Main Media

Get Latest Hindi News (हिंदी न्यूज़), Hindi Samachar

Support Us

‘कैश फॉर क्वेरी’ मामले में सांसदी गंवाने वाली महुआ मोइत्रा कौन हैं?

संसद सदस्यता रद्द होने के बाद महुआ मोइत्रा ने मीडिया के सामने भाजपा-नीत केंद्र सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा, “मैं अभी 49 साल की हूं। मैं आपके खिलाफ 30 साल और लड़ूंगी, संसद के अंदर और बाहर, गटर में और सड़कों पर। मैं आपका अंत देखूंगी। यह आपके अंत की शुरुआत है। हम वापस आएंगे और आपका अंत देखेंगे।”

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
who is mahua moitra who lost her loksabha membersip in cash for query case

तृणमूल कांग्रेस की फायरब्रांड नेता महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता आखिरकार रद्द हो गई। उन पर कार्रवाई की तलवार तब से ही लटक रही थी, जब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने उन पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का संगीन आरोप लगाया था।


उन्होंने आरोप लगाया कि नकद और उपहार के बदले महुआ मोइत्रा ने हीरानंदानी समूह को अपना लागिन व पासवर्ड दिया ताकि समूह लोकसभा में अपने मन का सवाल पूछ सके।

आरोप सामने आने के बाद मामले की जांच का जिम्मा एथिक्स कमेटी को सौंपा गया था। एथिक्स कमेटी ने 500 पन्नों की जांच रिपोर्ट लोकसभा को सौंपी। एथिक्स कमेटी ने अपनी जांच में महुआ मोइत्रा को दोषी पाया और उनकी संसद सदस्यता रद्द कर देने की अनुशंसा की। लोकसभा में इसको लेकर वोटिंग हुई, जिसमें बहुसंख्यक सदस्यों ने संसद सदस्यता रद्द करने के पक्ष में वोट डाले और इस तरह उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई।


एथिक्स कमेटी की त्वरित जांच और कार्रवाई पर सवाल भी उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि अगर महुआ मोइत्रा ने कैश के बदले सवाल पूछे तो वो कैश कब और किसके अकाउंट में गया, इसकी कोई तफ्तीश नहीं की गई। महुआ मोइत्रा ने एथिक्स कमेटी के साथ सवाल जवाब के बाद यह आरोप लगाया था कि उनसे ऊल-जुलूल सवाल किये गये और जांच पैनल स्त्री द्वेषी हैं।

संसद सदस्यता रद्द होने के तुरंत बाद महुआ मोइत्रा ने मीडिया के सामने विस्फोटक बयान दिये, जो पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के 30 साल पहले के वक्तव्य की याद दिलाती है, जब उन्हें कोलकाता स्थित प्रशासनिक मुख्यालय राइटर्स बिल्डिंग से धक्का देकर बाहर निकाल दिया गया था। उस वक्त वह यूथ कांग्रेस की लीडर और केंद्रीय मंत्री थीं।

राइटर्स बिल्डिंग से धक्के मारकर निकाल दिये जाने के बाद ममता बनर्जी ने कसम ली थी कि अब वह राइटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री बनकर ही दाखिल होंगी। उनकी यह कसम 2011 में पूरी हुई, जब तृणमूल कांग्रेस ने तीन दशक तक पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने वाले वाममोर्चा को हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली।

संसद सदस्यता रद्द होने के बाद महुआ मोइत्रा ने मीडिया के सामने भाजपा-नीत केंद्र सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा, “मैं अभी 49 साल की हूं। मैं आपके खिलाफ 30 साल और लड़ूंगी, संसद के अंदर और बाहर, गटर में और सड़कों पर। मैं आपका अंत देखूंगी। यह आपके अंत की शुरुआत है। हम वापस आएंगे और आपका अंत देखेंगे।”

महुआ मोइत्रा के वक्तव्य का टोन भले ही ममता बनर्जी के 1993 के वक्तव्य से मिलता-जुलता है, लेकिन दोनों की राजनीतिक यात्राएं बिल्कुल अलग हैं।

