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सहरसा: संस्कृत उच्च विद्यालय जर्जर, मवेशियों का बसेरा, सरकार की अनदेखी

विद्यालय 90 के दशक में बंद कर दिया गया था, जिसे 2018 में फिर दोबारा शुरू किया गया। फिलहाल, स्कूल में कुल 25 बच्चे नामांकित तो हैं, लेकिन उनके पढ़ने के लिए पेड़ की छाँव के अलावा कोई और जगह नहीं है। स्कूल में केवल 2 शिक्षक हैं।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
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एक तरफ शौचालय की दीवार पर गोबर के थेपले लगे हैं तो दूसरी तरफ क्लासरूम में छात्रों की जगह मवेशी बैठे हैं। यह नज़ारा है सहरसा जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय का। महिषी प्रखंड की महिषी पंचायत का यह विद्यालय सरकारी उदासीनता का शिकार है। जर्जर हो चुकी स्कूल की इमारतों में मवेशियों का बसेरा रहता है जबकि छात्रों को पेड़ की छाँव में बैठना पड़ता है।

विद्यालय 90 के दशक में बंद कर दिया गया था, जिसे 2018 में फिर दोबारा शुरू किया गया। फिलहाल, स्कूल में कुल 25 बच्चे नामांकित तो हैं, लेकिन उनके पढ़ने के लिए पेड़ की छाँव के अलावा कोई और जगह नहीं है। स्कूल में केवल 2 शिक्षक हैं। उनमें से एक जटाशंकर झा ने बताया कि 1960 में स्थापित हुआ यह विद्यालय 90 के दशक तक चला लेकिन किन्ही कारणों से इसे बंद कर दिया गया। 2018 में शिक्षा मंत्री रहे अशोक चौधरी ने स्कूल को दोबारा शुरू करवाया, लेकिन इसकी जर्जर इमारतों के निर्माण की पहल नहीं की गई।

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स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक जटाशंकर झा आगे कहते हैं, 2021 में इस स्कूल के लिए नए भवन का निर्माण हुआ था लेकिन उसकी चाबी उन्हें अब तक नहीं दी गई है। निर्माण के बाद बड़ा सा बोर्ड लगा दिया गया है, लेकिन नई ईमारत बनने के बावजूद उसे स्कूल प्रशासन को अब तक नहीं सौंपा गया है।


प्रधानाध्यापक जटाशंकर की मानें, तो उन्होंने कई बार जिले के इंजीनियर से भवन की चाबी मांगी, लेकिन अब तक उन्हें चाबी नहीं दी गई है।

स्कूल से पंजीकृत ज्यादातर छात्र बाहर से ही पढ़ाई करते हैं, लेकिन कुछ बच्चे ऐसे हैं जो रोज़ाना स्कूल पहुँचते हैं। नौंवीं कक्षा के विद्यार्थी मोनू कुमार ने कहा कि वह रोज़ाना स्कूल आता है और पेड़ की छांव में बैठ कर पढ़ता है।

रिटायर संस्कृत शिक्षक दशरथ झा बलवंत इसी विद्यालय से पढ़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि यह राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय, सहरसा कोसी कमिश्नरी का एकलौता संस्कृत विद्यालय है। प्रशासनिक उदासीनता के कारण आज स्कूल जर्जर हालत में है।

उन्होंने आगे कहा कि, शिक्षा से दूर हो चुके लोग अपने मवेशी स्कूल में बांध देते हैं जिससे स्कूल के प्रांगण में गंदगी फैलती है और पढ़ने का माहौल नहीं बन पाता।

स्थानीय कार्यकर्ता गणेश चौधरी कहते हैं कि कभी इस विद्यालय से पढ़कर संस्कृत के बड़े बड़े विद्वान निकलते थे और आज स्कूल में मवेशी बांधे जाते हैं। उनकी मांग है कि सरकार और प्रशासन जल्द से जल्द नवनिर्मित भवन को स्कूल प्रशासन को सौंप दे।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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