साल 2018 में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उच्चस्तरीय बैठक कर देशभर के रेल मंडलों से मानव रहित रेलवे क्रॉसिंगों को मिशन मोड में हटाने को कहा था। इस आदेश पर युद्ध स्तर पर काम हुआ और 2019 की मीडिया रपटों के मुताबिक, सिर्फ 2018 में सभी 3,478 मानव रहित फाटक हटा दिये गये।
दावा तो यह भी है कि देश में अब कहीं भी मानव रहित फाटक नहीं है। वहां या तो अंडरपास बन गया है या मानव संचालित फाटक हैं। लेकिन, सवाल है कि फाटक की जगह अंडरपास से कितना फायदा हुआ? ‘मैं मीडिया’ ने कुछ अंडरपास का गहन जायजा लिया और पाया कि इससे लोगों को फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है।
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कल्याण गांव अंडर ब्रिज
कटिहार जिले के बलरामपुर प्रखंड अंतर्गत कल्याण गांव में सुल्तानपुर नामक रेलवे गेट हुआ करता था, लेकिन अब वहां रेलवे अंडर ब्रिज बन रहा है जिसका लगभग 80% निर्माण हो चुका है। लेकिन अभी से ही यह रेलवे अंडर ब्रिज स्थानीय लोगों के लिए बहुत बड़ा सर दर्द बन चुका है।
ब्रिज के कनाल में तीन महीने से पानी जमा हुआ है। अंडर ब्रिज के जमे पानी में ट्रैक्टर की धुलाई करते हुए मोहम्मद जाकिर कहते हैं कि यहां इतना पानी है कि हम लोग ट्रैक्टर धुलाई कर लेते हैं। कई गांवों के लोग इस रास्ते का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब बंद है।
साकिर रजा स्थानीय टोटो चालक हैं और साथ में खेती भी करते हैं। उनका कहना है कि अंडर ब्रिज जब से बना है तब से पानी लगा हुआ है और किसानों को परेशानी हो रही है।
मोहम्मद साबिर स्थानीय ग्रामीण हैं। उन्होंने अंडर ब्रिज के पानी को तैर कर पार करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। उन्होंने बताया कि ऊपर से ट्रेन आने का खतरा रहता है इसलिए वह तैर कर पार होने की कोशिश कर रहे थे।
राधा देवी रेलवे अंडरब्रिज से कुछ ही दूरी पर चाय की दुकान चलाती हैं, उनका कहना है कि ब्रिज बनने से पहले रेलवे के अधिकारियों ने कहा था कि जब तक अंडर ब्रिज बनाने का काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक रेलवे गेट को नहीं हटाया जाएगा लेकिन ब्रिज बनने से पहले ही गेट हटा लिया गया।
खेत से फसल लाना मुश्किल
स्थानीय किसान आफताब आलम कहते हैं कि अंडरब्रिज में पानी भरा होने के कारण फसल लाने के लिए कोई रास्ता नहीं है इसलिए धान काटने में लेट हो गया है, कई एकड़ में लगी धान की फसल पक चुकी है जो अब बर्बाद हो रही है।
मो० एहसान स्थानीय ग्रामीण हैं। मैं मीडिया से बात करते हुए बताया कि कई गांव की खेती इस अंडर ब्रिज की वजह से बर्बाद हो रही है। फसल को बर्बाद होता देख गांव वालों ने चंदा कर पानी निकालने के लिए पंप सेट लगाया है क्योंकि रेलवे पानी नहीं निकाल रही है।
हड़दार गांव अंडर ब्रिज
कल्याण गांव से कुछ किलोमीटर दूर बलरामपुर क्षेत्र के ही हड़दार गांव के समीप एक रेलवे अंडर ब्रिज लगभग 3 साल पहले बनाया गया था, जिसके ऊपर शेड नहीं लगा हुआ है और साल के 12 महीने पानी जमा रहता है। यह रास्ता आगे जाकर मुख्यमंत्री सड़क में मिल जाता है, लेकिन लगातार पानी जमा रहने के कारण आवागमन पूरी तरह से बाधित है। लिहाजा ग्रामीण रेलवे पटरी के ऊपर से पैदल आना जाना करते हैं।
चकला सोरेन स्थानीय ट्रैक्टर चालक हैं। वह अक्सर इस रास्ते का इस्तेमाल करते थे, लेकिन 3 साल पहले जब यह अंडरब्रिज बना तब सभी ट्रैक्टर चालकों को पड़ोस के गांव से घूम कर जाना पड़ता है।
मोहम्मद आफताब पास के ही गांव के निवासी हैं। वह बताते हैं कि यहां पानी जमा होने से किसानों को सबसे ज्यादा समस्या हो रही है, क्योंकि पटरी के उस पार हड़दार गांव है, जहां फसल ले जाने के लिए 10 से 12 किलोमीटर घूमकर पलसा गांव होते हुए जाना पड़ता है।
लोहागढ़ा गांव अंडर ब्रिज
बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र का लोहागढ़ा गांव में रेलवे अंडरब्रिज में 6-7 फुट पानी भरा है। ब्रिज के प्रवेश द्वार पर गोबर और जलावन सूख रहा है। ब्रिज के पास गड्ढे में दो मवेशी मरे हुए हैं जिसकी बदबू आने-जाने वालों को नाक बंद करने पर मजबूर कर रही है। रेलवे पटरी के ऊपर से मो. कासिम साइकिल पर सब्जी लेकर आ रहे हैं और कुछ बच्चे साइकिल पार करने में उनकी मदद कर रहे हैं।
