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पश्चिम बंगाल में गुलाम रब्बानी की अल्पसंख्यक मंत्री से क्यों हुई छुट्टी?

पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के प्रभावशाली नेता व गोआलपोखर विधायक गुलाम रब्बानी की राज्य के अल्पसंख्यक मामले और मदरसा शिक्षा विभाग के मंत्री के पद से छुट्टी कर दी गई है।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
WB CM Mamta Bannerjee and Minister Ghulam Rabbani

पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के प्रभावशाली नेता व गोआलपोखर विधायक गुलाम रब्बानी की राज्य के अल्पसंख्यक मामले और मदरसा शिक्षा विभाग के मंत्री के पद से छुट्टी कर दी गई है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कैबिनेट बैठक में इसकी घोषणा की और यह विभाग उन्होंने अपने जिम्मे ले लिया है। वहीं, एमएसएमई व टेक्सटाइल विभाग के राज्यमंत्री तजुल हुसैन को इस विभाग का भी राज्यमंत्री बनाया गया है। गुलाम रब्बानी को बागवानी विभाग का जिम्मा सौंपा गया है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़े 53 वर्षीय गुलाम रब्बानी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर उत्तर दिनाजपुर ज़िले के गोआलपोखर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे।


ममता बनर्जी के इस फैसले को पिछले दिनों सागरदिघी विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में तृणमूल उम्मीदवार की पराजय और आसन्न पंचायत चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।

गौरतलब हो कि सागरदिघी में मुस्लिम आबादी करीब 70 प्रतिशत है और यह माना जाता है कि मुस्लिम वोटर तृणमूल कांग्रेस को वोट देते रहे हैं। मगर, सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में वाममोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार ने तृणमूल कांग्रेस को हरा दिया था।

जानकारों का कहना है कि सागरदिघी चुनाव में कांग्रेस की जीत व तृणमूल की हार में कई कारकों की भूमिका रही है और उन कारकों में मुस्लिम वोटरों में तृणमूल को लेकर नाराजगी भी एक है। चूंकि गुलाम रब्बानी अल्पसंख्यक मामलों व मदरसा शिक्षा के मंत्री रहे हैं, तो उनके कामों की भी समीक्षा की गई और माना जा रहा है इस समीक्षा में उनको लेकर अच्छे संकेत नहीं मिले।

पश्चिम बंगाल के हावड़ा हाई स्कूल के हेडमास्टर आफताब आलम ने गुलाम रब्बानी से स्कूलों के मसले पर एक दफा मुलाकात की थी। वह उस मुलाकात के बारे में कहते हैं, “उस मुलाकात में मेरे साथ कई और शिक्षक थे। जब हमलोगों ने नियुक्ति व अन्य मसलों पर बातचीत शुरू की, तो हमारी बातें सुनने के बजाय वह हमें डांटने-डपटने लगे। वह मुलाकात वहीं खत्म हो गई और इसके बाद से हमलोगों ने दोबारा उनसे मुलाकात नहीं की।”

वह आगे यह भी कहते हैं कि अल्पसंख्यकों से जुड़ी योजनाएं धरातल पर काम नहीं कर रही हैं और गुलाम रब्बानी का इस ओर ध्यान भी नहीं है, तो लोगों में नाराजगी होनी ही थी।

बताया जा रहा है कि सागरदिघी चुनाव परिणाम के बाद हार की समीक्षा के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हालांकि अल्पसंख्यकों में भारी नाराजगी की बात तो नहीं थी, लेकिन इस ओर संकेत जरूर दिया गया था। इसे गंभीरता से लेते हुए और पंचायत चुनाव के मद्देनजर ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यक मामले व मदरसा शिक्षा विभाग अपने अधीन ले लिया।

इसके अलावा ममता बनर्जी ने फाइनेंस कॉरपोरेशन फॉर माइनॉरिटी को बदल कर अल्पसंख्यक विकास बोर्ड और प्रवासी मजदूरी विकास बोर्ड बनाने की घोषणा की है। जल्द ही इनके सदस्यों के नामों की घोषणा की जाएगी।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में तृणमूल कांग्रेस के नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा है कि अल्पसंख्यक बोर्ड व प्रवासी मजदूर बोर्ड बनाने के पीछे भी सागरदिघी चुनाव परिणाम ही है।

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“पार्टी को लगता है कि अल्पसंख्यकों का एक तबका तृणमूल कांग्रेस से छिटक गया है और पार्टी इसे वापस पाना चाहती है। सागरदिघी में बहुत सारे ऐसे मजदूर हैं, जो काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में जाते हैं। वे उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस को वोट करने के लिए घर नहीं लौटे। हमें लगता है कि इस बड़े हिस्से के वोट नहीं करने से पार्टी को नुकसान हुआ है,” उन्होंने कहा।

उल्लेखनीय हो कि सागरदिघी सीट पर लम्बे समय तक वाममोर्चा का कब्जा रहा था। फिर कांग्रेस ने इस सीट से लगातार कई बार जीत दर्ज की, लेकिन साल 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद लगातार तृणमूल ही इस सीट से जीतती रही थी। यहां तक साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट से बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी, लेकिन दो साल बाद ही तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार देवाशीष बंद्योपाध्याय, वाममोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार बाइरन विश्वास के हाथों से 22,986 वोटों के अंतर से हार गए। आंकड़े बताते हैं कि बाइरन विश्वास को भाजपा और तृणमूल दोनों पार्टियों के वोटरों का वोट भी मिला था। तृणमूल को ऐसी हार तब मिली, जब पार्टी ने कई विधायकों को प्रचार में झोंक दिया था। यहां तक कि पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले ममता बनर्जी के भतीजे व सांसद अभिषेक बंद्योपाध्याय ने खुद यहां प्रचार किया था। उन्होंने एक जनसभा में यह भी कह दिया था कि अगर एक भी बूथ पर तृणमूल कांग्रेस हारती है, तो उस बूथ को मीर जाफर (मीर जाफर को भारतीय इतिहास में गद्दार कहा जाता है) का बूथ करार दिया जाएगा।

वाममोर्चा से जुड़े एक नेता ने ‘मैं मीडिया’ को बताया था कि स्थानीय स्तर पर सागरदिघी में काफी भ्रष्टाचार हो रहा है और इससे स्थानीय लोग खासा नाराज थे।
सागरदिघी उपचुनाव में जीत से कांग्रेस और वाममोर्चा को संजीवनी मिली और दोनों ही पार्टियां आने वाले सागरदिघी मॉडल को आने वाले पंचायत चुनाव में भी दोहराने की तैयारी कर रही है।

सागरदिघी चुनाव परिणाम के अलावा माना जा रहा है कि गुलाम रब्बानी को हटाए जाने में पार्टी के माइनॉरिटी सेल में फेरबदल की भी भूमिका रही है।

सागरदिघी परिणाम के बाद मुशर्रफ हुसैन को तृममूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल माइनॉरिटी सेल का अध्यक्ष बनाया गया था। मुशर्रफ हुसैन उत्तर दिनाजपुर के ईटाहार विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उत्तर दिनाजपुर, गुलाम रब्बानी का भी गृह जिला है। ऐसे में माना जा रहा है कि शायद इसलिए पार्टी ने ये फैसला लिया होगा।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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