हरेंद्र राम ने 10 किलो धान का बिचरा लगाया था, लेकिन जून महीने में बारिश नहीं होने और भीषण हीटवेव के चलते 30 प्रतिशत बिचरा खराब हो गया। “अब नये सिरे से 5 किलो ग्राम धान का बिचरा लगाया है,” बिहार के रोहतास जिले के डेहरी प्रखंड अंतर्गत बेरकप पंचायत के रहने वाले हरेंद्र राम ने कहा। वह इस बार सात बीघा खेत में धान की रोपनी करना चाहते हैं।
बारिश नहीं होने के कारण इस साल धान की रोपनी लगभग 20 से 25 दिन देर से होगी क्योंकि बिचरा ही देर से खेतों में डाला गया है। “धान की रोपनी देर से होगी, तो उत्पादन कम हो जाएगा,” वह कहते हैं।
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बेरकप पंचायत के 1500 किसान इस बार धान की रोपनी कर रहे हैं। हरेंद्र राम ने कहा कि जिन किसानों के पास बोरिंग की सुविधा थी, उन्होंने भूगर्भ से खेतों में पानी डालकर बिचरा लगाया, लेकिन धूप और लू का असर इतना भीषण था कि खेतों का पानी गर्म हो गया, जिससे बिचरा झुलस गया। इन किसानों ने दोबारा बिचरा लगाया है।
“रोहतास में तो इतनी गर्मी थी कि प्रशासन ने दोपहर में तीन चार घंटे तक घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी थी,” उन्होंने कहा।
रोहतास इकलौता जिला नहीं है, जहां धान की रोपाई पर मौसम का गहरा असर पड़ता दिख रहा है। बिहार के कमोबेश सभी जिलों का यही हाल है।
मई से ही बारिश कम होने के चलते बहुत सारे जिलों में लक्ष्य से कम बिचरा डाला गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भागलपुर डिविजन, जिसमें भागलपुर और बांका जिले आते हैं, में लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 4 प्रतिशत बिचरा ही अब तक खेतों में डाला गया है। वहीं, मुंगेर डिविजन, जिसमें मुंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, शेखपुरा और लखीसराय जिले आते हैं, में लक्ष्य का महज 7 प्रतिशत धान का बिचरा डाला गया है। इसी तरह मगध डिविजन में लक्ष्य का सिर्फ 16 प्रतिशत बिचरा डाला गया है।
पूर्णिया डिविजन, जिसमें सीमांचल के सभी चार जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार व पूर्णिया आते हैं, में लक्ष्य के 73 प्रतिशत बिचरे की बुआई हो गई है।
राज्य में लम्बी रही हीटवेव की अवधि
बिहार ने इस साल सबसे लम्बा हीटवेव (लू) झेला है। एक जून को भारतीय मौसमवनिज्ञान विभाग की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में छह जून तक बिहार में हीटवेव रहने का पूर्वानुमान लगाया गया था, जो बढ़ता चला गया और लगभग तीन हफ्ते से ज्यादा वक्त तक भीषण हीटवेव रहा। मसलन कि 17 जून को 22 जिलों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर रहा, जो सामान्य से 6 से 8 डिग्री सेल्सियस तक अधिक था। मौसमविज्ञान विभाग के मुताबिक, इनमें से डेढ़ दर्जन जिलों में भीषण हीटवेव और बाकी जिलों में हीटवेव रहा।
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, चक्रवात विपर्जॉय के चलते इस साल बिहार व उत्तरी भारत में लम्बे समय तक भीषण हीटवेव रहा।
दक्षिण बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ अर्थ बायोलॉजिकल एंड एनवायरमेंटल साइंस के डीन व मौसमविज्ञानी प्रो (डॉ) प्रधान पार्थ सारथी ने कहा कि अरब सागर में बना चक्रवात विपर्जॉय लगभग 10 दिनों तक रहा, जिसकी वजह से पश्चिम हवा बिहार और उत्तर भारत में सक्रिय रही।
“पश्चिमी हवा ने बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाओं को रोके रखा, जो बादल बनाती है और बारिश का कारण बनती है। यही वजह है कि इस बार लम्बे समय तक हीटवेव की स्थिति रही,” उन्होंने कहा।
मौसस विज्ञानियों का कहना है कि अरब सागर में चक्रवात काफी कम बना करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते अब अरब सागर में भी बंगाल की खाड़ी की तरह अधिक चक्रवात बनने लगे हैं।
सामान्य से काफी कम बारिश
इस बार बिहार में बारिश सामान्य से बेहद कम दर्ज की गई है। मई महीने में बिहार में 59.1 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन मौसमविज्ञान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल मई महीने में महज 40.1 मिलीमीटर बारिश ही हुई, जो सामान्य से 32 प्रतिशत कम कर रही।
