पिछले तीन लोकसभा चुनावों से किशनगंज सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस इस सीट से जीतने में कामयाब रही है। 2019 के आम चुनाव में पूरे देश में मोदी लहर होने के बावजूद कांग्रेस यह सीट बचाने में सफल रही थी। किशनगंज बिहार की इकलौती सीट थी, जिस पर तब के विपक्षी गठबंधन की जीत हुई थी।
किशनगंज सीट पर अबतक कांग्रेस 9 बार जीतने में कामयाब रही है। पिछले तीन लोकसभा चुनावों के अलावा कांग्रेस ने 1957, 1962, 1971, 1980, 1984 और 1989 में यहां से जीत दर्ज की है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह सीट कांग्रेस का गढ़ है, और अब तक पार्टी इस सीट पर काफी मजबूत स्थिति में रही है।
Also Read Story
हालांकि कांग्रेस 1991-2004 के बीच इस सीट पर जीत के लिए तरसती रही। जनता दल, भाजपा और राजद के उम्मीदवारों ने इस दरमियान बाजी मारी। सीमांचल के कद्दावर नेता मो. तस्लीमुद्दीन, जनता दल के सैयद शहाबुद्दीन और भाजपा के सैयद शाहनवाज हुसैन ने इस दौरान लोकसभा में किशनगंज का प्रतिनिधित्व किया।
किशनगंज पर मुस्लिम सांसदों का रहा है दबदबा
किशनगंज लोकसभा सीट पर हमेशा से मुस्लिम सांसदों का कब्जा रहा है। सिर्फ एक बार ऐसा मौका आया जब किसी गैर-मुस्लिम उम्मीदवार ने यहां से जीतने में सफलता प्राप्त की। 1967 के लोकसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे लखन लाल कपूर यहां से सांसद बने।
1967 के लोकसभा चुनाव में लखन लाल कपूर ने कांग्रेस उम्मीदवार मो. ताहिर को 34,283 वोटों से हराया था। चुनाव में लखन लाल कपूर को 84,834 और मो. ताहिर को 50,551 वोट प्राप्त हुए थे। उसके बाद से आज तक किशनगंज सीट पर कोई गैर-मुस्लिम उम्मीदवार सांसद नहीं बन पाया है।
किशनगंज लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संविधान सभा के सदस्य मो. ताहिर, पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मो. तस्लीमुद्दीन, पूर्व डिप्लोमेट सैयद शहाबुद्दीन, पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन, पूर्व विदेश राज्य मंत्री व पत्रकार एमजे अकबर और जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के पूर्व महासचिव असरारुल हक कासमी जैसे दिग्गज नेता कर चुके हैं।
किशनगंज लोकसभा सीट के बारे में
इससे पहले कि हम आपको किशनगंज लोकसभा सीट के आंकड़ों में उलझाएं, आइए उससे पहले किशनगंज लोकसभा सीट के बारे में जान लेते हैं।
किशनगंज जिला बिहार के सबसे पूर्वोत्तर हिस्से में स्थित है। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में किशनगंज भी एक लोकसभा सीट है। इसके पूर्व में पश्चिम बंगाल का उत्तर दिनाजपूर, उत्तर में नेपाल, दक्षिण-पश्चिम में पूर्णिया और पश्चिम में अररिया जिला स्थित है।
14 जनवरी 1990 को किशनगंज जिला अस्तित्व में आया। 1990 से पहले यह पूर्णिया जिले का एक अनुमंडल था। 2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज की आबादी लगभग 17 लाख है। जिले में प्रति 1000 पुरुषों पर 946 महिलाएं हैं।
किशनगंज लोकसभा सीट के अन्तर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र हैं – किशनगंज, बहादुरगंज, कोचाधामन, ठाकुरगंज, अमौर और बायसी। अमौर और बायसी विधानसभा क्षेत्र पूर्णिया जिले के अन्तर्गत आते हैं।
ज्यादातर सांसद किशनगंज से ‘बाहर’ के रहे हैं
किशनगंज के अधिकतर सांसद किशनगंज जिले से ‘बाहर’ के रहे हैं। पिछले तीन लोकसभा चुनावों से हालांकि यह ट्रेंड बदला है। 2004 के आम चुनाव के बाद से यहां पर कोई भी ‘बाहरी’ नेता नहीं जीत पाया है। आखिरी ‘बाहरी’ सांसद मो. तस्लीमुद्दीन थे, जो मूल रूप से अररिया जिले के रहने वाले थे।
