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सुपौल की सामान्य सीट से दलित उम्मीदवार लगा पाएगा राजद का बेड़ा पार?

चंद्रहास चौपाल वर्तमान में सिंघेश्वर विधानसभा से विधायक हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले चंद्रहास चौपाल भाजपा में थे। इस विधानसभा चुनाव में सिंहेश्वर सुरक्षित विधानसभा सीट जदयू के खाते में गई तो तत्कालीन एससी-एसटी कल्याण मंत्री डॉ. रमेश ऋषिदेव को टिकट मिला। इधर, चंद्रहास चौपाल विधानसभा चुनाव से कुछ समय पूर्व ही राजद ज्वाइन कर टिकट लिए थे।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
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बिहार में राजद ने 22 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया है। इनमें से सुपौल सीट के उम्मीदवार के नाम ने सभी को चौंका दिया है। क्योंकि, इस बार बिहार में राजद पहली पार्टी है जिसने सामान्य सीट पर किसी दलित को मौका दिया है। वह नाम चंद्रहास चौपाल का है। अब सवाल है कि आखिर तेजस्वी यादव ने यह दांव क्यों खेला है? क्या राजद का यह प्रयोग सफल हो पाएगा? क्योंकि भाजपा ने यहां यह प्रयोग पहले किया था लेकिन वह असफल रही थी।

सक्षम मिश्रा एक राष्ट्रीय पार्टी की नैरेटिव टीम में काम करते हैं। वह मुख्य रूप से कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र की राजनीति पर काम कर रहे हैं। वह बताते हैं, “सोशल मीडिया मॉनिटरिंग इस बात की ओर इशारा कर रही है कि राजद ने भाजपा को वॉक ओवर दे दिया गया है। सच यह है कि अगर राजद की टीम अच्छे से काम करे तो सुपौल में टक्कर दे सकती है क्योंकि सुपौल में दलित जातियों की संख्या अच्छी-खासी है। इसका अनुमान आपको इस बात से लग सकता है कि भाजपा ने अपना जिलाध्यक्ष एक मुसहर जाति के व्यक्ति को बनाया है। साथ ही 2014 में दलित जाति के ही कामेश्वर चौपाल को उम्मीदवार भी बनाया था। ऐसे में पूरी चुनावी राजनीति को दलित पर केंद्रित करके राजद यह सीट निकाल सकती है।”

सुपौल के ही मैथिली भाषा के लेखक अरुण कुमार झा बताते हैं, “चौपाल जाति को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया गया है, लेकिन सामाजिक तौर पर यह जाति ब्राह्मणवादी विचारधारा के लिए कभी भी अछूत नहीं रही है। गांव में अधिकांश लोग चौपाल जाति को पचपनिया में गिनते हैं। अधिकांश पचपनिया जातियां अति पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं। पूरे बिहार में चौपाल जाति अभी मुख्य रूप से भाजपा की कोर वोटर है।”


“सुपौल के ही कामेश्वर चौपाल अयोध्या मंदिर ट्रस्टी में शामिल हैं। ऐसे में सुपौल लोकसभा क्षेत्र से चौपाल जाति के कैंडिडेट को टिकट देना राजद का अच्छा दांव है। इससे दलित व पचपनिया दोनों निश्चित तौर पर प्रभावित होंगे,” उन्होंने कहा।

स्थानीय पत्रकार नवीन बताते हैं, “वर्तमान सांसद के खिलाफ काफी एंटी कंबेंसी है। ऐसे में जनता को विकल्प चाहिए था। लेकिन नए चेहरे के तौर पर चंद्रहास चौपाल को क्षेत्र के कई लोग नहीं जानते है। यह सिंहेश्वर से विधायक हैं, जो मधेपुरा जिले में पड़ता है। (हालांकि, सिंहेश्वर विधानसभा सुपौल लोकसभा का ही हिस्सा है)
वहीं जातिगत राजनीति में चंद्रहास चौपाल का पलड़ा थोड़ा भारी है। दिलेश्वर कामत की पूरी वोटिंग मोदी और नीतीश कुमार के चेहरे पर निर्भर है। ऐसे में चंद्रहास चौपाल के लिए यह सीट निकालना चुनौतीपूर्ण होगा।”

आंकड़ों और तथ्यों से समझिये चुनावी गणित

2014 के चुनाव में भाजपा ने चौपाल जाति से ही कामेश्वर चौपाल को टिकट दिया था। उस वक्त भी यह सामान्य सीट ही थी। इस चुनाव में भाजपा, जदयू और राजद तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव में यादव जाति के कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत रंजन को 3,32,927 (34.30%) वोट मिले थे, जबकि धानुक जाति के जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कामत को इस चुनाव में 2,73,255 (28.15%) वोट मिले थे। भाजपा के उम्मीदवार कमलेश्वर चौपाल को उस चुनाव में 2,49,693(25.73%) वोट मिले थे।

फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा और जदयू एक साथ हुई तो जदयू के दिलेश्वर कामत ने जीत दर्ज की। दिलेश्वर कामत ने कांग्रेस की दिग्गज नेता रंजीत रंजन को 2,66,853 वोटों से हराया था। जदयू के नेता दिलेश्वर कामत को 5,97,377 वोट यानी 56.80 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार रंजीत रंजन को 3,30,524 यानी 29.76 प्रतिशत वोट मिले थे। इस चुनाव में क्षेत्र का एक बड़ा धानुक चेहरा विश्व मोहन कुमार भी चुनाव मैदान में थे।। उन्हें 23000 यानी 2% वोट मिले थे। उन्होंने दिलेश्वर कामत का ही वोट काटा था।

