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इस गाँव से दुल्हन बाइक पे जाती है, मरीज चारपाई पे, मय्यत नाव पे

बारात मोटरसाइकिल पर, मय्यत नाव पर और बीमार कंधे पर सवार होकर आते-जाते है। पूर्णिया ज़िले के बायसी प्रखंड अंतर्गत बायसी पंचायत के मदरसा टोला के लोगों की यह आम दिनचर्या है।

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
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पूर्णिया ज़िले के बायसी में एक ऐसा गाँव है जहाँ जाने का कोई सड़क नहीं, लोग मकई के खेत से आना जाना करते हैं, दूल्हा-दुल्हन बाइक पर गाँव से जाते हैं, कोई बीमार पड़े तो चारपाई पर हाईवे तक ले जाया जाता है, गाँव का क़ब्रिस्तान नदी में समा चुका है, मय्यत को नाव पर 6 किमी दूर ले जाया जाता है। विकास तुम कहाँ हो?

बारात मोटरसाइकिल पर, मय्यत नाव पर और बीमार कंधे पर सवार होकर आते-जाते है। पूर्णिया ज़िले के बायसी प्रखंड अंतर्गत बायसी पंचायत के मदरसा टोला के लोगों की यह आम दिनचर्या है।

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इस मदरसा टोला में आने के लिए कोई रास्ता नहीं होने के कारण चारपहिया वाहन आ नहीं पाते। लोग पगडंडियों के सहारे गांव में आना-जाना करते है। जब गांव में शादी होती है तो दूल्हे-दुल्हन को पैदल या फिर बाइक पर सवार हो कर आना पड़ता है। कोई बीमार पड़े तो चारपाई पर हाईवे तक ले जाया जाता है। गाँव का क़ब्रिस्तान नदी में समा चुका है, मय्यत को नाव पर 6 किमी दूर ले जाना पड़ता है।


स्थानीय ग्रामीण मोहम्मद असगर जो आजीविका के लिए बाहर रहते है और फ़िलहाल घर आये हुए है। उन्होंने क्रोध प्रकट करते हुए कहा कि

“गांव आने का कोई रास्ता नहीं है। जिसको आना है तो हवाई जहाज से या फिर पगडंडियों पर चल कर आये। अगर किसी ने पगडंडियों का रास्ता बंद कर दिया तो घर पर ही पड़े रहे।”

मुश्फ़िक़ रज़ा नामक एक अन्य स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि

“गांव में रास्ता नहीं होने की वजह से जवान लड़कियों की शादी नहीं हो रही है।”

अगर शादी या किसी खास कार्यक्रम के लिया रास्ता बनाने की जरुरत पड़ जाये तो फसल काटनी पड़ती है और मुआवजा चुकाना पड़ता है।

एक प्राइवेट स्कूल के कक्षा 5 पढ़ने वाले सखावत रज़ा ने बताया कि

“हमलोग 6 महीना ही स्कूल जाते है, क्योकि रास्ता नहीं होने की वजह से बाढ़ के दिनों में पगडंडियों डूब जाती है। इस कारण पढ़ने नहीं जा पाते है।”

ग्रामीणों ने बताया कि जनप्रतिनिधि चुनाव के वक़्त बड़े-बड़े वादे करते है लेकिन चुनाव जीनते के बाद गायब हो जाते है।

(Written by Saquib Ahmed)

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स्वभाव से घुमंतू और कला का समाज के प्रति प्रतिबद्धता पर यकीन। कुछ दिनों तक मैं मीडिया में काम। अभी वर्तमान में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से किताबों को गांव-गांव में सक्रिय भूमिका।

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