अयोध्या में श्री राम के मंदिर के भूमि पूजन में कितने लोगों को बुलाया गया, किसको नहीं बुलाया गया, इनविटेशन कार्ड की डिज़ाइन से लेकर उसकी खूबियों तक, मंदिर के मॉडल से लेकर टाइम कैप्सूल तक और पीएम मोदी ने कितनी बार राम के सामने हाथ जोड़े और कितने सेकंड तक अपना शीश नवाया, ये सारी जानकारियां आपको मिल चुकी होंगी.
लेकिन हम आपको वो जानकारी देने जा रहे हैं जिसे जानना जरूरी है. दशकों के इंतज़ार और संघर्ष के बाद आखिरकार भगवान राम के मंदिर के लिए भूमि पूजन हो गया. रामजन्मभूमि आंदोलन और अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराने तक में बिहार की भूमिका अहम रही है. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 9 नवंबर, 1989 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास कार्यक्रम में नींव की पहली ईंट भी बिहार के ही एक दलित नेता कामेश्वर चौपाल ने रखी थी. उन्हीं कामेश्वर चौपाल को राम मंदिर के 15 सदस्यीय ट्रस्ट का सदस्य भी बनाया गया है और वो अयोध्या में भूमि पूजन में भी मौजूद भी थे.
इसके अलावा बिहार के ही सैयद शहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद के हक में बोलने वाले बड़े नेताओं में शुमार थे. 23 दिसंबर 1986 को तत्कालीन जनता पार्टी के सांसद सैयद शहाबुद्दीन ने अखिल भारतीय बाबरी मस्जिद कांफ्रेंस के बैनर तले 10 सदस्यीय बाबरी मस्जिद मूवमेंट कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन किया और मुसलमानों से गणतंत्र दिवस का बहिष्कार करने की अपील की थी. इतिहास में संभवत: वो पहले ऐसे राजनेता बन गए थे, जिसने लोकतंत्र के पर्व रिपब्लिक डे का विरोध किया. आईएफएस अधिकारी एवं ऑल इण्डिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशवरत के पूर्व प्रेसिडेंट सैयद शहाबुद्दीन बाबरी मस्जिद के पक्ष में बोलने वाले प्रखर लोगों में से एक थे, वो किशनगंज लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी चुने गए.
लालमुनि चौबे से लेकर रविशंकर प्रसाद तक, बिहार से जुड़े ऐसे तमाम नाम हैं जिनकी राम जन्मभूमि विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राम जन्मभूमि आंदोलन की सबसे ऐतिहासिक घटना भी बिहार में ही घटित हुई थी. साल 1990 में BJP के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा शुरू की थी. देश ‘मंदिर वहीँ बनाएंगे’ के नारों से गूंज रहा था. 30 अक्टूबर को यह रथयात्रा अयोध्या पहुंचनी थी लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस रथयात्रा का खुलकर विरोध किया.
कई राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच आडवाणी 19 अक्टूबर को धनबाद के लिए रवाना हो गए, तब धनबाद बिहार का ही हिस्सा था. यहां से रथयात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत होनी थी, जो सीधे अयोध्या पहुंचती. लेकिन आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान लालू प्रसाद यादव के दिमाग में कुछ औऱ ही चल रहा था.
इस यात्रा के खिलाफ लालू यादव ने 21 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में सांप्रदायिकता विरोधी रैली की थी, जिसमें उन्होंने कहा कि कृष्ण के इतिहास को दबाने के लिए ही आडवाणी राम को सामने ला रहे हैं. लालू प्रसाद यादव ने रैली में आडवाणी को चेतावनी तक दे डाली.
आडवाणी की रथयात्रा रोकने के मकसद से बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह को निर्देश दिया कि वो आडवाणी को वहीं गिरफ्तार कर लें. प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तारी का वारंट तैयार करके संबंधित अधिकारियों को दे दिया था, लेकिन अमानुल्लाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. अमानुल्लाह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन के दामाद थे.
उन्हें लगा कि उनके इस कदम से गलत संदेश जा सकता है और समाज में तनाव बढ़ेगा. 22 अक्टूबर की शाम आडवाणी पटना पहुंचे. 23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी ने पटना के गांधी मैदान में एक विशाल रैली को सम्बोधित किया.