कासिम बताते हैं कि दिन में चार बार वह सब्जी बेचने इसी रास्ते से होकर पश्चिम बंगाल के दालकोला जाते हैं। उन्होंने कहा कि अंडरब्रिज में पानी है इसलिए पटरी के ऊपर से आना-जाना करते हैं।
मो० मजरुल स्थानीय ग्रामीण हैं, उन्होंने बताया कि लगभग 3 साल पहले अंडर ब्रिज का निर्माण हुआ था। जब से बना तब से ही यहां पानी लगा हुआ है, ब्रिज के ऊपर छत नहीं है।
गांव के सरपंच मोहम्मद फखरुद्दीन ने मैं मीडिया को बताया कि दालकोला बगल में होने के कारण लगभग 50 गांव के लोग इस रास्ते का इस्तेमाल करते थे। उनका कहना है कि गांव वालों को इस अंडर ब्रिज की जरूरत नहीं थी, लेकिन जब बना दिया, तो यह मुसीबत बन गई है और कई लोग मरते-मरते बचे हैं।
ऐतवारी राय दिन में कई बार इस रास्ते से होकर गुजरते हैं। वह बताते हैं कि ब्रिज के नीचे हमेशा इतना पानी लगा रहता है कि आदमी डूब जाए। बहुत सारे मोटरसाइकिल सवार पानी में गिर जाते हैं। नीचे पानी होने की वजह से मवेशी पटरी के ऊपर से जाते हैं और ट्रेन से कट जाते हैं। हर सप्ताह किसी न किसी पालतू मवेशी की मौत हो जाती है।
सविता देवी एक मजदूर हैं जो रेलवे अंडर ब्रिज के पास के खेतों में मजदूरी करती हैं। उनका कहना है कि अंडर ब्रिज बनने से हम लोगों को खतरा हो गया है। नीचे पानी के कारण रास्ता बंद रहता है मजबूरन पटरी के ऊपर से आना जाना करते हैं बच्चों के ट्रेन की चपेट में आने का खतरा रहता है।
लोहागढ़ा गांव के अब्दुल मतीन पड़ोसी गांव में साइकिल लेकर मजदूरी करने जा रहे थे। ब्रिज के अंदर जमे पानी में गिर कर डूब गए थे। बाद में राहगीरों ने उन्हें पानी से निकाला लेकिन चोट लगने से उनकी कमर टूट गई थी।
स्थानीय ग्रामीण मोहम्मद इलियास बताते हैं कि लगातार चार दिन से दो दो पंप सेट से पानी निकाला जा रहा है लेकिन पानी कम नहीं हो रहा क्योंकि बगल में तालाब और गड्ढा है, पानी वापस फिर से अंडर ब्रिज में आ जाता है। जब भी कभी लोग आवाज उठाते हैं तो रेलवे वाला मशीन भाड़े पर ले कर पानी निकालता है, लेकिन दूसरा दिन फिर से पानी भर जाता है।
क्या कहते अधिकारी
फोन पर हमारी बात शिवाजी पांडे से हुई। उन्होंने खुद को कल्याण गाँव के अंडरब्रिज का ठेकेदार बताया और जानकारी दी कि रेलवे की तरफ से हमें ब्रिज के ऊपर शेड लगाने का काम नहीं दिया गया था। अंडरब्रिज में काम करवा रहे एक व्यक्ति ने नाम जाहिर न करते हुए बताया कि अभी अंडरब्रिज का काम पूरा नहीं हुआ है, लेकिन रेलवे गुमटी को अधिकारियों द्वारा हटा लिया गया, जिससे ग्रामीणों को ज्यादा परेशानी हो रही है। आगे उन्होंने कहा कि रेलवे के अधिकारी अपने टारगेट को पूरा करने के लिए ऐसा करते हैं और गुमटी में कार्यरत कर्मचारियों को दूसरी जगह शिफ्ट कर देते हैं। इस मामले में जब हमने सुल्तानपुर रेलवे अंडरब्रिज की देखरेख कर रहे हैं जूनियर इंजीनियर से बात की, उन्होंने बताया इन ब्रिज में शेड नहीं बनाया जाएगा और न ही शेड बनाने की योजना है।
संसद में आवाज़
गौरतलब हो कि रेलवे अंडरब्रिज में जलजमाव की समस्या को लेकर गत दिनों कटिहार से जेडीयू सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी और होशंगाबाद से बीजेपी सांसद उदय प्रताप सिंह ने लोकसभा में सवाल भी पूछा था।
इसके जवाब में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस समस्या पर हमारे चीफ इंजीनियरों कि कार्यशाला आयोजित की गई थी और गहन विचार किया गया था, जिसमें चार विकल्पों पर विमर्श किया जा रहा है- पम्पिंग के जरिए पानी निकालना, डिजाइन में बदलाव, चौड़ीकरण और अंडर ब्रिज को ओवर ब्रिज में बदलना।
रेल मंत्री ने कहा कि एक अंडरब्रिज बनाने में एक से दो करोड़ रुपए खर्च आता है जबकि ओवरब्रिज बनाने में लगभग 50 करोड़ रुपए का खर्च आता है लेकिन जनता की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
इस मामले पर जब हमने कटिहार रेल मंडल के डीआरएम ऑफिस से जानकारी लेनी चाही तो वहां के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि शेड पहले दिया जाता था लेकिन अब नहीं दिया जाता, क्योंकि शेड लगाने के बावजूद भी पानी घुस जाता है। हर अंडर ब्रिज में पानी निकालने के लिए एक पंप और एक टंकी बनाई जाती है, जो हर बारिश के बाद पानी निकाल देगा। अगर, कहीं भी इस तरह की समस्या होती है, तो रेलवे को सूचना देने पर समाधान किया जाएगा।
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One of the best Report. Great journalism Best Wishes