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उत्तर बंगाल के चाय उद्योग में हाहाकार

वर्तमान परिस्थिति पर चाय उद्योग के जानकारों का कहना है कि उत्तर बंगाल के बाजारों में पैकेट-बंद चाय के बाजार में दक्षिण भारत की चाय ने धीरे-धीरे घुसपैठ कर ली है। 50, 100, 250, 500 ग्राम से लेकर एक किलो-दो किलो तक के पैकेट बना कर बेचने वाली कंपनियां पहले उत्तर बंगाल की बॉटलीफ फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादित चाय खरीदती थीं। अब उन्होंने दक्षिण भारत से चाय की पत्तियां मंगाना शुरू कर दिया है।

M Ejaj is a news reporter from Siliguri. Reported By M Ejaz |
Published On :

सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तरी हिस्से यानी उत्तर बंगाल के चाय उद्योग में इन दिनों हाहाकार मचा हुआ है। चाय बागानों में उगाई जाने वाली हरी पत्तियों से लेकर बॉटलीफ फैक्ट्रियों से उत्पादित दानेदार चाय, किसी का भी समुचित दाम नहीं मिल रहा है।

इसे लेकर छोटे-छोटे चाय बागानों के किसानों और बॉटलीफ फैक्ट्रियों के मालिकान के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। चाय बागानों में उगाई जाने वाली हरी पत्तियों के दाम का तो और भी बुरा हाल है, जो कि लागत से भी आधा है। चाय की हरी पत्ती की उत्पादन लागत 18-20 रुपये प्रति किलो पड़ती है जबकि बॉटलीफ फैक्ट्रियों में बेचने पर इसकी कीमत मात्र 10-12 रुपये किलो ही मिल पा रही है। ऐसी भीषण संकट भरी परिस्थिति में छोटे चाय किसानों ने चाय की खेती बंद कर देने और आंदोलन की चेतावनी दी है।

इस समस्या के समाधान के लिए बीती 21 जुलाई को टी बोर्ड ऑफ इंडिया की ओर से सिलीगुड़ी क्षेत्रीय कार्यालय में एक आपात बैठक भी बुलाई गई। टी बोर्ड के उपनिदेशक सुबीर हाजरा की अध्यक्षता में हुई यह बैठक गरमा-गरम बहस व आरोप-प्रत्यारोप की ही भेंट चढ़ गई और बेनतीजा रही।


किसानों का आरोप

चाय बागानों में हरी पत्तियां उगाने वाले छोटे-छोटे चाय किसानों का आरोप था कि बॉटलीफ फैक्ट्री वाले उनकी चाय की हरी पत्तियों का समुचित दाम नहीं दे रहे हैं। ऊपर से पत्तियों में नमी की बात कह कर वजन में भी 35 प्रतिशत की कटौती कर देते हैं। 100 किलो पत्ती को 65 किलो ही मानते हैं। एक तो दाम में कटौती, ऊपर से वजन में कटौती। यह हमारे लिए घाटे पर भी घाटा है। ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा जोड़ दें, तो यह महाघाटा है।

उन्होंने यह भी कहा कि इस विकट परिस्थिति के चलते उनके घर में चूल्हा तक जलना मुहाल हो गया है। उनके परिवार में घोर निराशा पसर गई है। ऐसी विकट परिस्थिति को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

पत्तियों की गुणवत्ता पर सवाल

वहीं, बॉटलीफ फैक्ट्री वालों का प्रत्यारोप था कि छोटे चाय बागानों के किसान चाय की पत्तियों की गुणवत्ता का ख्याल ही नहीं रखते हैं। वे बार-बार कहने के बावजूद अच्छी गुणवत्ता वाली पत्तियां नहीं देते हैं। चाय बागानों से चाय की हरी पत्तियां जिस सही समय पर तोड़ी जानी चाहिए, उस सही समय पर नहीं तोड़ी जाती हैं। वजन बढ़ाने के लिए पत्तियों को बड़ा होने देने को बहुत समय तक छोड़ दिया जाता है। उस कारण चाय की गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है। कम गुणवत्ता वाली हरी पत्ती का अच्छा दाम दे पाना संभव नहीं है। वैसे, जो लोग अच्छी गुणवत्ता वाली पत्तियां ला रहे हैं उन्हें अच्छी कीमत मिल भी रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बॉटलीफ फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादित दानेदार चाय की कीमत भी बाजारों में बहुत कम मिल रही है। असम, दक्षिण भारत व नेपाल से आयातित कम गुणवत्ता व कम दाम वाली चाय ने स्थानीय चाय के बाजार का बट्टा लगा दिया है। उसके चलते कई बॉटलीफ फैक्ट्रियां अब बंद होने की कगार पर हैं। बॉटलीफ फैक्ट्रियों के मालिकान भी त्रस्त हैं। वे भी करें तो करें क्या?

