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दार्जिलिंग : भाजपा सांसद के खिलाफ भाजपा विधायक ने छेड़ी बगावत

दार्जिलिंग के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बीपी. बजगाईं ही वह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने सर्वप्रथम ‘भूमिपुत्र’ बनाम ‘बाहरी’ का नारा दिया। दार्जिलिंग जिला के पर्वतीय क्षेत्र कर्सियांग से भाजपा विधायक बी.पी. बजगाईं ने ही दार्जिलिंग के निवर्तमान भाजपा सांसद राजू बिष्ट को ‘बाहरी’ भी करार दिया।

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सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल की महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक दार्जिलिंग सीट लोकसभा चुनाव 2024 में अजब-गजब गुल खिलाने जा रही है। यहां मामला बड़ा पेंचीदा हो गया है। यहां के भाजपा सांसद राजू बिष्ट के खिलाफ खुद भाजपा के ही विधायक विष्णु प्रसाद शर्मा उर्फ बी.पी. बजगाईं ने बगावत छेड़ दी है। उनकी यह बगावत हालांकि बीते छह-आठ महीने से भी अधिक समय से जारी है लेकिन अब यह और भी तीव्र हो उठी है। एक लंबे इंतजार के बाद बीते रविवार 24 मार्च 2024 की रात भाजपा के उम्मीदवारों की पांचवीं सूची में दार्जिलिंग के लिए निवर्तमान सांसद राजू बिष्ट का नाम घोषित होते ही बी.पी. बजगाईं भड़क उठे। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट द्वारा सार्वजनिक रूप में आक्रोश जताते हुए लिखा, ”दार्जिलिंग की जनता के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 17 लाख लोगों के बीच भाजपा को दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र से एक भी उम्मीदवार नहीं मिला। …इस बार अगर ‘भूमिपुत्र’ को टिकट नहीं मिला है तो यह मेरी प्रतिबद्धता है कि मैं अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा। मेरे लिए अलग राज्य (गोरखालैंड) का मुद्दा सिर्फ मुद्दा ही नहीं बल्कि प्रतिज्ञा भी है। लगातार तीन बार ‘बाहर’ से आए उम्मीदवार हमारे मुद्दे के लिए सिर्फ लीपापोती करने वाले ही साबित हुए हैं।”

बजगाईं ने ही दिया ‘भूमिपुत्र’ बनाम ‘बाहरी’ का नारा

दार्जिलिंग के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बीपी. बजगाईं ही वह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने सर्वप्रथम ‘भूमिपुत्र’ बनाम ‘बाहरी’ का नारा दिया। दार्जिलिंग जिला के पर्वतीय क्षेत्र कर्सियांग से भाजपा विधायक बी.पी. बजगाईं ने ही दार्जिलिंग के निवर्तमान भाजपा सांसद राजू बिष्ट को ‘बाहरी’ भी करार दिया। उन्होंने उन पर पहाड़,‌ तराई व डुआर्स के गोरखाओं के लिए कुछ भी नहीं करने का आरोप‌ लगाया। यह भी कहा कि झूठ की बुनियाद पर ज्यादा देर तक टिका नहीं रहा जा सकता है। उनका मुख्य रूप से कहना था, “पहाड़ वासियों से किए गए दो मुख्य वायदे – 11 जनजातियों को मान्यता और पहाड़, तराई व डुआर्स का स्थायी राजनीतिक समाधान नहीं करने तक माना जाएगा कि हम झूठ की बुनियाद पर ही खड़े हैं।” उनकी यह बगावत आज भले ही तीक्ष्ण हो उठी है लेकिन बीते छह-आठ महीने से भी अधिक समय से वह भाजपा और राजू बिष्ट के खिलाफ बगावत छेड़े हुए हैं। गत वर्ष 2023 के अक्टूबर महीने की पहली तारीख को सिलीगुड़ी के निकट डागापुर में हुए भाजपा के ट्रेड यूनियन अनुमोदित चाय बागान मजदूरों के मोर्चा के उस सम्मेलन में भी वह ऐलान करके नहीं गए थे जिस सम्मेलन में भाजपा के राष्ट्रीय व राज्य स्तर के बड़े-बड़े दिग्गज शामिल हुए थे।

