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एक अदद सड़क के लिए तरसता नेपाल सीमा पर बसा यह गांव

नेपाल सीमा पर बसा अररिया जिले का महादलित गाँव ग्वारपुछरी आज भी एक अदद सड़क के लिए तरस रहा है, इस गाँव में जाने के लिए गड्ढों से भरी करीब ढाई किलोमीटर लम्बी कच्ची सड़क ही एक मात्र साधन है।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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नेपाल सीमा पर बसा बिहार के अररिया जिले का महादलित गाँव ग्वारपुछरी आज भी एक अदद सड़क के लिए तरस रहा है। अररिया ज़िले के नरपतगंज प्रखंड के इस गाँव में जाने के लिए गड्ढों से भरी करीब ढाई किलोमीटर लम्बी कच्ची सड़क ही एक मात्र साधन है।

सोनपुर पंचायत के वार्ड नंबर 17 का ये गांव नेपाल के बिराटनगर शहर से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्वारपुछरी गांव के लोग सड़क न होने के कारण रोज़ाना दिक्कतों का सामना करते हैं। गांव वालों का कहना है कि सड़क न होने से एम्बुलेंस जैसी स्वास्थ सेवा गांव तक नहीं पहुँच पाती है जिससे आपातकाल स्थिति पैदा होने पर मरीज़ों की मौत हो जाती है।

एक वर्ष पहले गांव निवासी मोहनी देवी के जवान बेटे बिदान ऋषिदेव की मृत्यु हो गई। मोहनी देवी कहती हैं कि उनके बेटे को बुखार हुआ था, तबियत ज़्यादा बिगड़ने पर परिजन उसे कांधे पर लादे अस्पताल ले जा रहे थे, लेकिन उनके बेटे ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।


स्थानीय वार्ड सदस्य बेबी देवी ने बताया कि सड़क न होने से मरीज़ों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार हो तो बिना इलाज के घर पर ही मर जाता है। उन्होंने आगे कहा कि वार्ड सदस्य होने के कारण लोग उनसे सड़क की बदहाली पर प्रश्न करते हैं लेकिन ऊपर से ही सड़क निर्माण के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है।

वार्ड सदस्य बेबी देवी के पति सुजेश मेहता कहते हैं कि खाद से लेकर खाने पीने के कोई भी सामान के लिए इसी सड़क से होकर बाज़ार या अन्य जगह जाना होता है। उन्होंने बताया कि इस ढाई किलोमीटर लंबी सड़क के निर्माण के लिए वह मुखिया सहित जिला परिषद और विधायक के पास गए लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

पेशे से किसान सुकरू उड़ाऊँ ने बताया कि गांव में 50 से अधिक घर हैं लेकिन यहां किसी को इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं मिला है और सड़क की बदहाली पर भी कोई सुनवाई नहीं होती। चुनाव के समय नेता आकर एक से एक वादे कर जाते हैं पर उनमें से एक भी पूरा नहीं होता।

स्थानीय बुज़ुर्ग भूटिया देवी कहती हैं कि गांव में कोई सरकारी सेवा नहीं है। एक प्राथमिक विद्यालय है जहां बच्चे पांचवीं कक्षा तक पढ़ते हैं लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोई स्कूल नहीं है। सड़क न होने के कारण बच्चे दूर के इलाकों में स्थित स्कूलों तक नहीं जा पाते और परिणाम स्वरूप पांचवीं कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई रुक जाती है।

स्थानीय ग्रामीण कृत्यानंद सदा पत्नी के साथ साइकिल से अस्पताल जा रहे हैं, हमारा कैमरा देख वह हमारी तरफ आए। उन्होंने बताया कि वह कुछ दिनों से बीमार हैं और अपना इलाज कराने तीन किलोमीटर दूर चकोरवा स्थित स्वास्थ केंद्र जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों मुखिया जी ने शौचालय बनवाया है लेकिन उसके अलावा नल जल और इंदिरा आवास जैसी मूलभूत सरकारी योजनाएं उनके गांव तक अब तक नहीं पहुंची हैं।

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स्थानीय युवा नीतीश ने बताया कि ग्वारपुछरी एक महादलित बहुल गांव है जहां करीब 90 वोटर हैं। चुनाव के समय नेता उनके गांव की तरफ रुख करते हैं लेकिन उसके बाद कुछ नहीं होता है।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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