अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में एक बुजुर्ग सफ़दर अली पर छुट्टे कुत्तों के एक समूह ने हमला कर दिया। इससे उनकी मौत हो गई। इस घटना पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अलीगढ़ नगर निगम को नोटिस जारी किया। इसके बाद अलीगढ़ नगर निगम हरक़त में आया और एएमयू परिसर में छुट्टे कुत्तों को पकड़ने के लिए एक टीम भेजी गई।
इन्सानों पर कुत्तों के हमलों से हुई मौत की यह कोई पहली घटना नहीं है। भारत में साल 2019 से 2022 के बीच आवारा कुत्तों के काटने की 1.6 करोड़ घटनाएँ हुईं। यह जानकारी भारतीय संसद में दर्ज़ है। सामान्य रूप से कुत्तों द्वारा इन्सानों को काटने, गाड़ियों का आक्रामक रूप से पीछा करने, इन्सानों द्वारा छुट्टे कुत्तों को ज़हर देकर मार देने, उन पर गाड़ियाँ चढ़ा देने, पत्थर मारने जैसी घटनाएँ लोगों की आँखों के सामने से गुजर कर रह जाती है। अक्सर नागरिक समाज और उत्तरदायी संवैधानिक संस्थाएँ इन मामलों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़े रहती है।
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जानवरों के जन्म-नियंत्रण की एक और नियमावली अधिसूचित
बीते दिनों केन्द्र सरकार ने पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 अधिसूचित कर दी है। यह नियमावली उच्चतम न्यायालय में दायर रिट याचिका में जारी दिशा-निर्देशों के आलोक में अधिसूचित की गई है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर रिट के दो मुख्य पक्षकार भारतीय जीव-जंतु कल्याण बोर्ड और पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स रहे। भारतीय जीव-जंतु कल्याण बोर्ड एक वैधानिक परामर्शदात्री संस्था है जिसका काम देश में जीव-जंतु कल्याण कानूनों पर सलाह देना और देश में पशु कल्याण को प्रोत्साहित करना है। वहीं, पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स एक गैर सरकारी संगठन है।
क्या कहती है नई पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023
पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों को लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय संस्थाओं जैसे नगर निगम, नगर परिषद और पंचायतों की है। नई नियमावली में स्थानीय स्तर पर पशु जन्म नियंत्रण केन्द्र जैसे कुक्कुरशाला (केनल), छुट्टे कुत्तों के परिवहन के लिए जरूरी वाहन, सर्जरी सुविधा से लैस एक मोबाइल ऑपरेशन थिएटर वैन का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त पशु जन्म नियंत्रण केन्द्र के अंदर पशु शिकायत प्रकोष्ठ और स्थानीय पशु जन्म नियंत्रण निगरानी समिति के गठन का प्रावधान किया गया है। स्थानीय पशु जन्म नियंत्रण निगरानी समिति का काम पशु जन्म नियंत्रण और रेबीज़ उन्मूलन कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है।
नई नियमावली में कुत्तों को बिना नए स्थानों पर बसाए लोगों और छुट्टे कुत्तों के बीच के संघर्षों से निपटने संबंधी दिशा-निर्देशों जारी किए गए हैं। इसके साथ ही पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों के जरिये छुट्टे कुत्तों का बंध्याकरण, रेबीज़ रोधी टीकाकरण व पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम को साथ-साथ चलाए जाने सम्बन्धी दिशा-निर्देशों का प्रावधान है।
पूर्णिया नगर निगम क्षेत्र से नदारद पशु जन्म नियंत्रण व्यवस्था
पूर्णिया निगम क्षेत्र के दायरे में रहने वाले आवाला कुत्तों की वास्तविक संख्या से जुड़ा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, न ही उनके जन्म और मृत्यु से जुड़ा कोई आंकड़ा निगम कार्यालय में संधारित करने की जानकारी नगर निगम, पूर्णिया और जिला पूर्णिया की आधिकारिक वेबसाइट पर मौज़ूद है। छुट्टे कुत्तों के बंध्याकरण और टीकाकरण की योजना का कोई प्रस्ताव या बीते साल में अमल में लाई गई योजनाओं की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। निगम क्षेत्र की गलियों व सड़कों पर रहते-घूमते ऐसे कुत्तों और मानवों के बीच के संघर्ष का आंकड़ा भी पूर्णिया नगर निगम और जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।
क्या कहते हैं पशुपालन अधिकारी व पशु अस्पताल के डॉक्टर
बिहार सरकार का एक विभाग विशेष रूप से राज्य में पशुओं व मछलियों के नाम पर अस्तित्व में है जिसे पशु व मत्स्य संसाधन विभाग के नाम से जाना जाता है। इसके मुख्य कामों में पशुपालन क्षेत्र के तहत शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखना शामिल है। आम भाषा में इस विभाग का काम जानवरों की स्वास्थ्य देखभाल, रोग निदान कार्यक्रम और पशु कल्याण जैसी गतिविधियाँ संचालित करना है। हालांकि, इस विभाग के केन्द्र में आर्थिक रूप से फायदेमंद पशु हैं। छुट्टे या बेघर कुत्ते विभाग के कार्यों के दायरे में नहीं आते।
