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मिलिए पैरा स्वीमिंग में 6 मेडल जीतने वाले मधुबनी के शम्स आलम से

मेडल जीतने के साथ-साथ शम्स आलम ने दो नेश्नल रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है। 100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग और 100 मीटर बैक स्ट्रोक स्वीमिंग प्रतियोगिता में उन्होंने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए नया रिकॉर्ड कायम किया।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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बिहार के मधुबनी के लाल शम्स आलम ने पैरा स्वीमिंग में 6 मेडल जीतकर पूरे भारत का नाम रौशन किया है। उन्होंने 200 मीटर व्यक्तिगत मेडली स्वीमिंग में गोल्ड मेडल जीता है। वहीं, 50 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक स्वीमिंग और 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक स्वीमिंग प्रतियोगिता में शम्स को सिल्वर मेडल प्राप्त हुआ है।

साथ-साथ 100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग, 100 मीटर बैक स्ट्रोक स्वीमिंग और 50 मीटर बैक स्ट्रोक स्वीमिंग प्रतियोगिता में उनको ब्रॉन्ज मेडल मिला है।

यूरोपीय देश आइसलैंड की राजधानी रिक्जेविक शहर में पिछले सप्ताह आयोजित पैरा स्वीमिंग प्रतियोगिता में शम्स ने ये 6 मेडल जीते हैं। शम्स आलम ने मैं मीडिया को बताया कि इस प्रतियोगिता में 22 देशों के 250 तैराकों ने भाग लिया था।


मेडल जीतने के साथ-साथ उन्होंने दो नेश्नल रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है। 100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग और 100 मीटर बैक स्ट्रोक स्वीमिंग प्रतियोगिता में उन्होंने पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए नया रिकॉर्ड कायम किया।

100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग को शम्स ने सिर्फ 2 मिनट 14 सेकेंड में पूरा किया। 100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग में पहले नेशनल रिकॉर्ड 2 मिनट 34 सेकेंड था। वहीं, 50 मीटर बैक स्ट्रोक को भी उन्होंने मात्र 2 मिनट 14 सेकेंड में पूरा किया, जबकि इससे पहले का नेशनल रिकॉर्ड 2 मिनट 15 सेकेंड था।

हालिया पैरा स्वीमिंग प्रतियोगिता में 6 मेडल जीतने से शम्स के वर्ल्ड पैरा स्वीमिंग रैंकिंग में काफी उछाल आया है। वर्ल्ड पैरा स्वीमिंग की ताजा रैंकिंग के मुताबिक, शम्स 50 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक स्वीमिंग की एसबी-4 कैटेगरी (पुरुषों में) में दूसरे नंबर पर और 100 मीटर बटरफ्लाई स्वीमिंग के एस-5 कैटेगरी (पुरुषों में) में पहले स्थान पर पहुंच गए हैं।

शम्स बिहार के मधुबनी स्थित बिस्फी प्रखंड के रथौस गांव के रहने वाले हैं। उनके परिवार में उनके पिता, 4 भाई और दो बहने हैं। उन्होंने मुंबई के रिज़वी कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग और चेन्नई के सत्यबामा यूनिवसिटी से एमबीए की पढ़ाई की है। उन्होंने अमेरिका स्थित एक यूनिवर्सिटी से ग्लोबल स्पोर्ट्स मेंटरिंग प्रोग्राम भी पूरा किया है।

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असफल ऑपरेशन से शरीर का निचला हिस्सा हुआ था बेजान

शम्स आलम 2010 में राष्ट्रीय कराटे चैंपियन बने थे। वह चाहते थे कि इसी क्षेत्र में भारत के लिए गोल्ड मेडल लायें। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। अक्टूबर 2010 में जब शम्स अपने इंजीनियरिंग के फाइनल इयर में थे, तभी उनकी रीढ़ की हड्डी में एक ट्यूमर विकसित हो गया।

इस समस्या को लेकर वह डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने ऑपरेशन कराने को कहा। बदक़िस्मती से यह ऑपरेशन कामयाब नहीं हुआ, जिसकी वजह से उनके शरीर का निचला हिस्सा पूरा सुन्न हो गया और उसमें कोई जान नहीं बची। उस वक्त शम्स की उम्र 24 साल थी।

तब से लेकर उनकी जिंदगी व्हील चेयर पर आ गई और उनको हर काम व्हील चेयर पर ही करना होता है। शम्स ने मैं मीडिया को बताया कि इस हादसे के बाद उनके पास एक ही विकल्प था कि एक्सरसाइज़ के जरिये शरीर के निचले हिस्से को एक्टिव करने की कोशिश करना।

इसके लिये उन्होंने काफी मेहनत भी की। अस्पताल में इलाज के दौरान ही किसी ने उनको स्वीमिंग करने की सलाह दी। चूंकि वह खुद बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से आते हैं, इसलिये तैरना उनको बचपन से ही आता था। फिर क्या था शम्स निकल पड़े एक नये सफर पर।

