगा।

भगवानपुर चौक से जुलूस नेशनल हाईवे से होते हुए राम दयाल नगर जाने लगा। पुलिस के मुताबिक, जुलूस खबरा गांव पहुंचा, तो जुलूस में हलचल हुई और ‘मारो, मारो’ की आवाज सुनाई पड़ी।

जुलूस के साथ चल रहे पुलिस कर्मचारी जब वहां पहुंचे, तो देखा कि एक एम्बेसडर पलटी हुई है। बीएचक्यू 777 नंबर वाली वह एम्बेसडर गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की थी। वह हाजीपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद लौट रहे थे। उनके साथ कार में उनका ड्राइवर दीपक कुमार और सुरक्षा गार्ड टीएम हेम्ब्रम मौजूद थे।

पुलिस जब मौके पर पहुंची, जो देखा कि जी कृष्णैया लहूलुहान अवस्था में पड़े हुए हैं। उनके पास से ही टिफिन बॉक्स, थर्मस, टूटा चश्मा और घड़ी बरामद किये गये। डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि उन्हें बहुत नजदीक से तीन गोलियां मारी गई थीं। उनके शरीर पर ईंट पत्थर से हमले के निशान भी मिले थे।

मौके पर मौजूद पुलिस कर्मचारी, जो इस केस में गवाह थे, ने कोर्ट में बताया कि आनंद मोहन सिंह ने छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन शुक्ला से कहा था कि वह डीएम को मार दे। यह सुनकर भुटकुन शुक्ला ने बेहद नजदीक से तीन गोलियां डीएम को दाग दीं और वहां से भाग गया।

पुलिस ने तत्काल भीड़ पर लाठीचार्ज किया, तो लोग इधर-उधर भागने लगे। पुलिस ने डीएम को मरणासन्न स्थिति में बरामद किया, अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

पुलिस ने इस मामले में आनंद मोहन, लवली आनंद समेत 36 लोगों को अभियुक्त बनाते हुए शिकायत दर्ज की।

मामले में जी कृष्णैया के ड्राइवर और सुरक्षा गार्ड समेत कुल 25 गवाहों के बयान लिये गये।

एक अक्टूबर 2007 को एडिशनल सेशंस जज ने 36 में से 7 अभियुक्तों को दोषी माना। इनमें से आनंद मोहन, प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह और अखलाक अहमद को फांसी व लवली आनंद, विजय शुक्ला, शशि शेखर ठाकुर और हरेंद्र प्रसाद को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। बाकी अभियुक्त बरी हो गये थे।

फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील

इस फैसले के खिलाफ आनंद मोहन व अन्य ने पटना हाईकोर्ट में अपील की थी। अपील पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर 2008 को लवली आनंद, प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, अखलाक अहमद, विजय शुक्ला, शशि शेखर ठाकुर और हरेंद्र प्रसाद को सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

वहीं, आनंद मोहन के संबंध में कोर्ट ने कहा था कि चूंकि आनंद मोहन हमलावर नहीं थे, इसलिए उनकी फांसी की सजा आजीवन सश्रम कारावास में तब्दील की जाती है।

रिहाई के सियासी मायने

आनंद मोहन ने भले ही अपनी राजनीति की शुरुआत अलग सियासी दल बनाकर की हो, मगर बाद में वह कई पार्टियों से होते हुए जदयू में शामिल हो गये थे। वह सांसद और विधायक भी रहे हैं।

उनकी पत्नी लवली आनंद कांग्रेस, समता पार्टी, समाजवादी पार्टी से होते हुए राजद में शामिल हुईं, वहीं उनके पुत्र चेतन आनंद ने हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा से राजनीतिक करियर की शुरुआत की और फिलहाल राजद के टिकट पर विधायक हैं।

आनंद मोहन राजपूत समुदाय से आते हैं जिसकी आबादी बिहार में महज छह प्रतिशत है, इसके बावजूद सियासत में राजपूत एक अहम इकाई है। यही वजह है कि कोई भी पार्टी इस रिहाई पर खुलकर आनंद मोहन के खिलाफ बोल नहीं रही है, चाहे वह मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ही क्यों न हो।

भाजपा के कुछ नेता जरूर आनंद मोहन के समर्थन में हैं लेकिन पार्टी की आधिकारिक लाइन इस रिहाई के खिलाफ है।

आनंद मोहन की रिहाई की पृष्ठभूमि इस साल जनवरी से ही बननी शुरू हो गई थी, जब राजपूत समुदाय की तरफ से पटना में राष्ट्रीय स्वाभिमान दिवस का आय़ोजन किया गया था और नीतीश कुमार ने उसमें शिरकत की थी।

इस कार्यक्रम में आनंद मोहन की रिहाई के नारे लगने लगे, तो नीतीश कुमार ने भीड़ से कहा था कि वह उनको जेल से रिहा कराने की कोशिश में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा था, “उनकी पत्नी (लवली आनंद) से पूछ लीजिए कि हम क्या कर रहे हैं।”

माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव को लेकर नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगे हुए हैं, ऐसे में उन्हें लगता है कि सिर्फ पिछड़े तबकों की गोलबंदी से चुनाव में भाजपा को कठिन प्रतिस्पर्धा नहीं दी जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि सभी तबकों का वोट महागठबंधन को मिले।

जानकार‌ यह भी बताते हैं कि चूंकि भाजपा अब राजद और जदयू के कोर वोट बैंक को टारगेट कर रही है, इसलिए जदयू और राजद अगड़ी जातियों को टारगेट कर रहे हैं, जो भाजपा का मजबूत वोट बैंक है।

लेकिन, आनंद मोहन की रिहाई से जदयू और महागठबंधन को कितना फायदा होगा, यह अभी कहना मुश्किल है।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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