इन्हीं आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ कर उक्त बैठक बेनतीजा ही रह गई। अब इसकी विस्तारित बैठक अगले अगस्त महीने में होगी जिसकी तारीख की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी।

Tea board members and tea businessman in a meeting
बैठक में सम्मिलित टी बोर्ड के अधिकारी व चाय उद्योग जगत के हितधारक।

उक्त बैठक में छोटे चाय बागानों के किसानों ने चाय की हरी पत्तियों का और बॉटलीफ फैक्ट्रियों के प्रतिनिधियों ने बॉटलीफ फैक्ट्रियों की ओर से उत्पादित दानेदार चाय का न्यूनतम आधार मूल्य या न्यूनतम मूल्य टी बोर्ड द्वारा तय किए जाने की मांग भी उठाई। इस बाबत टी बोर्ड ने फिर एक बैठक कर आवश्यक विचार विमर्श के द्वारा हर संभव कदम उठाए जाने का आश्वासन दिया है।

छोटे चाय उत्पादक बड़े आंदोलन के मूड में

उत्तर बंगाल में चाय जगत की वर्तमान परिस्थिति पर जलपाईगुड़ी जिला लघु चाय उत्पादक संघ के सचिव बिजय गोपाल चक्रवर्ती ने कहा, “वर्तमान संकट के समाधान को लेकर टी बोर्ड द्वारा बुलाई गई बैठक के परिणाम से हम बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। टी बोर्ड के लचर रवैये के कारण ही सारी समस्याएं हैं। न्यूनतम मूल्य तय नहीं किया जा रहा है। बॉटलीफ फैक्ट्रियों वाले बेलगाम हो गए हैं। चाय कंपनियां भी मनमानी पर उतारू हैं। इसका खामियाजा चाय की हरी पत्तियों के उत्पादक छोटे किसानों को भुगतना पड़ रहा है। इसकी कीमत लागत से भी आधी मिल रही है। यदि जिम्मेदार लोग ही इस पर सोच-विचार नहीं करेंगे कि चाय की हरी पत्तियों की कीमत दिन-प्रतिदिन ऐसे ही पानी के भाव ही रही तो किसान कैसे अपना जीवन निर्वहन कर पाएंगे? जिम्मेदारों द्वारा इस दिशा में न कुछ सोचा जा रहा है, न कुछ किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, “अब हम चुप बैठने वाले नहीं हैं। इसी जुलाई महीने की 26 तारीख को हम लघु चाय उत्पादक अपनी बैठक कर अपना अगला कदम तय करेंगे। टी बोर्ड कार्यालय का घेराव भी हो सकता है या टी बोर्ड के खिलाफ और भी बड़ा आंदोलन भी हो सकता है।”

उन्होंने यह भी बताया कि उन लोगों ने टी बोर्ड को आगामी सर्दी के मौसम में 31 दिसंबर तक बागानों में उत्पादन जारी रखने देने को कहा है। वहीं, अन्य वित्तीय वर्षों की भांति दिसंबर के मध्य से ही बागानों को बंद कर देने के दिशानिर्देश इस बार जारी नहीं किए जाने चाहिए। इसके साथ ही यह भी पहले से ही बता देने की मांग की गई है कि नया सत्र फरवरी या मार्च में कब से शुरू होगा। इस पर सभी ने सहमति जताई है।

वहीं, बॉटलीफ फैक्ट्रियों के संगठन नार्थ बंगाल टी प्रोड्यूसर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय धानोठी कहते हैं, “ज्यादातर मामलों में, छोटे चाय किसानों से प्राप्त चाय की हरी पत्तियों की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती है। इसीलिए अच्छा दाम दे पाना संभव नहीं हो पाता है। हम लोग खुद भी त्रस्त हैं। हमें अपने द्वारा उत्पादित चाय की कीमत भी बाजार में समुचित नहीं मिल रही है। इसके चलते कई बॉटलीफ फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर आ गई हैं। टी बोर्ड को चाहिए कि वह चाय के लिए आधार मूल्य या न्यूनतम मूल्य तय करे, तभी सभी हितधारकों, किसानों व बाटलीफ फैक्ट्रियों आदि को लाभ हो पाएगा। जब तक टी बोर्ड चाय के लिए न्यूनतम मूल्य तय नहीं करता है तब तक समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा। बैठक में इस पर भी जोर दिया गया कि जल्द ही जलपाईगुड़ी चाय नीलामी केंद्र को शुरू किया जाए और नेपाल से चाय का आयात बंद किया जाए।”

