पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव होनेवाला है। यूं तो यह पंचायत चुनाव राज्य के सभी जिलों में हो रहा है, लेकिन सबसे दिलचस्प मामला दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र का है।
एक तो यह कि वर्ष 2000 के बाद अब यानी पूरे 23 साल बाद यहां पंचायत चुनाव हो रहा है, वह भी ‘त्रिस्तरीय’ नहीं बल्कि ‘द्विस्तरीय’ और दूसरे यह कि इसमें अजब-गजब गठबंधन की अजब-गजब लड़ाई है। एक-दूसरे के दुश्मन रहे लोग अब एक-दूसरे के दोस्त हो गए हैं।
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वहीं, दुश्मनों के दुश्मनों के बीच भी दोस्ती पनप गई है। यहां तक कि जो लोग यहां पंचायत चुनाव का विरोध कर रहे थे वे भी खुद इसमें भाग ले रहे हैं। इसके साथ ही यह लड़ाई कुछ ‘खुल्लम-खुल्ला’ है तो कुछ ‘छुपन-छुपाई’ भी है। आमने-सामने की लड़ाई के साथ ही साथ ‘प्रॉक्सी वार’ यानी कि ‘छद्म-युद्ध’ भी है।
तृणमूल और भाजपा का स्थानीय पार्टियों से गठबंधन
यहां यह पंचायत चुनाव आम ग्रामीणों के बीच से उठकर आए उम्मीदवारों से ज्यादा दो ‘फूलों’ के बीच है। वह भी दोनों ‘फूलों’ के बीच ‘कांटे’ की टक्कर वाली बात है। एक ‘फूल’ केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘कमल फूल’ है तो दूसरा ‘फूल’ पश्चिम बंगाल राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस का ‘घास फूल’ है। इन्हीं दो ‘फूलों’ के बीच ‘कांटे’ की टक्कर है। इसे लेकर ये दोनों ही पार्टियां पहाड़ के छोटे-छोटे दलों को अपने पाले में मिला कर पंचायत चुनाव का यह युद्ध जीतने को हर तिकड़म आजमा रही हैं।
दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में पंचायत चुनाव में अपनी कट्टर प्रतिद्वंदी तृणमूल कांग्रेस को चारों खाने चित करने को भाजपा ने कई पहाड़ी दलों को मिलाकर ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ बनाया है। इसमें भाजपा के नेतृत्व में अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’, बिमल गुरुंग का गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो), मन घीसिंग का गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ), आर.बी. राई की क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (क्रामाकपा) और डॉ. हर्क बहादुर छेत्री द्वारा स्थापित जन अधिकार पार्टी (जाप) शामिल है। इस ‘संयुक्त गठबंधन’ को दार्जिलिंग के सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट नेतृत्व दे रहे हैं।
दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त, अनित थापा का भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) है। इनके बीच जहां आमने-सामने की खुल्लम-खुल्ला लड़ाई है वहीं छुप-छुप कर ‘प्रॉक्सी वार’ यानी ‘छद्म युद्ध’ भी है।
भाजपा, तृणमूल से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, इस पंचायत चुनाव में दार्जिलिंग जिले के पार्वत्य क्षेत्र में दलीय उम्मीदवारों की संख्या की तुलना में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या कहीं ज्यादा है। दार्जिलिंग जिला निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय से प्राप्त तथ्य कुछ ऐसा ही खुलासा करते हैं।
