करीब एक दर्जन नौजवानों की एक टोली तकरीबन 160 किलोमीटर लम्बी एक पदयात्रा पर निकली है। जी, 160 किलोमीटर। 160 किलोमीटर दूरी पश्चिम बंगाल (West Bengal) के उत्तर दिनाजपुर ज़िले (Uttar Dinajpur District) के जिला मुख्यालय से सबसे दूर बसे सोनापुर इलाके की है। यानी जिला मुख्यालय में किसी को कुछ काम हो तो 320 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
इसको ऐसे समझिये कि सिलीगुड़ी से कोलकाता की दूरी लगभग 550 किलोमीटर है, किशनगंज से पटना की दूरी लगभग 370 किलोमीटर है।
Also Read Story
इसलिए, यहाँ के लोग दशकों से उत्तर दिनाजपुर ज़िले के इस्लामपुर सब-डिवीज़न (Islampur Sub-Division) या महकमा को अलग जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। इस्लामपुर सब-डिवीज़न में पांच ब्लॉक हैं – चोपड़ा, इस्लामपुर, गोआलपोखर, चाकुलिया या गोआलपोखर-II और करनदीघी।
ये पांच ब्लॉक पांच अलग-अलग विधानसभा भी हैं और 2021 में पहली बार सभी पाँच विधानसभाओं से पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस जीती है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने 1 अगस्त को राज्य में जब सात नए जिलों के निर्माण को मंजूरी दे दी, तो इसमें इस्लामपुर का नाम नहीं था।
राज्य में सात नए ज़िले बनने से कुल जिलों की संख्या 23 से बढ़कर 30 हो गई है। इन सात नए ज़िलों में सुंदरवन (Sundarban) , इच्छामति (Ichamati), राणाघाट (Ranagat), बेहरामपुर (Berhampore), जांगीपुर (Jangipur), बशीरहाट (Basirhat) और विष्णुपुर (Bishnupur) शामिल हैं।
लेकिन, अलग इस्लामपुर ज़िला ज़रूरी क्यों है, इसका जवाब पश्चिम बंगाल और बिहार के बंटवारे, दोनों राज्यों को वापस एक करने की एक नाकाम कोशिश और 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन में छिपा है।
बिहार से पश्चिम बंगाल आने का इतिहास
अंग्रेज़ी सरकार ने 22 मार्च 1912 को बंगाल को दो टुकड़े में बाँट दिया और इस तरह से बिहार अस्तित्व में आया। 15 अगस्त 1947 को भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद बंगाल का फिर विभाजन हो गया।
पश्चिम बंगाल भारत में रह गया और बाकी हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान कहलाया, जो आगे जा कर बांग्लादेश बना। लेकिन, पश्चिम बंगाल इधर एक अलग समस्या से जूझने लगा। पश्चिम बंगाल का उत्तरी हिस्सा यानी उत्तर बंगाल बाकी के राज्य से ज़मीन से नहीं जुड़ा था।
बीच में बिहार का कुछ हिस्सा था। ये भाग तत्कालीन पूर्णिया ज़िले के किशनगंज सब-डिवीज़न का हिस्सा था। देशभर में इस तरह की गलतियों को सुधारने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग यानी States Reorganisation Commission यानी SRC बनाया गया।
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस आयोग से बिहार के कुछ हिस्से मांगे, जिससे पूरा राज्य ज़मीन से जुड़ पाता। लेकिन उस इलाके में इसका विरोध शुरू हो गया। क्योंकि यहाँ की ज़्यादातर आबादी बंगाली नहीं, बल्कि हिंदी, उर्दू या सुरजापुरी बोलती थी और वो बिहार में ही रहना चाहती थी।
इसे देखते हुए पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र राय और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने बंगाल और बिहार को वापस एक राज्य बनाने की कोशिश की, जिसका दोनों ही राज्यों में जमकर विरोध हुआ।