आंकड़े बताते हैं कि इस सीजन में अब तक बिहार के जिलों में बारिश सामान्य से 50 से 90 प्रतिशत तक कम हुई है। वहीं, एक जून से 28 जून तक हुई बारिश के आंकड़े देखें, तो 37 जिलों में सामान्य से काफी कम बारिश दर्ज की गई है। मुजफ्फरपुर में अब तक 127.9 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन महज 0.4 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य 99 प्रतिशत कम है। इसी तरह सारण में 100.1 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 1.8 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 98 प्रतिशत कम है।
सीमांचल के किशनगंज में हालांकि सामान्य से सिर्फ 21 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है। अररिया में अब तक 233 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 167.5 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 28 प्रतिशत कम है। पूर्णिया में 247.3 मिलीमीटर तक बारिश होना चाहिए थी, लेकिन अब तक 81.8 मिलीमीटर बारिश ही हुई है। कटिहार में कुल 70.1 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 62 प्रतिशत कम है। बिहार के एक मात्र जिला कैमूर में अब तक सामान्य से 10 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज हुई है।
अगर पूरे बिहार में बारिश के आंकड़ों को देखें, तो देश में बिहार इकलौता राज्य हैं, जहां सबसे कम बारिश हुई है। एक जून से 28 जून तक बिहार में 140.40 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 37.10 मिलीमीटर बारिश ही हो पाई है, जो सामान्य से 74 प्रतिशत कम है। दूसरे स्थान पर केरल है। केरल में अब तक 600 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 240.10 मिलीमीटर ही बारिश हुई है, जो सामान्य से 60 प्रतिशत कम है।
सूबे में पड़ेगा सूखा!
जानकार बताते हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो इस साल भी बिहार में सूखा पड़ सकता है।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अब्दुस सत्तार ने कहा, “अभी जो स्थिति नजर आ रही है, उससे तो लगता है कि सूखा पड़ेगा, मगर जुलाई में अच्छी बारिश का अनुमान है।”
उल्लेखनीय हो कि पिछले कुछ सालों से बिहार में बाढ़ के साथ ही सूखे का भी असर देखने को मिल रहा है। पिछले साल बिहार 11 जिलों के 7841 गांव सूखे की चपेट में आये थे।
इससे पहले साल 2019 में बिहार के 18 जिलों की 896 पंचायत सूखाग्रस्त घोषित किये गये थे। वहीं, 2018 में राज्य के 23 जिलों के 206 प्रखंड सूखाग्रस्त घोषित हुए थे।
अब्दुस सत्तार ने आगे कहा, “ जुलाई में अच्छी बारिश हो भी जाए, तो धान को जो नुकसान होना था, हो चुका है। जून में लगभग नहीं के बराबर बारिश हुई है बल्कि उल्टे भीषण हीटवेव देखने को मिला है, जिससे सब्जियों पर भारी असर पड़ा है। वहीं धान की रोपाई के लिए बिचरा भी देर से डाला गया, धान की रोपाई भी देर से होगी, जिससे उत्पादन काफी कम हो जाएगा।”
धान की बुआई देर से होने से उत्पादन तो घटेगा ही साथ ही इसका असर रबी फसल पर भी पड़ेगा। धान की बुआई देर से होने से फसल की कटाई भी देर से होगी, लिहाजा, रबी फसल की बुआई भी देर से होगी। यानी की दो सीजन का फसलचक्र प्रभावित हो जाएगा।
बेगूसराय के कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी राम पाल कहते हैं, “धान की देर से रोपाई का असर अगले सीजन यानी रबी की बुआई पर भी पड़ेगा। चूंकि बहुत किसान रबी सीजन में समय पर बुआई करने के लिए अब धान की जगह दूसरी फसल लगायेंगे, तो इसका असर यह होगा कि धान की उपज कम होगी इस बार।”
उन्होंने मौसम के इस तीखे रुख को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा। “अभी हमलोगों को पंचायत स्तर तक के बारिश और तापमान के आंकड़े मिल रहे हैं। इन आंकड़ों से जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखने लगा है,” उन्होंने कहा।
अब्दुस सत्तार की तरह प्रधान पार्थ सारथी ने भी इस बार सूखा पड़ने की आशंका जताई है। उन्होंने कहा कि अब तक जो स्थिति दिख रही है, वो आसन्न सूखे की तरफ इशारा कर रही है और अगर जुलाई में भी बारिश नहीं हुई, तो राज्य भीषण सूखे की चपेट में आ सकता है।
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