संसद में राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा द्वारा दलित कवि ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ पढ़ने पर बिहार की राजनीति में घमासान मच गया है।
बिहार में विपक्षी पार्टियों, खास तौर से भाजपा ने तो इसके लिए राजद की आलोचना की ही है, राजद के भीतर भी इसको लेकर विरोध के स्वर उठने लगे हैं और सहयोगी पार्टी जदयू ने भी इसको लेकर आपत्ति दर्ज की है।
हालांकि राजद ने इस पर अपना स्टैंड साफ कर दिया है। गुरुवार की शाम पटना में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पहुंचे राजद सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पूरे विवाद पर मनोज झा का पक्ष लेते हुए कहा कि वह विद्वान आदमी हैं और उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है।
क्या है मामला?
दरअसल, पिछले दिनों मनोज झा महिला आरक्षण बिल पर अपनी बात संसद में रख रहे थे। इसी संदर्भ में उन्होंने दलित कवि ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ कविता पढ़ी। कविता कुछ यूं है –
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फसल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मोहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गांव?
शहर?
देश?
ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित समुदाय से आते हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में साल 1950 में हुआ। उनका सामना बचपन में ही छुआछूत और सामंतवाद से हुआ।
वह जब महाराष्ट्र में गये, तो वहां दलित साहित्यकारों से उनका संपर्क हुआ। उनके सानिध्य में ही वाल्मीकि की रचना-दृष्टि में बदलाव आया और उन्होंने अपने और अपने समुदाय के लोगों के प्रतिदिन के संघर्षों को कागज पर उतारना शुरू किया।
वह ज्यादा से ज्यादा दलित साहित्यकारों के सामने आने के पक्षधर थे क्योंकि उनका मानना था कि दलित ही एक दलित के उत्पीड़न को सही तरीके से लिख सकता है।
अपने जीवनकाल में उन्होंने पांच किताबें लिखी, जिनमें कविता संग्रह, कहानी संग्रह और आत्मकथा ‘जूठन’ शामिल हैं। ‘जूठन’ उनकी सर्व लोकप्रिय कृति है, जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
ओमप्रकाश वाल्मीकि का निधन साल 2013 में 63 साल की उम्र में हो गया।
‘ठाकुर का कुआं’ कविता को लेकर स्क्रॉल वेबसाइट में जेम्स एडवर्ड्स लिखते हैं, “ठाकुर का कुआं कविता, चंचलता पूर्वक, फिर भी गंभीर रूप से, भारतीय ग्रामीण जीवन में काम और स्वामित्व की अवधारणाओं की पड़ताल करती है। यह दलित उत्पीड़न पर प्रकाश डालती है जहां जाति और सामंतवादी संरचनाएं एक दूसरे से मिलती हैं। यह रिश्तों और स्वामित्व की अवधारणाओं को माध्यम बनाकर पाठक को गाँव की यात्रा पर ले जाती है।”
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वह आगे लिखते हैं, “कविता में गांव के मुख्य जमींदार ठाकुर की कई चीजों की सूची दी गई है। यह इस बारे में बात करता है कि भले ही एक दलित काम कर सकता है, लेकिन पुरस्कार ठाकुर को मिलता है और यह पाठक के सामने यह सवाल छोड़ती है कि दलितों के लिए अपने पास रखने के लिए क्या, यदि कुछ भी बचा है, तो छोड़ दिया जाता है।”
लेखक कंवल भारती इस कविता पर अपनी टिप्पणी में लिखते हैं, “ठाकुर का कुआं जाति व्यवस्था का प्रतीक नहीं बल्कि सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था का प्रतीक है। कुआं का अर्थ है पानी, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और जीवन के ये सारे संसाधन इसी सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के हाथों में है। उत्पादन करने वाली जातियां और मेहनतकश लोग सब के सब इसी व्यवस्था के गुलाम हैं।”
मनोज झा ने महिला आरक्षण बिल पर अपनी बात रखते हुए लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान करने की वकालत करते हुए भगवती देवी और फूलन देवी का उदाहरण दिया। भगवती देवी गया जिले की रहने वाली थी। वह मुसहर समुदाय से थीं और पत्थर तोड़ती थीं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया था और वह चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं।
मनोज झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि भगवती देवी और फूलन देवी जैसी महिलाएं दोबारा संसद नहीं पहुंची क्योंकि व्यवस्था उन जैसी महिलाओं को लेकर संदेवनशील नहीं है।
इसके बाद झा ने ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता का जिक्र करते हुए कहा, “यह किसी जाति विशेष लिए नहीं है। हमारे भीतर एक ठाकुर है, जो न्यायालयों में बैठा है, विश्वविद्यालयों में बैठा है, संसद की दहलीज को वह चेक करता है।”
इसके बाद वह कविता पढ़ते हैं। कविता पढ़ने के बाद वह कहते हैं, “एक बार फिर मैं स्पष्ट करता हूं कि वो ठाकुर मुझमें है, संसद में है, वह विधायिका को कंट्रोल करता है. उस ठाकुर को मारो जो हमारे अंदर है।”
क्यों हो रहा है विरोध?
