बिहार के सीमांचल इलाके और आसपास के पश्चिम बंगाल के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से दुर्गा पूजा पंडालों से कई सामाजिक और विकास के मुद्दों पर संदेश दिया जा रहा है।
किशनगंज में महिला सशक्तीकरण का झंडा उठाते हुए महिलाएं एक मंदिर में खुद दुर्गा पूजा का आयोजन कर रही हैं। पूर्णिया में पंडालों में जगह-जगह एयरपोर्ट की मांग के पोस्टर नज़र आए, तो वहीं उत्तर दिनाजपुर के इस्लामपुर शहर में साक्षरता और हस्तकला के थीम पर पंडाल सजाया गया।
यहाँ महिलाएं करती हैं आयोजन
पिछले कई सालों से बिहार के किशनगंज में महिला सशक्तीकरण की एक अनोखी मिसाल देखने को मिल रही है।
किशनगंज नगरीय क्षेत्र के हॉस्पिटल रोड स्थित शीतला मंदिर में पिछले 16 वर्षों से कुछ महिलाएं सावर्जनिक दुर्गा पूजा का आयोजन कर रही हैं। पूजा के आयोजन के लिए चंदे से लेकर प्रतिमा विसर्जन तक की सारी ज़िम्मेदारी महिलाएं खुद उठाती हैं। यहां तक कि थाने से कार्यक्रम के लाइसेंस और विसर्जन जुलूस की अनुमति भी महिलाएं ही लेकर आती हैं।
इस मंदिर की महिला पूजा समिति में कुल 19 महिलाएं हैं, जिन्होंने 17 वर्ष पहले मंदिर में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। आज भी इस समिति में केवल महिलाएं ही हैं। पुजारी असित चक्रवर्ती मंदिर से जुड़े एकलौते पुरुष हैं।
महिला पूजा समिति की कोषाध्यक्ष ममता कुंडू बताती हैं, “2007 से अब तक हर साल मंदिर में दुर्गा पूजा का कार्यक्रम होता है। दुर्गा पूजा नज़दीक आते की सभी 19 महिलाएं पूजा की व्यवस्था के लिए घर का काम निपटा कर शाम को हर रोज़ मंदिर आकर कार्यक्रम की तैयारी में जुट जाती हैं।”
कुंडू आगे कहती हैं, “घर का काम करके हमलोग शाम 4 बजे से पूजा का काम करते हैं। चंदा वसूलते हैं और पूजा का बाकी काम करते हैं। घर परिवार और पड़ोसी सब इसमें हमारा सपोर्ट करते हैं। सब मिलकर करते हैं तो पूजा अच्छे से हो जाती है।”
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महिला पूजा समिति की सदस्य काकुली सरकार कहती है, “सभी महिलाएं आपस में कार्यक्रम का बजट तय करके पैसे मिलाती हैं। हर साल पूजा में दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और उनमें से कुछ पूजा के आयोजन से ख़ुश होकर मंदिर में दान भी करते हैं।”
दरअसल, शीतला मंदिर में पहले पूजा नहीं होती थी। मंदिर में अँधेरा रहता था। इसलिए स्थानीय महिलाओं ने यहाँ पूजा करने की ठानी, ताकि उन्हें दुर्गा पूजा के लिए दूर न जाना पड़े।
शीतला मंदिर में बांग्ला परंपरा के अनुसार पुजा अर्चना की जाती है। दुर्गा पूजा के अंतिम चार दिनों में सभी लोग सुबह से रात तक मंदिर में ही रहते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं। दसवीं के दिन यहां सिंदूर खेला का भी आयोजन होता है।
बांग्ला व अंग्रेजी वर्णमाला से सजावट
किशनगंज से सटे पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर शहर के ख़ुदीरामपल्ली के दुर्गा मंदिर में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए थीम बनाई गई है। पंडाल को बांग्ला और अंग्रेजी भाषा की वर्णमाला से सजाया गया है।
मंदिर कमेटी के सदस्य विक्की दास ने बताया, “विश्वविख्यात कवि और लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तक सहज पाठ से प्रेरित होकर इस पंडाल को तैयार किया गया है। यह पुस्तक बड़ी सहजता से कविताओं के माध्यम से बच्चों को वर्णमाला सिखाती है। इसे राज्य के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा के बच्चों को पढ़ाया जाता है।”
आगे उन्होंने बताया कि मशहूर चित्रकार नन्दलाल बोस ने सहज पाठ पुस्तक का चित्रांकन किया था। उनके चित्रों को भी पंडाल में जगह दी गई है। इस पंडाल को बनाने में करीब 6 लाख रुपये का खर्च हुए हैं।
