बीते 4 नवंबर को बिहार के सीमांचल क्षेत्र अंतर्गत पूर्णिया जिले में मुस्लिम समाज की तीन महिलाओं ने एक अभियान के तहत मस्जिद में जाकर जुमे की नमाज अदा की।
वैसे तो महिलाओं का मस्जिद में नमाज़ पढ़ना कोई खबर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस्लाम महिलाओं को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त देता है। दुनिया के कुछ देशों और हिंदुस्तान के कुछ शहरों में ऐसा हो भी रहा है, लेकिन छोटे शहरों और गाँव के लिए आज भी यह नया है। क्योंकि, ज्यादातर जगहों पर औरतों के लिए मस्जिद में अलग से जगह नहीं है, और जहां जगह है भी, तो वहां औरतों को इसकी जानकारी नहीं है।
इसी को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया जा रहा है, इसका नाम है ‘Women in Masjid’ यानी ‘मस्जिद में महिलायें।“ इस कैंपेन के माध्यम से देश के अलग-अलग शहरों में वुमन फ्रेंडली मस्जिदों की पहचान कर उन में औरतों को नमाज पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
इस अभियान के तहत देश के 15 से ज़्यादा शहरों में महिलाओं ने जुमे की नमाज़ अदा की। बिहार के पूर्णिया में 18 वर्षीय छात्रा ततहीर ज़हरा ने इस अभियान का नेतृत्व किया और शहर के मस्जिद-ए-राजा में तीन महिलाओं के साथ शुक्रवार को नमाज़ अदा की।
“दरअसल हमने 4 नवंबर को जुम्मे के दिन देश के 15 शहरों में कोशिश की कि औरतें एक ही वक्त में जोहर की नमाज जिलों में अदा करें और हमारा यह प्रयास काफी सफल रहा,” ततहीर ज़हरा कहती हैं।
आगे उन्होंने कहा, “सीमांचल की अगर बात करें, तो यहां औरतों के लिए कोई ऐसी खास जगह है नहीं, पूर्णिया में मुझे मस्जिद में औरतों की जगह नहीं दिखी। मस्जिद में जब मर्दों की नमाज खत्म हो गई तब हम लोगों ने इमाम और मस्जिद कमेटी मेंबर की इजाजत से जाकर मस्जिद में नमाज पढ़ी।”
क्या अभी तक इस अभियान का किसी ने विरोध किया, इस सवाल के जवाब में ततहीर ने कहा, “हम सीमांचल में यह काम बहुत बड़े पैमाने पर नहीं कर पाए। सिर्फ एक ही मस्जिद में नमाज पढ़ी गई, वह भी इजाजत लेने के बाद तो उसमें ऐसी कोई खास दिक्कत है तो नहीं आई।”
‘वुमन इन मस्जिद कैंपेन’ का हिस्सा
मर्दों की तरह औरतों को मस्जिद में जाने के इस सिलसिले को शुरू करने के लिए ‘मुस्लिम वुमन स्टडी सर्कल’ के नाम से एक कम्युनिटी बनाई गई है जिसका एक हिस्सा ‘वुमन इन मस्जिद कैंपेन’ है और इसकी शुरुआत एक पीएचडी की छात्रा सानिया मरियम ने की है। सानिया का मानना है कि मस्जिद अल्लाह का घर है और अल्लाह के घर पर जितना हक मर्दों का है उतना ही औरतों भी है।
“करीब 2 साल से हम लोग “मुस्लिम विमेन स्टडी सर्कल” में अलग-अलग तरह के हल्क़ा करते हैं, जिसमें हम हर हफ्ते सोशल साइंस के साथ साथ दीन की भी बात करते हैं। हम मानते हैं कि मस्जिदों में हक तो औरतों का भी है। अगर अल्लाह का घर है मस्जिद, तो अल्लाह का घर उतना ही औरतों के लिए भी है जितना बच्चों, मर्दों, या विकलांगों के लिए है। तो मस्जिद इन सब की पहुंच योग्य होनी चाहिए। और यह काम लगभग पूरी दुनिया में हो रहा है, सिर्फ भारतीय ही ऐसा है जहां मर्दों के लिए भी मस्जिदों में कम ही जगह होती है तो औरतों के लिए तो बिल्कुल नहीं होती है,” सानिया मरियम ने कहा।
सानिया बताती हैं कि इस अभियान के तहत अब तक देश के 15 शहरों में महिलाएं मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ना शुरू कर चुकी हैं। अभी तक नागालैंड सिर्फ एक ऐसा शहर था, जहां पर यह मुमकिन नहीं हो पाया, क्योंकि यहां कोई फीमेल फ्रेंडली मस्जिद उपलब्ध नहीं थी।
“लेकिन बाकी के 15 राज्यों में हमने देखा कि समाज की तरफ से काफी सपोर्ट मिला। बहुत सी ऐसी मस्जिदें हैं जिनमें महिलाओं के लिए अलग से जगह उपलब्ध है, लेकिन जानकारी के अभाव में महिलाएं वहां पहुंच नहीं पाती हैं। इसलिए कई मस्जिदों में औरतों की जगह को बंद करने का भी विचार चल रहा था क्योंकि औरतें आ नहीं रही थीं,” सानिया ने कहा।
सानिया कहती हैं इस अभियान के माध्यम से वे कोई कंट्रोवर्सी नहीं चाहती हैं ना ही कोई मोर्चा निकाल रही हैं। वे सिर्फ अपनी जड़ों में वापस जाने की कोशिश कर रही हैं और इस कोशिश में विमल फ्रेंडली मस्जिदों की पहचान करना और उसमें और दो को पहुंचा कर उनका अनुभव साझा करना शामिल है।
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बिहार की 4-5 मस्जिदों में महिलाओं के लिए इंतजाम
बिहार की स्थिति के बारे में बात करते हुए सानिया ने बताया कि यहां यह एक बहुत शुरुआती प्रयास है जिसके अंदर चार पांच ऐसी मस्जिदों की पहचान की गई है जिनमे औरतों के लिए अलग से जगह उपलब्ध है। अभी पूर्णिया की सिर्फ एक मस्जिद में यह प्रयास सफल हो पाया है और आने वाले समय में सीमांचल सहित बिहार की बाकी मस्जिदों में इसके लिए प्रयास जारी रहेंगे।
सानिया ने बताया, “बिहार एक रिलेटिवली नया स्टेट है। यहां 5 मस्जिदें ऐसी मिली हैं, जिनमें औरतों के लिए जगह है और बाकी में हमारा यह काम रहेगा अगले साल कि हम बहुत शांति के साथ मस्जिद कमेटी मेंबर को एक पिटीशन दायर करें। हम उनसे कहना चाहेंगे कि यह आज के वक्त और हालात की जरूरत है।”
वह आगे कहती हैं, “क्योंकि देश में पहले से ही बहुत कुछ चल रहा है मुसलमानों के साथ, तो हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से कोई और दिक्कत पैदा हो। हम चाहते हैं कि यह काम बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से हो। यह बदलाव समाज के अंदर खुद से आए ना कि ऊपर से थोपा जाए।” अंत में सानिया कहती है, “जब दिल बदलेंगे तो जगह इंशाल्लाह मस्जिद में भी मिलेगी।”
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