पटना में रैली के बाद आडवाणी ने हाजीपुर और ताजपुर में बैठकों में हिस्सा लिया और देर रात समस्तीपुर के सर्किट हाउस पहुंचे. लालू यादव उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे. लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे और लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाए. हालांकि, उस शाम आडवाणी के साथ काफी समर्थक भी थे. ऐसे में उस दौरान गिरफ्तारी के बाद बवाल होने की आशंका भी थी. लिहाजा लालू यादव ने इंतजार करना ठीक समझा. इसके बाद देर रात करीब दो बजे लालू यादव ने खुद पत्रकार बनकर सर्किट हाउस में फोन किया जिससे पता लगाया जा सके कि आडवाणी के साथ सर्किट हाउस में कौन-कौन हैं. लालू यादव का फोन आडवाणी के एक सहयोगी ने उठाया और बताया कि वो सो रहे हैं और सारे समर्थक जा चुके हैं.
आडवाणी को गिरफ्तार करने का यह सबसे बेहतरीन मौका था. सुबह तड़के ही वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया गया. हवाई पट्टी तैयार की गई और बिहार से देश के बाकी हिस्सों के लिए फोन लाइनों का संपर्क कुछ देर के लिए तोड़ दिया गया. सुबह 6 बजे आरके सिंह जो कि अभी आरा से बीजेपी के सांसद और केंद्र में मंत्री भी हैं ने आडवाणी के कमरे का दरवाजा खटखटाया और उन्हें अरेस्ट वॉरंट दिखाया.
आडवाणी को गिरफ्तार करके चुपके से उन्हें हेलिकॉप्टर ले जाया गया. रथ यात्रा रोकने के बाद लालू यादव ने जो कुछ कहा वो समय-समय पर आज भी याद किया जाता है. लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी. लेकिन इससे पहले 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. आडवाणी के साथ प्रमोद महाजन को भी गिरफ्तार किया गया. प्रशासन ने उनके रथ को भी जब्त कर लिया. आडवाणी को सरकार के हेलिकाप्टर से प्रमोद महाजन के साथ मसान जोर स्थित मयूराक्षी सिंचाई परियोजना के निरीक्षण भवन में भेज दिया गया.
आडवाणी की गिरफ्तारी से देश की सियासत में भूचाल आ गया था और आडवाणी ने केंद्र की वीपी सिंह की सरकार को कमजोर बताते हुए समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. मजेदार बात ये है कि वीपी सिंह की सरकार में खुद लालू यादव भी शामिल थे, यानी सरकार गिरने से वो भी केंद्र सरकार से बाहर हुए लेकिन आडवाणी की गिरफ्तारी की घटना ने क्षेत्रीय सियासत में लालू यादव का कद काफी ऊंचा कर दिया था.
जानकारों के मुताबिक, आडवाणी की रथ यात्रा के विरोध के बहाने लालू प्रसाद अल्पसंख्यक के साथ-साथ अपने यादव वोट बैंक को भी मजबूत बना रहे थे. यानी भले ही देश की सरकार लालू यादव ने गंवाई, लेकिन इसके बाद से मुसलमान और यादव का मजबूत गठजोड़ लालू यादव ने बना लिया. जिसका फायदा 15 सालों तक मिला. उसी का परिणाम है कि आज भी आरजेडी में MY समीकरण मजबूत दिखाई पड़ता है. इस घटना के बाद लालू यादव रातों-रात राष्ट्रीय परिदृश्य पर छा गए और सेक्युलर नेता के तौर पर उनकी छवि और भी मजबूत हो गई.
अब बात बिहार चुनाव की कर लेते हैं. पिछले चुनावों में BJP को बिहार में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी, तब नीतीश कुमार ने लालू यादव से हाथ मिलाया था और मोदी लहर को बिहार में धूल चटा दी थी. लेकिन अब नीतीश वापस से NDA में शामिल हो चुके हैं और लालू यादव जेल में बंद हैं, ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनावों में क्या खिचड़ी पकेगी ये तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन इतना तो तय है कि आज अयोध्या में हुए राम मंदिर भूमि पूजन का सीधा असर बिहार चुनाव पर पड़ेगा. चूंकि अयोध्या वाले राम का बिहार से पौराणिक और ऐतिहासिक संबंध रहा है ऐसे में आने वाले चुनाव में भी राम एक बड़ा चुनावी मुद्दा रहने वाले हैं.
BJP के सहयोग से नीतीश कुमार बिहार में सरकार चला रहे हैं, आने वाले चुनाव में एक बार फिर से वही NDA के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. राम मंदिर और बाबरी मस्जिद हमेशा से ही विवादास्पद मुद्दा रहा है, राममंदिर आंदोलन के दौरान देश में कई जगहों पर हिंसा हुई, बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में आज तक मुकदमा चल रहा है, लेकिन नीतीश कुमार की साम्प्रदायिकता से समझौता न करने का दावा इस मुद्दे पर आकर दम तोड़ देता है.
