पूर्णिया सदर अस्पताल अपनी कारगुजारियों के लिए हमेशा से सुर्खियों में रहा है। कभी कुव्यवस्था के कारण तो कभी उपेक्षा के कारण। आज हम आपको एक ऐसे ही उपेक्षा की बानगी बताते हैं।
दरअसल पूर्णिया सदर अस्पताल में 3 वर्ष पहले बने मुर्दाघर में आज तक मुर्दे कभी नहीं रखे गए, हां जिंदा इंसान यह जरूर अपना बसेरा बनाए हुए हैं। सुनकर आपको भी आश्चर्य होगा की मुर्दाघर में जिंदा इंसान आखिर क्यों रहता है। जी हां पूर्णिया सदर अस्पताल में काम करने वाले गार्ड इसी भवन में रहते हैं, यहीं सोते हैं और यहीं भोजन करते हैं।
दरअसल 3 साल पहले पूर्णिया सदर अस्पताल परिसर के भीतर एक बड़े मुर्दाघर का निर्माण किया गया था, ताकि लावारिश लाश को रखा जा सके। लेकिन सरकारी उदासीनता, संवेदक की लापरवाही या और भी कारण से एजेंसी के तरफ से सदर अस्पताल प्रबंधक को मुर्दाघर सुपुर्द नहीं किया गया। लिहाजा मुर्दा घर के सामने अस्पताल के टूटे सामान आपको बिखरे मिल जाएंगे। मानो मुर्दाघर नहीं कबाड़खाना हो। अब कबाड़खाना है तो जंगल भी होगा ही और जब जंगल होगा तो सांप बिच्छू भी होंगे। ये अलग बात है की सांप बिच्छू से मुर्दे पर कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन जब मुर्दे की जगह इंसान ले ले तो डर लगना तो स्वाभाविक है। ऐसे में वहां रहने वाले गार्ड दुसरे की सुरक्षा करने के बजाये अपनी हिफाजत का ज्यादा ख्याल रखते हैं।
यहां यह भी बताना जरूरी है की पूर्णिया सदर अस्पताल में मुर्दा रखने की व्यवस्था का घोर अभाव है, पोस्टमार्टम रूम टूटे-फूटे हैं और लावारिश लाश को रखने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इस मकान की उपयोगिता काफी बढ़ जाती है, बावजूद इसके एजेंसी द्वारा आखिर क्यों नहीं विभाग को हैंड ओवर किया गया यह बड़ा सवाल है।
पूर्णिया के सिविल सर्जन डॉ मधुसूदन प्रसाद कहते हैं कि
“एजेंसी ने इस भवन को हैंडोवर नहीं किया है। अब जब बात संज्ञान में आई है तो जल्द ही कार्रवाई की जाएगी और इस भवन को हेंड ओवर करवाया जायेगा।”
सिविल सर्जन कार्यालय से महज 100 मीटर की दूरी पर बने इस भवन पर आखिर अधिकारियों की नजर अब तक क्यों नहीं गई। लाखो रूपये की लागत से बने इस भवन को क्यों नहीं सुपुर्द किया गया और जब सुपुर्द नहीं किया गया तो बेजुबान मुर्दे की जगह इंसान कैसे रह रहे हैं। ये सब जाँच का विषय है।
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