दार्जिलिंग के पार्वत्य क्षेत्र में कुल 501 ग्राम पंचायत क्षेत्रों की 501 सीटों के लिए कुल 1734 उम्मीदवारों ने नामांकन पर्चा दाखिल किया है। उनमें सर्वाधिक संख्या में 601 उम्मीदवार अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) से हैं। अन्य दलों में भाजपा ने 211, अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’ ने 208, बिमल गुरुंग के गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) ने 65, मन घीसिंग के गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) ने 63, तृणमूल कांग्रेस ने 26, माकपा ने 17, आर.बी. राई की क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (क्रामाकपा) ने 12 और डा. हर्क बहादुर छेत्री द्वारा स्थापित जन अधिकार पार्टी (जाप) ने दो उम्मीदवार खड़े किए हैं।
वहीं, निर्दलीय उम्मीदवार 529 हैं। ऐसा ही हाल पंचायत समिति की सीटों पर भी है। कुल 156 पंचायत समिति क्षेत्रों की 156 सीटों के लिए कुल 492 उम्मीदवारों ने नामांकन पर्चा दाखिल किया है। उनमें भी अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) की ओर से ही सर्वाधिक 172 उम्मीदवार हैं।
अन्य दलों में भाजपा के 61, ‘हाम्रो पार्टी’ के 45, गोजमुमो के 18, जीएनएलएफ के 15, तृणमूल कांग्रेस के 13, माकपा के दो और क्रामाकपा के दो उम्मीदवार हैं। जबकि, निर्दलीय 164 उम्मीदवारों ने नामांकन पर्चा दाखिल किया है।
इस पर गौर करें तो पाएंगे कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस व उसकी मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विश्वासपात्र अनित थापा के बीजीपीएम को छोड़ कर अन्य कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसके उम्मीदवारों की संख्या निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या से ज्यादा हो। ज्यादा तो दूर आधी से भी बहुत कम है। अब तक जो तस्वीर साफ दिख रही है, वह यह कि इस पंचायत चुनाव में एक ओर तृणमूल कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त बीजीपीएम तो दूसरी ओर भाजपा के नेतृत्व वाला ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ है। अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों की गिनती इक्का-दुक्का ही है। वहीं, कांग्रेस व माकपा नीत वाममोर्चा के अन्य घटक दल तो पूरी तरह शून्य ही हैं।
निर्दलीय उम्मीदवारों के जरिए ‘प्राॅक्सी वार’!
ऐसे चुनावी परिदृश्य के एक अहम बिंदु का राजनीतिक विश्लेषक जो विश्लेषण करते हैं, वह चौंकाने वाला है। वह यह कि जब बीजीपीएम और भाजपा नीत ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ के बीच लगभग हर सीट पर आमने-सामने की खुल्लम-खुल्ला लड़ाई है तो फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या अप्रत्याशित रूप में इतनी ज्यादा क्यों है ?
राजनीतिक विश्लेषक इसे न सिर्फ ‘प्रॉक्सी वार’ यानी ‘छद्म युद्ध’ करार देते हैं बल्कि बीते वर्ष 2022 के जीटीए चुनाव सरीखा ‘डबल गेम’ वाला ‘अलग युद्ध’ भी करार देते हैं।
उनकी मानें तो एक-दूसरे को मात देने के लिए कल-बल-छल, हर तिकड़म अपनाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने एक ओर जहां खुल्लम-खुल्ला अपने चुनाव चिन्ह पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं तो दूसरी ओर गुप्त रूप में भी अपने ऐसे अनेक उम्मीदवार खड़े किए हैं जो दलीय नहीं बल्कि निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
बिमल गुरुंग कितने कामयाब होंगे?