नीतीश कुमार ने आज तक न तो राम मंदिर का समर्थन किया और न ही कभी खुलकर उसका विरोध किया. हालांकि वो ये जरूर कहते रहे हैं कि न्यायालय के फैसले और दोनों पक्षों की सहमति से ही विवादास्पद जमीन का फैसला होना चाहिए. NDA से अलग होने के बाद तो राम मंदिर के मुद्दे पर नीतीश ने BJP पर कई बार तंज भी कसे हैं.
साल 2015 में तो नीतीश ने यहां तक कहा था कि BJP के नेताओं को श्री राम में कोई आस्था नहीं है, बल्कि वो सिर्फ लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करना चाहती है. BJP-आरएसएस के लोग राम का नाम ऐसे लेते हैं जैसे वो BJP के सदस्य हों. लेकिन NDA में वापस आने और सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के लिए हरी झंडी मिलने के बाद नीतीश कुमार के सुर जरूर बदल गए हैं.
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जिस तरह से वो BJP के सामने नतमस्तक हुए हैं, वैसे में अब वो इस मुद्दे पर BJP को कुछ बोलने की सपने में भी नहीं सोच सकते.
साल 2011 में जारी जनगणना के मुताबिक बिहार की करीब 83 फीसदी आबादी हिन्दू है जबकि मुस्लिमों की तादाद करीब 17 फीसदी है.
बिहार के चार जिलों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में मुस्लमानों की संख्या 40 फीसदी से ज्यादा है. इन चार जिलों में पड़ने वाली विधानसभा की 24 सीटों पर जीत और हार की चाबी मुसलमानों के ही हाथ में है.
इनके अलावा 54 सीटों पर इनकी आबादी 16.5 से 25% तक है, और किसी पार्टी की जीत में यह अहम भूमिका निभा सकते है.
यानी ये कहा जा सकता है कि बिहार की कुल 243 में से 80 सीटों पर मुस्लिम वोट सीधे-सीधे नतीजों पर असर डाल सकते हैं. ज़ाहिर है BJP की नज़र इन्हीं 83 फीसदी हिंदुओं को एकजुट करने पर रहेगी, इसके लिए वो विरोधी दलों के वोटबैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश करेंगे. सत्ताधारी दलों की सबसे ज्यादा कोशिश उन 80 सीटों पर हिंदुओं को एकजुट करने में रहेगी जहां मुस्लिम हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं.
BJP राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और आज हुए भूमि पूजन को अपनी उपलब्धि बताएगी और ये संदेश देने की कोशिश करेगी कि सालों तक चले इस विवाद का अंत और करोड़ों हिंदुओं की आस्था श्री राम को उनका जन्मस्थान वापस दिलाने में उन्होंने किस कदर मेहनत की है. साथ ही वो बिहार में लोगों को यह भी याद दिलाएगी कि किस तरह से RJD सुप्रीमो लालू यादव ने रथ यात्रा का विरोध किया था.
बिहार में विपक्षी दल इस बात से सहमे हुए हैं, इसीलिए कोई भी विरोधी नेता राममंदिर के मुद्दे पर खुलकर नहीं बोल रहा. यहां तक कि कई विपक्षी पार्टियां तो अब सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर जा रही हैं और राम मंदिर में अपनी भूमिका तक गिनाने लगी हैं.
कांग्रेस नेता जनता को अब याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से राजीव गांधी ने विवादास्पद जमीन पर राम मंदिर का ताला खुलवाया था. प्रियंका गांधी से लेकर कमलनाथ तक अब राम-राम जपने लगे हैं.
मध्यप्रदेश में उपचुनाव को देखते हुए कमलनाथ तो पूरा भगवामय हो चुके हैं, अंदाज़ा लगाइए कि बिहार चुनाव में कांग्रेस क्या करेगी.
बिहार में मुख्य विपक्षी दल RJD खुलकर तो राम मंदिर का विरोध नहीं कर रही लेकिन RJD नेता मनोज झा ने भूमि पूजन के समय पर सवाल जरूर खड़े किए हैं.
BBC को दिए बयान में उन्होंने कहा है कि जब राम मंदिर के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है तो फिर जल्दबाजी की कोई जरूरत नहीं थी. ज़ाहिर तौर पर RJD को ये डर सता रहा है कि राम मंदिर का मुद्दा बिहार चुनाव में उनपर भारी पड़ सकता है.
हालांकि AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर राम मंदिर का विरोध किया है और कहा है कि वहां बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी.
ओवैसी की पार्टी का बिहार में एक विधायक भी है और सीमांचल के मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर वो इस चुनाव में राम मंदिर के विरोध के दम पर मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने की पूरी कोशिश करेंगे। यानी कह सकते हैं अगला बिहार चुनाव राम भरोसे ही होगा।
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