पहले ही दी थी भूचाल ला देने की चेतावनी

बी.पी. बजगाईं ने आज से छह महीने पहले ही ‘भूचाल’ ला देने की चेतावनी दी थी।


उन्होंने कहा था, “जब मैंने विधानसभा के अंदर कहा था कि यहां मुझे लोगों ने गोरखालैंड के लिए ही वोट दिया है तो मेरी पार्टी के ही अंदर लगभग 4 रिक्टर स्केल का भूचाल आ गया था। अब मैं 7-8 रिक्टर स्केल का भूचाल लाने जा रहा हूं।” उनका कहना रहा है कि दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र से गोरखाओं ने भाजपा को लगातार तीन बार जीत दी। मगर, भाजपा ने गोरखाओं के लिए कुछ भी नहीं किया। उन्होंने कहा था, “भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वायदों को पूरा करके दिखाए। वरना, भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी। भूचाल आ जाएगा।”

वह भूचाल उन्होंने ला दिया है। अपने ही दल भाजपा के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

इंतजार खत्म, एक्शन शुरू

इस बार लोकसभा चुनाव के लिए दार्जिलिंग से भाजपा उम्मीदवार का नाम घोषित होने में लंबा इंतजार गुजरा। गत, 2 मार्च 2024 को भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची में देश भर के लिए कुल 195 उम्मीदवारों का नाम घोषित किया। उनमें पश्चिम बंगाल राज्य के लिए भी 20 उम्मीदवारों के नाम घोषित हुए। उन 20 उम्मीदवारों में पांच उत्तर बंगाल के कूचबिहार, मालदा उत्तर, व मालदा दक्षिण, बालूरघाट और अलीपुरद्वार सीटों के लिए थे। मगर, उत्तर बंगाल की आठ में से बाकी बची तीन सीटों रायगंज, जलपाईगुड़ी, और दार्जीलिंग के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं हुई। उसके बाद दूसरी, तीसरी व चौथी सूची भी जारी हुई। मगर, किसी में भी दार्जिलिंग का नाम नहीं था। ऐसे में इंतजार बड़ा बोझिल सा हो उठा था। भाजपा वाले बेचैन हो उठे थे।‌ जगह-जगह तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी थीं। सबसे ज्यादा चर्चा दार्जिलिंग को लेकर ही थी। क्योंकि, यहां सीन में अचानक एक नए नाम की एंट्री हो गई थी। भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव और बीते वर्ष भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के मुख्य संयोजक रहे हर्षवर्धन श्रृंगला ने अचानक एंट्री ले ली थी। वह दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र से लेकर सिलीगुड़ी समतल क्षेत्र तक में अंधाधुंध जनसंपर्क अभियान में भी जुट गए थे। एक पूरी हवा बन गई थी कि इस बार ‘भूमिपुत्र’ के समीकरण में भाजपा दार्जिलिंग से यहीं की पृष्ठभूमि से संबद्ध हर्षवर्धन श्रृंगला को ही टिकट देगी। ऐसे में राजू बिष्ट व उनके खेमे में मायूसी पसर गई थी। राजू बिष्ट विरोधी और हर्षवर्धन श्रृंगला समर्थक भाजपा गुट काफी उत्साहित हो उठा था। राजू बिष्ट ने चुप्पी साध ली थी। उनकी चुप्पी के भी तरह-तरह के मायने निकाले जाने लगे थे।