उत्तर बंगाल के बड़े चाय बागानों के प्रतिनिधि के बतौर, तराई ब्रांच आफ इंडियन टी एसोसिएशन (टीबीआईटीए) के सचिव राणा दे ने कहा, “छोटे किसान, बॉटलीफ फैक्ट्री या संगठित क्षेत्र के बागान सभी चाय उद्योग के अभिन्न अंग हैं। जिन पत्तियों को हम छोटे उत्पादकों से आउटसोर्स करते हैं उनकी गुणवत्ता के आधार पर कीमत उचित ही दी जा रही है। यदि हरी पत्तियों की कीमत कम है तो उनकी गुणवत्ता पर जोर देना ही, कम कीमत की समस्या से निपटने का एकमात्र तरीका है।

“छोटे किसानों को इस बाबत सजग होना चाहिए। ऐसे किसानों को प्रशिक्षित व जागरूक करने के लिए टी बोर्ड को भी आगे आना चाहिए ताकि पत्तियों की गुणवत्ता बेहतर हो और फिर उसी अनुरूप कीमत भी बेहतर हो जाए। इस दिशा में सामूहिक पहल व समन्वय भी बहुत जरूरी है,” उन्होंने कहा।

उत्तर बंगाल के चाय उद्योग में दक्षिण के चाय की एंट्री

वर्तमान परिस्थिति पर चाय उद्योग के जानकारों का कहना है कि उत्तर बंगाल के बाजारों में पैकेट-बंद चाय के बाजार में दक्षिण भारत की चाय ने धीरे-धीरे घुसपैठ कर ली है। 50, 100, 250, 500 ग्राम से लेकर एक किलो-दो किलो तक के पैकेट बना कर बेचने वाली कंपनियां पहले उत्तर बंगाल की बॉटलीफ फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादित चाय खरीदती थीं। अब उन्होंने दक्षिण भारत से चाय की पत्तियां मंगाना शुरू कर दिया है, भले ही उसकी गुणवत्ता जैसी भी हो।‌ उसी में थोड़ी सी अच्छी चाय मिला कर और पैकेट-बंद कर वे बेच देते हैं। दक्षिण भारत से चाय 85 रुपये प्रति किलो की दर से ही मिल जा रही है। उसकी लागत कम आती है और मुनाफा ज्यादा होता है। वहीं, उत्तर बंगाल में बॉटलीफ फैक्ट्रियों से उत्पादित होने वाली चाय की कीमत दक्षिण भारत की चाय की कीमत की तुलना में ज्यादा है। सो, वहां वाली चाय बिकती है और यहां वाली नहीं बिकती है या कम बिकती है। इसका खामियाजा लघु चाय उत्पादकों से लेकर बॉटलीफ फैक्ट्री वालों तक को भुगतना पड़ रहा है।

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इस पूरी विकट परिस्थिति पर इंडियन स्माल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन के सचिव देवाशीष पाल भी कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में चाय उद्योग की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई है। यह जूट उद्योग के जैसा बदतर होता जा रहा है। इसे लेकर केंद्र सरकार व राज्य सरकार को कोई चिंता ही नहीं है। कई किसान धीरे-धीरे चाय बागान बंद कर जमीन बेच दे रहे हैं। सरकार को चाय उद्योग को बचाने के लिए तत्काल ठोस पहल करनी चाहिए।

इस बाबत टी बोर्ड के सिलीगुड़ी क्षेत्र के उप निदेशक सुबीर हाजरा का कहना है, “चाय उद्योग की वर्तमान परिस्थिति को टी बोर्ड गंभीरता से ले रहा है। ‌इसकी समस्याओं के समाधान के लिए टी बोर्ड पूरी तरह से तत्पर है। इसीलिए सभी हितधारकों की बैठक बुलाई गई। उसमें प्राथमिक स्तर पर कुछ मार्ग प्रशस्त हुआ है। आगे फिर जल्द ही‌ सभी पक्षों संग बैठक कर बेहतर से बेहतर समाधान का प्रयास किया जाएगा। जल्द ही समस्या का समाधान हो जाएगा।

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