वहीं, इस्लामपुर के ‘Officers and Employee Retention Club’ द्वारा बनाए गए पंडाल को हस्तकला का थीम दिया गया। क्लब के सदस्य संतोष झा ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों से बनी यह कमेटी हर वर्ष हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए पंडाल की थीम चुनती है। इस साल दुर्गा पूजा के पंडाल में हस्तकला का प्रयोग कर बनाई गई चीज़ों को दर्शाया गया। पंडाल में बांस और लकड़ी से चित्रकला की गई है। पंडाल में जगह जगह लगी लकड़ियों की मूर्तियों ने भी खूब वाहवाही बटोरी।
संतोष ने आगे बताया कि पंडाल को बनाने में स्थानीय कारीगरों की मदद ली गई है, जिससे आसपास के कलाकार, मूर्तिकार, कारीगर और मज़दूर की कमाई भी हुई और बड़े शहरों के कारीगरों के मुकबाले कम खर्च में पंडाल बनाने का काम संपन्न हो गया।
पूर्णिया एयरपोर्ट की मांग
वहीं बिहार के पूर्णिया शहर में इस बार के दुर्गा-पूजा उत्सव को कुछ मंदिर कमेटी ने आस्था के साथ-साथ इलाके की जरूरतों से भी जोड़ने की कोशिश की है। पूर्णिया में हवाई अड्डे का निर्माण दूर की कौड़ी साबित होती दिख रही है। इसलिए पूर्णिया मुख्यालय के कुछ पंडालों में पूर्णियावासियों की हवाई अड्डे की बहुप्रतीक्षित माँग को बैनर के रूप में जगह दी गयी है।
पूर्णिया के रिवेरा हाइट्स में बने पंडाल को इस्कॉन मंदिर की तर्ज़ पर बनाया गया है। थर्मोकॉल से बने पंडाल पर भगवान कृष्ण की जीवन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को उकेरा गया है। लेकिन एयरपोर्ट4पूर्णिया के बैनर को पंडाल के समीप जगह दी गई है। रिवेरा हाइट्स पंडाल के साथ शक्तिनगर सिपाही टोला के पंडाल में भी ऐसे ही पूर्णिया एयरपोर्ट को लेकर बैनर है।
पूर्णिया एयरपोर्ट का क्या है मामला
बिहार के तीन शहर पटना, गया और दरभंगा में एयरपोर्ट संचालित है। वहीं सीमांचल के पूर्णिया जिले में एयरपोर्ट की मांग लंबे से समय से उठ रही है। नीतीश कुमार सरकार पूर्णिया में एयरपोर्ट नहीं बनने के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराती रहती है। इसी वर्ष फरवरी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बयान में कहा था कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से जो जो मांगें रखीं थीं, उन्हें राज्य सरकार ने पूरी कर दी और केंद्र की हर बात मान ली लेकिन केंद्र सरकार काम शुरू नहीं कर रही।
इसके बाद जुलाई महीने में नगर विमानन राज्य मंत्री डॉ. वी के सिंह ने लोकसभा में कहा था कि पूर्णिया में 424 करोड़ रुपये की लागत से सिविल एन्क्लेव टर्मिनल विकसित किया जा रहा है। उन्होंने पूर्णिया एयरपोर्ट के लिए 52.48 एकड़ ज़मीन अधिकृत करने की भी पुष्टि की थी।
बता दें कि वर्ष 1962 भारत-चीन युद्ध के समय पूर्णिया में सैन्य हवाई अड्डा के लिए ज़मीन अधिकृत की गई थी। तीन साल बाद सैन्य हवाई अड्डा बना था। उसी सैन्य हवाई अड्डा से उत्तर की तरफ भूमि अधिग्रहण करना था लेकिन हवाई अड्डे के लिए दक्षिण दिशा में भूमि अधिग्रहण की खबरें आईं। दक्षिण ओर में बसने वाले गांव के लोगों ने इस अधिग्रहण का विरोध किया जिसके कारण ज़मीन का पेंच अब तक फंसा हुआ है।
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया में एयरपोर्ट निर्माण का एलान किया था। पिछले साल सितंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्णिया में एक जनसभा के दौरान पूर्णिया में हवाई अड्डा बनने की बात कही जिसपर विपक्ष ने उनकी आलोचना की थी। अमित शाह ने कहा था, “पूर्णिया में हवाई अड्डा बन गया। लगभग 12 जिलों के लोगों को बागडोगरा या पटना नहीं जाना पड़ेगा। अरे ताली बजाओ भाई, हवाई अड्डा आपके लिए बनाया है।”
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