बेहद गरीब परिवार से आने वाली ममता बनर्जी ने लम्बे समय तक सड़कों पर संघर्ष किया। वह धरने पर बैठीं, भूख-हड़ताल कीं, प्रतिवाद रैलियों का नेतृत्व किया और पुलिस की लाठियां भी खाईं। इस तरह उन्होंने एक संघर्षशील, जुझारू और मास लीडर की अपनी मजबूत छवि गढ़ी। इतने वर्षों की राजनीति के बावजूद उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है और विपक्षी पार्टियां भी यह स्वीकार करती हैं।

इसके उलट महुआ मोइत्रा का राजनीति में पदार्पण बेहद आसानी से हुआ और इसमें उनकी धनाढ्य पृष्ठभूमि, विदेश में पढ़ाई, शानदार नौकरी और नाटकीय भाषणों की अहम भूमिका रही। हालांकि यह भी सही है कि राजनीति में उनका कोई गॉडफादर नहीं रहा और राजनीति में आने वाली वह अपने परिवार की पहली पीढ़ी हैं।

49 वर्षीय मोइत्रा का जन्म 12 अक्टूबर 1974 को असम में हुआ। बहुत छोटी थीं, तभी परिवार के साथ कोलकाता आ गईं। शुरुआती पढ़ाई कोलकाता से करने के बाद वह उच्च शिक्षा लेने अमेरिका गयी। उच्च शिक्षा लेने के बाद उन्होंने न्यूयॉर्क शहर और लंदन में एक वित्तीय कंपनी में बतौर इन्वेस्टमेंट बैंकर के बतौर अपने करियर की शुरुआत की।

साल 2009 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हुईं और जल्दी ही राहुल गांधी के विश्वस्त लोगों की फेहरिस्त में जगह पा गईं। मगर, कांग्रेस में अपना कोई भविष्य नहीं भांपकर उन्होंने 2010 में तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया और पार्टी में विभिन्न पदों पर रहीं। साल 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें नदिया जिले के करीमपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया। इस चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कृष्णानगर से उन्हें टिकट दिया, तो लगभग 63 हजार वोटों के मार्जिन से उन्होंने जीत दर्ज की। लेकिन, राजनीतिक तौर पर गुमनाम ही रहीं।

2019 के भाषण से मिली लोकप्रियता

साल 2019 में संसद में अपने पहले उग्र भाषण से इंटरनेट पर छा गई। सोशल मीडिया पर उनका नाम ट्रेंड करने लगा। इस भाषण में उन्होंने एनआरसी की तीखी आलोचना करते हुए फासीवाद के सात संकेत गिनाये थे।

सोशल मीडिया और लिबरल तबके में महुआ मित्रा काफी लोकप्रिय हैं। अक्सर उनके भाषण सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं, लेकिन अपने लोकसभा क्षेत्र में उनको लेकर लोगों में बहुत अच्छी राय नहीं है।

कृष्णा नगर के एक स्थानीय पत्रकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “अपने संसदीय क्षेत्र में उन्होंने पिछले साढ़े चार सालों में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है। उनका क्षेत्र दौरा भी कम ही होता है। हां, पार्टी ने जिले की जिम्मेवारी जब उन्हें सौंपी, तो उन्होंने नियमित आना शुरू किया।”

वह आगे बताते हैं, “जिस तरह ममता बनर्जी तक आम लोगों की पहुंच दुश्वार है, उसी तरह कृष्णानगर के लोगों के लिए भी महुआ मोइत्रा से मुलाकात लगभग नामुमकिन होता है। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर तापस पाल यहां से दो बार सांसद थे, लेकिन वह जनता के लिए उपलब्ध रहते थे। यही स्थिति पार्टी के जमीनी स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ भी है। महुआ मोइत्रा कृष्णा नगर के जमीनी कार्यकर्ताओं व नेताओं को भी कोई खास तवज्जो नहीं देती हैं।”

क्या भाजपा को होगा नुकसान?

कोलकाता के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, “महुआ मोइत्रा को राजनीति में एंट्री कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिलाई थी। लेकिन मोइत्रा को लगा कि कांग्रेस में उनका भविष्य नहीं है, इसलिए उन्होंने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर लिया।”

“महुआ मोइत्रा की यूएसपी ये है कि वह बहुत अच्छी ओरेटर हैं और साथ ही तीन भाषाओं – बांग्ला, अंग्रेजी और हिन्दी पर समान अधिकार रखती हैं। इसी की बदौलत तृणमूल कांग्रेस में वह कम समय में ही काफी ऊंचाई पर पहुंच गईं,” उन्होंने कहा।