इसके अलावा इस पंचायत चुनाव में दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में एक और दिलचस्प पहलू गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के सुप्रीमो बिमल गुरुंग भी हैं। पहले भाजपा के दोस्त रहे और फिर उससे दुश्मनी कर तृणमूल कांग्रेस के दोस्त हो गए बिमल गुरुंग अब पंचायत चुनाव में फिर से भाजपा के दोस्त हो गए हैं।
एक दशक से भी अधिक समय तक भाजपा के परम मित्र रहे और लगातार तीन बार के लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र की सीट भाजपा की ही झोली में दिलाते रहे गुरुंग उससे नाता तोड़ कर इधर दो-ढाई वर्षों से तृणमूल कांग्रेस व पश्चिम बंगाल राज्य की मुखिया ममता बनर्जी के करीबी हो गए थे।
इस दौरान 2021 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 2022 में हुए दार्जिलिंग नगर पालिका चुनाव व गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) चुनाव, किसी में भी वह न तो कहीं तृणमूल कांग्रेस का ‘घास फूल’ खिला पाए और न ही अपनी ‘खुकुरी’ का जलवा बिखेर पाए।
ऐसे में उनके किसी काम का न रहते देख तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पहाड़ की एकदम नई उभरी शक्ति दार्जिलिंग नगर पालिका चुनाव की विजेता ‘हाम्रो पार्टी’ व उसके मुखिया अजय एडवर्ड और फिर जीटीए चुनाव विजेता भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) व उसके मुखिया अनित थापा को अपने पाले में ले आईं और बिमल गुरुंग एक तरह से हाशिये पर चले गए।
अब जब पूरे 22 वर्षों के बाद दार्जिलिंग में पंचायत चुनाव हो रहा है तो बिमल गुरुंग और भाजपा फिर एक हो गए हैं। इतना ही नहीं, अब तक भाजपा के लिए अजनबी सी रही ‘हाम्रो पार्टी’ भी उसके साथ आ गई है।
वहीं, एक समय पहाड़ के सर्वेसर्वा रहे सुभाष घीसिंग द्वारा स्थापित गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ), और तो और, वामपंथी आर. बी. राई की क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (क्रामाकपा) भी भाजपा के साथ है। इन सबने नया ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ बना कर इस पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ युद्ध का शंखनाद कर दिया है।
इनके नेतृत्वकर्ता दार्जिलिंग के सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट ने तो एकदम साफ कह दिया है, “अत्याचार, उत्पीड़न, अन्याय व विनाश की समाप्ति हेतु दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र को तृणमूल कांग्रेस मुक्त करने के लिए ही यह संयुक्त गोरखा गठबंधन बना है और चुनावी मैदान में है।” इसके जवाब में दार्जिलिंग जिला (पार्वत्य) तृणमूल कांग्रेस के चेयरमैन एल. बी. राई कहते हैं, “ऐसी जितनी भी पार्टी व संगठनों का गठबंधन हो जाए, उससे कुछ नहीं होने वाला। पहाड़ पर जीत केवल जनता के गठबंधन की ही होगी और ‘जनता का गठबंधन’ तृणमूल कांग्रेस के साथ ही है। क्योंकि, पहाड़ व पहाड़वासी अब और विनाश नहीं चाहते। उन्हें सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए।”
बीजीपीएम ने भाजपा सांसद को लिया निशाने पर
गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) में सत्तारूढ़ अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) के प्रवक्ता एस. पी. शर्मा ने भी दार्जिलिंग के भाजपाई सांसद राजू बिष्ट को आड़े हाथों लिया है।
अभी हाल ही में सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट्स क्लब में संवाददाता सम्मेलन कर उन्होंने कहा, “वर्तमान पंचायत चुनाव में सांसद पहाड़ की आम जनता को गुमराह कर रहे हैं। वह जगह-जगह लोगों को कहते फिर रहे हैं कि जहां त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था होती है वहीं पंचायतें राज्य सरकार के अधीन आती हैं और जहां यह एक स्तरीय अथवा दो स्तरीय हो तो वह सीधे-सीधे केंद्र सरकार के अधीन हो जाती हैं। दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में चूंकि द्विस्तरीय पंचायत चुनाव ही हो रहा है इसलिए यहां के लोगों को चिंता की कोई बात नहीं है। वे भाजपा व उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों को विजयी बनाएं फिर यहां की पंचायतों को सीधे केंद्र से ही पैसा आएगा। यह कितना हास्यास्पद है। उन्हें या तो पंचायती राज व्यवस्था का कोई ज्ञान ही नहीं है या फिर वह 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग राज्य गोरखालैंड दिला देने के अपने वादे पर लोगों के सवालों से बचने