मगर, अंततः राजू बिष्ट की ही बात सिद्ध हुई, जो उन्होंने बीच में मीडिया के बार-बार कुरेदने पर कही थी कि वह दार्जिलिंग से अपनी उम्मीदवारी के प्रति आशान्वित हैं। अगर यह परंपरा है कि दार्जिलिंग सीट से जीत की हैट्रिक लगाने वाली भाजपा ने कभी भी इस सीट से अपने उम्मीदवार को दोहराया नहीं है तो वह परंपरा इस बार टूटेगी। अंततः वही हुआ। भाजपा ने परंपरा तोड़ते हुए इस दफा पहली बार दार्जिलिंग से अपना उम्मीदवार दोहराया और राजू बिष्ट को ही उम्मीदवार बनाया।

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आसान नहीं है आगे की राह

2009, 2014 और 2019 तीनों लोकसभा चुनाव जीत कर दार्जिलिंग से जीत की हैट्रिक लगाने वाली भाजपा के लिए आगे की राह अब पहले जैसी आसान नहीं रह गई है। गत तमाम चुनावों की तुलना में इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को दार्जिलिंग में सबसे ज्यादा चुनौतियां हैं। गत तीनों लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जिस गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) की बदौलत भाजपा का विजय रथ अजेय था उस गोजमुमो का जलवा अब फीका पड़ गया है। यहां तक कि भाजपा के परम मित्र रहे गोजमुमो के संस्थापक अध्यक्ष बिमल गुरुंग भी उससे अलग हो गए हैं। इधर, चंद महीने पहले ही वह भाजपा व केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली में धरना दे कर आए हैं। उस समय ही उन्होंने दो टूक कह‌ दिया था, “अब 2009, 2014 व 2019 नहीं है। या तो केंद्र सरकार ‘डिसीजन’ ले या हम ‘सॉल्यूशन’ निकालेंगे।” इन दिनों बिमल गुरुंग ने बतौर संयोजक ‘यूनाइटेड फ्रंट फार सेपरेट स्टेट’ गठित कर लोकसभा चुनाव 2024 की बयार में एक एकदम नया अलग राज्य ‘उत्तर बंगाल’ का बड़ा मुद्दा उछाल दिया है। इसे भले ही उनके लगभग समाप्त हो चुके अपने जनाधार को वापस बनाने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है लेकिन उनके संयोजन में गठित नए यूनाइटेड फ्रंट यानी संयुक्त मोर्चा में राजबंशी, कामतापुरी व आदिवासी समूहों के भी आ जाने को लेकर केंद्र व राज्य दोनों की सत्तारूढ़ पार्टियों भाजपा व तृणमूल कांग्रेस के माथे पर बल पड़ गए हैं। इस यूनाइटेड फ्रंट यानी संयुक्त मोर्चा में बिमल गुरुंग गुट का गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो), कामतापुर पीपुल्स पार्टी यूनाइटेड (केपीपी-यू), कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी (केपीपी), प्रोग्रेसिव पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) का एक गुट, बीर बिरसा मुंडा उलगुलान पार्टी, एससी-एसटी-ओबीसी मूवमेंट मंच और भूमिपुत्र मूवमेंट पार्टी समेत कुल नौ राजनीतिक संगठन शामिल हैं। हालांकि, इनमें से सभी भाजपा के विरुद्ध भले ही मुखर हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस के प्रति समर्थन वाली मुद्रा में नरम हैं। खुद बिमल गुरुंग का भी कमोबेश ऐसा ही हाल है।‌

अपनों से भी है भाजपा को चुनौती

इधर, हाल ही में, चंद महीने पहले ही, भाजपा के अपने अंदरूनी संगठन में भी काफी कलह मची थी। दार्जिलिंग जिले के दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र समेत सिलीगुड़ी समतल क्षेत्र में भी भाजपा की विभिन्न इकाइयों की विभिन्न स्तर की कमेटियों के लगभग 50 पदाधिकारियों ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था। यहां तक कि दार्जिलिंग जिला व इसके सिलीगुड़ी महकमा अंतर्गत फांसीदेवा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक दुर्गा मुर्मू ने भी भाजपा की सिलीगुड़ी संगठन जिला कमेटी के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। सिलीगुड़ी संगठन जिला कमेटी व इससे संबद्ध विभिन्न इकाइयों से 50 से अधिक पदाधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं। गत 6 अगस्त 2023 को जब से माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी के विधायक आनंदमय बर्मन को भाजपा की सिलीगुड़ी संगठन जिला कमेटी के अध्यक्ष पद से हटा कर उनकी जगह भाजपा के स्थानीय किसान मोर्चा के नेता अरुण मंडल को बिठाया गया, तब से ही दलीय नेताओं व कार्यकर्ताओं के इस्तीफे की झड़ी लगी हुई है। हालांकि, बाद में भाजपा के बड़े नेताओं ने हस्तक्षेप कर बहुतों को मना लिया और काफी हद तक डैमेज कंट्रोल किया लेकिन गुटबाजी अभी भी कम नहीं हुई है।

