बिहार के अररिया जिले की बसंतपुर पंचायत के हज़ारों लोग आज़ादी के बाद से अब तक एक पुल के इंतज़ार में हैं। आवाजाही के लिए 2 महीने पहले चचरी का एक पुल बनाया गया है। हर साल बरसात के दिनों में पानी के तेज़ बहाव में चचरी पुल बह जाता है। साल में 6 से 7 महीने नदी का जलस्तर अधिक रहने से लोगों को नाव के सहारे नदी पार करना पड़ता है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि जब नदी का पानी खतरनाक रूप से बढ़ता है, तो लोगों को अररिया तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है। हालांकि नदी को पार करके अररिया बाजार सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर है।
यह चचरी पुल नगर परिषद वार्ड संख्या 29 और बसंतपुर पंचायत के मानिकपुर, बसंतपुर, अज़मतपुर जैसे कई गांवों के लोगों के लिए लाइफलाइन का काम करता है। बरसात के दिनों में अक्सर बाढ़ जैसे हालत होते हैं, ऐसे में ग्रामीणों को, पास में होने के बावजूद, शहर तक जाने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
‘रोज़ 40 रुपए देने पड़ते हैं’
मानिकपुर निवासी मेहफ़ूज़ा मज़दूरी कर जीवनयापन करती हैं। उन्होंने कहा कि बाढ़ के दिनों में काम पर जाने-आने में उन्हें गाड़ी वाले को रोज़ 40 रुपए देने पड़ते हैं, जिस कारण दिहाड़ी में से ज्यादा कुछ नहीं बच पाता।
वह कहती हैं, “डेली 40 का भारा लगता है। गरीब मज़दूर हैं, मज़दूरी करते हैं। अभी तो चचरी पुल है तो चले जाते हैं, जब बाढ़ आता है तो उसमें कैसे जाएंगे? हर रोज़ 40 रुपये गाड़ी वाला को देते हैं तो गरीब मज़दूर के पास क्या बचेगा। बरसात के वक्त इतना घूम के जाना पड़ता है। बहुत दिक्कत होती है, हमारे घर में पानी घुस जाता है। यहां पुल भी नहीं बन रहा है। बहुत दिक्कत है हमलोग को।”
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पुल नहीं बना, तो चुनाव का बहिष्कार करेंगे ग्रामीण
सर पर पत्तों की गठरी उठाए चचरी पुल से गुज़र रहीं बीबी फ़ातेमा ने बताया कि पुल न होने के कारण मरीज़ों को 10 किलोमीटर घूम कर अस्पताल ले जाना पड़ता है। सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं को होती है। अस्पताल जाते जाते इतना समय लग जाता है कि मरीज़ की तबीयत और बिगड़ जाती है। कई बार गंभीर अवस्था वाले मरीज़ों की मौत भी हो जाती है।
आगे उन्होंने कहा कि अगर पुल निर्माण नहीं हुआ तो ग्रामीण आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करेंगे।
“बहुत परेशानी है। डेलिवेरी में, मरीज़ को ले जाने में बहुत परेशानी है। हमलोग बेलवा पुल होकर आते हैं, तब तक कभी मरीज़ आधे रास्ते में ही मर जाता है। यहां नदी में कोई साधन नहीं है। नैय्या भी कभी चलती है, कभी डूब जाती है। हमलोग पानी में हेलते हैं, घर में भी बाढ़ का पानी घुस जाता है। जब तक पुल नहीं बनेगा, तब तक हमलोग सब पब्लिक मिल कर के किसी को एमपी एमएलए का वोट नहीं देंगे,” बीबी फ़ातेमा बोलीं।
बसंतपुर वार्ड संख्या 29 के रहने वाले एक बुज़ुर्ग मोहम्मद जमील ने बताया कि दो महीने पहले ही चचरी का पुल बनाया गया है। साल के 7 महीने पानी का स्तर काफी अधिक होता है इसलिए ग्रामीण नाव का इस्तेमाल करते हैं। उनके अनुसार, उनके जन्म के पहले से ही ऐसे हालात हैं। दशकों से गांव वालों को पुल न होने से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, “यह पुल अभी 2 महीने पहले ही बना है। इससे पहले हमलोग नाव में चलते थे। साल में 7 महीना नाव से जाते हैं बाकी 4-5 महीना चचरी पुल या फिर ऐसे ही जाते हैं। जब से हम जन्म लिए हैं तब से ऐसा ही हालत है।”