के लिए जान-बूझ कर बेतुकी बातें कर लोगों को गुमराह करने में लगे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “सांसद कहते हैं कि पश्चिम बंगाल राज्य में पंचायत चुनाव लगातार जारी रहा, मगर दार्जिलिंग जिला के पार्वत्य क्षेत्र चुनाव क्यों रुका रहा? तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि ये सारे लोग जानते हैं कि ऐसा क्यों है। पहले, दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) व फिर गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के माध्यम से जिन लोगों ने पहाड़ पर स्वायत्त शासन व्यवस्था चलाई उन लोगों ने पंचायती राज व्यवस्था को कभी महत्व ही नहीं दिया। एकदम किनारे करके रखा। यहां तक कि इधर खुद भाजपा व उसके अन्य सहयोगी सात-आठ दलों ने कहा कि पहाड़ पर त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था ही चाहिए, द्विस्तरीय किसी कीमत पर नहीं मानेंगे। अब जब द्विस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहा है तो विरोध नहीं कर वे सात-आठ दल मिल कर गठबंधन बना कर उम्मीदवार खोज रहे हैं। ये और बात है कि उन्हें उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं।”
बीजीपीएम प्रवक्ता ने आगे कहा, “सांसद को अपने पद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। झूठ-प्रपंच के सहारे आम जनता को गुमराह करने से बचना चाहिए। झूठ-प्रपंच अब नहीं चलेगा। केवल विकास चलेगा। उसी पर चुनाव होगा। अब जनता सब समझ चुकी है। उनके किसी बहकावे में नहीं आने वाली है। जीटीए चुनाव की ही भांति पंचायत चुनाव में भी सर्वत्र विकास के मुद्दे पर बीजीपीएम की ही जीत सुनिश्चित है।”
इसी तरह भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) के अध्यक्ष अनित थापा का भी कहना है कि पहाड़ के दलों के बीच आपसी मतभेद हो सकते हैं लेकिन उन्हें भाजपा के बहकावे में आने से बचना चाहिए। क्योंकि, बुनियादी स्तर के चुनाव में भाजपा का दखल पहाड़ के स्थानीय दलों के अस्तित्व के लिए खतरे की बात होगी।
उल्लेखनीय है कि 2018 की ही तरह इस वर्ष भी राज्य भर में पंचायत चुनाव एक साथ हो रहे हैं। मगर, राज्य के 22 जिलों में से 20 में यह चुनाव ‘त्रिस्तरीय’ है, तो वहीं दो जिलों, दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र अंतर्गत दार्जिलिंग के पार्वत्य क्षेत्र और कालिम्पोंग के पार्वत्य क्षेत्र में यह ‘द्विस्तरीय’ है। मतलब, जहां राज्य के 20 जिलों में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, व जिला परिषद तीनों के चुनाव हो रहे हैं वहीं दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में केवल द्विस्तरीय यानी ग्राम पंचायत व पंचायत समितियों के ही चुनाव हो रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इन क्षेत्रों के लिए पहले से ही स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था के मद्देनजर गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) की व्यवस्था है। इसीलिए इन क्षेत्रों के लिए जिला परिषद चुनाव का प्रावधान नहीं है।
वहीं, अपनी अलग भौगोलिक स्थिति के चलते दार्जिलिंग के ही मैदानी इलाके ‘सिलीगुड़ी’ के लिए अलग से त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत ‘सिलीगुड़ी महकमा परिषद’ की व्यवस्था है, जिसका पंचायत चुनाव बीते वर्ष 2022 में ही हो चुका है। उसमें तृणमूल कांग्रेस की एकछत्र जीत हुई थी। इक्की-दुक्की जगहों पर ही भाजपा विपक्ष में रही।
इधर, वर्तमान पंचायत चुनाव में नामांकन संबंधी समस्त प्रक्रियाएं बीती 20 जून को ही पूरी हो चुकी हैं।
इसी बीच दार्जिलिंग जिले के दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में ग्राम पंचायतों की 60 सीटों और पंचायत समितियों की 9 सीटों पर अनित थापा के भारतीय गोरखा जनतांत्रिक प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) की निर्विरोध जीत हुई है। अन्य सीटों के लिए अभी जगह-जगह चुनाव प्रचार जोरों पर है।
यहां तक कि इस पंचायत चुनाव के प्रचार में खुद पश्चिम बंगाल राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी कूद पड़ी हैं। उन्होंने बीती 26 जून को कूचबिहार जिला व 27 जून को जलपाईगुड़ी जिला में चुनाव प्रचार किया। अन्य दलों ने भी चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। अब 8 जुलाई को मतदान होगा व 11 जुलाई को मतगणना के साथ ही जनादेश आएगा।
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