उत्तर बंगाल की अघोषित राजधानी सिलीगुड़ी में, भाजपा का सिलीगुड़ी संगठन जिला इन दिनों सिलीगुड़ी के भाजपा विधायक शंकर घोष और पड़ोसी माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी के भाजपा विधायक आनंदमय बर्मन, दो गुटों में बंटा हुआ है। इसके अलावा ऊपर से लेकर नीचे तक, हर स्तर पर गुटबाजी जोरों पर है।‌ पुराने भाजपाई, नए भाजपाई, शुद्ध भाजपाई, दल-बदलू भाजपाई, ऐसे कई गुटों की गुटबाजी भी है जो पहले नहीं हुआ करती थी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा को अपनी ही गुटबाजी भी भारी पड़ सकती है।

अब बहुत बदल गया है दार्जिलिंग का समीकरण

पश्चिम बंगाल से एक तरह से एक दशक के निर्वासन के बाद पुनः 2009 में यहां भाजपा को उम्मीद की एक लौ देने वाली जो एकमात्र सीट थी वह दार्जिलिंग लोकसभा सीट ही थी। उस चुनाव में यही इकलौती सीट जीत कर लगभग दशक भर के अंतराल के बाद भाजपा बंगाल में अपना खाता खोल पाने में कामयाब हो पाई थी। उससे पहले 1998 व 1999 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में एकमात्र दमदम सीट भाजपा की हुई थी। वह भी 2004 में उसके हाथ से निकल गई जो अब तक वापस न आई। इधर, 2009 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के सहारे की बदौलत जो उसने एकमात्र दार्जिलिंग सीट जीत कर पुनः बंगाल में अपना खाता खोला तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 2014 में दार्जिलिंग के साथ ही साथ आसनसोल जीत कर भाजपा बंगाल में एक से दो हो गई। फिर, 2019 में तो वह बंगाल में 2 से बढ़ कर 18 हो गई। इस दौरान गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन की बदौलत दार्जिलिंग में जीत की हैट्रिक भी लगा ली। अब चौथी बार भी वह दार्जिलिंग में ताल ठोके हुए है लेकिन दार्जिलिंग की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रह गई है। समीकरण बहुत बदल गया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा हाशिए पर चला गया है। नई-नई शक्तियां उभर आई हैं। वर्ष 2009, 2014 और 2019 लगातार तीनों लोकसभा चुनाव दार्जिलिंग में भाजपा ही जीती। यहां तक कि वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी दार्जिलिंग जिले की सभी पांच विधानसभा सीटें भाजपा की ही झोली में गईं। केवल, दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत ही पड़ने वाले कालिम्पोंग जिले की एकमात्र विधानसभा सीट कालिम्पोंग विधानसभा सीट और उत्तर दिनाजपुर जिले की चोपड़ा विधानसभा सीट भाजपा नहीं जीत पाई। कालिम्पोंग सीट पर बिनय तामंग गुट के गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के उम्मीदवार रुदेन साडा लेप्चा विधायक निर्वाचित हुए। पर, बाद में वह अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा में शामिल हो गए जो कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस समर्थित है। वहीं, बिनय तामंग तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ कर अब कांग्रेस के हो गए हैं। दूसरी ओर, चोपड़ा की सीट तृणमूल कांग्रेस के हमीदुल रहमान जीते।