किशनगंज के पहले सांसद मोहम्मद ताहिर मूल रूप से पूर्णिया ज़िले के रहने वाले थे। उसी तरह सांसद हलीमुद्दीन, मो. तस्लीमुद्दीन, जमीलुर रहमान अररिया जिले के, एमजे अकबर पश्चिम बंगाल और सैयद शहाबुद्दीन गया ज़िले के निवासी थे। किशनगंज के इकलौते गैर-मुस्लिम सांसद लखन लाल कपूर मुंगेर के निवासी थे।
किशनगंज के बाहर के नेताओं के सांसद बनने की एक खास वजह यहां कि बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी है। मुस्लिम नेता इसे सुरक्षित सीट मानते रहे हैं।
1985 का उपचुनाव और सैयद शहाबुद्दीन
1984 में तीसरी बार किशनगंज के सांसद के बनने के बाद जमीलुर रहमान जब वापस अपने गृह जिला अररिया जा रहे थे, एक सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो गए। उन्होंने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। इस वजह से 1985 में किशनगंज लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने मौलाना मोहम्मद असरारुल हक क़ासमी को मैदान में उतारा। ‘शाह बानो मामले’ को लेकर चर्चा में आये सैयद शहाबुद्दीन को जनता दल ने अपना उम्मीदवार बनाया।
इस चुनाव में सैयद शहाबुद्दीन को 2,12,423 वोट मिले, वहीं 1,38,731 वोट लाकर असरारुल हक दूसरे स्थान पर रहे।
पूर्व पत्रकार डॉ. सजल प्रसाद बताते हैं, “1989 के चुनाव में भी सैयद शहाबुद्दीन ने किशनगंज लोकसभा से नामांकन किया था, लेकिन उनका नामांकन आश्चर्यजनक तरीके से रद्द हो गया था।”
1989 में कांग्रेस के एमजे अकबर ने 1,78,556 वोट लाकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे असरारुल हक को पराजित किया। इस चुनाव में असरारुल हक को 1,52,565 और जनता दल के मुन्ना मुस्ताक को 1,39,992 मत हासिल हुए।
हालांकि, 1991 में जनता दल ने सैयद शहाबुद्दीन को वापस उम्मीदवार बनाया और उन्होंने 2,31,703 वोट हासिल करते हुए भाजपा के विश्वनाथ केजरीवाल (1,52,075) को हराया। इस चुनाव में कांग्रेस के एम जे अकबर को 80,175 और निर्दलीय तस्लीमुद्दीन को 42,794 वोट मिले।
डॉ. सजल प्रसाद बताते हैं, “1991 में नामांकन के आखिरी घंटे में सैयद शहाबुद्दीन हेलिकाॅप्टर से आए और नामांकन दाखिल किया था।”
1996 के चुनाव में जनता दल ने तस्लीमुद्दीन को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने 3,81,530 वोट लाकर भाजपा के विश्वनाथ केजरीवाल को हराया। इस चुनाव में कांग्रेस को 15,895 वोट और सैयद शहाबुद्दीन को सिर्फ 9,095 वोट मिले।
NDA के लिए आसान नहीं होगा यहां से जीतना
देश में सत्तारूढ़ भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए यहां से जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है। भाजपा इस सीट से सिर्फ एक बार जीतने में सफल रही है। भाजपा ने 1999 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज से जीत हासिल की।
1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने राजद के मो. तस्लीमुद्दीन को 8,648 वोटों के छोटे अंतर से हराया। चुनाव में सैयद शाहनवाज को 2,58,035 और तस्लीमुद्दीन को 2,49,387 वोट प्राप्त हुए थे।
इस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार मौलाना असरारूल हक कासमी को 1,97,478 वोट मिले थे। असरारुल हक कासमी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के टिकट पर चुनाव लड़े थे। तस्लीमुद्दीन और असरारूल हक कासमी के बीच हुए वोटों के बंटवारे से भाजपा को फायदा मिला, जिससे वह जीतने में सफल रहे।
किशनगंज में तीन बार हुआ त्रिकोणीय मुकाबला
आमतौर पर इस सीट पर दो उम्मीदवारों के दरमियान ही मुकाबला देखने को मिला है। लेकिन तीन बार यहां पर उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। 1998, 1999 और 2019 के आम चुनाव में तीन उम्मीदावरों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली।