बक़ौल जिला पशुपालन अधिकारी, पूर्णिया डॉ. संजय कुमार, ‘’पशु जनसंख्या नियंत्रण नियमावली, 2023 से जुड़ा पत्र हमारे कार्यालय को प्राप्त नहीं हुआ है। ऊपर से जो भी आदेश आएगा, उसका अनुपालन किया जाएगा।‘’
वहीं, अनुमंडलीय पशु औषधालय, पूर्णिया में कार्यरत डॉक्टर प्रमोद कुमार मेहता बताते हैं, ‘’अनुमंडल औषधालय में अपने मालिक के साथ आए जानवरों का उपचार और टीकाकरण होता है। इसके लिए ऊपर से समय का निर्धारण कर हमें निर्देशित किया जाता है।“ छुट्टे कुत्तों को रेबीज़ रोधी टीका लगाने के बाबत पूछे जाने पर वह कहते हैं, ‘’यह टीका हमारे औषधालय में मिलने वाली दवाओं की सूची में भी शामिल नहीं है। कोई जरूरतमंद बाहर से खरीद कर लाता है तो पर्चा देख कर हम लगा देते हैं।‘’
फिलहाल, पशुपालन विभाग के पशु औषधालय, पूर्णिया में नि:शुल्क वितरण के लिए पशुओं से जुड़े 50 तरह की दवाओं की सूची बनी हुई है जिनमें से 22 उपलब्ध हैं। वहीं, रोग से बचाव के लिए टीकाकरण पर जोर देते विभागीय विज्ञापन में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बाछी और पाड़ी को जगह दी गई है। कुत्तों, विशेषकर छुट्टे कुत्तों के टीकाकरण से जुड़ी लेशमात्र जानकारी भी विज्ञापन में जगह पाने में नाकाम रही है।
पशु जन्म नियंत्रण की पुरानी नियमावली और कोताही
संविधान का अनुच्छेद 51 ए(जी) और 51 ए(एच) भारतीय नागरिकों के लिए कुछ कर्तव्यों का प्रावधान करती है। इसके तहत हर भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित रखे और उसमें सुधार करे। इसके साथ ही सभी जीव-जंतुओं के लिए सहानुभूति व संवेदनशीलता का भाव रखना भी हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है।
अब तक इन संवैधानिक प्रावधानों, पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम और उच्चतम न्यायालय के न्यायादेश के फलस्वरूप, पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियमावली, 2001 अस्तित्व में रही। पुरानी नियमावली में छुट्टे कुत्तों के काटने की शिकायत प्राप्त होने पर मानक एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिव प्रोसीज़र) अपनाने और राज्यों में राज्य पशु कल्याण बोर्ड के गठन का प्रावधान था। हालांकि, ये सब व्यवस्थाएँ धरातल पर हुबहू वैसी उतरती नहीं देखी गई जैसीसरकारी काग़ज़ों में दर्ज़ है।
साल 2002 में सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव ने बिहार में राज्य पशु कल्याण बोर्ड और सभी 38 जिलों के जिला पदाधिकारियों की अध्यक्षता में पशु कल्याण समिति के गठन की दिशा में कदम उठाने की बात कही थी। आज तक इस दिशा में जमीन पर साफ़-साफ़ दिखने वाली पहल का इंतजार है। खुद, भारत के जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के सचिव यह स्वीकारते हैं कि देश में पशु कल्याण से जुड़े कानूनों के उचित क्रियान्वयन का अभाव है। वह यह भी स्वीकारते हैं कि नागरिकों और सरकारी कर्मियों के बीच पशु कल्याण से जुड़े विषयों में जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी है। बावज़ूद इसके देश और बिहार जैसे राज्य में पशु कल्याण कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने, नागरिकों और सरकारी कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण मुहैया करने, छुट्टे कुत्तों की समस्याओं का हल करने की दिशा में व्यापक व जरूरी व्यवस्था बहाल करने के प्रति सरकारी उदासीनता का नागरिक समाज गवाह है।
बिहार में पशु कल्याण से जुड़े मसलों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से प्राप्त दिशा-निर्देशों के आलोक में दबाव जन्य सुगबुगाहट बस देखने-दिखाने के लिए है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छुट्टे पशुओं के जन्म नियंत्रण, टीकाकरण आदि के लिए बजट में कितनी राशि का प्रावधान किया गया है! कुत्तों और इन्सानों के बीच संघर्ष कम करने के प्रति सरकारी संस्थाओं की संवेदनशीलता का आईना नगर निगम, नगर परिषद और पंचायतों को बीते वर्षों में इस मद में आवटित राशि की मात्रा है। बजटीय आवंटन के अभाव में पशु जन्म नियंत्रण की नई नियमावली का हश्र ढ़ाक के तीन पात जैसा ही होना है। सम्भवत: जिला पूर्णिया भी इसके लिए तैयार है।
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