इसलिए आखिरकार, राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर बिहार के तत्कालीन पूर्णिया ज़िले के एक हिस्से को पश्चिम बंगाल में शामिल कर दिया गया। वही हिस्सा आज का इस्लामपुर सब-डिवीज़न है।
इस हिस्से को 1 नवंबर, 1956 को दार्जिलिंग ज़िले से जोड़ा गया था, लेकिन अगले ही दिन इसे पश्चिम दिनाजपुर ज़िले का हिस्सा बना दिया गया।
आगे मार्च 1959 को इस इलाके को इस्लामपुर सब-डिवीज़न बनाया गया। मार्च 1992 में जब पश्चिम दिनाजपुर को दो टुकड़ों में बांटा गया, तो इस्लामपुर सब-डिवीज़न वर्तमान उत्तर दिनाजपुर ज़िले का हिस्सा बना।
इस्लामपुर सब-डिवीज़न ने पश्चिम बंगाल को वापस जोड़ तो दिया, लेकिन यहाँ के लोग अब भी अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस्लामपुर को अलग जिला बनाने की मांग को लेकर पदयात्रा पर निकले रज़ा कमिटी के मसरूर आलम का आरोप है कि इस्लामपुर के उर्दू और सुरजापुरी भाषी लोगों के साथ रायगंज जिला मुख्यालय में भेदभाव होता है। साथ ही रायगंज सब-डिवीज़न के मुक़ाबले इस्लामपुर सब-डिवीज़न में विकास के काम भी कम होते हैं।
पश्चिम बंगाल में इस्लामपुर महकमा से छोटे ज़िले
2011 की जनगणना के अनुसार इस्लामपुर सब-डिवीज़न की कुल आबादी लगभग 17 लाख है, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार आने के बाद 2014 में बने नए ज़िले अलीपुरद्वार की आबादी 15 लाख के करीब है, 2017 में बने झारग्राम ज़िले में करीब 11 लाख की आबादी है।
वहीं, 2017 में बने कलिम्पोंग ज़िले की आबादी महज़ ढाई लाख है। क्षेत्रफल के आधार पर भी देखा जाए तो 2017 में बने पश्चिम बर्धमान जिले का क्षेत्रफल इस्लामपुर सब-डिवीज़न के क्षेत्रफल से कम है।
क्यों बनना चाहिए इस्लामपुर जिला?
इस्लामपुर के ही एक स्कूल के पूर्व हेडमास्टर सुबोल भौमिक इस मामले के जानकार हैं। इस्लामपुर को जिला बनाना क्यों ज़रूरी है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने हमें बिंदुवार कारण गिनाये। साथ ही उन्होंने बताया कि इस्लामपुर अगर जिला बनता है, तो यहाँ प्रशासनिक भवन बनाने के लिए भी पर्याप्त ज़मीन उपलब्ध है।
1. सोनापुर से ज़िला मुख्यालय रायगंज की दूरी 160 किलोमीटर से ज़्यादा है, ऐसा पश्चिम बंगाल के किसी और ज़िले में नहीं है।
- यह एक पिछड़ा इलाक़ा है, यहाँ साधारण सुरजापूरी आबादी बस्ती है, जिन्हें ज़िला मुख्यालय रायगंज जाने में काफ़ी परेशानी होती है।
- ये चिकेन नेक वाला इलाका है, एक तरफ बांग्लादेश, नेपाल और दूसरी तरफ़ बिहार है। जो कानून व्यवस्था के लिए हमेशा एक चुनौती बना रहता है।
- यहाँ के ज्यादातर लोगों की भाषा उर्दू, हिंदी या सुरजापूरी है और सांस्कृतिक रूप से भी ये अलग हैं। रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति सब अलग है।
- SRC कमिशन के एक खंड में साफ बताया गया है और साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र राय ने भी ये वादा किया था कि पश्चिम दिनाजपुर जिला जब भी बंटेगा इस्लामपुर को अलग जिले का दर्जा दिया जाएगा।
- तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र राय ने इस्लामपुर महकमा के उद्घाटन समारोह के दौरान यह वादा किया था, साथ ही स्थानीय ज़मीनदार और तब के विधायक आफ़ाक चौधरी के घर पर भी कहा था कि इस्लामपुर को आने वाले दिनों में ज़िला बनाया जाएगा। लेकिन आगे इस विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई।