1998 के आम चुनाव में राजद के तस्लीमुद्दीन, सपा के असरारुल हक कासमी और भाजपा के सैयद शाहनवाज हुसैन के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ। तस्लीमुद्दीन ने मात्र 6,488 वोटों से असरारुल हक कासमी को शिकस्त दी। चुनाव में तस्लीमुद्दीन को 2,36,744 और असरारुल हक कासमी को 2,30,256 वोट मिले। भाजपा के शानवाज हुसैन को असरारुल हक कासमी से सिर्फ 46 मत काम यानी 2,30,210 वोट मिले।
ठीक उसी तरह 1999 के चुनाव में भी इन्हीं तीनों उम्मीदवारों के बीच टक्कर देखने को मिली। लेकिन इस बार भाजपा के सैयद शाहनवाज हुसैन ने बाजी मारी। शाहनवाज हुसैन ने राजद उम्मीदवार तस्लीमुद्दीन को मात्र 8,648 वोटों के अंतर से हराया। शाहनवाज को 2,58,035, तस्लीमुद्दीन को 2,49,387 और एनसीपी के उम्मीदवार असरारुल हक कासमी को 1,97,478 वोट प्राप्त हुए थे।
हालिया चुनाव यानि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। मुकाबला कांग्रेस के डॉ. मोहम्मद जावेद आज़ाद, AIMIM के अख्तरुल ईमान और जदयू उम्मीदवार सैयद महमूद अशरफ के दरमियान हुआ।
इस त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के डॉ. जावेद आज़ाद जीतने में कामयाब हुए। उन्होंने जदयू उम्मीदवार महमूद अशरफ को 34,446 मतों से हराया। चुनाव में कांग्रेस को 3,67,017, जदयू को 3,32,551 और AIMIM को 2,95,029 मत हासिल हुए।
2014 में अख्तरुल ईमान का कांग्रेस को समर्थन
2014 के आम चुनाव में भले ही पूरे देश में मोदी लहर रही हो, लेकिन सीमांचल में इसका उल्टा असर देखने को मिला। चुनाव में भाजपा सीमांचल की चारों सीट हार गई थी। 2014 के चुनाव में किशनगंज से कांग्रेस, पूर्णिया से जदयू, कटिहार से NCP और अररिया से राजद जीतने में सफल रहे। इतना ही नहीं किशनगंज से सटे पश्चिम बंगाल के रायगंज सीट से भी CPI(M) जीती।
किशनगंज में 2014 के लोकसभा चुनाव की वोटिंग से कुछ दिन पहले जदयू उम्मीदवार अख्तरूल ईमान ने घोषणा कर दी कि लोग उनको वोट देने की जगह कांग्रेस उम्मीदवार मौलाना असरारुल हक कासमी को वोट दें।
जानकारों का मानना है कि उस वक़्त कुछ लोगों के यह डर था कि 1999 के चुनाव की तरह फिर से वोटों के बंटवारे का फायदा भाजपा को मिल सकता है। उन्हें लगा कि कांग्रेस उम्मीदवार मौलाना असरारुल हक और जदयू प्रत्याशी अख्तरूल ईमान के बीच वोटों के बंटवारे से भाजपा उम्मीदवार डॉ. दिलीप जायसवाल की जीत हो सकती है।
अख्तरूल ईमान के चुनाव से वापसी के बाद कांग्रेस उम्मीदवार असरारुल हक कासमी ने एकतरफा मुकाबले में भाजपा के डॉ. दिलीप जायसवाल को तकरीबन दो लाख वोटों से हरा दिया।
किशनगंज से किस उम्मीदवार ने कब जीता चुनाव
चुनाव वर्ष | विजेता | प्राप्त वोट | उप-विजेता | प्राप्त वोट |
1957 | मो. ताहिर | 68,949 | बौकाई मंडल | 37,665 |
1962 | मो. ताहिर | 64,522 | बौकाई मंडल | 49,967 |
1967 | लखनलाल कपूर | 84,834 | मो. ताहिर | 50,551 |
1971 | जमीलुर रहमान | 122,619 | बालकृष्ण झा | 41,705 |
1977 | हलीमुद्दीन अहमद | 168,175 | जमीलुर रहमान | 88,045 |
1980 | जमीलुर रहमान | 170,662 | हलीमुद्दीन अहमद | 71,613 |
1984 | जमीलुर रहमान | 191,754 | मुन्ना मुश्ताक | 75,624 |
1985 (Bypoll) | सैयद शहाबुद्दीन | 2,12,423 | असरारुल हक | 1,38,731 |
1989 | एम जे अकबर | 178,556 | मो. असरारुल हक | 152,565 |
1991 | सैयद शहाबुद्दीन | 231,703 | विश्वनाथ केजरीवाल | 152,075 |
1996 | मो. तस्लीमुद्दीन | 381,530 | विश्वनाथ केजरीवाल | 216,947 |
1998 | मो. तस्लीमुद्दीन | 236,744 | असरारुल हक | 230,256 |
1999 | सैयद शाहनवाज हुसैन | 258,035 | मो. तस्लीमुद्दीन | 249,387 |
2004 | मो. तस्लीमुद्दीन | 420,331 | सैयद शाहनवाज हुसैन | 259,834 |
2009 | मो. असरारुल हक | 239,405 | सैयद महमूद अशरफ | 159,136 |