जानकार बताते हैं कि पार्टी के भीतर ही एक तबका उन्हें पसंद नहीं करता है और वह नहीं चाहता कि मोइत्रा को दोबारा लोकसभा का टिकट दिया जाए, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के लिए मोइत्रा को टिकट देना अब मजबूरी बन गई है क्योंकि पार्टी को यह साबित करना होगा कि महुआ मोइत्रा ने कुछ अनैतिक नहीं किया है और जनता का समर्थन उन्हें मिला हुआ है। इसके लिए जरूरी है कि पार्टी उनके समर्थन में खड़ी रहे।

Also Read Story

बिहार उपचुनाव परिणाम राजद के लिए खतरे की घंटी!

तरारी उपचुनाव: क्या भाजपा व भाकपा-माले के मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएगा जन सुराज?

पश्चिम बंगाल: गोआलपोखर के पूर्व विधायक हफ़ीज़ आलम सैरानी का निधन

बिहार उपचुनाव: ‘नई राजनीति’ का दावा करने वाले PK सियासत की पुरानी राह पर क्यों चल पड़े?

सहरसा में CPI ने 17 सूत्री मांगों के साथ विशाल प्रतिरोध मार्च निकाला, थाना प्रभारियों के खिलाफ नाराजगी

AIMIM नेता अख्तरुल ईमान ने वक्फ संशोधन बिल को बताया भारतीय मुसलमानों के ताबूत में आखिरी कील

जनसंख्या नियंत्रण कानून के समर्थन में कांग्रेस विधायक इजहारुल हुसैन, कहा – “मात्र एक बच्चा हो”

स्कूल से कॉलेज तक टॉपर रहे CPI(M) नेता सीताराम येचुरी राजनीति में कैसे आये?

‘जेल में 90% आदमी हमारे लोग हैं’, राजद विधायक इज़हार असफी की शिक्षक को धमकी

ऐसा ही हुआ भी। तृणमूल सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में दोबारा टिकट दिया जाएगा।

2024 के लोकसभा चुनाव में अब महज 4-5 महीने ही बाकी हैं। ऐसे में मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द करना भाजपा के लिए बहुत फायदेमंद नहीं लगता है।

कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार सिंह मानते हैं कि महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द करना भाजपा के लिए कम से कम पश्चिम बंगाल में तो राजनीतिक तौर पर नुकसानदायक होगा।

“पश्चिम बंगाल मातृ प्रधान समाज रहा है। महुआ मोइत्रा पर कार्रवाई को यहां के लोग बंगालन महिला पर हमले के तौर पर देखेंगे, जिसके चलते चुनाव में मोइत्रा को फायदा मिलेगा और भाजपा को नुकसान हो सकता है। 3-4 महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होगा, ऐसे में यह कार्रवाई हड़बड़ी में और बिना सोचे-समझे की गई, लगती है,” संतोष कुमार सिंह कहते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “इस कार्रवाई से ऐसा लगता है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब तक पश्चिम बंगाल की जनता की नब्ज नहीं पकड़ सका है।”

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

Related News

कटिहार के कांग्रेस कार्यालय राजेंद्र आश्रम का होगा कायाकल्प, कटिहार सांसद ने लिया जायजा

वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोध में AIMIM की बैठक, “वक़्फ़ ज़मीनों पर क़ब्ज़ा की है कोशिश”

उत्तर बंगाल: अलग राज्य का मुद्दा, राजनीति और हकीकत

जन सुराज ने बिना सहमति के जिला कार्यवाहक समिति में डाले नेताओं के नाम

राजद के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने दिया पार्टी से इस्तीफा

राज्यसभा उपचुनाव: एनडीए की तरफ़ से उपेन्द्र कुशवाहा और मनन कुमार मिश्र ने भरा पर्चा

जन सुराज बनने से पहले ही संगठन के अंदर विरोध शुरू, गुस्से में हैं कार्यकर्त्ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

चचरी के सहारे सहरसा का हाटी घाट – ‘हमको लगता है विधायक मर गया है’

अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर प्रदर्शन – सिर्फ 400 रुपया पेंशन में क्या होगा?

फिजिकल टेस्ट की तैयारी छोड़ कांस्टेबल अभ्यर्थी क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?

बिहार में पैक्स अपनी ज़िम्मेदारियों को निभा पाने में कितना सफल है?

अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती किशनगंज की रमज़ान नदी