मोहम्मद जमील ने आगे बताया कि उन्हें अररिया बाज़ार जाने के लिए एक बार नदी से होकर जाना पड़ता है और नदी आने से पहले मरिया धार पार करना पड़ता है। “आगे एक धार है, उसमें भी एक नाव चलती है। अभी वहां पानी सूख गया है। एक नाव उस धार में चलती है और एक नाव यहां चलती है। पहले नदी पार करते हैं और फिर धार पार करते हैं तब घर पहुंचते हैं,” उन्होंने कहा।
‘एक किलोमीटर दूर है बाज़ार, 10 किलोमीटर घूम कर जाते हैं’
पूर्व वार्ड पार्षद कशफुद दुजा ने बताया कि करीब आधा दर्जन गांव के लोग इसी रास्ते से आते जाते हैं। बच्चों को स्कूल जाना हो या मरीज़ को अस्पताल, बरसात के दिनों में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। किसी की मृत्यु हो जाने पर लोग गांव नहीं आ पाते। बरसात के दिनों में एक नाव के सहारे लोग बाज़ार आते जाते हैं।
उन्होंने कहा, “यहां आने जाने में बहुत परेशानी होती है। अगर कोई बीमार पड़ जाए या कोई मैय्यत हो जाए तो बहुत दिक्कत होती है। यहां के छोटे बच्चों को अगर पढ़ने जाना हो तो आसानी से नहीं जा पाते हैं। यह आधा किलोमीटर की दूरी पर है अररिया शहर से, इसके बावजूद यहां से 10 किलोमीटर का सफर तय कर अररिया जाना पड़ता है।”
वह आगे कहते हैं, “बसंतपुर में एक मस्जिद है वहां से नाव चलती है और वहां से हरियाली मार्किट में नाव रुकती है। किसी को आधे घंटे का भी काम है और अगर उसे सैलाब के दिनों में बाजार जाना हो तो उसे मार्किट से घर लौटने में सुबह से शाम हो जाएगी जबकि मात्र आधे किलोमीटर की दूरी है।”
हर साल लाखों खर्च कर चचरी पुल बनाते हैं ग्रामीण
कश्फुद दूजा ने बताया कि ग्रामीण आपस में चंदा कर के हर साल चचरी पुल का निर्माण करते हैं। इसे बनाने में बांस, रस्सी और मज़दूरी में 3 से 4 लाख का खर्च आता है।
“इसमें 3 से 4 लाख रुपये का खर्च आ जाता है। 5-6 बस्ती वाला इसमें पैसा देता है। सबसे चंदा कर के हर साल चचरी पुल बनता है। यह बहुत जमाने से हो रहा है। हर साल काफी पैसा खर्च होता है। हमलोग आने जाने का पैसा नहीं लेते हैं क्योंकि सब आने जाने वाला बस्ती का ही आदमी है। 5-6 महीने के लिए हर साल चचरी का पुल बनता है उसमें 3- 4 (लाख) लग जाता है,” कश्फुद दूजा बोले।
क्या पुल बनाने में जिला प्रशासन कर रहा ढिलाई ?
कश्फुद दूजा ने आगे कहा कि मानिकपुर, अज़मतपुर और बसंतपुर में ही 20 से 25 हज़ार की आबादी है। पुल न होने के कारण इतनी बड़ी आबादी प्रभावित हैं। उनके अनुसार, पूर्व सांसद मरहूम तस्लीमुद्दीन के कार्यकाल में पुल का डीपीआर बनाया गया था, लेकिन पुल नहीं बन सका।
उन्होंने कहा, “आज़ादी से पहले भी यही हाल था और आज तक यही हाल है। इससे पहले मरहूम तस्लीमुद्दीन साहब जब सांसद थे तब वह कोशिश कर के डीपीआर वग़ैरह बना दिए थे और बीच में हम जब नगर पार्षद थे तब अररिया जिला पदाधिकारी को प्रशासनिक स्वीकृति के लिए चिट्ठी आई थी। प्रशासनिक स्वीकृति को देते हुए यहां से भेजा गया है कि नहीं, कोई बताने वाला नहीं है यहां।”
इस मामले में हमने अररिया के विधायक आबिदुर रहमान के कार्यालय से संपर्क किया। वहां से बताया गया कि पुल निर्माण के लिए टेंडर पास हो चुका है। बिहार राज्य पुल निगम इस पुल का निर्माण करेगा। उम्मीद है जल्द काम शुरू हो जाएगा।
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