मनोज झा की पढ़ी गई कविता धीरे धीरे वायरल होने लगी, तो राजपूत समुदाय से आने वाले नेताओं ने इसे राजपूत समाज पर हमले के तौर पर देखा और मनोज झा की तीखी आलोचना की।
यही नहीं, विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए राजद से माफी मांगने को कहा।
भाजपा के राज्यसभा सांसद व बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा, “राजद सांसद मनोज झा ने जिस तरह से नाम लेकर ठाकुर जाति का अपमान किया है, उसके लिए पार्टी के नेता तेजस्वी यादव को क्षमा मांगनी चाहिए। राजद नेता के बयान से यह भी साफ हो गया है कि ए टू जेड का दावा उसका झूठा है। मनोज झा ने महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए जो कविता पढ़ी, वह ठाकुर जाति के लोगों के प्रति दुराग्रह और अपमान से भरी हुई है।”
भाजपा विधायक राघवेंद्र प्रताप ने मनोज झा को लेकर कहा कि एक सेकेंड नहीं लगेगा और ठाकुर उनकी गर्दन उतार कर उनके हाथ में रख देंगे।
वहीं, जदयू नेता संजय सिंह ने कहा कि राजपूत आग की तरह है अतः किसी को इसे भड़काने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर जातिगत ध्रुवीकरण के लिए इस मुद्दे को उछाला जा रहा है।
भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया को राजपूत वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश का हिस्सा बताया जा रहा है, तो वहीं, राजद के बचाव के पीछे पिछड़े तबके के वोट को सुरक्षित रखने का हथकंडा कहा जा रहा है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद बेवजह है और इससे किसी भी पार्टी के वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार दीपक मिश्रा ने कहा, “बिहार में 30-35 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां राजपूत वोटर निर्णायक होते हैं। ये एक वजह है कि राजपूत के मुद्दे पर सभी पार्टियां बचाव की मुद्रा में रहते हैं। लेकिन, मनोज झा के भाषण में कुछ भी विवादित नहीं था। इसे बेवजह का मुद्दा बनाया जा रहा है।”
ठाकुर वाले इस पूरे विवाद की शुरुआत राजपूत नेता आनंद मोहन सिंह की भड़काऊ प्रतिक्रिया के साथ हुई और धीरे धीरे दूसरी पार्टियां भी इसमें कूद गईं।
आनंद मोहन सिंह, एक दलित आईएएस अफसर की हत्या में दोषी हैं और बिहार सरकार के आदेश पर फिलहाल जेल से बाहर हैं। उन्होंने मनोज झा की तीखी आलोचना करते हुए कहा था, “अगर वह सदन में होते, तो मनोज झा की जुबान खींचकर सदन की कुर्सी की तरफ उछाल देते।”
आनंद मोहन की प्रतिक्रिया को उनकी अपनी राजनीति चमकाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।
“90 के दशक में राजपूत समुदाय के युवाओं में उनको लेकर क्रेज था। लेकिन, समय अब बदल गया है। अब उनके कार्यक्रमों में भीड़ नहीं जुटती है। अतः इस मुद्दे को उछाल कर उन्हें कुछ सियासी फायदा मिल जाएगा, ऐसा नहीं लगता है,” मिश्रा ने कहा।
मगर क्या इसे मुद्दा बनाने से राजद को कोई नुकसान हो सकता है, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता है कि राजद को कोई घाटा होने वाला है।”
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