परिसीमन के बाद 2008 में सुपौल अलग लोकसभा सीट बनी। ऐसे में 2009 में हुए चुनाव का आंकड़ा देखें तो इस चुनाव में भी रंजीत रंजन करीब डेढ़ लाख वोट से हार गई थीं। वहीं, एनडीए संयुक्त प्रत्याशी विश्व को मोहन कुमार जीत दर्ज किए थे।

चुनावी नतीजे इस बात की और इशारा करते हैं कि भाजपा-जदयू गठबंधन के बाद एनडीए के पक्ष में इस सीट का पलड़ा भारी है। वहीं, अगर जातीय समीकरण को देखें तो अभी तक हुए तीनों लोकसभा चुनाव में मुख्य रूप से यादव बनाम धानुक उम्मीदवार की टक्कर हुई है। स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में चौपाल जाति के उम्मीदवार को चौपाल, सवर्ण, वैश्य के अलावा पासवान और पचपनिया जाति का भी कुछ सपोर्ट मिला था।

2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार दलित जाति के चौपाल बनाम धानुक की सीधी टक्कर होगी। सुपौल लोकसभा के जातीय समीकरण को देखें तो अनुमानतः यहां यादव लगभग 20%, मुस्लिम 16%, धानुका 8%, मुसहर 6 %, भुइया 5%, कोइरी-कुशवाहा 4%, मल्लाह 4%, ब्राह्मण 4%, रविदास 4% और तेली लगभग 3% हैं।

स्थानीय पत्रकार के मुताबिक अगर राजद उम्मीदवार माय समीकरण के साथ-साथ दलित जातियों और अति पिछड़ी जातियों के वोट में सेंध लगा दे, तो भाजपा के इस किले को ढाह सकता है।

चंद्रहास चौपाल वर्तमान में सिंघेश्वर विधानसभा से विधायक हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले चंद्रहास चौपाल भाजपा में थे। इस विधानसभा चुनाव में सिंहेश्वर सुरक्षित विधानसभा सीट जदयू के खाते में गई तो तत्कालीन एससी-एसटी कल्याण मंत्री डॉ. रमेश ऋषिदेव को टिकट मिला। इधर, चंद्रहास चौपाल विधानसभा चुनाव से कुछ समय पूर्व ही राजद ज्वाइन कर टिकट लिए थे।

2020 के विधानसभा चुनाव में सिंघेश्वर विधानसभा सीट पर चंद्रहास चौपाल ने तत्कालीन विधायक व मंत्री रमेश ऋषिदेव को 5573 वोट से चुनाव हराया था। 2020 के विधानसभा चुनाव में दिए गए हलफनामे के मुताबिक, 46 वर्षीय चंद्रहास चौपाल का पेशा कृषि एवं टेंट व्यवसाय है। वह 86 लाख की संपत्ति के मालिक हैं।

राजद कैंडिडेट चंद्रहास चौपाल ‘मैं मीडिया’ से बात करते हुए बताते हैं, “दलित व वंचित जातियों की राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए लालू प्रसाद यादव ने कई बार इस तरह का कारनामा किया है। पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी और कपड़ा धोने वाली मुन्नी रजक को भी इन्होंने जनता की सेवा करने का मौका दिया था। मिथिला में कहावत है “जिसका बाप पोखर खुदवाता है उसी का बेटा कुआं खुदवा सकता है।” तभी तो लालू प्रसाद यादव के नक्शे कदम पर चलते हुए तेजस्वी यादव ने एक जनरल सीट से दलित को टिकट देने का फैसला लेकर दलित और वंचित जातियों की राजनीति को एक नया आयाम दिया है।”

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“सुपौल लोकसभा सीट पर यह इतिहास रचने का मौका है। 21वीं सदी के बसे से बड़े दलित नेता दिवंगत रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी हो या बहन मायावती, शायद ही कोई भी जनरल सीट से खुद खड़ा होकर चुनाव जीते होंगे या किसी दलित उम्मीदवार को खड़ा किए होंगे।”

सुपौल में यादव समुदाय, दलित चेहरा चंद्रहास चौपाल के साथ चुनाव में खड़ा रहेंगे?

2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव के विरोध में कांग्रेस के मिन्नत रहमानी जब खड़े हुए थे, तो मिन्नत रहमानी 28,000 वोट से चुनाव हारे थे। इस विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से यादव और मुसलमानों का ही वोट है। अगर इन दोनों का वोट एक कैंडिडेट को मिलता तो उसका जीतना तय था। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि यादव का गढ़ कहलाने वाले सुपौल में यादव समुदाय दलित चंद्रहास चौपाल को वोट करेगा?

इस सवाल पर राजद के युवा जिलाध्यक्ष लव यादव कहते हैं, “एक जनरल सीट पर दलित कैंडिडेट को खड़ा करके राजद पार्टी ने पूरे बिहार में एक मजबूत मैसेज देने का काम किया है। पूरा यादव समुदाय राजद के साथ मजबूती से खड़ा है। हम लोग पूरी मजबूती के साथ चंद्रहास चौपाल जी के साथ खड़े हैं।”

वहीं, 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के विजेंद्र प्रसाद यादव के विरोध में खड़े कांग्रेस के प्रत्याशी मिन्नत रहमानी कहते हैं, “2020 के चुनाव में मुझे 58,000 वोट मिला था। जबकि मुसलमानों की पूरी संख्या लगभग 20 से 25 हजार होगी यानी कि मुझे अन्य समुदायों का भी वोट मिला था। इसी तरह इस बार भी पूरा महागठबंधन चंद्रहास चौपाल जी के साथ खड़ा है। “

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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