- 1992 में कोलकाता हाई कोर्ट में एक केस हुआ था, जिसकी सुनवाई में इस्लामपुर जिले की मांग को सही और न्यायसंगत बताया गया। क्यूंकि ये SRC के recommendation में ही शामिल है। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि उत्तर दिनाजपुर का जिला मुख्यालय रायगंज होगा, इसलिए तब इस्लामपुर जिला नहीं बन पाया।”
लगभग 3 करोड़ की आबादी वाले झारखण्ड में 24 ज़िले हैं, लगभग 5 करोड़ आबादी वाले आंध्र प्रदेश में 26 ज़िले हैं, लगभग 10 करोड़ आबादी वाले बिहार में 38 ज़िले हैं, लेकिन 9 करोड़ आबादी वाले पश्चिम बंगाल में सिर्फ 30 ज़िले हैं।
Transferred Area Surjapur Organisation (TASO)
पिछले कुछ दशकों में इस्लामपुर को जिला बनाने की मांग को लेकर कई आंदोलन हुए और संगठन बने, इन्हीं में से एक टासो TASO यानी Transferred Area Surjapur Organisation है।
टासो के प्रवक्ता पसारुल आलम कहते हैं, यहाँ की 80 फीसद आबादी यानी लगभग 14 लाख लोग सुरजापुरी हैं, हमारी मांग है कि सुरजापुरी भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए इस इलाके का अपना एक जिला हो और अपना एक सांसद हो।
जिला मुख्यालय दूर होने की समस्याओं को गिनाते हुए पसारुल कहते हैं, इस्लामपुर को जब बिहार से पश्चिम बंगाल लाया गया, तो जिला मुख्यालय दार्जिलिंग रहा, फिर बालुरघाट रहा, अब रायगंज है, जबकि बिहार का किशनगंज हमारे काफी करीब था।
क्या कहती है सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस?
उधर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के युवा जिला अध्यक्ष कौशिक गुण कहते हैं, पहले जिला मुख्यालय रायगंज जाने में चार घंटे लगते थे, अब सिर्फ दो घंटे लगते हैं। इस्लामपुर को पुलिस जिला बना दिया गया है, आगे स्वास्थय जिला बनाया जाएगा और प्रशासनिक आवश्यकता दिखने पर जिला बनाने का विचार भी किया जा सकता है। लेकिन, कुछ संगठन और दल इस मुद्दे को लेकर माहौल ख़राब करना चाहते हैं।
“मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आशीर्वाद से यहां रायगंज पुलिस डिस्ट्रिक्ट और इस्लामपुर पुलिस डिस्ट्रिक्ट बन गया है। उन्होंने ही इस्लामपुर को मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल दिया, पॉलिटेक्निक कॉलेज दिया, नहीं माँगने पर भी कई चीजें दीं।”
जिला बनाने का काम एक दिन का नहीं होता है। CM को सब कुछ पता है, फिर भी कई लोग यहाँ राजनीति कर रहे हैं।
ममता बनर्जी ने यहां पुलिस जिला बनाया है, और हुआ तो आगे इसे स्वास्थ्य जिला बनाया जाएगा। आगे अगर प्रशासनिक दृष्टिकोण से ऐसा लगा तो हो सकता है की पूर्ण जिला भी बना दें।
अलग अलग सामाजिक संगठन और उनके पीछे से CPM, कांग्रेस, भाजपा ज्ञान बाँट रहे हैं, आंदोलन कर माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इससे कुछ नही होने वाला है। हमारी पार्टी यहाँ बहुत मजबूत है।
पहले रायगंज पहुंचने में चार घण्टे का समय लगता था, अब दो घंटे में ही पहुँचा जा सकता है, क्योंकि दालखोला के जाम को कम करने के लिए मुख्यमंत्री ने ओवरब्रिज बनवाया, इस्लामपुर में बाईपास बनवाया। हालांकि ये केंद्र सरकार का काम है, लेकिन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बिना नामुमकिन था।”
सिलीगुड़ी पंचायत चुनाव: लाल, हरा व गेरुआ पार्टी की इज्जत का सवाल
‘गोरखालैंड’ का जिन्न फिर बोतल से बाहर
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।