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गांव वालों का नाव ही एकमात्र सहारा है, पूरा दिन गुज़र जाता है नदी पार करने में

पुर्णिया ज़िले का पूर्वी भाग हर साल नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुसलाधार बारिश से सैलाब का दंश झेलता है। फिर चाहे बायसी हो अमौर हो या फिर बैसा का इलाका। इन इलाकों में नेपाल के तराई क्षेत्रों में बारिश होने से काफी प्रभाव पड़ता है ।

Syed Tahseen Ali is a reporter from Purnea district Reported By Syed Tahseen Ali |
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पुर्णिया ज़िले का पूर्वी भाग हर साल नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुसलाधार बारिश से सैलाब का दंश झेलता है। फिर चाहे बायसी हो अमौर हो या फिर बैसा का इलाका। इन इलाकों में नेपाल के तराई क्षेत्रों में बारिश होने से काफी प्रभाव पड़ता है ।

सैलाब से इस इलाके में आवाजाही ठप पड़ जाती है और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए खुद के बनाए जुगाड़ ही काम आते हैं। सैलाब में ग्रामीण इलाकों में नाव का सफर ही एकमात्र विकल्प बचता है ।

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अमौर का यह खाड़ी पुल ग्रामीणों को हर दिन अपनी जरूरत का अहसास दिलाता है। इस एहसास को आज तक सरकार या उसके प्रतिनिधि समझ नहीं पाए हैं। नतीजे में खाड़ी पुल के नीचे बने घाट में नाव से पार होने में पूरा दिन खत्म हो जाता है। यह वही खाड़ी पुल है जो दशकों से आधा-अधूरा नदी के बीच लटक रहा है ।


नाव पर नदी पार कर रहे तनवीर आलम ने कहा कि पुल पार करने में पूरा दिन निकल जाता है। उन्होंने बताया कि वह 10 साल से ऐसे ही नाव पर पुल पार कर रहे हैं।

10 साल से नाव चला रहे मो. वारिस ने बताया कि प्रतिदिन नाव से लगभग एक हज़ार लोग नदी पार करते हैं। उन्होंने कहा कि मरीजों को भी नांव से नदी पार कर ही हॉस्पिटल जाना पड़ता है और इस सफर में सबसे अधिक परेशानी गर्ववती महिलाओं को होती है।

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सैयद तहसीन अली को 10 साल की पत्रकारिता का अनुभव है। बीते 5 साल से पुर्णिया और आसपास के इलाकों की ख़बरें कर रहे हैं। तहसीन ने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई की है।

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