2014 | मो. असरारुल हक | 493,294 | दिलीप कुमार जयसवाल | 298,762 |
2019 | डॉ. मो. जावेद | 366,820 | सैयद महमूद अशरफ | 332,325 |
कांग्रेस सांसद डॉ. जावेद आजाद
वर्तमान में कांग्रेस के डॉ. जावेद आजाद किशनगंज से सांसद हैं। सांसद बनने से पहले वह किशनगंज और ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्रों से विधायक भी रह चुके हैं। वह 2000 और फरवरी 2005 में ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे हैं। 2010 के परिसीमन में जब उनका गृह प्रखंड पोठिया किशनगंज विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हो गया, तब वह 2010 और 2015 में किशनगंज सदर के विधायक रहे।
डॉ. जावेद का जन्म 17 जून 1963 को किशनगंज के गोआबाड़ी में हुआ था। मो. जावेद पेशे से एक चिकित्सक हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढ़ाई की है।
मो. जावेद 2000-2004 के बीच बिहार सरकार में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। वर्तमान में वह ग्रामीण विकास और पंचायती राज के स्थाई समिति के सदस्य तथा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सलाहकार समिति के सदस्य हैं।
उनके पिता स्वर्गीय मोहम्मद हुसैन आजाद 1967 से 1990 के बीच कुल पांच बार ठाकुरगंज विधानसभा सीट से विधायक रहे। इस दौरान वह बिहार सरकार में मंत्री भी बने। सांसद डॉ. जावेद की माँ सईदा बानो 2019 के किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार थीं, लेकिन उनकी ज़मानत जब्त हो गयी थी। इस चुनाव में AIMIM के कमरुल होदा जीते थे। कमरुल होदा फिलहाल राजद के किशनगंज जिला अध्यक्ष हैं।
2024 में क्या हैं संभावनाएं
कांग्रेस पिछले तीन टर्म से लगातार इस सीट से जीतने में कामयाब रही है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन से यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने की प्रबल संभावना है। लेकिन जदयू के नेता भी इस सीट पर जमकर तैयारियां कर रहे हैं।
वहीं NDA गठबंधन में यह सीट किस पार्टी की तरफ जायेगी, इसको लेकर संशय बरकरार है। 2019 में भाजपा और जदयू ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था, तो किशनगंज सीट जदयू को मिली थी। जदयू अब विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सीट NDA गठबंधन में किस पार्टी के खाते में जाती है।
भाजपा इस सीट से आखिरी बार 2014 में चुनाव लड़ी थी, लेकिन करीब दो लाख वोटों भाजपा के डॉ. दिलीप जायसवाल चुनाव हार गए थे। डॉ. दिलीप जायसवाल किशनगंज-अररिया-पूर्णिया क्षेत्र से लगातार तीन बार के MLC हैं।
उधर, किशनगंज के पूर्व भाजपा सांसद सैयद शाहनवाज़ हुसैन 2006 के उपचुनाव में भागलपुर के सांसद बन गए। 2009 में भी शाहनवाज़ यहीं से जीते, लेकिन 2014 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। 2019 में भागलपुर सीट जदयू के खाते में चली गई थी। 2024 में सैयद शाहनवाज़ हुसैन भागलपुर से ही चुनाव लड़ेंगे या वापस किशनगंज आएंगे, ये कहना फिलहाल मुश्किल है।
वहीं, 2024 में AIMIM के अख्तरुल ईमान के फिर से मैदान में आना भी तय है, इसलिए इस बार भी यहाँ त्रिकोणीय मुक़ाबला हो सकता है।
किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2020 के चुनाव में इनमें से 4 सीटों पर AIMIM ने जीत दर्ज की थी। एक-एक सीट राजद और कांग्रेस ने जीती थी। हालांकि बाद में अख्तरुल ईमान के अलावा बाकी सभी AIMIM विधायक राजद में शामिल हो गए।
वर्तमान में ठाकुरगंज से राजद के सऊद आलम, बहादुरगंज से राजद के मो. अन्जार नईमी, बायसी से राजद के सैयद रुकनुद्दीन, कोचाधामन से राजद के इजहार अस्फी, किशनगंज से कांग्रेस के इजहारुल हुसैन तथा अमौर से AIMIM के अख्तरुल ईमान विधायक हैं।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।