अपने स्वीमिंग के सफर को लेकर शम्स ने कहा, “तक़रीबन दस साल से ज्यादा हो गए मुझे व्हील चेयर पर। मैं बहुत परेशान भी हुआ स्वीमिंग को लेकर। कहीं रास्ता नहीं होता था कहीं पैसा नहीं होता था तो कहीं कोई इजाज़त नहीं देता था। लेकिन सारी मुसीबतों के बाद भी मैंने इसको जारी रखा।”

उन्होंने आगे कहा, “जब आपको पता चल जाये कि जिस तकलीफ में आप हैं उसका इलाज सिर्फ कसरत ही है। तो ऐसे में सेहत की कीमत पता चल जाती है…जब दोबारा एक अस्पताल में भर्ती थे तो वहीं पर कई लोगों ने बताया कि आप स्वीमिंग भी कर सकते हैं, क्योंकि स्वीमिंग में पूरे बदन की कसरत हो जाती है।”

पहले भी जीते हैं कई प्रतियोगिताओं में मेडल

साल 2016 में कनाडा के गैटीन्यू शहर में हुए कैन-एम पैरा स्वीमिंग चैंपियनशिप में उन्होंने पुरुषों की 100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम किया। वहीं 2018 में आयोजित भारतीय ओपन पैराप्लेजिक स्वीमिंग चैंपियनशिप में उन्होंने 4 गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

2018 में इंडोनेशिया में आयोजित एशियन पैरा गेम्स में शम्स ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2022 के एशियन पैरा गेम्स में भी शम्स ने पैरा स्वीमिंग में भारत को रिप्रजेंट किया। वहीं, 2022 के विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए शम्स को दसवां स्थान प्राप्त हुआ।

meet shams alam of madhubani who won 6 medals in para swimming

2019 में शम्स ने बिहार स्वीमिंग एसोसिएशन की ओर से आयोजित स्वीमिंग प्रतियोगिता में सबसे तेज़ पैराप्लेजिक स्विमर का रिकॉर्ड बनाया था। शम्स ने गंगा नदी में सबसे तेज़ (दो किलोमिटर) तैराकी 12 मिनट 23.04 सेकेंड में पूरा कर ली, जो कि एक रिकॉर्ड है। इस रिकॉर्ड के लिए शम्स का नाम इंडिया बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड में भी शामिल किया गया है।

2021 में आयोजित 20वीं नेशनल पैरा स्वीमिंग चैंपियनशिप में शम्स ने 50 मीटर बटरफ्लाई में गोल्ड मेडल और 150 मेडली कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता। 2021 में उनको भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने संबंधी नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया।

फिलहाल, शम्स गुजरात के गांधीनगर स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (स्पोर्ट्स ऑथरिटी ऑफ इंडिया) में ट्रेनिंग ले रहे हैं। शम्स की नजर इसी वर्ष मार्च में गोवा में होने वाले नेशनल पैरालंपिक गेम्स के साथ-साथ 2024 पेरिस पैरा ओलंपिक पर है। हालांकि, 2024 के पेरिस पैरा ओलंपिक के लिये उन्होंने अब तक क्वालीफाई नहीं किया है।

साधारण किसान परिवार से हैं शम्स

शम्स का ताल्लुक एक साधारण किसान परिवार से है। घर में खेती से इतना अनाज पैदा हो जाता है कि साल भर खुशहाली से निकल जाये। शम्स को बिहार सरकार ने वित्त विभाग में नौकरी दी है। यह नौकरी बिहार सरकार के ‘मेडल लाओ नौकरी पाओ’ प्रोग्राम के तहत दी गई है।

शम्स ने बिहार सरकार की इस पहल की खूब सराहना की। हालांकि, उन्होंने बिहार में स्वीमिंग के इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी को लेकर निराशा भी जाहिर की। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि आनेवाले समय में बिहार में स्वीमिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित हो जायेंगे।

मैं मीडिया से बातचीत के दौरान शम्स ने बताया कि आजकल हर क्षेत्र में मुकाबला बहुत बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ खेल के क्षेत्र में भी कामयाबी मिल सकती है। शम्स ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि यदि बच्चे खेल के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो वे अपने बच्चों को खेल ही में आगे बढ़ने दें और उनका सहयोग करें।

“अब ज़माना चेंज हो गया है। पहले बोलते थे कि खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब और पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब। अब ऐसा जमाना है कि पढ़ोगे लिखोगे तो नवाब बनोगे ही, लेकिन आप खेलोगे-कूदोगे तो आप लाजवाब बनोगे,” उन्होंने कहा।

उन्होंने आगे कहा, “पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी बहुत जरूरी है। आपके बच्चे जो भी करना चाहते हैं उसको सपोर्ट कीजिये। खाली पढ़ाई से ही नहीं होगा और खाली खेल से भी नहीं होगा। दोनों जरूरी है।”

विकलांग बच्चों को लेकर खासतौर पर बोलते हुए शम्स ने कहा कि जो भी बच्चे इस क्षेत्र में आने के लिये उनसे सलाह लेंगे और सहयोग चाहेंगे, वह उनकी मदद के लिये हमेशा तैयार हैं।

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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