इधर, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, दोनों में ही दार्जिलिंग जिला क्षेत्र में सर्वत्र भाजपा की ही एकतरफा जीत हुई। यहां तक कि राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और स्वयं पहाड़ी दल कोई गुल नहीं खिला पाए। मगर, भाजपा का यह विजय रथ अगले ही साल रुक गया जो कि अब तक रुका ही हुआ है। वर्ष 2022 में हुए सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव और सिलीगुड़ी महकमा परिषद चुनाव दोनों में ही भाजपा चारों खाने चित हो गई। इन दोनों चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई। वह भी इतिहास में पहली बार 2022 के चुनाव में ही ऐसा हुआ कि तृणमूल कांग्रेस ने सिलीगुड़ी नगर निगम और सिलीगुड़ी महकमा परिषद दोनों पर पूर्ण बहुमत से एकतरफा जीत हासिल की। इतना ही नहीं, वर्ष 2022 में ही हुए दार्जिलिंग नगर पालिका चुनाव और दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) चुनाव, दोनों में ही भाजपा का कमल नहीं खिल पाया। दार्जिलिंग नगर पालिका पर पहाड़ की एकदम नई उभरी, अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’ की जीत हुई। हालांकि, फिर हाम्रो पार्टी के पार्षदों को अपने पाले में कर ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के सहयोगी अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) ने दार्जिलिंग नगर पालिका पर अपना कब्जा कर लिया। इधर, हाम्रो पार्टी के अजय एडवर्ड कांग्रेस के साथ हो लिए हैं। वहीं, जीटीए चुनाव भी बीजीपीएम ही जीता। फिर, जुलाई-2023 में हुए पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में भी राज्य भर की भांति पूरे उत्तर बंगाल में भी भाजपा की करारी हार हुई। दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र में तो दर्जन भर दलों के साथ महागठबंधन बना कर चुनाव लड़ने के बावजूद उसका सिक्का नहीं चल पाया। अब तो उस महागठबंधन के भी अनेक पहाड़ी दल भाजपा से विमुख हो चुके हैं। इन तमाम परिदृश्यों व बदलते समीकरणों को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों का यही आकलन है कि लोकसभा चुनाव 2024 में दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर भाजपा का कमल खिल पाना पहले जैसा आसान नहीं रहने वाला है।

अब आगे की राह, 2024 में कौन?

अब जबकि 2024 का लोकसभा चुनाव शुरू हो गया है तो यह सवाल बड़ा मौजूं है कि इस चुनाव में दार्जिलिंग से सांसद कौन होगा? इस बारे में राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार ‘भूमिपुत्र’ बनाम ‘बाहरी’ का मुद्दा अहम रहेगा।‌ यही वजह है कि ‘भूमिपुत्र’ के समीकरण को महत्वपूर्ण देखते हुए पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने दार्जिलिंग से ‘भूमिपुत्र’ पूर्व प्रशासनिक अधिकारी गोपाल लामा को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भी ‘भूमिपुत्र’ समीकरण की महत्ता को समझते हुए अपने सहयोगी हाम्रो पार्टी के मुखिया अजय एडवर्ड को अपना उम्मीदवार बनाया है जिन्हें कांग्रेस को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और उसके वाममोर्चा का भी समर्थन है। वहीं, भाजपा ने अपने निवर्तमान सांसद राजू बिष्ट को ही पुनः उम्मीदवारी दी है जो कि हैं तो गोरखा ही लेकिन दार्जिलिंग नहीं बल्कि मणिपुर मूल के हैं। इधर, सर्वोपरि यह कि खुद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के कर्सियांग से भाजपा विधायक बी.पी. बजगाईं ने अपने ही दल भाजपा से दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट के बारे में बार-बार ‘बाहरी-बाहरी’ का राग अलाप कर अब उनके ही खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। अब आगे क्या होगा? यह तो वक्त ही बताएगा‌।

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